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भारत की नारी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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नारी सदा स्वयंसिद्धा है,
कर्म निभाता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,
क्यों मुरझाता नारी जीवन।।

कर्म निभाती है वो तत्पर,
हर मुश्किल से लड़ जाती।
गहन निराशा का मौसम हो,
तो भी आगे बढ़ जाती।।

पत्नी, माँ के रूप में सेवा,
तो क्यों खलता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,
क्यों मुरझाता नारी जीवन।।

संस्कार सब उससे चलते,
धर्म नित्य ही उससे खिलते।
तीज-पर्व नारी से पोषित,
नीति-मूल्य सब उसमें मिलते।।

आशा और निराशा लेकर,
नित ही पलता नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,
क्यों मुरझाता नारी जीवन।।

वैसे तो हैं दो घर उसके,
पर सब लगता यह बेमानी।
फर्ज़ और कर्मों से पूरित,
नारी होती सदा सुहानी।।

त्याग और नित धैर्य, नम्रता,
संघर्षों में नारी जीवन।
देकर घर भर को उजियारा,
क्यों मुरझाता नारी जीवन।।

कभी न हिम्मत हारी उसने,
योद्धा-सी तो वह लगती।
लिए हौसला भिड़ जाती है,
हर विपदा भय खाकर भगती।।

धर्म-कर्म के पथ की राही,
हर हालत में वह मुस्काती।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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