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मत वहन करो
कविता

मत वहन करो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मत वहन करो मेरे विचार को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे अलंकार के भूषण। मत वहन करो मेरी वाणी को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे छंदों के बंधन। मत वहन करो मेरे अंतर्द्वंद को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे परिछंदों के द्वंद। मत वहन करो मेरे अंत:वेगों को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे रागों की रागनी। मत वहन करो मेरे हृदय तल की असवादों को मुझे भी नहीं चाहिए तुम्हारे रसों से उत्पन्न रसायन। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
जीवन
कविता

जीवन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक बिन्दु से लेकर अनंत तक असंपूर्णता असंपन्नता से सम्पूर्ण सम्पन्नता तक जीवन संग्राम गाथा है हर घड़ी, हर पल हर दिवा हर रात्रि कष्ट में सुख में, नींद में स्वप्न में मनुज में जीव में, चहुँ ओर प्रकृति में निरन्तरता है जीवन निरंतर ये जीवन कर्म की परिभाषा, चुनौती का पर्याय शतरंज सा है जीवन कहीं रुकाव नहीं कहीं ठहराव नहीं हारे हुए योद्धा पर अनवरत चलता है जीवन कुछ कर गुजरने की तमन्ना, लक्ष्य साध मंजिल पाने की चाह बदलते हुए समीकरण, सब्रता के अपने अपने चरण सहनशीलता से विकास, कहीं उग्रवादिता से विनाश यश अपयश के साथ, रिक्त हो रहे धैर्य व साहस के संग कहीं कशमकश से जूझता, कहीं परिपक्व है जीवन एकाग्र कर्म पथ पर चलने का नाम जीवन जीवन का लक्ष्य केवल अंत है, मगर.... मृत्यु के बाद भी तो है "जीवन...
एक लड़की गुड़िया सी
कविता

एक लड़की गुड़िया सी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गुड़िया सी लड़की घर में, बातें बहुत बनाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। घर भर को है खूब रिझाती, अपनी मीठी बोली से। कॉपी सारी रँगती रहती, बना बना रंगोली से। बात बात पर धमकी देकर, सबपर हुकुम चलाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। इस कमरे से उस कमरे में, दिन भर चलती रहती है जरा डाट पर रो देती, पर बिलकुल नही सुधरती है। मम्मी पापा भाई बहन, वह सब पर प्यार लुटाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। कभी डॉक्टर, कभी वो टीचर, फौजी भी बन जाती है। क्या क्या मुझको करना है, वह अच्छे से समझाती है। देख देख कर दर्पण बिटिया, खुद को खूब सजाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। परिचय :-  रमाकान्त चौधरी शिक्षा : परास्नातक व्यवसाय : वकालत नि...
लेखन का दम
कविता

लेखन का दम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कवियित्री 'अनामिका अंबर’ को पढ़ने से रोक वजह से सृजित मेरी नई छंद रचना। सृजनकारों की आन-बान-शान लेखन सृजन का पुरातन इतिहास स्वाधीनता युद्ध तक और रीति भक्ति काल तक ले जाता है। आव्हान है पुराने युग के साहित्यकारों के देश में प्रखर कलम चलती रहे और देश के सही मुद्दों पर लिखती रहे। आभार सहित। हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा। तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा। आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है। कवि कवियित्री पे सीधी रोक, 'अनामिका’ बेचारी है। हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है। भक्ति रीति युग रचनाओं में, खूब निपुणता पा जाते। गंगा यमुना सरयू गाथा में, साहित्य झलक महकाते। कदंब पेड़ काव्य ’सुभद्रा’, पावन यमुना दिखलाती। विषैली यमुना नदी जल को, कालिया मर्दन कराती। पर्यावरण जो वर्तमान में, समझना कलम क...
मकान का रिश्ता
कविता

मकान का रिश्ता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नाना-नानी का मकान जहाँ बिताई गर्मी की छुट्टियाँ नाना का लाड नानी का दुलार नाना के हाथों लाई इमरती नानी का झूला नानी की कहानी। मेरे मस्ती करने पर नानी मुझे नहीं माँ को डांटती दुलार के डाट से ढक देती नाना-नानी बन चुके जो तारे गर्मी की छुट्टियों में सूने घर में नहीं मिलती नाना-नानी की मुझे बुलाती आवाजे। नहीं झूलते हवाओं से झूले रातों को आकाश में सूने नयन उन्हें निहारते नाना-नानी का आशियाना टूट चूका उनकी उम्र की तरह यादें तस्वीरों में कैद आँखों में आँसू लिए रिश्ते निहार रहे ढहते मकान। नयापन लौट आएगा नई उमंगों के साथ ये वैसा ही लगेगा जैसे बुजुर्गों के गुजर जाने के बाद नन्हें बालक ने लिया हो जन्म नए रिश्तों के साथ नई उमंगों के साथ बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ नयापन समेटे। परिचय :- संजय वर्मा "...
बेटियां
कविता

बेटियां

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों घरों की पहचान होती है बेटियां एक बहू दूसरे में मां की शान होती है बेटियां। बहू बेटियां ही चलाती हैं घर और सबको खिलाती है रोटियां पिता की खुशी और मां का अरमान होती है बेटिया। कितनी भी मुसीबत आए नहीं घबराती है बेटियां दर्द का एहसास और खुशियां की पहचान कराती है बेटियां। बहता है नीर आंखों से जब रोती है बेटियां कैसे चलता यह संसार जब ना होती बेटियां। बड़े-बड़े आंसू रुलाती है बेटियां विदा होकर जब घर से जाती है बेटियां। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि। प्रकाशित काव्य पुस्तक : पाल की चांदनी। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
अब से पहले
कविता

अब से पहले

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पहले भी रात होती थी ...चांद होता था। तारों के साथ -साथ आसमान होता था। उन तमाम रातों में, जो चटक जाते थे तारे, उन्हें देख कर ख्वाब बुना करता था। मैं जागता था ...अनगिनत सपने देखने के लिए। मैं तलाशता था उन राहों को जो है .......मेरे लिए। जिंदगी की राह में लेकिन..... सब बदल गया। रात तो वही है ....लेकिन आसमान बदल गया। क्या ......मैं सोचता था.. अब क्या मैं सपने बुनूं। यह कहाँ ठिठक गया .... किससे कहूँ। वो भरम कि मैं अकेला नहीं.... मेरी तन्हाई से वो भी पिघल गया। अब सोचता हूँ..... कहूँ भी तो क्या कहूँ। आज भी जाग रहा हूँ....... पहले की तरह। लेकिन ख्वाबों का सिलसिला लगता है कि थम-सा गया। जिंदगी जो मृगतृष्णा दिखा रही थी और ..... मैं तो प्यासा ही रह गया। टूटे हुए ख्वाबों के आईने में, फिर से अपन...
सातों जन्म मांगती तुझको हूं
कविता

सातों जन्म मांगती तुझको हूं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार, पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है। क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं। क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की पर हमारे रिश्तो को एक-एक धागे में पिरोए रखा है। क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें पर छोटे से घर की एक-एक ईंट में प्यार भर दिया है। क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है। कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है। क्या हुआ कभी हम धन-दौलत से भरा नहीं हमारा घर प्यार भरपूर देकर हमें रहीस बना दिया है। दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमारे लिए वही...
शिक्षा व्यवस्था
कविता

शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा जीवन का सार है, संस्कारों का मीठा संसार है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का... एकमात्र यही सच्चा द्वार है।। दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा, कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा.. कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार, शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।। भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में, सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..। जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़, गीताधारी कहलाए जगतकुल में।। युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली, विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली, विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में.. मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे, कलम से कलाम बनना हुआ दूर, परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से....।। ज्ञान का प्रकाश नहीं.. लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में....।। देश के ...
ऋण
कविता

ऋण

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ा हूं इस मातृभूमि पर ऋण जाने कितनों का सर है। आज बड़ा मैं अभिभूत हूं आशीष बड़ों का भर-भर है। माता-पिता-भाई-बहनों का, ऋषियों और गुरुजनों का, शेष बचे कितने प्रखर है? ऋण जाने कितनों का सर है। जात-समाज और पित्रों का, सहपाठी, बंधु-मित्रों का, जिनके कारण 'इंद्र' निडर है, ऋण जाने कितनों का सर है। जल-अग्नि-वायु-आकाश और भूमी का मुझमें वास, इनसे ही तो हम नश्वर है, ऋण जाने कितनों का सर है। आज जन्मदिन पर याद करूं, मन-बुद्धि-कर्म अर्पित करूं, ऋण जितनों का भी सर है, इस जनम चुकाने का अवसर है। इस जनम चुकाने का अवसर है। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
श्रमिक देव
कविता

श्रमिक देव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** जिनके लघु स्वेद कणों से, मिट्टी भी सोना हो जाती है, जिनकी भुजाओं के बल से, नई ज्योत्सना खिल जाती है!... ऐसे श्रम वीरों ने सदा से, धरती का रूप सँवारा हैं, हल, हथौड़ा, हँसिया से, मोड़ी इतिहास की धारा हैं!... इन्होंने दुनिया को सदा दिया, वैभव ऐश्वर्य सुख सुविधाएं, और बदले में सदा पाया हैं, आंसू क्रंदन अभाव पीड़ाएँ!.... धनपतियो का सारा वैभव, इनके श्रम पर टिका हुआ है, धरा का सम्पूर्ण निर्माण भी, इनके ही हाथो तो हुआ है!... भौगोलिक सीमाओ से परे, ये अनवरत सृजन करते जाते हैं, परं देवतुल्य श्रमिक कहीं भी, इसका भोग नही कर पाते हैं!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
मंजिल
कविता

मंजिल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रास्ता भूल गई या मंजिल ठहर गई मेरे लिए कोई आ गया सफर में या मैं ठहर गई मंजिल के लिए वाकया यार सच है कि सफर कटता नहीं बिना हमसफर के लगता है, कोई हमसफर मिल जाएगा अगले पड़ाव के लिए। सफर में गुफ्तगू का मजा कुछ और ही होता है पराया होते हुए भी हमसफर अपना सा लगता है जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं वह दो कदम साथ चलते हैं। बदली जो राह उनकी तेवर भी बदले-बदले लगते हैं ए दिल संभल, गुमान न कर किसी अजनबी का ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में चांद सितारे से लगते हैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासक...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया तू मालु-...
सदा विजय होती है उनकी
कविता

सदा विजय होती है उनकी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिनमें भरा स्वाबलंबन है, वे मुहताज न होते। सदा राज करते दुनिया पर, कभी ताज ना खोते। जो सागर का ह्रदय चीरते, वे मोती पाते हैं। जो गहरे जाने से डरते, बैठे रह जाते हैं। जो फैलाते पंख हवा में, अंबर में उड़ जाते। जो संकल्प करें ध्रुव जैसा, ऊँचाई हैं पाते। कर प्रयास जो सागर को भी, गागर में भरते हैं। उनकी सदा विजय होती है, जो प्रयास करते हैं। रखें इरादे जो फौलादी, सदा सफलता पाते। तूफानों से जो डर जाते, वे पीछे रह जाते। परशुराम सा तेज धारकर, जो आगे बढ़ते हैं। प्रभु की कृपा प्राप्त कर पंगु, उच्च शिखर चढ़ते हैं। वादा करें स्वयं से पक्का, रक्खें अटल इरादा। सारे काम करें दृढ़ता से, मिले भाग्य से ज्यादा। जो अपना पुरुषार्थ जगाकर, पौरुष दिखलाते हैं। पथरीली राहों पर चलते, वही शिखर पाते हैं। ...
निजी बयान है
हास्य

निजी बयान है

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** पार्टी के पदाधिकारी को बयान देने बोलता हूं तीर निशाने पर लगे तो सही है बोलता हूं कोई विवाद हो जाए तो प्लान बदल देता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक बाण हमेशा स्टॉक में रखता हूं नहले पर दहला मारने बोलता हूं बात बिगड़ गई तो यू-टर्न ले लेता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं अक्सर चुनाव के समय बयान तीर से छोड़ता हूं बयान देने वालों की चैनल बनाता हूं दांव उल्टा पड़ गया तो पलट जाता हूं यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं शाब्दिक दांव-पेचों का खेल खूब खेलता हूं मान-सम्मान गिराने के दांव-पेच खेलता हूं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे टेढ़ा पड़ा तो यह उसका निजी बयान है ऐसा बोल देता हूं मेरे धुर विरोधी विचारधारा वाले भी खेलते हैं प्री प्लानिंग से उल्टा सीधा सब बोलते हैं फायदा हुआ त...
भ्रम टूट गया
कविता

भ्रम टूट गया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हुआ दोस्त, जो भ्रम टूट गया साथ होने का तेरा वादा, जो अब छूट गया ।। तुझे बादशाही मुबारक तेरे शहर की, मुझे मेरे गांव का मुसाफिर ही रहने दे।। अच्छा हुआ चलन नहीं रहा अब किसी के विश्वास का खुद के खुदा को आखिर किसी की कोई तलाश कहा।। दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, मेरे घर आना, जाना, हम प्याला वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ किताबी बातों की तरह छूट गया।। आज ठोकर खाई है तब जाकर कहीं आज मतलबी दुनिया की ये, दोस्ती समझ आई ।। हमने तो कोशिश की थी रंग जमाने की यारी में, तेरे विचारों की भी कहीं बहुत गहरी खाई थी शायद।। दोस्ती के लिए, कहां रहा गया वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही, मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र ल...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
आओ दिव्यांगों का सम्मान करें
कविता

आओ दिव्यांगों का सम्मान करें

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दिव्यांगों का सम्मान करें उन्हें भी कुछ खुशियां प्रदान करें मन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बंजर भूमि में फूल खिलते जो‌ मिला, खुश हो स्वीकारें परिस्थितियों भी दास बनते उनके मनोबल को बढ़ाकर हम कुछ तो पुण्य करें।। एक द्वार बंद करता ईश्वर तो दूसरा अवश्य खोलता आंखों की रोशनी छीनता अन्तर्मन में रोशनी भरता।। नयन हीनों के कंठ सरस्वती मधुर गायनका सम्मानकरें।। गिरतों को जो सहारा देते सबसे बड़ी है मानव सेवा दिव्यांगों के भाव समझते सबसे बड़ी है अर्चन देवा।। दिव्यांगों की भावनाओं का तन मन से प्रणाम करें।। जहां उन्हें अंधियारा लगे हम रोशनी का जहां बनाएं जहां-जहां वे चढ़ना चाहे ऊंची-ऊंची सीढ़ी बनवाए।। नई प्रतियोगिताएं शुरू करके उनमें नव उत्साह भरेंगे। खेलकूद, पढ़ाई या संगीत सभी में पाई है अपूर्व जीत पर्वत पर चढ़ने ...
कर गुजरने की चाह रख
कविता

कर गुजरने की चाह रख

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ कर गुजरने की चाह रख, राह तो मिलेंगी अवश्य तू ह्रदय में दृढ़ संकल्प रख। तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। राह मिलेंगी अनेक अवश्य किस राह पर चलना है यह निश्चय तू स्वयं ही कर क्योंकि जब हृदय में कर्म को सत्कर्म में बदलने की होती है चाह कदमों में आ जाती हैं अनेक स्वर्णिम राह कुछ कर गुजरने की चाह रख। तू हर कदम सशक्त कर और संभल-संभलकर रख जब इच्छा शक्ति होगी दृढ़ मंजिल तुझे मिलेगी अवश्य, ह्रदय में जीवनलक्ष्य साध कर, तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओ...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्य समाचार

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
हवाओं में बिखरने दो
कविता

हवाओं में बिखरने दो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे हवाओं में बिखरने दो मुझे हवाओं की नजाकतोंमेंं घुले विष को निगलने दो। इन गमगीन सी बयारों से नीरस अहसासों को समेटने दो, फिर सुमन का सुमधुर इत्र बनकर मुझे हवाओं मेंं महकने दो । मुझे हवाओं में बिखरने दो। तपती गर्मी के ताप से झुलसती लूओं के झोकों मेंं चंद्रमा की शीतलता बनकर मुझे चांदनी बिखरने दो। मुझे हवाओं में बिखरने दो। हाड़ चीरते शीत मेंं सूर्य की ऊष्मा बनकर मुझे (जीवन को) राहत भरी सांस लेने दो मुझे हवाओं में बिखरने दो। आसुरी प्रवृत्तियों के प्रदूषण से आत्मशुद्धीकरण हेतु पंचतत्त्व से निर्मित देह को नभ-जल-थल, पावक-पवन के हवन कुंड में मुझे आहुति बनकर बिखरने दो। मुझे हवाओं मेंं बिखरने दो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र ब...
साहित्य की देवी
कविता

साहित्य की देवी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! महादेवी हिंदी साहित्य की तपस्विनी तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। नीहार में भरी रसधार प्रेम की तुम आधुनिक मीरा हिंदी साहित्य की बनीं। दुख, संवेदनशीलता तो कभी सुख व प्रसन्नता के भावों की रचनाओं में प्रकाशित मिश्रित अभिव्यक्ति बनीं। हिंदी छायावादी युग का सशक्त स्तंभ बनीं। इतना ही नहीं तुम गद्यलेखन व रेखाचित्र की भी महान हस्ताक्षर बनीं। नवीन आयामों को स्थापित करती हिंदी छायावादी युग का एक सशक्त स्तंभ बनी नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा यामा में मानो आपकी ही आत्मा हैं रची बसी। हे ! महादेवी, तपस्विनी तुम भारत माँ की स्वतन्त्रता में सहभागी बनीं। सामाजिक कल्याण, महिला उत्थान की नवल पथप्रदर्शक बनीं। तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। परिचय :-  प्रभ...
भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मांँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन -गण-मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन-गण-मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा :...
जब-जब मेरी कलम ने…
कविता

जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...