खुशियाँ कहाँ है
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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खुशियों की कोई दुकान नहीं हैं
कोई हाट बाजार नहीं हैं
खुशियाँ कहाँ हैं
ये हमारे देखने, समझने
महसूस करने पर निर्भर है।
बस नजरिए की बात है
अपना नजरिया बड़ा कीजिए
अपने आप में,अपने आसपास
अपने परिवार, समाज में
अपने माहौल में देखिये
खुशियाँ हर कहीं हैं,
आप देखने की कोशिश तो कीजिए
अपने आंतरिक मन से
बस महसूस तो कीजिए।
हर ओर खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं,
जितना चाहें समेट लीजिये,
अपनी सीमित खुशियों को
हजार गुना कर लीजिए।
कौन कहता है कि आप
दुःखों से याराना करिए
जब लेना ही है तो
खुशियों को ही क्यों न लीजिए,
दुःखों से दूरी बनाकर चलिए।
बस एक बार खुशियों को
देखने का नजरिया बदलिए,
दु:खों को पीछे ढकेलना सीखिए,
फिर कभी आपको सोचना नहीं पड़ेगा
कि खुशियाँ कहाँ हैं,
क्योंकि हर जगह खुशियों का
बड़ा बड़ा अंबार लग...


