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मंजिल

मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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रास्ता भूल गई या
मंजिल ठहर गई मेरे लिए
कोई आ गया सफर में या
मैं ठहर गई मंजिल के लिए
वाकया यार सच है कि
सफर कटता नहीं
बिना हमसफर के
लगता है, कोई हमसफर
मिल जाएगा
अगले पड़ाव के लिए।
सफर में गुफ्तगू का मजा
कुछ और ही होता है
पराया होते हुए भी हमसफर
अपना सा लगता है
जिन्हें हम अपना समझे हुए हैं
वह दो कदम साथ चलते हैं।
बदली जो राह उनकी
तेवर भी बदले-बदले लगते हैं
ए दिल संभल, गुमान न कर
किसी अजनबी का
ये वह राहगीर जो ठहरे पानी में
चांद सितारे से लगते हैं।

परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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