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संवेदना

उमेश्वरी साहू
धमतरी (छतीसगढ़)
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 आज से लगभग तीन महीने पहले रेलवे स्टेशन में बड़ी ही विचित्र घटना घटी। यह घटना मुझे आज भी झकझोर देती हैं। यह उस समय की बात है जब मैं अपने पति के साथ शिर्डी घूमने जा रही थी। लगभग ४:०० बजे हम लोग रेलवे स्टेशन पहुंचे। उसके बाद मेरे पति ने मुझे गेट पर ही छोड़कर गाड़ी पार्किंग करने के लिए चले गए। मैं वही किनारे पर खड़ी होकर उनका इंतजार करने लगी।
ठीक उसी समय एक बीमार अपाहिज आदमी एकदम गन्दे, मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए लगभग ४-५ साल की बच्ची के साथ सामने से आता हुए दिखाई दिया। बच्ची बहुत रो रही थी जिसके कारण मेरा ध्यान बरबस उसके तरफ चला गया। इतने में वह आदमी अपनी बच्ची को चुप कराने की कोशिश करने लगा फिर उसने बच्ची से कुछ पूछा। मैं दूर खड़ी थी इसलिए मुझे कूछ भी सुनाई नही दिया की उस बच्ची ने क्या कहा? पर ऐसे लगा जैसे बच्ची को बहुत भूख लग रही है और वह खाने के लिए कुछ मांग रही है। उसके बाद उस आदमी ने अपने कटोरे में थोड़ा सा चावल और मछली की सब्जी निकालकर बच्ची को दे दिया।
उसने मात्र १-२ कौर ही खाया और फिर से रोने लगी। मेरा ध्यान अभी भी उन्हीं लोगों पर था क्योंकि मुझे उसका रोना बहुत विचलित कर रहा था। मैं उसकी मदद करना चाह रही थी लेकिन मैं उसकी मदद नही कर पा रही थी क्योंकि चोरी के डर से मैने अपने पास कुछ भी नहीं रखा था। उसके पिताजी उसको चुप कराने की बहुत कोशिश कर रहे थे किंतु वह चुप ही नहीं हो रही थी। उस दिन उस अपाहिज आदमी से ज्यादा लाचार तो मैं अपने आप को पा रही थी क्योंकि मैं चाहकर भी उसकी मदद नही कर पा रही थी। मुझे बहुत दुख हो रहा था तथा मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कार रही थी, मुझे अपना शिरडी जाना पाप लग रहा था, क्योंकि बच्ची रो-रोकर बेहाल हो रही थी और मैं घूमने जा रही थी।
ठीक उसी समय एक औरत उन दोनों के पास आई जो शायद उस बच्ची की माँ थी। उसने अपने आंचल में छुपा कर कुछ लाया था।मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वह बिस्किट और कुछ दवाई लाई हैं। वह औरत भी बड़ी लाचार और बेबस लग रही थी।
अब तो मैं अपने पति का और बेसब्री से इंतजार करने लगी। अगर वह समय पर आ जाएंगे तो शायद मैं इन लोगों का कुछ मदद कर पाऊं। मेरा ध्यान उन्हीं लोगों पर था। उसके बाद वह औरत अपने साथ लाये हुए सामान को चुपके से छुपा कर अपने थैले में डाला और उसको ढक दिया। फिर तीनों थोड़ा आगे बढ़ गए उतने में ही मेरे पतिदेव भी आ गए। मैंने झट से उनसे रूपये लिए और उस औरत के पीछे-पीछे सरपट भागी। जब मैं वहां पहुंची तो मैंने देखा कि वह औरत अपने थैले में से एक दूध का बोतल निकाल रही थी। उसे देखकर मुझे बहुत खुशी हुई कि चलो अब बच्ची के लिये दूध का इंतजाम हो गया है। पर ये क्या किया उसने? मैं वही ठिठक गयी और उसको ही ध्यान से देखने लगी। मैंने देखा उसने दूध के बोतल का ढक्कन खोला और दूध को नाली में फेंक दिया। उसके बाद बोतल में पानी डालकर अच्छे से धोया फिर उसने थैले में से एक शराब की शीशी निकाली और उस बोतल में डाल दिया मेरा ध्यान अभी भी उसके उपर ही था उसने एक-एक करके तीन शराब की शीशी बोतल में डाली। बच्ची अभी भी रो रही थी। लेकिन उन लोगों को कोई फर्क ही नही पड़ रहा था। दोनों पति-पत्नी आराम से कोने में जाकर शराब पीने में मस्त हो गए। मेरे हाथ में रखे नोट चिमट गए। उतने में मेरी ट्रेन की सिटी भी बज गयी और मैं उल्टे पाँव दौड़ लगाकर अपने पति के पास पहुंच गई। जब भी वह घटना मुझे याद आती हैं तो, मैं समझने की बहुत कोशिश करती हूँ कि, किसकी संवेदना मरी हुई थी?

परिचय :  उमेश्वरी साहू (शिक्षिका)
पति : श्री संतोष कुमार साहू
निवासी : मगरलोड, धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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