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बारिश की बूॅंदें

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)

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मैं हूॅं बारिश की बूंदें,
मैं भी तो प्रभु की
सुंदर रचना ही हूॅं।
जब सावन की
बरसात आती हैं,
तब मैं गगन से चलकर।
अठखेलियां करती हुई,
धरा से मिलन करने आती हूॅं।
मैं रिमझिम-रिमझिम वर्षा संग,
सबके उर उमंग भरती हूॅं।

मैं हूॅं बारिश की बूॅंदें,
अति लघु जल कण,
अल्पायु हूॅं।
मैं धरा पर आकर
स्वयं खुश हो,
मानव के अधरों पर
मुस्कान बिखेरती हूॅं,
मैं जब रज में मिलूॅं,
सौंधी सुगंध।
माटी सी महकाती हूॅं,
धरावासियों के तन
भिगो रोमांच भरुॅं।

मैं हूॅं बारिश की बूॅंदें,
जब पेड़, लता, वृक्ष,
पत्तों पर गिरती हूॅं।
कुछ काल रहती हूॅं,
तब भानु प्रकाश
किरणें मुझे धवल,
सूक्षम मोती सा चमका,
मेरा सौन्दर्य बढ़ाती हैं।
दादुर, मोर, पपीहा, कोयल,
तोता, चिड़िया, मधुर गान करें।

मैं हूं बारिश की बूॅंदें,
जब मैं सीप पर
पड़ूॅं तो मोती बनूॅं।
जब रात्रि तृण पर पड़ूॅं
तो मोती सी चमकूॅं,
कृषक हर्षाए।
चहुं ओर हरियाली
आच्छादित चादर सी दिखें।
वन, उपवन, नदी, तालाब, झरने,
कल-कल, छल-छल करें।

बाग-बगीचे, क्यारियों में
सुंदर-सुंदर पुष्प खिले।
भौंरे गुंजन करें रंग-बिरंगी ,
तितलियाॅं प्रफुल्लित हो,
मॅंडराते हुए खुशी का
इजहार करें,
मैं हूॅं बारिश की बूॅंदें।
सबके मन ऊर्जा भरुॅं,
हर कोई का मन ढ़ोल,
मृदंग,नगाणों सा बजे,
बारिश बौंछार भींग
पग थिर-थिरक
सुंदर नृत्य करें।

परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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