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शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
अमेठी (उत्तर प्रदेश)

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(अवधि भाषा)

भले तू बाट्या बड़ा महानु,
बड़ा सा अहै तोहारु मकानु,
अही हमु किञ्चौ ना हलकानु,
हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।।

बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा
हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा
बढ़िया तोहार है खानु-पानु
मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा
नूनु-भातु चटनी-रोटी ई
हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ …

तू ए सी मा बासि करौ
ठंडाई पी-पी ऐश करौ
हमतौ सेंवारी मा घूमी
मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं
फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा
हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ …

तू सूटेड-बूटेड बना रहा
हरु चौराहे पै अड़ा रहा
हमतौ बस खेती-बारी मा
चंहटा-मांटी मा सना रहा
रूपिया-पैइसा से लदा अहा
हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ …

तू कामु किहा रूपिया पाया
मनमाना सबकछु भरि लाया
हमतौ खेते म जरी-मरी
तब्बौ हाथे न दिखी माया
तू मालु-पुवा खूबि काटि रहा
हमरौ तौ जीन्सिउ न बिकानु।। हे बबुआ …

तू घामे-शीती बचा अहा
बरखा मा छतु से ढ़का अहा
हमरौ ऊपरा दिखै आसुमानु
पानी-पाथर सबु परा रहा
तय भवा रेटु का अबकी ई
तौ अब्बै नाहीं सुनानु।। हे बबुआ …

हे ईश्वर, मालिक, हे दाता
दुनियां ई अबु ना फलदाता
कछु तौ करनी कै दोषु अहै
भीषनु अभाउ मा अन्नुदाता
सरकारैं हिस्सा बाँटु करैं
हरबारु इहै फांसी चढ़ानु।। हे बबुआ …

हमु रीति-नीति का का जानी
तोहरी नाहीं ना पहिचानी
सच-झूठ कै यैसेन पचड़े से
हमु दूरि रही कछु ना सानी
तोहरी ख़ातिर सबु दौरिबाजु
हमरा क केऊ न चिन्हानु ।। हे बबुआ …

तोहरे लरिकनु कै ठाटु-बाटु
उनकी सुविधा कै लाखु काटु
हमरौ लरिकै सरकारी सकूल
वहिमा नहिं छुपउ कौनिउ घाटु
खेती किसानु बा जरतु-मरतु
सीमा पै देखउ जवानु।। हे बबुआ …

भले तू बाट्या बड़ु महान,
बड़ा सा अहै तोहार मकान,
अही हमु किञ्चौ न हलुकान,
हे बबुआ हमहूँ अही किसान।।

परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय “अवधी-मधुरस”
निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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