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विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया
अहमदाबाद (गुजरात)
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हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता।
हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है।
हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम सुविधापूर्वक उसकी तरफ आंखें मूंद लेते हैं।
हम स्वप्नजीवी है, उपदेशवृत्ति और नैतिक बातें करने में हमारा कोई सानी नही है। न्याय की उम्मीद हमे सिर्फ सामने वाले पक्ष से होती है हम अपने स्वार्थ के लिए देश और समाज की बली दे सकते है। धर्म और संप्रदाय के नाम पे हमे कोई भी मूर्ख बना सकता है, लड़वा सकता है। पर हम वास्तव में दिल से धार्मिक नही हैं, दरअसल धर्म तो हमे छू भी नही सका है, हम सम्प्रदायवाद को धर्म का नाम देते हैं। हम महान है क्योंकि भारत महान है।

परिचय :- संजय डुंगरपुरिया
निवासी : मनीनगर, अहमदाबाद (गुजरात)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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1 Comment

  • किरन अवस्थी

    बहुत स्पष्ट शब्दों में सत्य का अन्वेषण कर डाला आपने।इतना कहने लिखने का साहस किया। धन्यवाद आपको लोगों के ह्रदय टटोलकर लिखने के लिए। सब जयचंद की परंपरा निभाने में लगे है, स्वार्थ सर्वोपरि , देश ,धर्म, संस्कृति, वास्तविक शिक्षा, जीवन मूल्यों की परवाह किसी को नहीं ।

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