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पनघट पे नीर भरेगा कौन

हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)

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भक्ति दान नेह धर्म कर्म,
जन्मों तक साथ निभाते हैं,
परिपाटी, घर देह चौपाटी,
माटी में मिल जाते हैं,
पूरी आहुति सांसों से,
खुद को ही देनी होती है,
अवशेष धर्म की बागडोर,
सबको मिल लेनी होती है,
गंभीर समय की सीमा में,
अधीर हो, पीर हरेगा कौन,
अभीष्ट ईष्ट के स्वागत को,
पनघट पे नीर भरेगा कौन,

रैन सुखचैन, दे सेन लुभाने,
छुप छुप नयनन में उतरे,
अमर प्यार की ज्योति जगाने,
बनके बाती घृतधार जरे,
थके हंस की हार मिटाने,
निश दिन पांवों में विचरे,
प्रेम कहानी, मीठी वाणी,
हियभर अधरों से उचरे,
गहरे घावों पर भावों से,
धीरे मधुचीर धरेगा कौन,
अवशेष समर, सरसाने को,
पनघट पे नीर भरेगा कौन ।।

शरदरात्रि को अक्षय पात्र में,
चँदा से अमृत लाते थे,
व्रत घृत मधु करवा घरवा,
दीपों की थाल सजाते थे,
होली मंगल कर जल झलका,
रंग चंग त्योहार मनाते थे,
सर्दी सांझे गर्मी रांझे,
रिमझिम से ताल मिलाते थे,
आशीष अमर सिर पल्लू ले,
कंठी स्वर गीत झरेगा कौन,
वट पीपल तीज गौरी पूजन,
पनघट पे नीर भरेगा कौन|

पुनर्मिलन की आस लिए,
कभी अंतर्मन भी समझेगा,
पाले पलना मीठे सपने,
कान्हा भी पूरे कर लेगा,
बान सांकड़ी मंगल गा,
ललना को विदा कराए कौन,
ससुराल से चलकर हाल सुनाने,
माँ बिन मायके आए कौन,
उपहार थार ले अगवानी,
हिवडा भर प्यार करेगा कौन,
पथपीर हरण को चरण धवन,
पनघट पे नीर भरेगा कौन।

परिचय :-  हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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