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नादान है इंसान

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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अभी तक नादान है इंसान
उसी डाल को काटे
जिस पर खुद बैठा नादान।
अपने पैर कुल्हाड़ी मारे
दिखा दंभ अभिमान।

जानबूझ सच भूल गया सब
मन के माने-मान,
उलटी पढ़ी ज्ञान की पाठी
उल्टा हो गया ज्ञान।

सदा नकारे सच को मूरख
होश करे न भान
स्वार्थ में हो अंधा ऐसा
बेचा सब ईमान।

खुद की करनी छुपे न खुद से
झूठी -धरता शान,
अंदर-अंदर रहता हरदम
परेशान -हलकान।

तन को खाना-पीना सबको
हासिल सभी जहान
मन की भूख अपूर सदा ही
मन की माँग अजान।

मन मूरख खुद भी नहीं जाने
क्या उसका अरमान
पगलाया फ़िरता दुनिया में
चढ़ गई मुफ्त थकान।

मन के संग-संग मूरख लागे
ज़रा करे न ध्यान
मन के संग-संग घायल होकर
घर लौटे नादान।

मन नहीं जाना जब तक अपना
सच न हो संज्ञान
मन नहीं जाना तब तक अपना
बोध हुआ न ज्ञान.
अभी तक नादान है इंसान.

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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