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मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
कविता

मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
शीत ऋतु
कविता

शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जुताई खेती किसानी की जाती हैं। पूस की रात में कैसे नील गायें, हलकु की फसल चट कर जाती हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं। आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर, खेतों में लहलहाते सपने सूखते है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है। मां भारती की सरहद पर खदानों में, वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं। स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से, भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है। ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर, आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? चौराहे पगडंडी पर ...
आओ दिव्यांगों का सम्मान करें
कविता

आओ दिव्यांगों का सम्मान करें

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दिव्यांगों का सम्मान करें उन्हें भी कुछ खुशियां प्रदान करें मन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बंजर भूमि में फूल खिलते जो‌ मिला, खुश हो स्वीकारें परिस्थितियों भी दास बनते उनके मनोबल को बढ़ाकर हम कुछ तो पुण्य करें।। एक द्वार बंद करता ईश्वर तो दूसरा अवश्य खोलता आंखों की रोशनी छीनता अन्तर्मन में रोशनी भरता।। नयन हीनों के कंठ सरस्वती मधुर गायनका सम्मानकरें।। गिरतों को जो सहारा देते सबसे बड़ी है मानव सेवा दिव्यांगों के भाव समझते सबसे बड़ी है अर्चन देवा।। दिव्यांगों की भावनाओं का तन मन से प्रणाम करें।। जहां उन्हें अंधियारा लगे हम रोशनी का जहां बनाएं जहां-जहां वे चढ़ना चाहे ऊंची-ऊंची सीढ़ी बनवाए।। नई प्रतियोगिताएं शुरू करके उनमें नव उत्साह भरेंगे। खेलकूद, पढ़ाई या संगीत सभी में पाई है अपूर्व जीत पर्वत पर चढ़ने ...
कर गुजरने की चाह रख
कविता

कर गुजरने की चाह रख

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ कर गुजरने की चाह रख, राह तो मिलेंगी अवश्य तू ह्रदय में दृढ़ संकल्प रख। तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। राह मिलेंगी अनेक अवश्य किस राह पर चलना है यह निश्चय तू स्वयं ही कर क्योंकि जब हृदय में कर्म को सत्कर्म में बदलने की होती है चाह कदमों में आ जाती हैं अनेक स्वर्णिम राह कुछ कर गुजरने की चाह रख। तू हर कदम सशक्त कर और संभल-संभलकर रख जब इच्छा शक्ति होगी दृढ़ मंजिल तुझे मिलेगी अवश्य, ह्रदय में जीवनलक्ष्य साध कर, तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओ...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
दोहे
दोहा

दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश। अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।। सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत। रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।। मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून। कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।। आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश। मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।। जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग। रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।। ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार। जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।। आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग। नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।। सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल। नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।। लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान। मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।। सखा श्याम से भेंट कर, नैन ब...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्य समाचार

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
हवाओं में बिखरने दो
कविता

हवाओं में बिखरने दो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे हवाओं में बिखरने दो मुझे हवाओं की नजाकतोंमेंं घुले विष को निगलने दो। इन गमगीन सी बयारों से नीरस अहसासों को समेटने दो, फिर सुमन का सुमधुर इत्र बनकर मुझे हवाओं मेंं महकने दो । मुझे हवाओं में बिखरने दो। तपती गर्मी के ताप से झुलसती लूओं के झोकों मेंं चंद्रमा की शीतलता बनकर मुझे चांदनी बिखरने दो। मुझे हवाओं में बिखरने दो। हाड़ चीरते शीत मेंं सूर्य की ऊष्मा बनकर मुझे (जीवन को) राहत भरी सांस लेने दो मुझे हवाओं में बिखरने दो। आसुरी प्रवृत्तियों के प्रदूषण से आत्मशुद्धीकरण हेतु पंचतत्त्व से निर्मित देह को नभ-जल-थल, पावक-पवन के हवन कुंड में मुझे आहुति बनकर बिखरने दो। मुझे हवाओं मेंं बिखरने दो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र ब...
मित्रता
दोहा

मित्रता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मित सच्चा देखिए, कर दिया जान निसार। यारी ऐसी कहां मिले, ज्यों पीयूष इसरार। जल में डूबा देखकर, याद आया इकरार। संकट में साथ देना, इक-दूजे से करार। यार-यार पर कर दिया, अपने प्राण निसार। अपने मित्र के लिए, सब भूल गया इसरार। मां की ममता भूला, अब्बा का भूला प्यार। सबसे ऊपर हो गया, यार के खातिर यार। हिंदू मुस्लिम सिख ले, दिल से सच्चा प्यार। मानव से मानव मिले, ज्यों पीयूष इसरार। पोखर भी रोया होगा, देख अनोखा यार। मरकर भी न जुदा हुआ, सच्चा इनका प्यार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
साहित्य की देवी
कविता

साहित्य की देवी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! महादेवी हिंदी साहित्य की तपस्विनी तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। नीहार में भरी रसधार प्रेम की तुम आधुनिक मीरा हिंदी साहित्य की बनीं। दुख, संवेदनशीलता तो कभी सुख व प्रसन्नता के भावों की रचनाओं में प्रकाशित मिश्रित अभिव्यक्ति बनीं। हिंदी छायावादी युग का सशक्त स्तंभ बनीं। इतना ही नहीं तुम गद्यलेखन व रेखाचित्र की भी महान हस्ताक्षर बनीं। नवीन आयामों को स्थापित करती हिंदी छायावादी युग का एक सशक्त स्तंभ बनी नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा यामा में मानो आपकी ही आत्मा हैं रची बसी। हे ! महादेवी, तपस्विनी तुम भारत माँ की स्वतन्त्रता में सहभागी बनीं। सामाजिक कल्याण, महिला उत्थान की नवल पथप्रदर्शक बनीं। तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। परिचय :-  प्रभ...
भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मांँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन -गण-मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन-गण-मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा :...
जब-जब मेरी कलम ने…
कविता

जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो धरा अम्बर से, मिलन की गुहार लगाये, थाल भर मोती माणिक अम्बर ने खूब सजाये, मन के आँगन बरस रही है मीठी मीठी सी फुहार, प्यासी धरा भी आँखें मींचे आशा की झोली फैलाये।। खुशियों भरी काग़ज़ की नाव ग़मों को बहा ले जाए देखो न बाल मन का कोना-कोना कैसे खिलखिलाये, छपाक छप, छपाक छप बारिश का कंचन जल कहे, भर लो अमृत चुल्लू में ज़िन्दगी तो हरदम ही ज़हर पिलाये।। खिली है हर कली कली, पत्ता पत्ता भी मुस्काये, नवल धवल हुए खेत खलियानशशि चन्द देख कृषक गदगद हो जाये, सौंधी सौंधी माटी, श्वास-श्वास मातृभूमि के रक्षकों की महकाये, बुलंद हौसलों की बारिश के बीच, शान से तिरंगा लहराये।। धानी चुनर ओढ़, अधरों पर धर लाज का घूँघट, सजनी चली साजन घर, जब मन भावन सावन आये प्रीतम ने अमियाँ की डाल पे प्रेम पुष्पों का झूला डाला, कृष्ण राधिका स...
जिंदगी की डगर
कविता

जिंदगी की डगर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जिंदगी की हर डगर तू रख हर कदम फूँक-फूँक कर। नहीं आसान जिंदगी की कोई डगर मिलेंगी चुनौतियाँ कदम-कदम, करना है तुझे संघर्ष जिंदगी की हर डगर । कभी होगी छोटी डगर तो कभी काटे न कटने वाली बड़ी लंबी नीरस सी होगी जिंदगी की डगर। राह ऐसी है कौन सी जहाँ न हों शूल और पत्थर जब-तक नहीं दर्द का अनुभव कड़वी है सुकून की हर डगर। तू तनिक भी न डर साथ तेरा साया भी न दे अगर हौंसले अपने बुलंद रख तू राह में अकेला ही चल पीना भी पड़े पानी खुद कुआँ खोदकर। तू चले जा अकेला ही निरंतर, न रुक कभी जिंदगी के पथरीले पड़ावों पर भी मंजिल मिल नहीं जाती जब तक तू चले जा फिर से जिंदगी में नई डगर बनाकर। कहते हैं मन के हारे हार है तो फिर मन के जीते जीत भी लेकर दृढ़ संकल्प हो निडर तू सबके मन को जीत जीवन लक्ष्य अंगीकृत कर हर पल होकर सजग अपने...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय...
बादल
दोहा

बादल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर। शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार। काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह। गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह। घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार। मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर। लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ। यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ। बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान। गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त। धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग। खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग। दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार। दुल्हन प्यारी सज गई...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का तानाबाना, चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मैला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना, मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत, जीने की जिजीविषा, और संघर्षों का झमेला। सीख कसौटी मीठी घुड़की, आंगन में मिलती, जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार, बहन भाई का युद्ध और दादा दादी की माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन, संबंधों में नैतिकता, परिवार सद् काव्य शाला। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र :...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
नेता वफादार चाहिए
कविता

नेता वफादार चाहिए

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मंदिर में पंडित का मस्जिद में मौलवी का बहकावा नहीं सच्ची पूजा चाहिए। भारत का नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए । चर्च में पॉप का गुरुद्वारे में ग्रंथियों का बहकावा नहीं सत्उपदेश चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मत पथ भ्रमित हो मेरे भारत के युवान अंतर्मन का करो जागरण- तुम ही में छिपा है राम का चरित्र ही तुम ही में छिपी है शक्ति हनुमान की तुम ही में छिपा है सतीत्व सीता का ही बस ह्रदय में लो यह संकल्प ठान- तुम्हें तो आधुनिक रावणों का वध करना चाहिए, आधुनिक रावणों का वध ही नहीं वर्तमान कंसों का अंतिम संस्कार करना चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। भारत को भगतसिंह सा देशभक्त, लक्ष्मीबाई सी वीरांगना, टैगोर सा विश्वकवि सुभाष बोस सा नेता चा...
तब ही भारत बन पाता है
कविता

तब ही भारत बन पाता है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव उदय नव युवानों का नव कर्म प्रवीण महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है दिग् दिगंत दिवाकर बनकर दौड़ रहे दिक्पाल ये तनकर नव संप्रेरक इन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है प्रचंड ज्वाल आँखों में पुरुषार्थ प्रबल हाथों में पाषाण लौह मिश्रित पुष्ट रक्त महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है तिलक लगाकर तत्पर बनकर तुणीर थामे तेजस रणवर तापस संघ महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है अरि के संमुख अडिग अचल अस्त्र-शस्त्र प्रहार प्रबल आयुध-वीर महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है नहीं भ्रमित नहीं व्यथित उपहासों से नहीं श्रमित निःशंक तल्लीन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता ...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...
पिता
कविता

पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरती पर जीवन संबल और शक्ति है पिता। बच्चों के लिए पूंजी और पहचान है पिता। स्नेह, प्यार और आशीर्वाद से छलकता, रिश्तों के सागर में गहरा पानी है पिता। रोटी, कपड़ा और मकान है, बच्चों की किस्मत और शौहरत है पिता। एक परिवार का अनुशासन, घर की छत और बच्चों का अभिमान है पिता। बिना पिता के संतान होती अनाथ, घर परिवार की सुरक्षा और संस्कार है पिता। फूलों के बाग़, बच्चों के खिलौने, घर के भगवान, पालन और पोषण है पिता। सारे रिश्ते नाते उनके दम से, बच्चों की मां की बिंदी और सिंदूर है पिता। महकते चमन के पहरेदार तो, परिवार की धरती और आसमान है पिता। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
कविता

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
ऐ जिंदगी….
कविता

ऐ जिंदगी….

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझ पर विश्वास तो कर ऐ जिंदगी, मैं तुझ से खफा नहीं। लोग समझते हैं तू बेवफा हो गई, मगर तेरी रजा है ही निराली, जिसने जैसे तुझे अपनाया, तू उसके लिए वैसी ही बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए स्वप्न तो किसी के लिए रंंगमच बन गई जिंदगी। तू किसी के लिए गमों का खारा सागर तो किसी के लिए प्यार का गीत बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए संघर्ष तो किसी के लिए पुष्पों की सेज बन गई जिंदगी। इंसान का असली चेहरा दिखाने के लिए आईना बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान बन गई जिंदगी। सच कहूँ तो हमने तुझे जीना सीखा ही नहीं ऐ जिंदगी। जीने का जज्बा ग़र दिलों में जगा हो, संघर्षों और मुफलिसी के अंधकार को आशाओं की किरणो से प्रकाशित कर, बुलंद हौसलों की उड़ानों से नित नए मार्ग प्रशस्त करती है जिंदगी। हस...
शब्द श्रद्धांजलि
कविता

शब्द श्रद्धांजलि

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मौत भी रोई होगी ऐसा मंज़र देखकर। उसे दरिंदे मिलें इंसानी नक़ाब पहनकर। अनजान पहुंची होगी भेड़ियों की मांद में, वो भोली निश्छल उन्हें अपना मानकर। टूटकर बिखरी थीं इक मां, बहन बेटी, सिसकी घबराई होगी वो खतरा भांपकर। दुराचारियों ने नोंचा मासूम रूह तन को, बचने की लाख कोशिश की हैवान जानकर। पशु भी नहीं करते इतने घृणित कर्म, वो किया दरिंदों ने उसे लाश समझकर। दुःख, वेदना, पीड़ा, आंसू, ख़ून, कत्ल सब, बौने नज़र आये बहन तेरा दर्द जानकर। आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी मत बनो, उठा लो खंजर करोगे क्या हाथ बांधकर। जी कर भी क्या करोगे ऐसी जिंदगी का, कायर डरपोक मरी मानवता साधकर। खोखले कानून और गूंगी बहरी सरकार, रोज रौंधी जाती है नारी नारायणी कहकर। अब सरेराह कत्ल करों, इन दानवों का। इन्हें फांसी पर लटकाओ रस्स...