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मैं अक्सर भूल जाती हूँ

शशि चन्दन “निर्झर”
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हां
मैं भूल जाती हूँ
सच कहा तुमने,
मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
अपमान के घूंट
हर रोज़ पी जाती हूँ।
पर याद रखती हूँ
मिटाना सलवटें,
और उधड़ने लगे जो
कमीज़ …
चुपचाप सी जाती हूँ।।

हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ
अपनी पसन्द न पसन्द,
उलझे से केश ….
साज शृंगार और मुस्कान,
पर याद रखती हूँ
कहीं बिगड़े न तुम्हारा
कोई भी जोड़ीदार जुराब ।

मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
सरल सी ….
एक से दस तक की गिनती,
पर बखूबी याद रहता,
वो सत्रह का पहाड़ा …
जो बचपन में कभी याद न था।
हां …. मैं …..

हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ,
व्याकरण के नियम …
मेरे लिए उपयोग हुए
पशुवत संबोधन।
पर याद रखती हूँ,
अपने से छोटों के लिए भी,
सम्मानजनक उद्वोधन।।

हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ
इतिहास की बातें ….
भूगोल की बातें
पर याद रखती हूँ
अर्थशास्त्र और
समाज शास्त्र की बातें,

हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ
मेरे हथेलियों में भी रेखाएं हैं,
अंजुरी में दो बूंद स्वपन,
पर याद रखती हूँ
दीवारों का रंग रोगन,
उगाना छायादार वृक्ष,
और सींचना
तुम्हारे अनदेखे स्वपन।।

हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ …

परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्हें खुशियों के आसमानी रंग देते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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