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तुम होली पर आ जाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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हे! गिरिधारी नंदलाल,
तुम होली पर आ जाओ।।
राधारानी को सँग लेकर,
फिर से रँग बरसाओ।।

प्रेम आजअभिशाप हो रहा,
बढ़ता नित संताप है।
भटकावों का राज हो गया,
विहँस रहा अब पाप है।।
प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे,
अंतस में बस जाओ।।
राधारानी को सँग लेकर,
फिर से रँग बरसाओ।।

मक्कारों की बन आई है,
फूहड़ता की महफिल।
फेंक रहे सब नकली पाँसे,
व्याकुल हैं सच्चे दिल।।
द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं,
बंशी मधुर बजाओ।
राधारानी को सँग लेकर,
फिर से रँग बरसाओ।।

आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं,
मातम का है मेला।
कहने को है प्यार यहाँ पर,
हर दिल आज अकेला।।
हे नटनागर ! रासरचैया,
मंगलगान सुनाओ।
राधारानी को सँग लेकर,
फिर से रँग बरसाओ।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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