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अब ए.आई. भी आई बन सकती है!

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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सुबह अख़बार हाथ में लिया तो एक खबर ने मेरी चाय में डूबे हुए बिस्कुट को इतना शर्मिंदा किया की वो शर्म से गल कर डूब ही गया l खबर थी – “अब ए.आई. से पैदा होंगे बच्चे!” मतलब अब ‘प्यार में धोखा’ नहीं, सीधा ‘कोड की कोख में होगा गर्भधारण!’ कृत्रिम बुद्धि अब कृत्रिम बुद्धिपुत्र को जन्म देगी। इस दुनिया में हम क्यों आए… इसका कोई “नियर-टु-ट्रूथ” उत्तर हो सकता है तो यही कि शायद शादियाँ करने… और शादियाँ क्यों कराई जाती हैं? ताकि महिला ‘माँ’ यानी कि ‘आई’ बन सके। हमारे समाज में आज भी बिना ब्याही लड़की और बिना औलाद की स्त्री को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। शादी होते ही लड़के और लड़की दोनों के माँ-बाप इस आस में लग जाते हैं कि घर में किलकारियाँ गूंजें, बधाइयाँ गायी जाएँ। एक साल बीतते न बीते कि पडौसी और रिश्तेदार रबर की तरह खिंचते हुए कानों में फुसफुसाने लगते हैं। महिला के बाँझ होने की आशंका पर ‘शंका संवाद’ शुरू हो जाता है। पति-पत्नी ने अब तक बच्चा क्यों नहीं किया- इस पर विचार-गोष्ठियाँ सजने लगती हैं। “अभी तक बेबी प्लान नहीं किया?” यह वाक्य अपनी मर्दानगी को छुपाने का आधिकारिक बहाना माना जाने लगता है। लड़की के घरवाले लड़के को दोष देते हैं, और लड़के के घरवाले लड़की को। “शादी क्यों की अगर बच्चा ही नहीं करना था?”
शादी यहाँ होती ही है बच्चे पैदा करने के लिए। फिर माँ-बाप को गंगा भी नहानी होती है- बिना पोते के मुँह देखे भला कोई गंगा कैसे नहा पाएगा? फिर मरने के बाद माँ-बाप को स्वर्ग की सीढ़ियाँ भी चढ़नी हैं- वो भी तो उनका पोता ही पकड़कर चढ़वाएगा…वरना सीढ़ियाँ लुढ़क न जाएँ कहीं! ए.आई. ने इस समस्या से निजात दे दी है- यह एक ‘खुशखबरी’ वाली खबर है। ज़रा कल्पना कीजिए- पति सुबह-सुबह ए.आई. लैब की ओर दौड़ रहा है। पत्नी ने रोमांटिक मूड में पति को पुकारा- “सुनिए! आज तो ए.आई. से हमारी प्रॉपर सेटिंग करवा ही दीजिए न?” पति-पत्नी के बीच अब ए.आई. वह ‘वो ‘नाम का बिचौलिया, डील मेकर बनकर आ गया है। ए.आई.पति की मौजूदगी में ही पति के प्रतिपादन को लानत देते हुए कान में फुसफुसाता है- “हैलो डार्लिंग! इमोशन २.० मॉडल से आज ओव्यूलेशन सिम्युलेशन कराऊँगा… आर यू रेडी ना?”
सोचिए, कितना अद्भुत होगा ये भविष्य- अब विरहिणी की विरह की पीड़ा ख़त्म! “रात भर करवटें बदलते रहे हम… आपकी कसम…”- ख़तम ..टाटा बाय बाय .. तकिए से चिपककर आँसुओं की बारात निकालना- सब पुरानी बातें हो जाएँगी। अब कोई पत्नी, विदेश गए सजनवा को ‘ज़ालिम सनम’ नहीं कहेगी। अब न प्रेम-पत्र की ज़रूरत, न महबूब की गली! न सुहागरात, न घूँघट उठाने की झिझक। न बादाम-केसर वाला दूध, न फूलों से सजी सेज। न चाँद, न सितारे, न बारिश की फुहार- बस एक पेन ड्राइव, थोड़ी रैम और थोड़ा भावनात्मक एल्गोरिद्म- बस, संतान तैयार है! अब सात जन्मों का बंधन यूएसबी पोर्ट में “कनेक्शन एस्टैब्लिश्ड” से होगा। डॉक्टर अब ये नहीं कहेगा- “बधाई हो, बेटा हुआ है!” बल्कि बोलेगा-
“बधाई हो! आपके ए.आई. गर्भाशय में सफलतापूर्वक जेएसओएन फाइल इम्प्लांट हो गई है। बच्चा स्वस्थ है- ५१२ जीबी का!” डिजिटल बधाई हो! यह नारी स्वतंत्रता की नई परिभाषा है। अब कोई पति यह पूछने की हिम्मत नहीं करेगा- “क्या आज मूड ठीक है? आज तो सरदर्द नहीं है तुम्हारा?” पत्नी पहले ही कह देगी- “ए.आई. से डेट फिक्स है, तुम घोड़े बेचकर सो जाओ।” गृहस्थी के झगड़े भी समाप्त हो जाएँगे। सासों को बहुओं की गोद भराई के लिए नौ महीने इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। डिलीवरी? अब होम डिलीवरी, ऑफिस डिलीवरी, कार में डिलीवरी, ट्रेन या हवाई जहाज़ में- चलते, रोते, सोते, जागते- २४x७, जहाँ चाहे, वहाँ! नर्सिंग होम की जगह अब खुलेंगे- ए.आई.-असिस्टेड आई क्लीनिक! हर गली में एक “ए.आई. फर्टिलिटी कैफ़े”-

जहाँ मेन्यू कुछ ऐसा होगा –
• “बॉय विद पोएटिक इंस्टिंक्ट्स”- रु.४ लाख
• “गर्ल विद इंस्टाग्राम माइंडसेट”- रु.३.५ लाख
• “ट्विन्स विद आई.आई.टी. पैकेज”- रु.६.९९ लाख (जी.एस.टी. शामिल)
सबसे मज़ेदार बात- अब हनीमून की भी ज़रूरत नहीं! महंगे और लंबे हनीमून पैकेज की जगह बस एक हनीमून सॉफ़्टवेयर अपडेट कीजिए। ए.आई. बोलेगा- “आई फील योर इमोशन, सिमुलेशन सक्सेसफुल !” बस कमर कस लीजिए- डिजिटल उड़ान की इस फ़्लाइट में आप बिना टिकट ही सवार हो चुके हैं। यह उड़ान उड़ चुकी है- बेल्ट बाँध दी गई है- चाहकर भी अब उतर नहीं सकते! मैं तो कहता हूँ- “ख़याल इतना बुरा भी नहीं यार…” बस डर इस बात का है कि कल यही बच्चा ए.आई. अपनी ‘आई’ से ये न पूछ बैठे – “आई, मेरा असली बाप कौन है?”

परिचय :-  डॉ. मुकेश ‘असीमित’
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन)  किताबगंज   प्रकाशन,  गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित 
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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