Wednesday, December 17राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

BLOG

प्रेम की गली
कविता

प्रेम की गली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रेम की गली हमें दिखाई तो होती इश्क़ क्या हे हमें सिखाई तो होती फिजाओं में बिखरे हे रंग तेरे जो एक बारगी हमें दिखाई तो होती ज़ज़्बातो का महल हमने बनाया खूशबू कहीं-कहीं तो उड़ाई होती तेरे दर पर सजदे करने आते रोज काश हमारी दुनिया सजाई होती वादा जो बकाया चल रहा हमारा पूरा होता तो ये, न, रूसवाई होती तन मन मे अनुराग भर गया यारो सूरत उसकी हमे भी दिखाई होती कितने लोग पूछ गए पते हमसे भी मोहन प्यार की पाती लिखाई होती परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान
कविता

वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? धीर वीर गंभीर होते हैं वहीं तो बाहुबली है, जो रंग व ढंग बंदल दे वही तो बजरंगबली है। अष्टसिद्धियों में कुशल अब सर्व शक्तिमान कहां..? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? काम क्रोध लोभ अंहकार को सूर्य जैसे निगल दिया, पवन जैसा वेग मारूत जैसे आवेग सबको बता दिया। केसरीसुत बलशाली जैसे अब स्वाभिमान कहां...? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां ..? भावों का अंत नहीं उनके जैसे हनुमंत कहां..? मनगढ़ंत बातें नहीं उनके जैसे पारखी संत कहां..? दार्शनिक महावीर जैसे अब वर्धमान कहां... मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के सच्चे वो भ...
समंदर को खल गई
ग़ज़ल

समंदर को खल गई

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** इतनी सी बात थी जो समंदर को खल गई। काग़ज़ की कश्ती कैसे भँवर से निकल गई।। पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में। लगता है अब ज़मीन की मिट्टी बदल गई।। अब पूरे तीस दिन की रियायत मिली उसे। फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई।। अशआर में बचे हैं मुहब्बत के हादसे। वरना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई।। कल तक तो बेगुनाह समझते थे सब मुझे। क्यों राय आज सारे जहाँ की बदल गई।। मयख़ाने की डगर से जो मेरा गुज़र हुआ। वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई।। रंजो अलम हैं साथ ज़माने हुए "शलभ"। अब तो ये ज़िन्दगी इसी साँचे में ढल गई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहि...
हमर बाबा धन्य होगे
आंचलिक बोली, कविता

हमर बाबा धन्य होगे

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे। लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे।। सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी हाबे जी। सादा जीवन उच्च विचार के मणि हाबे जी।। धरम करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे .. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे .... जाति–पाति भेदभाव के गड्डा ला वो पाटीस हे। छुआछूत अऊ कुरीति के जड़ ल घलो वो गाढ़िस हे।। अइसनहा मानव जन के जनैय्या महामानव होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... संत मनीषी साधू संन्यासी मन के संग ल धरिस हे। तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गाढ़िस हे।। आष्टगिंक मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के अनुयायी होगे.. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... बाबा के मारग ल अपनाही वोकरे जिनगी सरग बनत हे। खान-पान, रहन-सहन सुधारही उंख...
अक्सर
कविता

अक्सर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इश्क़ की रातें और इश्क़ की बातें अक्सर महँगी पड़ती है। ज्यादा समझदारी और लगी हुई इश्क़ बीमारी अक्सर महँगी पड़ती है। गैरों के साथ यारी और अपनों के साथ गद्दारी अक्सर महंगी पड़ती है। जरूरत से ज्यादा समझदारी और गैरों से वफादारी अक्सर महंगी पड़ती है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी...
छल-कपट
कविता

छल-कपट

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** छल-कपट दुनिया के देखते रहते हो! क्या आज कल तुम सोये हुए रहते हो? क्या तुम्हारी रूह जरा भी नहीं कांपती? घनघोर अन्याय के प्रत्यक्ष दर्शी होते हो! क्या कर बैठे हो दुर्योधनों से मिली भगत? या हफ्ता वसूली की आ गयी तुमपे भी नौबत? तुम्हारा अस्तित्व दिखता नहीं आज कल, भेड़ियों से बचने की चल रही है मशक्कत! द्रौपदी कितनी और जुएं मे है हारनी? कितनी गांधारी को आँखों पे है पट्टी बांधनी? गिरधारी आँख कब खुलेगी तुम्हारी? कितने महाभारत की मंशा और है बाकी? जाग जा… कर दे कुछ ऐसी अब करनी, राक्षसों की कर दे अब खत्म तू कहानी! या तो फिर कह दे तू दुनिया मे है नहीं, तेरे पास किसी समस्या का हल नहीं! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला मह...
मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना
भजन, स्तुति

मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना।" मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तू..., पर्वत विराजी कहीं, धरातल विराजी, तेरे..., सच्चे भक्तों के तू, मन में विराजी, मन मंदिर पूजो, सब मन मंदिर पूजो, श्रद्धा भाव भक्ति से, मन मंदिर पूजो। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तेरे..., द्वारपाल बजरंगी, पवनसुत बाला, तूने..., धन्य किया है प्यारे, अंजनी का लाला, पल-पल पुकारूं, तुझें हर-पल पुकारूं, श्रद्धा भाव भक्ति से, पल-पल पुकारूं...
राम बने या रावण
कविता

राम बने या रावण

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर जीवात्मा में बसता है रावण या सदाचारी राम बुराई का प्रतीक ये रावण तो अच्छाई दर्शाते हैं राम काम क्रोध लोभ मोह मद जो देते तिलांजलि इनको वो हैं राम जैसे चरित्रवान लिखाते इतिहास में नाम पाँच विकारों से वशीभूत हो जो बन जाते दुष्ट दुराचारी सिया हरण सा पाप करते जग में कहलाते हैं ये रावण मानव स्वकर्मो से ही बनता जो वो चाहे, रावण या राम क्यूँ न हरादें अपने रावण को बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम हराके दशाननी विकारों को दशरथसुत राम ही बन जाएँ करें स्थापना रामराज्य की धरा पर स्वर्ग अब उतार दें आज सबके अपने रावण हैं रिश्तों, कुर्सी की मारामारी में कुकर्म, अनाचार आतंक में महाभारत का बोलबाला है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
कालचक्र
कविता

कालचक्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** जीवन के है तीन आधार भूत भविष्य और वर्तमान। जीना सबको पड़ता है इन्हीं तीनो कालो में। भूत बदले भविष्य बदले या बदले वर्तमान। फिर जीना पड़ता है इन्हीं कालो के साथ।। किसके भाग्य में क्या लिखा ये तो भाग्य विधाता जाने। पर मैं जो कुछ भी करता अपनी मेहनत और लगन से। तभी तो दिख रहे परिणाम मुझे इस मानव जीवन में। इसलिए मुझे आस्था है अपने भगवान के ऊपर।। बनो आशावादी तुम अपने मनुष्य जन्म में। करो भरोसा उस पर तुम जिसे तुम अपना समझते हो। और उसके लिए लड़ने को जमाने से भी तैयार हो। वो कोई और नहीं है ये तीनो ही काल है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी...
जन्मदिवस पर अनंत शुभकामनाएं …
जन्मदिवस

जन्मदिवस पर अनंत शुभकामनाएं …

राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच www.hindirakshak.com की रचनाकार श्रीमती बबिता चौबे "शक्ति" ( दमोह म.प्र.) का आज ०३ अप्रैल को जन्मदिवस है ... इस पटल के माध्यम से नीचे दिए गए कमेंट्स बॉक्स में संदेश भेजकर आप शुभकामनाएं दे सकते हैं…. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभा...
तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा
ग़ज़ल

तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ********************           २१२ २१२ २१२ २१२ तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा दिल तुझे ही न पाए तो क्या फायदा बाग़बाँ के लिए लाख कलियाँ खिलीं लूट भँवरा ले जाए तो क्या फायदा आपने प्रेम से मुझको देखा नहीं सारी दुनिया बुलाए तो क्या फायदा मैं तो .मसरूर तेरी मुहब्बत में हूँ तू न रग़बत दिखाए तो क्या फायदा देश बरबाद करते रहे लोग जो उन पे हीरे लुटाए तो क्या फायदा आज कातिब ही ग़ालिब हुआ है यहाँ सत्य लिखना न आए तो क्या फायदा ख़ूब साक़िब ने देखा मुझे ग़ौर से फिर भी रजनी न भाए तो क्या फायदा शब्दार्थ मसरूर- प्रसन्न रग़बत- दिलचस्पी कातिब- लिखने वाला ग़ालिब- छाया हुआ साक़िब- चमकता तारा परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व...
डाँ. अम्बेडकर
कविता

डाँ. अम्बेडकर

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** प्रतिष्ठित विद्वान विधि वेत्ता, अम्बेडकर समाराधक माँ भारती के थे | न बने आराधक गांधी-नेहरू के, भीमराव जी ऐसे लाल माँ भारती के थे || कटु आलोचक गांधी नेहरू उनके, विद्वत्ता गुण से विधि न्याय मंत्री थे | संविधान समिति मसौदा उनके, अध्यक्ष डॉ अंबेडकर विधि न्याय मंत्री थे || प्रबल विरोधी तीन सौ सत्तर के, समर्थक समान नागरिक संहिता के थे | कर सिफारिश इसे अपनाने की, समाज सुधारक इप्सिता युत थे || रोका हिंदू कोड विधेयक नेहरू ने, मंत्री पद ही अंबेडकर ने त्याग दिया | थी बात विधेयक में महिला अधिकारों की, बिल हिंदू कोड क्यों नेहरू ने त्याग दिया || ना समर्थक थे भारत विभाजन के/ न विभाजकों को भीम ने भाव दिया | कहते थे विभाजित करने वाले ने, भारत के लिए अभिशाप दिया || सपना अंबेडकर का भारत की समानता, अब तक न किसी ने पू...
सपने मनु शतरूपा के
कविता

सपने मनु शतरूपा के

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मिले थे हम तुम नादान थे अनजान थे सच में हम थे दो दीवाने खुली आँखों के वे सपने तेरे मेरे नहीं, वे थे अपने *सुदूर फैली वादियों में फूलों का शहर छोटा सा पेड़ो के झुरमुठ से घिरा प्यारा नायाब सा घरौंदा मनु और शतरूपा का हो *झरोखों रोशनदानों से रवि किरणें फैल जाएँगी हमारे घर के हर कोने में पंछियों की चहचहाट सुन चाय पीते खूब बतियाएँगे *मनु हवाई किस उड़ाते चल देंगे अपने काम पर कान्हा को पूजते झुलाते खो जाऊँगी मैं सपनों में कब गूँजेगी किलकारियां *हमारी बगिया में खिलेंगे प्रसून और पर्णा दो फ़ूल महकेगा आशियाँ न्यारा बच्चे भी मंजिलें तलाशते नए नीड़ों को उड़ जाएंगे *ऐनक चढाए हकलाते अँगीठी के पास बैठ कर गुम खयालों में ख़्वाबों के कॉफी की चुस्कियों में मनु शतरूपा खो जाएँगे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) ...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
क्षमा- एक दिव्य गुण
आलेख

क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
रा म जैसे सुंदर दो अक्षर
स्तुति

रा म जैसे सुंदर दो अक्षर

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रा म जैसे सुंदर दो अक्षर छत्र, मुकुट, मणिरुप हैं सबसे ऊपर धारण करते नर नारायण श्री राम रघुकुल के नामी, रघुनाथ श्री राम मन मोह बसते हैं, मनोहर श्री राम सुंदर, चितवन नयन राजीव लोचन श्री राम द्युति दे सूर्यवंश को भानुकुल भूषण श्री राम शर, चाप, बल धर धनुर्धर श्री राम मर्यादा की ध्वजा लहराते, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राम नाम जप कलि काल में कल्प तरु श्री राम चंद्र हास को मान देते, रामचन्द्र श्री राम दया, करुणा का कोष बिखराते, करुणानिधान श्री राम सत,रज,तम निधान त्रिगुण श्री राम जीत क्रोध, ल़ोभ, मोह, जितेंद्रिय श्री राम दैहिक, दैविक, भौतिक ताप हर तारणहार श्री राम मन मोह जानकी का, जानकीवल्लभ श्री राम राम, रमापति स्त्री धन को देते मान सिया-राम हैं जय जय श्री राम जय-जय श्री राम हैं सियाराम। परि...
महंगाई
आंचलिक बोली

महंगाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी सुबह-शाम लोगन हलाकान हे, महंगाई ले परेशान हे, अच्छे दिन अही कही के सबला भरमात हे.! गर्मी ले ज्यादा तो महंगाई पसीना निकाल दीस, गरीबी के रददा देखावद हे, अच्छा दिन ला लुकावत हे, दु:ख ला बलावत हे.! जीवन जीये मा परेशानी कर दीस ये महंगाई हा, कर्जा ऊपर कर्जा करा दीस ये महंगाई हा.! अकेले नहीं पुरा देश के कहानी हे, गरीब के कोनो नई हे सहारा, छोड दिस बेसहारा, कर्जा बोडी के चक्कर मा होगे हे परेशान, ये महंगाई सब ला कर दे हे हलाकान.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।
ग़ज़ल

थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रस्ते - रस्ते दीप जलाना बाकी है। अँधियारों का डर झुठलाना बाकी है। सुनकर जो भी सपनों जैसी लगती है, उन बातों से मन बहलाना बाकी है। नए दौर की चढ़ती -बढ़ती शिक्षा में, सच्चाई का गुर सिखलाना बाकी है। बूझ रहें हैं लोग यहाँ सबके के चेहरे, उनको अपना घर दिखलाना बाकी है। सबकी शान, बढ़ाई वाले मौकों पर थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
लाडो खुश रहना
कविता

लाडो खुश रहना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** लाडो खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बेटी खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने की थाली में, कंचन सा पानी, प्राणों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। "का चाहे, बाबुल मैया, का चाहे, बाबुल मैया, जो चाहे हो।" लाडो दे देना..., बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। लाडो खुश रहना...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने सा अंगना में, महके बागवानी, फूलों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो च...
रंग साँवला
कविता

रंग साँवला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यह बात तुझसे कहा नही होता तुम्हारे इश़्क में बावला नही होता। बिना समय गंवाए तू मेरी होती रंग मेरा यदि साँवला नही होता। लोग कहते रहें भले कुछ लेकिन प्यार इतना भी बुरा नही होता। दो प्यार करने वालों के दरम्याँ यार रहे याद, कोई तीसरा नही होता ॥ रुठते मनाते रहते हैं एक दूजे को देर तक कोई ख़फा नही होता॥ किस्मत से मिलता है सच्चा प्यार हर कोई यहाँ बेवफ़ा नही होता ॥ परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी न...
एक भारत ऐसा भी
कविता

एक भारत ऐसा भी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** एक पुल के ऊपर ठाठ बाट संभ्रान्त, दूसरा पुल के नीचे अर्द्ध नग्न सहता संताप। एक लंबी छुट्टी का लेता आरामदायक मजा, दूसरा लंबी छुट्टी की लेता कष्टदायक सजा। एक सुरक्षित, आनंदमय, गुनगुनाता, खिलखिलाता परिवार, दूसरा चिलचिलाती धूप में थका-मांदा पैर रगड़ता सुबकता परिवार। एक जो रोज नए खाद्य पदार्थ की विधि से अपनी चंचल जिव्हा को तुष्ट करता, सोशल मीडिया पर इतराकर अपनी पाक कला दर्शाता। तो दूसरा एक कटोरी भात के लिए दूसरों के समक्ष हाथ पसारता। आठ बच्चों में एक रोटी के टुकड़े कर गटागट पानी पी सो जाता। एक बैंक में जमे पैसों का लेखा-जोखा देख निश्चिंत। दूसरा हाथों की उंगलियों को चटकाता बिना आजीविका चिंतित। एक बालकनी में आनंद लेता पक्षियों की चहचहाहट। दूसरे के मन में आर्तनाद और घबराहट। एक कोरोना के आंकड़े गिनता ...
पथिक
कविता

पथिक

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** पथिक हो? फिर विराम क्यों ? चलना तेरा काम है फिर आराम क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर पड़े कंकरों से तुमको भय क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर चलने से तुम को थकावट क्यों? पथिक हो? फिर हार जाने के डर से तुम को घबराहट क्यों? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
कौन हूं मैं…???
कविता

कौन हूं मैं…???

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बरसों से एक जवाब की तलाश थी, सवाल खुद पर था, उत्तर भी खुद से देना था रात दिन हर पल, खुद से खुद में हलचल मचाता हुआ अचानक प्रश्न कौंधा "कौन हूं मैं" ???? किसी चेहरे की खुशी तो किसी की मुस्कान हूं, किसी के आंखो की नमी, किसी के जीवन में बरसात सी हूं ना जाने किसका सवेरा किसकी शाम हूं कभी किसी का सच, तो कभी पलकें झुकाए अनकही पहेली हूं कौन हूं? यदि हूं, तो अब तक चुप क्यूँ हूं?? हर पल चल रही हूँ हर पल ढल रही हूँ कभी उत्सव में लीन कहि वीरानी में सिमटी सवाल बेहिसाब हैं, सिलसिला चला जा रहा है हर पल कई रंग और बदलते हुए कई रूप हैं कही जीवन जीने में शामिल कभी मृत्यु से, थरथराती, डरी हूं क्या मौत से खत्म है जिन्दगी, क्या जान से ही जहान है ?? क्या जीवन सत्य है, या मृत्यु ही अटल सत्य है इन सवा...
स्नेह
कविता

स्नेह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाल की तरक्की होती जा रही अब जमाने में, आज तक स्नेह परखने का यंत्र तो बन नहीं सका। सुनते रहे थे सदा हम, छिपाने से छिपता नहीं, स्नेह कोई वस्तु जैसी नहीं प्रदर्शन बन नहीं सका। दिल की तिजोरी का हर कोना स्नेह से लिप्त हो जरूरत में कैद स्नेह कभी, आजाद बन नहीं सका। सात दिन चौबीस घंटे दिल कारखाने में ये बने, स्नेह गजब का डॉन, सूरत ए हाल बन नहीं सका। चार बातें चार लोग के सामने होती महफिल में, खुद के बनाए घेरे में झांकता, शख्स बन नहीं सका। सही गलत सब गेंद खेलने, माहिर हुए अब लोग, सही जगह सच रखने, फिक्रमंद भी बन नहीं सका। स्नेह सात तालों की सुरक्षा, बहुत खास है प्रसंग बहुत स्नेह रखते मात्र कहने, साहस बन नहीं सका। दूसरों की नजर में पूछ परख सम्मान मिलता रहे, सबके सामने सच रखने का, योग भी बन नहीं सका। स्नेह के ऐसे क...
नहीं कुछ कहता मैं भी
कविता

नहीं कुछ कहता मैं भी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** नहीं कुछ कहता मैं भी लिए हो हाथ में जो तुम कुल्हाड़ करों जो तुम चाहो अपनी मनमानी मैंने दिया है तुझको क्या क्या लेकिन दिया है तुमने मुझे ये क्या कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान स्वार्थ के जो तुमने बीज अपनाया प्रेमभाव जलसिंचित जो किया किया तो अपनी स्वार्थ मनोरथ के लिए निर्जीव गूंगा जो जानकर कर दिया अपनी क्रोध का भांडाभाड़ हो ना सका मातृभूमि का नव श्रृंगार कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...