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भयातुर शिक्षक
कविता

भयातुर शिक्षक

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** भयभीत शिक्षक समाज आज, भूल मकर संक्रांति कक्षा पढ़ा रहा। राजनीतिक दबाव में शिक्षक आज, भूल पर्वों को कक्षा पढ़ा रहा।। विद्यार्थी चाहे जुड़ना चाहे नहीं चाहे, शिक्षक उपकरण माध्यम से पढ़ा रहा। विद्यार्थी अप्रत्यक्ष कुछ भी शरारत करें, शिक्षक विवस मौन उपकरण से पढ़ा रहा।। कक्षा उपकरण माध्यम से लेने का, आदेश राजनैतिक मिलता रहा। भुलाकर मकर संक्रांति स्नान शिक्षक, उपकरण माध्यम से विषय पढ़ाता रहा।। हो चाहे लोहड़ी उत्तरायणी पर्व अब, शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते। सेवा शिक्षण की चाहिए सुरक्षित तो, अब शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते।। अति बिचित्र यह शिक्षा व्यवस्था, हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की। कब लौटेगी वह शिक्षण व्यवस्था, जो लुप्त हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की।। शिक्षक भयातुर करके कैसे तुम, शिक्षा प्रारूप का स्व...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
नारी को जाने और समझे
कविता

नारी को जाने और समझे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दिखाये आँखें वो हमें जब मनका काम न हो उसका। तब बहाना ढूँढती रही हमें शर्मीदा करने का। यदि इस दौरान कुछ उससे पूछ लिया तुमने। तो समझ लो तुम्हारी अब खैर नहीं है।। अलग अलग तरह के रूप देखने को मिलेंगे। कभी राधा तो कभी दुर्गा और कभी-कभी शेरनी का। समझ नहीं पाता पुरुष नारी के इतने रूपों को। इसलिए शांति से वो सब कुछ सुनता रहता।। नारी की गुस्सा से पुरुष बहुत डरता है। घर की शांति के लिए वो खुद चुपचाप सा रहता। इसी बात का फायदा सदा वो उठती रहती है। और अपनी मन मानी वो घर में करती रहती है।। बहुत सहनशील धैर्यबान और कुशल प्रबंधक भी नारी होती। और अपने घर और बाहर का ख्याल भी बड़ी खूबी से रखती। तभी तो नारी को लक्ष्मी दुर्गा और अन्नपूर्णा माँ कहाँ जाता। तभी वो घर को स्वर्ग और नरक स्वयं बनाकर रखती है।। नारी के रूपों ...
नेहानुबन्ध
लघुकथा

नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी। ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौत...
वतन बदनाम करने पर हैं
ग़ज़ल

वतन बदनाम करने पर हैं

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** वतन बदनाम करने पर हैं आमादा वतन वाले। बहुत देखा मगर मिलते नहीं हैं अब जतन वाले। बहुत बेबाक अल्फ़ाजो से अब हमको नवाजा है, यही उनका बचा है फ़न जो आजमाते हैं फ़न वाले। जमाना क्या कहेगा हमको, इसकी फ़िक्र है किसको, ये वतन सोने की चिड़िया थी, कभी सोचा पतन वाले। मिटा दो आशियां अपना, जला दो हर शहर अपना, कफ़न बिक जायेंगे उनके, जो बैठे हैं कफ़न वाले। बेजार, अब देखा नहीं जाता है, बर्बादी का ये मंज़र, तुम क्यों वीरान करते हो चमन अपना चमन वाले। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
मेरा हिन्दू नव वर्ष
कविता

मेरा हिन्दू नव वर्ष

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इस धन्य-धरा का हिन्दू हूँ मेरा घर-संसार हिंदुस्तान है। मैंने इस मिट्टी में जन्म लिया इसका बहुत मुझे अभिमान है। हम भारतवासी सच्चे हिन्दू हैं हम सब विक्रम संवत मनाएंगे। चैत्र प्रतिपदा तिथि को मिलके हिन्दू जनजन नव वर्ष मनाएंगे। आओ नमन करें हम जनजन विक्रमादित्य महान सम्राट को। आओ अभिनन्दन, स्वागत करें ऐसे प्रतापी महाराजा विराट को। आइए हम सब बहिष्कार करें विदेशी सभ्यता, संस्कृति को। आइए हम और अंगीकार करें सनातन भारतीय संस्कृति को। आइए भगवा झंडा फहराएंगे भारत की जयकारा लगाएंगे। अपने धर्म का सम्मान बढाएंगे भारत माँ का सर ऊंचा उठाएंगे। तुझसे ही हम सबकी पहचान है तुझसे ही हमारा स्वाभिमान है। तू ही सर्वस्व हमारा सब कुछ है तू ही हम सब का अभिमान है। हे माता तेरी मिट्टी की सौगंध है हम तेरी लाज सदैव बचाएंग...
आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है
ग़ज़ल

आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** आदमी को आदमी की, अब जरुरत नही है, मिलने की जरा सी किसी को फुरसत नही है। कितनी सीमित सी हो गई है, दुनिया हमारी, सोचे हम जितना उतनी तो खूबसूरत नही है। काम से काम,दिखावा, बस यही सब शेष है, बेजान रिश्तो मे चाह की अब हसरत नही है। पास से गुजर के भी लोग नज़र नही मिलाते, मौकापरस्त लोगो की अच्छी शरारत नही है। बदलना तो हमको ही होगा मुहब्बत के लिऐ, बदलना चाहे अगर तो बड़ी ये कसरत नही है। कोई लाख हम से अदावत रखे "जैदि" मगर, हम चोट पंहुचाऐ ऐसी हमारी फितरत नही है। शब्दार्थ :- हसरत :- इच्छा मौकापरस्त :- मतलबी शरारत :- धृष्टता, पाजीपन अदावत :- दुश्मनी फितरत :- स्वभाव परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : ए...
गुदड़ी का लाल
कविता

गुदड़ी का लाल

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो सफर अपने का विराम पाने आ रहे हो कुछ पल दुनियादारी को भूल जाने मन की कैद से निकल तन्मयता से वात्सल्य का आनंद पाने आ रहे हो संवेदननाओ को महसूस करती शुन्य की अवस्था से दूर ममता की ओर एक कदम बढ़ाने आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं और नहीं मेरे पास आ रहे हो घर के झमेलों से निकल बही खातों के हिसाब से दूर अपनी गुदढी से रूबरू होने आ रहे हो खातिरदारी से दूर परिचित अंदाज में स्वयं को महसूस होने के लिए आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो...। परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
पितृ देव
लघुकथा

पितृ देव

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तुम सो रही क्या? एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती। नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया। अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलस...
धोखा
लघुकथा

धोखा

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रमा और राज साथ ही पढ़ते थे, रमा उसकी लच्छेदार बातों पर खूब हँसती जल्द ही बीस साला प्यार के गिरफ्त में आ गए दोनों। कस्मे-वादों की फेहरिस्त भी बना ली दोनों ने। रमा ने उसे अपना सब कुछ मान लिया, राज पर ऐतबार उसे इतना कि एक दिन घर से चुपचाप उसके साथ चल दी, सब कुछ छोड़-छाड़ कर अपना अशियाना सजाने के लिए। प्यार में डूबे दोनों ने रजत के एक दोस्त के यहॉँ पनाह ली। सपनों में खोयी रमा को अपना घर बनाने की तमन्ना थी, दो दिन बाद ही रमा बोली अब आगे? चलें कहीं और? नौकरी करनी होगी वरना कैसे चलेगा काम? रजत ने लापरवाही से कहा क्या जल्दी है? अभी आराम से रहो रमा ने फिर पूछा "पैसे कहाँ से आएंगे जो मैं लायी थी वो ख़त्म हो गए" अब रजत झटके से तुरंत बोला ये है ना सुरेश ये देगा। रमा को शंका होने लगी अरे तो चुकाओगे कैसे? रजत ने धीरे से कहा तुम चुकाओ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अंगूरी मदिरा पीने, मदिरालय जाना पड़ता है। कठिन कमाई से अर्जित धन, व्यर्थ गवांना पड़ता है। राम नाम मदिरा अंतर में, खोल भरम का तू ताला। बिना मूल्य के जी भर पी ले, बन जायेगा मधुशाला। राम नाम मदिरा में डूबा, फिर कुछ नहीं लुभायेगा। पूर्ण तृप्त होगा हरपल तू, खुद में ही सुख पायेगा। बहुत नशीली है ये मदिरा, शीघ्र उठा ले तू प्याला। स्वास्थ नहीं करती खराब ये, पी जा पूरी मधुशाला। पी कबीर ने राम नाम को जब लेखनी उठाई है। ऐसी अमृतवाणी फूटी पढ़ दुनिया हरसाई है। राम नाम की मदिरा पीकर, हाथ लिए घूमा प्याला। दोनों हाथ पिलाई जग को, फिर भी भरी है मधुशाला। राम नाम की मदिरा पीनेवाला, उन्मत रहता है। जग आसक्ति छूट जाती है, सदा स्वस्थ तन रहता है। हाथ कार्य करते दिखते हैं, अंतर चले "नाम" माला। सुमिरन में रम जाता है मन...
बहुरंगी दुनिया
कविता

बहुरंगी दुनिया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दुरंगी मत कहो इसको, बहुत रंगीन दुनिया है। कहीं गमहीन दुनिया तो, कहीं गमगीन दुनिया है।। कहीं नमकीन है कुछ कुछ, कहीं शौकीन है दुनिया, कहीं शालीन भारी तो, कहीं संगीन दुनिया है।। कहीं बस बात चलती है, कहीं पर मन्त्र चलते हैं। कहीं पर हाथ चलते तो, कहीं पर यन्त्र चलते हैं।। कहीं पर सादगी अपनी, विरासत छोड़ जाती तो, कहीं पर सादगी से भी, विकट षडयन्त्र चलते हैं।। किसी का मन बतासा है, किसी का तन तमाशा है। किसी के पास धन ही धन, मगर सुख से निराशा है।। खुलासा हो चुका है यह, उदासी दास किसकी है, करीने से जिया है जो, जिसे सुख ने तराशा है।। किसी ने गाय पाली है, किसी ने भैंस पा ली है। किसी ने झोलियाँ भर लीं, किसी की जेब खाली है।। किसी की चाह ज्यादा है, किसी को आज भी आशा, किसी की दाल में काला, किसी की दाल काल...
सक्रांति का त्यौहार
कविता

सक्रांति का त्यौहार

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** संक्रांति का त्यौहार संक्रांति का त्यौहार आया, खुशियों की सौगात लाया। उत्तरायण में सूरज आया, तिल-तिल तपिश बढ़ाया। शीतलता हो जाती है कम, सूरज दिखाता अपना दम। गंगा नदी में करते‌ हैं स्नान, असहायों को करते हैं दान। गुण तिल का भोग लगाते, सूर्य देवता को अर्घ चढ़ाते। गुण सी मिठास घुल जाए, जीवन में बहार आ जाए। नभ में फर फर उड़े पतंग, जीवन में तेरे भरा रहे रंग। पतंग की न टूटे कभी डोर, उड़े गगन के अंतिम छोर। किसी की भी न कटे पतंग, कृष्णा रहे अपनों का संग। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
मकर संक्रति
कविता

मकर संक्रति

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** भोर सुहानी, नदियाँ निर्मल, फूलों को मकरंद छुऐ! ढूंढ रहे पराग फूलों में, कितने, सुन्दर रूप लिए!! उदय, आदित्य, नील गगन में, ललिमा नभ पर छायी! स्वर्णिम किरणें "मतवाली बन" धरा स्पर्श करने आयी !! सुन्दर पुष्प खिले बगिया मे, महकी यौवन तरुणायी! गूंजे शंख, मांदल ध्वनि, सब" ऐसी मधुरता है छायी!! पुष्प सजा चरणों में, प्रभु के, सुन्दर सा फिर रूप सजा! मानव मन, मुखरित "हो बोला" भक्ति का, संयोग जगा!! कांटे चुनकर, फूल बिछाओ, मंगल बेला फिर आयी!, मकर संक्रांति की बेला है, पिता पुत्र मिलन की तिथि आयी!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी
गीत

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** अब न आये ऐसी आफत, जैसी उनने झेली है। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है।। जय- जय अमर शहीद मेरे, जय जय अमर शहीद। करते अपनी मेहनत, अपनी रोटी चैन से खाते हैं। बुंदेले -हरबोले, चारण जिनके गीत सुनाते हैं।। हम सोते हैं सुख नींदों में उनकी ही सौगातें हैं। जो उनकी थी अंतिम रात्रि, हमको शुभ प्रभातें हैं। दीवाली हो रोशन, उनने खून की होली खेली है।। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है। जय-जय अमर शहीद मेरे जय- जय अमर शहीद उनका भी परिवार खड़ा था, उनकी भी थी अभिलाषा। किन्तु रगों का गर्म लहू रखता था उनसे कुछ आशा। एक ध्येय था, एक लालसा एक थी उनकी परिभाषा। इंकलाब के नारे मुँह पर वन्दे मातरम् की भाषा। जौहर के समतुल्य समर हो, स्वयं आहूति दे ली है।। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है। जय- जय अ...
कहाँ तुम चले गए
गीत

कहाँ तुम चले गए

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** वो याद बहुत आते वो याद बहुत आते, जो हमसे दूर हुए। हम ये ना जान सके, क्यों कर वे दूर हुए।। जीवन एक दरिया है, उठते हैं यहाँ लहरें। कोई कैसे शांत रहे, पग पग है यहाँ खतरे।। हलचल से भरी दुनिया, इसने कई रूप लिए वो याद बहुत आते गम का कितना साया, मंडराता रहा सर पर। कब तक यूं जी पाएं, जीवन में डर डर कर।। सहते ही रहे अब तक, इसने जो जख्म दिए वो याद बहुत आते हमने ये न जाना था, ये दिन भी आएगा। यादें उसकी हमको, रह रह तड़पाएगा।। कुछ बोल नही पाए, रहे खून के घूंट पिए वो याद बहुत आते जी लेंगे जैसे भी, हम तेरी जुदाई में। हमने खूब दर्द सहा, तेरी रुसवाई में।। थे राम सुहाने दिन, हमने जो साथ जिए वो याद बहुत आते परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) ...
पतंग प्रेम की
कविता

पतंग प्रेम की

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो स्वछंद आकाश में प्रेम के पेंच लड़ाते हैं, तुम उधर से पतंग उड़ाओ, हम इधर से उड़ाते हैं।। दुनिया की परवाह से बेखबर हम आसमान में ही मिल जाते हैं तुम उधर से उड़कर आओ, हम इधर से ढ़ील बढ़ाते हैं। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। मधुर प्रेम की पतंगों से ही, अपनी दूरियाँ घटाते हैं, तुम मुझको छूकर निकल जाओ, हम इधर शरमाते हैं।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। लिख दो कुछ प्रेम के सन्देश भी, पढ़कर लिख दु जबाब सभी, तुम भी मुझे समझ सको, इस आस में तुम्हारे घर की तरफ बढ़ाते हैं, चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। काटकर तुम्हारी पतंग को, दिल में सहेज कर रख लेंगे, अगर तुम न भी मिले, तो इससे ही बातें कर लेंगे।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। रंग बिरंगी प्यारी पतंगों से ही सपनों का संसार बसाते हैं, इस बसन्त के मौसम में, प्रेम के फूल...
दया भावना
लघुकथा

दया भावना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था। वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं। उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...। बेचारा ...
नव वर्ष की बधाई
कविता

नव वर्ष की बधाई

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** नव वर्ष की बधाई, नव वर्ष की बधाई जीवन सुखद सरस हो, संदेश ले के आई नव वर्ष की खुशी में, सब लोग खो रहे हैं नव वर्ष की खुशी में, सब मुग्ध हो रहे हैं बच्चे बड़े सबों की, खुशियाँ हजार लाई हम बैर भाव भूलें, अपनो के संग झूले नव कल्पना से नूतन, भवितव्य द्वार खोलें इस जग को स्वर्ग कर दें, संकल्प ले लें भाई प्रक्रति को हम न टोकें जंगल को ना ही रोकें जो कर रहा प्रदूषण उस हाथ को मरोड़े तब ही धरा पे होगी, हर शक्श की भलाई बूढ़े बड़ों का आदर, हम सब करें बिरादर सेवा करें सदा ही, उनका न हो निरा दर इससे समाज होगा, उन्नत सदा ही भाई जल संचयन का बीडा, हम सब चलो उठाएं तालाब और नहरें, हम खोद कर बनाएं एक बुंद भी न जल, का बर्बाद होवे भाई नव वर्ष की बधाई, नव वर्ष की बधाई परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता...
सबको लगेगा
कविता

सबको लगेगा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** सबको लगेगा टीका। कोरोना पड़ेगा फीका।। वैक्सिनेशन सेंटर जाओ। टीके से जीवन बचाओ।। अपना जीवन सबको प्यारा। टीका लगे जो जग से न्यारा।। टीकाकरण अभियान हमारा। सबको दे जीवन सहारा।। मानव-मात्र एक समान। टीकाकरण यज्ञ महान।। एक-दूजे को दे सम्मान। सबको टीका लगे समान।। हम बदलेंगे-युग बदलेगा। टीकाकरण सफल बनेगा।। टीके का सम्मान जहाँ है। कोरोना का अवसान वहाँ है।। युवा शक्ति अब आगे आओ। सबको आज टीका लगवाओ।। पहला सुख निरोगी काया। टीके का सुअवसर आया।। आपसी दूरी,मास्क लगाए। आओ सब टीका लगवाए।। जिम्मेदार नागरिक कहलाए। अपना टीका अवश्य लगवाए।। परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
वह कौन थी
कविता

वह कौन थी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** न जाने कैसी उलझन है जिसे मैं सुलझा नहीं पाया" वह कौन थी अब तक भी मै उसे समझ नहीं पाया क्या तिलस्म था उसका रात भर मै भी सो नहीं पाया। जब उसे मैं याद करता हूं वो जादू भरा तिलस्मी चेहरा न जाने कैसी उलझन है जिसे मैं सुलझा नहीं पाया। आंखों से दिखाई नहीं देती ओर सुनाई भी नहीं देती तिलस्मी हूर है कोई जिससे मैं कुछ कह नहीं पाया। पलों में ओर लम्हों में वो आती है आकर चली जाती सोचता हूं लिखूं गजल मै उस पर मगर लिख नहीं पाया। वो उलझी अनबुझ पहेली है इसे बूझना भी मुश्किल है ये तिलस्मी पहेली को अभी तक मै बुझ नहीं पाया। मैं अनजान हूं उससे वो मुझसे अनजानी नहीं लगती दिन ढलने पर वो छिप जाती उसको मै ढूंढ नहीं पाया। मैं इस दुनिया में आया था वह भी मेरे ही साथ ही आई थी अब तो मेरे साथ ही जाएगी वो तिलस्मी म...
तेरे बुलंद में सितारे हैं
कविता

तेरे बुलंद में सितारे हैं

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जोश-जज्बा मत खोना तेरे बुलंद में सितारे हैं कभी आशाएँ मत खोना मंजिल राह निहारें हैं। मुकद्दर तू ही लिखेगा फैसला तेरे ही हाथों है तेरी किस्मत चमकेगी तेरा सितारा भी चमकेगा। जीवन एक लड़ाई है जहाँ संघर्षों का रेला है ये आसान नही जीवन पग-पग में झमेला है। पसीना जब तू बहायेगा तभी तू इतिहास बनाएगा हौशला जब तू दिखायेगा सितारा तभी जगमगायेगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
हाँ में बनियाँ हूँ
कविता

हाँ में बनियाँ हूँ

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** विरोधियो को तो छोड़ो सरकारों ने भी बनियो को गलत निगाह से देखा है कहने को तो में सेठ हूँ फिर क्यों इतना लाचार हूँ आये दिन छापो से घुट घुट के बनियो को जीते देखा है चंदा के नाम पर नेताओ को पैर पकड़ते देखा है छोटा मोटा गुंडा भी धमकी दे जाता है थाने जाओ तो वहां भी लूटा जाता है आखिर कब मिलेगी बनियो को अपनो से ही आजादी व्यापार कोई खेल नही समझो हमारी परेशानी बिन खाये दुकान जाते है दिनभर दिमाग का दही करवाते है मेहनत वाली इज्जत की रोटी खाते है हमने ना गलत राह पकड़ी है बच्चो को भी यही सिखाते है फिर भी मुश्किल में हो मुल्क तो सबसे पहले हाथ बढ़ाते है हाँ में बनियाँ हूँ गर्व से कहना आता है जिसने स्कूल कॉलेज धर्मशाला बनवाई है सबसे पहले टैक्स देकर देश की अगवाई की है एकता से जीना आ गया जिस दिन हमे एक नया इतिहास लिख देंग...
जो तन मन को हर्षाता है
कविता

जो तन मन को हर्षाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** शरद-शीत का साथ सलोना, नव यौवन सा रूप धरे। हरसिंगार, मालती बेला, पुष्पों से श्रृंगार करे। शुभ्र धवल पोशाक पहनकर, जब जब सर्दी आती है। देह समूची कंपित होती, पीड़ा सही ना जाती है। कोहरा पाला शीत सखा हैं, सदा साथ ही रहते हैं। पशु पक्षी पादप मानव भी, भीषण ठंडक सहते हैं। वारिस के सँग ओले आते, शीत अधिक बढ़ जाती है। बीच शीत बारिश होती तब, सर्दी जीव चिढ़ाती है। बसे अगर परदेस पिया हों, सर्दी विरह बढ़ाती है। मनसिज पुष्प बाण से पीड़ा, और अधिक बढ़ जाती है। जिनके प्रियतम पास प्रिया के, उनको शीत लुभाती है। पा सानिध्य सजन का गोरी, चंपा सी खिल जाती है। कंबल गरम रजाई भी अब, गर्माहट ना दे पाते हैं। रिश्तों की गर्माहट पाकर, सबके तन मन हर्षाते हैं। नमन शीत है तुम को मन से, शीतलता सब जग पाता है। तुझसे ही वसंत की आशा...
कठपुतली
कविता

कठपुतली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपने हक की परिभाषा की समझ ना होने से बन जाती दूसरे के हाथों की कठपुतली। शिक्षा का ज्ञान लिया होता ये नौबत नहीं आती कोई भी समस्या आने पर लोगों से निदान पूछना पड़ता ये ही तो अज्ञानता का नतीजा। बढ़ती उम्र में फर्क नहीं होता फिर से पढ़ाई कर रही हूँ आत्मविश्वास का हौसला मन मे भर रही हूँ ताकि अब दूसरे के हाथों की कठपुतली औरों को भी बनने से बचा सकूँ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचन...