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२१वाँ साल
कविता

२१वाँ साल

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल बहुत लोगों का जीवन लिया तुमने छीन कई को किया तुमने मातृ-पितृ विहीन कर दिया सभी को तुमने छिन्न-भिन्न हो गये बहुत लोग दीन-हीन ऐसी महामारी तुम थे लाये एक दूजे को कोई न भाये हर रिश्ता हो गया दूर-दूर सारे सपने हो गये चूर-चूर जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल नये जोश नई उमंग से सराबोर नये सपने नई आशा से भरपूर बहुत खास हो ये नया साल अठखेलियां करता रहे नया साल दुगुनी ऊर्जा से भरा हो नया साल फिर नई आशा नये सपने सजांएगे फिर वही नया ऊँचा मुकाम पाएंगे हवा में प्यार की खुशबू बिखरांएगे बेजान रिश्ते में जान लाएँगे रोते हुए लबों पे हम हंसी लाएंगे।। आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : ...
शरद सुहावन
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शरद सुहावन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो आया शरद सुहावन मन को भाए सुन्दर मौसम ठंडी हवा के झोंके बहते मंद समीर सुहानी चलती रंग बिरंगे फूल खिले हैं धरती दुल्हन सी सजी है ऋतुओं का राजा शरद सबके मन हर्षाने आया गुनगुनी धूप सुहानी लगती कहीं बारिश की फुहार ठंडक का एहसास कराती चाय की चुस्की अच्छी लगती रिश्तों में गर्माहट लाती थोड़ी सावधानी जो बरतता बीमारियों को दूर भगाए शरद ऋतु का आनंद वो लेता खेतों में लहलहाती फसलें धरती का श्रृंगार हैं करती शरद है ऋतुराज सुहाना नाचो गाओ धूम मचाओ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के स...
कुछ तो बोलो न
कविता

कुछ तो बोलो न

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कब तक मन ही मन घुटते रहोगे तन्हाइयों में यूं ही जीते रहोगे देखा नहीं जाता तुम्हारी खामोशी को ग़म हो या खुशी अपनों से बांटा करते हैं कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो ना अगर किसी ने दिल तोड़ा है तुम्हारा खता तुम्हारी भी तो कहीं रही होगी वो तुम्हारे लिए नहीं जो पास नहीं समझो न लेकिन यूं खुद से खुद की दूरी बनाओ न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न ग़म बांटकर तो देखो अश्कों में बहा दो न बुरा ख्वाब समझ जीवन में बढ़ चलो न कब तक खुद से खुद को सजा दोगे मन ही मन घुटते रहोगे थोड़ा बाहर निकलो न कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न जिंदगी खूबसूरत है बहती नदिया सी उसको बहने दो जिन्दगी को यूं ठहराओ न होंठों पर मुस्कान बिखेरते आगे को बढ़ जाओ न एक पड़ाव पार कर अब आगे बढ़ मंजिल पा लो कुछ तो बोलो न दिल के राज खोलो न परिचय ...
सात जन्मों का बंधन
कविता

सात जन्मों का बंधन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** जन्म-जन्म नाता हमारा साथ जन्मों का बंधन प्रेम और विश्वास से इसको सिंचित करना है। सुख-दुख के हम साथी बने मिला देव आशीष कल किसने देखा है वादा हर पल निभाना है तुम मेरे सांसों में कुछ ऐसे समाए हो साजन जैसे सरगम का संगीत तुमसे है गहरी प्रीत सारा श्रृंगार तुम्हारे लिए करूं सोलह श्रृंगार तुम्हारा प्रेम जो मिला सुगंध फैली चहुं ओर तुमको पाकर जैसे पूरी हुई है सारी ही आस रहो सलामत सदा तभी मेरे होंठों पर मुस्कान सारी दुनिया से मैं लड़ जाऊं जो तुम मेरे साथ जो तुमको हो पसंद सदा वही मैं करना चाहूं बंधन है प्यार का इसमें बंधकर सुख पाती हूं प्रेम और विश्वास से रिश्ता अनोखा निभाती हूं। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
शुक्ल पक्ष में
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शुक्ल पक्ष में

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्राद्ध पक्ष क्वाँर मास के शुक्ल पक्ष में जब आता है पितरों को तर्पण देकर तब हर नर सुख पाता है।। मात-पिता जो देवतुल्य हैं सदा स्नेह बरसातें हैं जीवन की हर कठिन घड़ी में हम उनसे आशीष पाते हैं।। भागवत पुराण में यमराज पूज्य श्राद्धदेव कहलाते हैं प्रसन्न हुए गर श्राद्ध से तो पितर मुक्त हो जाते हैं।। मृत्यु एक अटल सत्य है यह श्राद्धपक्ष बतलाता है सेवा प्रेम समर्पण ही पुण्य है जीवन का सबक सिखलाता है।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
काश ऐसा फिर हो जाए
कविता

काश ऐसा फिर हो जाए

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खेल के मैदान में धरती माँ को चूम जाएं और हम बच्चे बन फिर बहुत धूम मचाएं उम्र के इस पड़ाव से कच्ची उम्र में लौट जाएं समय की चकरी फिर उल्टी घूम जाए काश ऐसा फिर हो जाए ।।१।। नीला आकाश देखकर मैं खो जाऊँ टिमटिम करते तारों की गिनती लगाऊं चाँद में सूत कातती अम्मा को निहारूं समय की चकरी को फिर उल्टा घूमाऊं काश ऐसा मैं कुछ कर जाऊँ ।।२।। वो बाग में तितलियों के पीछे दौड़ना वो चोरी से पड़ोसियों के फल तोड़ना वो मिटटी की गुल्लक में पैसे जोड़ना समय की चकरी का मेरा उस ओर मोड़ना काश ऐसा फिर हो जाए ।।३।। माँ के आँचल को पकड़कर के चलना गिरना संभलना फिर उठकर के चलना माँ की थपकियाँ संग माँ का वो पलना समय की चकरी का काश फिर यूँ ढलना काश ऐसा फिर हो जाए।।४।। काश मैं फिर वैसे पलकें झपकांऊ बचपन के जैसे झूमूं और गाऊं जरा सी रूठूं औ...
प्यार का बंधन
कविता

प्यार का बंधन

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भाई-बहन का रिश्ता न्यारा लगता है हम सबको प्यारा भाई बहन सदा रहे पास रहती है हम सभी की ये आस इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। भाई बहन को बहुत तंग करता है पर प्यार भी बहुत उसी से करता है बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। बहन की दुआ में भाई शामिल होता है तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है अक्सर याद आता है वो जमाना रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। वो हमारा लड़ना और झगड़ना वो रूठना और फिर मनाना एक साथ अचानक खिलखिलाना फिर मिलकर गाना नया कोई तराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।। अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना बहुत खास होता है...
मेरी जगह कहाँ है…?
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मेरी जगह कहाँ है…?

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कौन हूँ मैं नादान समझ न पाऊं, कहाँ मेरी जगह है ढ़ूंढ़ न पाऊं, सदियों तलक चुपचाप रही, हर जुल्म को खामोश सहती रही, कलकल नदिया सी बहती रही, हर दर्द में भी मुस्कुराती रही।।१।। कोई दर्दे दिल की बात नहीं समझता, बिना कहे कोई जज़्बात नहीं समझता, हर ताने पर बीच में मायका आता है, मेरे मात-पिता को हर कोई सुनाता है और दिल मेरा जख्मी हो जाता है।।२।। क़ोई भी घर में कुछ गलत करने लगे, तो सब गलतियों पर नाम उसका लगे, कोई भी कभी किसी से पीछे न रहे, हर तरह के आरोप उसके ऊपर लगे, पति उनके साथ सोने पे सुहागा लगे।।३।। वो तो एक के पीछे घरबार छोड़ आती है, जन्म के नाते और पीहर छोड़ आती है, वो तो अपना सर्वस्व न्योछावर करती है, न जाने क्यों दुनिया उसे धिक्कारती है।।४।। हर बेटी के लिए मेरी यही है तमन्ना, अपने पैरों पर तुम खड़ी हो जाना, किसी के आ...
उफ! ये सावन…
कविता

उफ! ये सावन…

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की मस्ती, वो तोतली बोली, वो बारिश का पानी, और बच्चों की टोली, वो पहिया चलाना और नाव बनाना, माँ का बुलाना और हमारा न आना, वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। लड़कपन में लड़ना और फिर मचलना दोस्तों का मनाना हमें फिर मिलाना मैदान के कीचड़ में गिरना-गिराना और माँ से वो गंदे कपड़े छुपाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। यौवन की दुनिया में आकर निखरना किसी अजनबी से मिलकर बहकना दिल का धड़कना वो बेचैन होना कभी याद करके हँसना फिर रोना पापा का डाँटना और माँ का समझाना वो अनछुए पल याद दिलाता है "उफ! ये सावन जब भी आता है"।। अचानक से फिर समय का बदलना वो परिवार के साथ बाहर निकलना वो छतरी उड़ाना और भुट्टे खाना बच्चों को सावन के झूले झुलाना माता-पिता बनकर कर्तव्य निभाना वो अनछुए पल...
गजल है जिंदगी
कविता

गजल है जिंदगी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खूब "गजल है जिंदगी" मचलते दिल की तड़प है जिंदगी। कहीं खुशियों का महल है जिंदगी, कहीं आँखों से बहता काजल है जिंदगी।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी भी तो एक आईना है, कुछ खरोंच आ ही जाती है। कितना भी एहतियात बरतो, पर,कुछ कसर रह ही जाती है।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी में आते हैं प्यार के रहनुमा, मिलते हैं तो जिंदगी होती है खुशनुमा। न मंदिर की घंटी,न मस्जिद की धूम, हर तरफ सुनाई देती है बस प्यार की गूँज।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" मौत तो आसाँ है जीना मुश्किल है दोस्त, हिम्मत है तो तेरे लिए सब मुमकिन है दोस्त। ठोकर लगे तो भी तू रुकना मत ए दोस्त, एक नजर तो डाल सामने मंजिल है दोस्त।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि स...
धरती का स्वर्ग
कविता

धरती का स्वर्ग

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मत काटो तुम ये पहाड़, मत बनाओ धरती को बीहाड़। मत करो प्रकृति से खिलवाड़, मत करो नियति से बिगाड़।।१।। जब अपने पर ये आएगी, त्राहि-त्राहि मच जाएगी। कुछ सूझ समझ न आएगी, ऐसी विपदाएं आएंगी ।।२।। भूस्खलन और बाढ़ का कहर, भटकोगे तुम शहर-शहर। उठे रोम-रोम भय से सिहर, तुम जागोगे दिन-रात पहर।।३।। प्रकृति में बांटो तुम प्यार, और लगाओ पेड़ हजार। समझो इनको एक परिवार, आगे आएं हर नर और नार।।४।। पर्यावरण असंतुलित न हो पाए, हर लब यही गीत गाए। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।५।। निर्मल नदिया कलकल बहता पानी, कहता है यही मीठी जुबानी। धरती का स्वर्ग यही है, पर्यावरण संतुलित यदि है।।६।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
माँ क्या होती है
कविता

माँ क्या होती है

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** कोख में रखकर नौ महीने, सौ सौ तखलीफें सह सह कर। रात रात भर, जाग-जाग कर, खुद गीले में रह-ह कर। बच्चे को सुलाती सूखे में, प्यार भरी थपकी देकर। बड़े चाव से सेवा करती, कभी न उसमें नागा करती। हो जाए बड़ा, कितना ही बालक, हर विपदा से उसे बचाती, बन करके, उसका रक्षक। नहीं है कोई दुनिया में, उसके जैसा, त्याग, तपस्या और प्रेम की मूरत जैसा। माथे पर उसके, देख शिकन, हो जाती व्याकुलता से बेचैन। बालक के सुख से होती सुखी, बालक के दुख से होती दुखी। माँ की कीमत वो ही जाने, मिली न "सक्षम" जिन्हें देखने। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...