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वो कोई ख्वाब ही थी

सलिल सरोज
नई दिल्ली

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ईरान के अब्दुल सलीम अस्करी और शदी हबीब आगा के घर में पैदा हुई मुमताज़ ने भारतीय सिनेमा पटल पर जो धूम मचाई, वो किसी भी अभिनेत्री और उसके दर्शकों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। कसा हुआ बदन, छोटी नाक, अदाएँ बिखेरते हुए लव, अनार से भी लाल गाल और ज़ुल्फ़ों में उमड़ता-घुमड़ता बादल देखकर केवल और केवल मुमताज़ का नाम ही जहन में आता है। दो रास्ते फिल्म का गाना “ये रेशमी ज़ुल्फ़ें, ये शरबती आँखें, इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी “मुमताज़ की अदाओं को सौ फीसदी सही साबित करते हैं।

अपने शुरूआती दिनों के संघर्ष में दारा सिंह के साथ कई फिल्मों में काम करने के बाद जब उनका सिक्का चलना शुरू हुआ तो फिर वो चलता ही गया।
उस दौर में एक अभिनेत्री के लिए एक अच्छी नर्तकी होना लाजिमी समझा जाता था। उस दौर की वहीदा रहमान, आशा पारेख, हेमा मालिनी सभी बेहतरीन नृत्य करने में परिपक्व थी। एक अच्छी नर्तकी के साथ सधा हुआ अभिनय भी किया जा सके तो एक ख्वाब और रूमानी दुनिया का जन्म परदे पर होता है जिसमें दर्शक खो जाते हैं और निकलने के बाद भी उसी ख्वाब के बारे में सोचते रहते हैं। रोटी फिल्म का गाना “करवटें बदलते रहे सारी रात हम, आपकी कसम “में बर्फों के बीच सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ रोमांस देखकर हर दर्शक का मुमताज़ को अपनी प्रेमिका के रूप में देखना शुरू कर देना कोई अजीब-गरीब बात नहीं है। कितने की कमरों की दीवारों पर, वार्डरोब में मुमताज़ की बड़ी-बड़ी पोस्टर्स का एकाधिपत्य हुआ करता था। मुमताज़ खुद ख्वाब बनकर ख्वाब पैदा करने में माहिर अदाकारा थी।

अपने दौर के सब बड़े कलाकारों के साथ मुमताज़ ने काम किया और अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया। वह राज खोसला की ब्लॉकबस्टर दो रास्ते (१९६९) थी, जिसने मुमताज़ को पूर्ण फिल्मी सितारा बना दिया। इसमें राजेश खन्ना ने अभिनय किया था। हालाँकि मुमताज़ की फिल्म में छोटी भूमिका थी, फिर भी निर्देशक राज खोसला ने उनके साथ चार गाने फिल्माए। १९६९ में, राजेश खन्ना के साथ उनकी फिल्में दो रास्ते और बंधन, वर्ष की शीर्ष कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। उन्होंने राजेन्द्र कुमार की ताँगेवाला में प्रमुख नायिका की भूमिका निभाई। शशि कपूर, जिन्होंने पहले सच्चा झूठा (१९७०) में उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया था, अब वह चाहते थे कि वह चोर मचाये शोर (१९७४) में उनकी नायिका बनें। उन्होंने लोफर और झील के उस पार (१९७३) जैसी फिल्मों में प्रमुख नायिका के रूप में धर्मेन्द्र के साथ काम किया।

मुमताज ने फ़िरोज़ ख़ान के साथ अक्सर काम किया जिसमें हिट फिल्में मेला (१९७१), अपराध (१९७२) और नागिन शामिल हैं। राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी कुल १० फिल्मों में सबसे सफल रही। उन्होंने अपने परिवार पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए फिल्म आईना (१९७७) के बाद फिल्मों में काम करना छोड़ दिया। उन्होंने १९९० में आँधियां से फिर वापसी की थी। १९७१ में आई फिल्म खिलौना के लिए मुमताज़ को फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

आप मुमताज़ पर फिल्माए एक-एक गाने को देखें, आपको नृत्य और अदाकारी का बेजोड़ संगम मिलेगा। सच्चा-झूठा फिल्म का गाना “यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो या कोई प्यारा का इरादा है”, प्रेम कहानी फिल्म का “फूल आहिस्ता फैंको, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं, “चोर मचाए शोर का ‘एक डाल पर तोता बोले, एक डाल पर मैना’, रोटी का “गोरे रंग पे इतना गुमाँ न कर, गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा” लोफर का “मैं तेरे इश्क़ में मर न जाऊँ कहीं, तू मुझे आजमाने की कोशिश न कर” या खिलौना फिल्म का गाना ‘खिलौना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाती हो’ साबित करता है कि हर तरह के अभिनय में मुमताज़ एक ख्वाब पिरो देती थी और दर्शक कहीं खो से जाते थे।

समकालीन अभिनेत्रियों के दीवाने जो फिल्मों की बारीकियों को समझते हैं और हिंदी फिल्मों से प्यार करते हैं, मुमताज़ की फिल्मों को एक बार जरूर देखें। चूड़ीदार कुर्तों, लट पर बिखरी हुई ज़ुल्फ़ों और बेपरवाह हुस्न का दौर सब वापस होता हुआ महसूस होने लगेगा। किसी भी डीवीडी पार्लर से लाकर मुमताज़ को नहीं किसी ख्वाब को देखने का अवसर न गवाएँ।

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लेखक परिचय :-  सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय नई दिल्ली

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