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स्वर बेदम है

भीमराव ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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राही का टूटा संयम है।
इस विकास का क्षितिज अगम है।।

हाँक रहा है लोकतंत्र को,
थामे वल्गाएँ सौदाई।।
जहाँ अडिग सौहार्द खड़ा था,
वहाँ घृणा ने खोदी खाई।।

ऋतुपति के संपन्न सदन में,
पत्र-पुष्प की आँखें नम है।।

फसलों पर संक्रामक विष का,
भ्रामक रुचिकर वरक चढ़ा है।
कालचक्र ने श्वेत वसन पर,
कलुष कुटिल आरोप मढ़ा है।।

नोंच दिया हर तना वृक्ष का,
नाखूनों में उसके दम है।।

दीवारों की कानाफूसी,
बदल रही है दावानल में।
जलकुम्भी ने डेरा डाला,
समरसता के शीतल जल में।।

देख रही आँखें जो बेबस,
रक्त सना पतझड़ मौसम है।

पाँच पसेरी लालच ने बुन
किए सघन आँखों के जाले।।
लगा लिए हाथों से अपने,
उजले कल के द्वारे ताले।।

सिले हुए अधरों के भीतर,
कैद विरोधी-स्वर बेदम है।।

परिचय :- भीमराव ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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