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दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए

बाल कृष्ण मिश्रा
रोहिणी (दिल्ली)
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बीते लम्हों का सूनापन
तेरी यादों का महकता चंदन
आंखें में थमी तेरी परछाई,
रोशनी बनकर
बूंदों में घुल जाए।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

कहां मुमकिन है मोहब्बत को
लफ्ज़ों में बयां कर पाना।
आसान नहीं भुला, यादें
सुकून की नींद में सो जाना।

ज़िस्म से रूह तलक,
बस सुकून छा जाए।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

जीवन के पावन ‘निर्झर’ को,
तुम यूँ ही बह जाने दो।
एक पल, बस एक पल,
नीले अँधेरे में गुम हो जाने दो।

तारों की चादर ओढ़,
चाँद की रोशनी में खो जाऊं।
तेरी मोहब्बत की खुशबू में,
खुद को फिर से पा जाऊं।

ज़िस्म से रूह तलक,
बस सुकून छा जाए।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

तेरे बिना सारा जहाँ,
सूना सा लगता है,
जैसे एक सिसकी.…
जैसे एक सिसकी।
ये कैसा अधूरापन?
ये कैसा सूनापन?
शायद यही है इश्क़ अपना…
एक मीठा सा पागलपन।

हर खुशी बेमानी,
हर नशा अधूरा,
तेरे बिन ये जीवन,
एक ख़्वाब ना पूरा।
तुझसे ही शुरू,
तुझपे ही फ़ना,
तेरे बिना अब नहीं ,
कहीं ठिकाना।

ज़िस्म से रूह तलक,
बस सुकून छा जाए,
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

ये रात ठहर जाए,
पलकों पे ठहर जाए।
होठों पे तेरा नाम हो,
और सुबह ना आए।
हर ख्वाहिश मिट जाए,
बस तू ही तू रह जाए।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

ज़िस्म से रूह तलक,
बस सुकून छा जाए।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाए।

परिचय :- बाल कृष्ण मिश्रा
निवासी : रोहिणी, (दिल्ली)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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