
रूपेश कुमार
चैनपुर (बिहार)
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भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसे वीर पुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। महात्मा गॉंधी ने जहाँ अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाया, वहीं पंडित नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण कि परिकल्पना की। परन्तु इन सबके बीच एक ऐसे पुरुष का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है जिसने भारतीय रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत की अखंडता को स्थायी रूप प्रदान किया। वे थे सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें ससम्मान “लौह पुरुष” और “अखंड भारत के निर्माता” कहा जाता है।
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नडियाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता झवेरभाई एक साधारण कृषक थे और माता लाडबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। बचपन से ही वल्लभभाई में आत्मसम्मान, परिश्रम और दृढ़ संकल्प की भावना थी। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा करमसद और पेटलाद में प्राप्त की, और आगे चलकर वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। वहाँ से बैरिस्टर बनकर लौटने के बाद उन्होंने अहमदाबाद में वकालत प्रारंभ की और शीघ्र ही एक सफल वकील के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
महात्मा गॉंधी के विचारों से प्रेरित होकर पटेल ने १९१८ ई. में ‘खेड़ा सत्याग्रह’ में सक्रिय भाग लिया। यह आन्दोलन किसानों के अधिकारों के लिए था, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने अकाल के बावजूद कर देने के लिए बाध्य किया था।
पटेल ने किसानों को संगठित कर ब्रिटिश शासन को झुकने पर विवश कर दिया। इसके बाद उन्होंने १९२८ ई. में बारदौली सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसमें किसानों ने भूमि कर बढ़ोतरी का विरोध किया। उनकी सफलता के बाद गॉंधीजी ने उन्हें स्नेहपूर्वक “सरदार” की उपाधि दी। यह उपाधि केवल सम्मान का प्रतीक नहीं, बल्कि उनके नेतृत्व और संगठन क्षमता की पहचान थी।
१९४७ ई. में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब ब्रिटिश भारत के साथ लगभग ५६२ रियासतें थीं। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को स्वतंत्रता दी थी कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हों या स्वतंत्र रहना चाहें। यह परिस्थिति नवस्वतंत्र भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी। यदि रियासतें स्वतंत्र रहतीं, तो भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो जाता और अखंड भारत का सपना अधूरा रह जाता।
ऐसे कठिन समय में सरदार पटेल को देश के गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में यह दायित्व सौंपा गया कि वे इन रियासतों को भारत संघ में मिलाये। उन्होंने अपने अद्वितीय संगठन कौशल, राजनीतिक समझ और दृढ़ निश्चय के बल पर यह असम्भव प्रतीत होने वाला कार्य सम्भव कर दिखाया।
पटेल ने अपने सचिव वी.पी. मेनन के साथ मिलकर रियासतों के शासकों से संवाद प्रारंभ किया। उन्होंने प्रत्येक रियासत के हित और भारत की सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखते हुए एक “संवैधानिक समझौता” तैयार किया, जिसे Instrument of Accession कहा गया। इस पर हस्ताक्षर कर रियासतें भारत में सम्मिलित होती थीं।
पटेल की सूझबूझ और कूटनीति का परिणाम था कि अधिकांश रियासतों ने बिना किसी संघर्ष के भारत संघ में शामिल होना स्वीकार किया। उन्होंने राजाओं को यह विश्वास दिलाया कि भारत संघ में शामिल होकर भी उन्हें सम्मान और कुछ विशेषाधिकार प्राप्त रहेंगे। परन्तु जहाँ आवश्यकता हुई, वहाँ उन्होंने कठोर रुख भी अपनाया।
हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी प्रमुख रियासतों के मामले में पटेल का लौह-पुरुष स्वरूप देखने को मिला। जूनागढ़, जो पाकिस्तान में विलय का निर्णय ले चुका था, वहाँ पटेल ने राजनीतिक और सैनिक दबाव डालकर जनमत संग्रह कराया और अंततः वह भारत का हिस्सा बना।
हैदराबाद के निज़ाम ने स्वतंत्र रहने की घोषणा की थी, पर ‘ऑपरेशन पोलो’ नामक सैन्य अभियान के माध्यम से पटेल ने वहाँ भी भारत का तिरंगा फहराया।
कुछ ही महीनों में उन्होंने लगभग सभी रियासतों को भारत संघ में मिला दिया। इतिहासकारों का मत है कि यदि सरदार पटेल न होते, तो आज का भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा होता।
सरदार पटेल का व्यक्तित्व दृढ़ता, सत्यनिष्ठा और राष्ट्रनिष्ठा का प्रतीक था। वे निर्णय लेने में कभी पीछे नहीं हटते थे। गॉंधीजी के सिद्धान्तों से प्रेरित होकर भी वे व्यवहारिक राजनीति में अत्यन्त यथार्थवादी थे। उनका मानना था कि “देश की एकता सबसे ऊपर है, और उसके लिए यदि कठोर निर्णय लेने पड़ें, तो भी संकोच नहीं करना चाहिए।”
उनकी नेतृत्व शैली में अनुशासन, स्पष्टता और कार्यकुशलता थी। वे केवल आदेश देने वाले नेता नहीं थे, बल्कि स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करते थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) जैसे अखिल भारतीय संस्थानों की स्थापना भी पटेल की देन है। उन्होंने इन सेवाओं को ‘देश की रीढ़’ कहा था।
सरदार पटेल का योगदान केवल राजनीतिक एकीकरण तक सीमित नहीं था। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद उत्पन्न अराजकता को समाप्त करने, शरणार्थियों के पुनर्वास, प्रशासनिक ढाँचे के निर्माण और राष्ट्रीय एकता की भावना को सुदृढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे चाहते थे कि भारत केवल राजनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भी एकजुट हो।
उनका विश्वास था कि भारत की विविधता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। उन्होंने चेताया था कि यदि हम अपनी एकता बनाए नहीं रख पाए, तो विदेशी शक्तियाँ फिर से हमें गुलाम बना सकती हैं। उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का ही परिणाम है कि आज भारत एक संगठित, सशक्त और गौरवशाली राष्ट्र के रूप में विश्व मंच पर खड़ा है।
१५ दिसंबर, १९५० ई. को सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन हो गया। यद्यपि वे आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी विरासत हर भारतीय के हृदय में जीवित है। उनकी स्मृति में गुजरात के नर्मदा जिले में “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का निर्माण किया गया है, जिसकी ऊँचाई १८२ मीटर है और जो विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा मानी जाती है। यह केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और साहस का अमर प्रतीक है।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने अदम्य साहस, अटूट निश्चय और उत्कृष्ट संगठन कौशल से भारत की अखंडता को स्थायी रूप दिया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि सच्चा नेतृत्व केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कर्म से स्थापित होता है। उनके बिना भारत का नक्शा आज जैसा नहीं होता। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी नहीं, बल्कि राष्ट्र के शिल्पकार थे। सचमुच, सरदार वल्लभभाई पटेल “अखंड भारत के निर्माता” थे और सदैव रहेंगे।
मेरे शब्दों में –
लौह हृदय में जलती ज्योति, देशभक्ति की मशाल,
अंधियारे में दीप बने, जन-जन के रखवाल।
सत्य, साहस और निष्ठा से, गढ़ दी भारत की राह,
सरदार पटेल वो नाम है, जो बन गया इतिहास।
खेड़ा की धरती गूंज उठी, जब किसान पुकारे थे,
अन्याय के उस शासन से, जब सब हारे-थके थे।
सरदार ने हिम्मत भर दी, हर दिल में विश्वास,
“बारडोली” की गाथा गाई, भारत का इतिहास।
स्वतंत्र हुआ जब देश हमारा, बिखरी रियासतें थीं,
कहीं निज़ाम, कहीं महाराजा, सबकी अपनी बातें थीं।
तब लौह पुरुष ने ठान लिया, एक सूत्र में लाना है,
खंड-खंड भारत को फिर से, अखंड हमें बनाना है।
वी.पी. मेनन संग चलकर, रच दी नई कहानी,
“इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन” से, जुड़ गई हर रियासती रानी।
हैदराबाद, जूनागढ़, सबने तिरंगा पाया,
भारत माँ का एक नया, स्वरूप जग में छाया।
न धन लोभ, न पद मोह, केवल देश था ध्येय,
उनकी वाणी में दृढ़ विश्वास, कर्मों में तेज़ निखरते गए।
राष्ट्र निर्माण की उस गाथा में, नाम अमर उनका है,
जिस भारत को हम कहते एक, श्रेय उसी का है।
आज नर्मदा के तट खड़ा है, लौह पुरुष का गौरव,
“स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” कहता, यह है भारत का स्वर।
एकता, साहस, निष्ठा, सेवा – सब गुण उनमें थे,
देशभक्ति की सजीव मूर्ति, सरदार पटेल स्वयं थे।
झुक जाएँ सर, गर्व से भर जाए हर दिल का कोना,
जिस भारत में साँसें लेते हैं, उनका ही तो है सोना।
अखंड भारत के उस निर्माता को, नमन हमारा बार-बार,
लौह पुरुष सरदार पटेल, अमर रहे सौ सौ बार।
परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार
शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी !
निवास : चैनपुर, सीवान बिहार
सचिव : राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान
प्रकाशित पुस्तक : मेरी कलम रो रही है
सम्मान : कुछ सहित्यिक संस्थान से सम्मान प्राप्त !
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


















