प्रेम की गली
मनमोहन पालीवाल
कांकरोली, (राजस्थान)
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प्रेम की गली हमें दिखाई तो होती
इश्क़ क्या हे हमें सिखाई तो होती
फिजाओं में बिखरे हे रंग तेरे जो
एक बारगी हमें दिखाई तो होती
ज़ज़्बातो का महल हमने बनाया
खूशबू कहीं-कहीं तो उड़ाई होती
तेरे दर पर सजदे करने आते रोज
काश हमारी दुनिया सजाई होती
वादा जो बकाया चल रहा हमारा
पूरा होता तो ये, न, रूसवाई होती
तन मन मे अनुराग भर गया यारो
सूरत उसकी हमे भी दिखाई होती
कितने लोग पूछ गए पते हमसे भी
मोहन प्यार की पाती लिखाई होती
परिचय :- मनमोहन पालीवाल
पिता : नारायण लालजी
जन्म : २७ मई १९६५
निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान
सम्प्रति : प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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