श्रमिकों की वंदना
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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श्रमिकों का नित ही है वंदन, जिनसे उजियारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
खींच रहे हैं भारी बोझा, पर बिल्कुल ना हारे।
ठिलिया, रिक्शा जिनकी रोज़ी, वे ही नित्य सहारे।।
मेहनत की खाते हैं हरदम, धनिकों पर धिक्कारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
खेत और खलिहानों में जो, राष्ट्रप्रगति के वाहक ।
अन्न उगाते, स्वेद बहाते, जो सचमुच फलदायक ।।
श्रम के आगे सभी पराजित, श्रम का जयकारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
सड़कों, पाँतों, जलयानों को, जिन ने नित्य सँवारा।
यंत्रों के आधार बने जो, हर बाधा को मारा।।
संघर्षों की आँधी खेले, साहस जिन पर वारा है।
श्रम करने वालों से देखो, पर्वत भी हारा है।।
ऊँचे भवनों की नींवें जो,उ त्पादन जिनसे है।
हर गाड़ी, मोबाइल में जो, अभिवादन ...