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Tag: संजय डुंगरपुरिया

यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता
आलेख

यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** युगों-युगों से भारतीय परंपरा में स्त्री को पूजनीय बताया और माना गया। फिर क्यों बार-बार ऐसे उदाहरण है जब पुरुष ने स्त्री को एक वस्तु की भांति त्याग दिया, अपमानित किया या इस्तेमाल किया। स्त्री को नरक का द्वार तक बता दिया गया है। ऋषि गौतम ने श्राप दे दिया अहिल्या को और वो पत्थर हो गयी। अरे श्राप देना था तो इंद्र को देते जो गौतम का रूप बना कर अहिल्या के साथ व्यभिचार करता रहा। अहिल्या को तो पता भी नही था की वो इंद्र है। सूर्पनखा द्वारा प्रणय निवेदन करने पे लक्ष्मण उसकी नाक काट देते हैं। जबकि राक्षस कुल में उत्पन्न सूर्पनखा कोई गैर पारंपरिक निवेदन नही कर रही थी। इनकार कर देते नाक काटने की क्या ज़रूरत थी। रावण अशोक वाटिका में सीता को कहता है की मंदोदरी आदि सभी रानियाँ तुम्हारी अनुचरी करेंगी अगर सीता उसका वरण कर ले। एक धोबी के उलाहना देने...
यज्ञ की समिधा
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यज्ञ की समिधा

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर व्यक्ति राजनीति की शतरंज में खुद को प्यादा समझे, या फिर चुनाव यज्ञ में समिधा। इससे ज्यादा कुछ मोल नही है भारत मे आम नागरिक का। कभी फुसला कर, कभी धमका कर, कभी डरा कर चुनाव की वैतरणी पार करनी है सब नेताओ को। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस। ये सब आधुनिक ययाति हैं जो जनता रूपी पुरु से उनका यौवन जब चाहे मांग लेंगे या छीन ही लेंगे। किसी को सत्ता का मद चढ़ गया और किसी से सत्ता छीन जाने पे भी उतर ही नही रहा। किसी का उत्तराधिकारी है ही नही और कोई अपने अयोग्य उत्तराधिकारी को सत्तासीन करने के स्वप्न देख रहा। इन सब की सोच में आम आदमी का दर्द कितना महत्व रखता है विज्ञानकर्मियों के लिए खोज का विषय है। विश्व परिप्रेक्ष्य में देखे तो, कोई मौत बेच रहा, कोई दवा बेचने में लगा है, कोई आतंक बेच रहा, कोई हथियार बेच रहा, कोई धर्म बेच रहा। इंसानियत कहाँ है ...
विद्या ददाति विनयम …
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विद्या ददाति विनयम …

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** विद्या ददाति विनयम विनयात ददाति पात्रताम पात्रत्वात धनं आप्नोति धनातधर्मम ततः सुखम। अर्थात - विद्या यानी ज्ञान हमे विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमे धन प्राप्त होता है और धन से सुख मिलता है । अगर ये श्लोक और उसका अर्थ सही है तो क्यों विद्या प्राप्त करके हम विनम्र होने के स्थान पे अभिमानी हो रहे हैं? विनम्रता से योग्यता और पात्रता आती है। तो फिर क्यों हमने अपने पात्र को उल्टा करके रख दिया और शिकायत है कि भरता ही नहीं। अरे घड़ा अगर उल्टा रख दोगे तो सारा समंदर भी उड़ेल दे तो पात्र खाली ही रहेगा। जितना धनार्जन कर लेते हैं उतना ही धर्म से दूर होते जा रहे है। यहां पे धर्म का अर्थ कर्मकांड नही अपितु इंसानियत से है। फिर सुख नही मिलता यही कहते रहते है । सुख का ताल्लुक मन की स्थिति से है भौतिकता में नही। ...
कल आज और कल
व्यंग

कल आज और कल

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** केवल आनंद के लिए लिखा गया किसी की धार्मिक भावना आहत करने का मकसद नहीं है। सभी लोग फुरसत में हैं, भक्ति, मेडीटेशन सब यथाशक्ति कर रहे हैं। मैं भी कर रहा हूँ बार-बार सुने हुए सुंदरकांड में आज कुछ नए-नए अर्थ निकल के आये, नई-नई प्रेरणाएं मिली। आज के परिप्रेक्ष्य में ... समस्याएं आज भी सुरसा की तरह बड़ी होती जाती है आपको उनसे दुगुनी शक्ति से सामना करना होता है। लोग पहले भी सबूत मांगते थे आज भी मांगते हैं, नही तो हनुमान को रामजी मुद्रिका क्यों देते, और सीताजी चूड़ामणि उतार के क्यों देती। केजरीवाल और कांग्रेस को सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांगते देखा है। लोग पहले भी विश्वास नही करते थे आसानी से अब भी नही करते, सीताजी को हनुमानजी की क्षमता पे संदेह हुआ तो कनक भूधराकार शरीर दिखाना पड़ा तब विश्वास हुआ। जनता आज भी मोदीजी पे विश्वास कहा...
विश्वगुरु
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विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता। हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है। हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम...
हरावल दस्ता
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हरावल दस्ता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जो लोग राजपूती युद्धशैली से वाकिफ हैं वो इसका अर्थ भली-भांति जानते हैं। हरावल सेना का वो दस्ता होता है जो युद्ध की भेरी बजने पे दुश्मन सेना से आमने सामने की भिड़ंत करता है। मकसद होता है सामने वाले को अधिकाधिक क्षति पहुंचाना और अपने राजा या सेनापति को सुरक्षित रखना। सर्वाधिक नुकसान भी इस अग्रिम दस्ते का ही होता है और वीरगति भी इन्ही की ज्यादा होती है। आज के भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे तो साम्प्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा या युद्ध में सर्वाधिक हानि किनकी होती है। सड़क के किनारे या कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर वर्ग की। कभी सुना है की भूकंप में, बाढ़ में, या साम्प्रदायिक दंगे में नेताओ या धनाढ्य लोगो के परिवार तबाह हुए हो। भाई ऐसे परिवारों के बच्चे तो सेना में भी कहाँ भर्ती होते है। आज हरावल दस्ते में सिर्फ वंचित और शोषित ...
तृण धरी ओट कहती वैदेही
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तृण धरी ओट कहती वैदेही

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुंदरकांड में यह दोहा सुन-सुनकर बड़े हुए मेरे जैसे पुरातनपंथी लोगो को आज की महिलाओं को ऐसे वस्त्रो में देख के अजीब लगता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता अपनी मर्जी के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता स्वतंत्रता के अर्थ ये हैं क्या !!! इन अल्पवसना नारियों को हम लोग शायद रावण लगते होंगे। आप ऐसे वस्त्र पहने जो छुपाते कम और दिखाते ज्यादा हो तो आपकी स्वतंत्रता है। लेकिन अगर कोई मनचला टिप्पणी करदे तो बवाल काटेंगे। पर्दा प्रथा के विरोधी होने का मतलब ये तो नही की बिल्कुल बेपर्दा हो जाये। सीता जी रावण से तिनके की ओट धर के बात करती थी। आज की नारी ....... मुझे आज ऐसे देवर की तलाश है ..... लक्ष्मण उवाच- नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरे त्वभिजानामि न...