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राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** इस पवित्र पावन गंगा में, जो भी नित्य नहाता है। उसके पाप नष्ट होते हैं, मुक्ति धाम को पाता है। मानव जीवन धन्य उसीका , जिसने पिया नाम प्याला। जिसमे छलके नाम की मदिरा, उसे कहेंगे मधुशाला। ये कल्याणदायिनी गंगा, मरुथल में बह सकती है। वो अमोघ शक्ति है इसमें, जो चाहे कर सकती है। नाम जाप ने रत्नाकर डाकू, को ऋषि बना डाला। रामायण की रचना करके, वो बन बैठा मधुशाला। भक्त विभीषण दैत्य हो जन्मा, पर फिर भी वो सात्विक था। रावण का मंत्री था फिर भी, सत्यनिष्ठ और धार्मिक था। राम नाम की प्रीत ने उसको, हनुमत से मिलवा डाला। कर सहयोग प्रभु सेवक का, वो बन बैठा मधुशाला। राम नाम की मदिरा का कुछ, स्वाद जिसे मिल जाता है। वो उसमे ही डूब राम रस, सबको खूब पिलाता है। जिसको ये मदिरा चढ़ जाती, हो जाता है मतवाला। स्वांस स्व...
नई भोर
कविता

नई भोर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नई भोर को गीत सुनाने मेरा मन अब मचल रहा है। रात अंधेरी घिरी कालिमा, मन बुन रहा सुनहरे सपने; कुछ रातों-रात बिखर गए, कुछ गए दूर गगन में उड़ने। झड़ गए कुछ पत्ते शाखों से, नव पल्लव अब झूम रहे हैं; कुंजों में मदमाते भंवरे, नव पुष्पों को चूम रहे हैं। कश्ती चली रात भर जल में, ठहर गई है प्रिय से मिलकर; मुदित हुई सरिता की धारा, अतल सिंधु में स्वयं समाकर। नया सवेरा लाली रंगकर, प्रातः कितना दमक रहा है; कुछ खोया पर कुछ पाने को, मेरा मन अब तड़प रहा है। नई भोर को गीत सुनाने, मेरा मन अब मचल रहा है। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभि...
२१वाँ साल
कविता

२१वाँ साल

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल बहुत लोगों का जीवन लिया तुमने छीन कई को किया तुमने मातृ-पितृ विहीन कर दिया सभी को तुमने छिन्न-भिन्न हो गये बहुत लोग दीन-हीन ऐसी महामारी तुम थे लाये एक दूजे को कोई न भाये हर रिश्ता हो गया दूर-दूर सारे सपने हो गये चूर-चूर जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल नये जोश नई उमंग से सराबोर नये सपने नई आशा से भरपूर बहुत खास हो ये नया साल अठखेलियां करता रहे नया साल दुगुनी ऊर्जा से भरा हो नया साल फिर नई आशा नये सपने सजांएगे फिर वही नया ऊँचा मुकाम पाएंगे हवा में प्यार की खुशबू बिखरांएगे बेजान रिश्ते में जान लाएँगे रोते हुए लबों पे हम हंसी लाएंगे।। आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : ...
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
कविता

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा मंगल-बेला है अति प्यारा। नव-किरण है नव प्रभात नव-दिवस की है शुरुवात। रवि की दमकी है कांतियाँ फैल रही है स्वर्ण-रश्मियाँ। स्वागत करने को है मगन खग-वृन्द बंदी ये जन-जन। चहुँ-दिसि है प्रसन्नता छाई कण-कण में है रंगत आई। बागों में है फूल खिल आई कलियाँ भी देखो मुस्काई। नव वर्ष देखो अब आया है नई आशा मन मे समाया है। नई संकल्पों का संचार करें नई उम्मीदों पर ऐतबार करें। नव वर्ष में कुछ नया करेंगे मन मे हम प्रीत के रंग भरेंगे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
नया साल
कविता

नया साल

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नए रंग लेकर आया है, टूटे बिखरे ख्वाबों को फिर से जोड़ कर, एक नया एहसास लेकर आया है। बीते हैं जो पल विषाद में, उनमें एक नया आह्लाद लेकर आया है। छोड़ चुके हैं जो अपने हमें समझ कर बोझ, उनको रिश्तो का अहसास करवाने आया है। शिकस्त मिली हैं हमें बहुत पिछले कुछ वर्षों से नए साल जय विजय का एक नया दौर लेकर आया। बहुत हो चुका है अन्याय का तांडव नववर्ष लेकर शनि को न्याय का डंका बजाने आया है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
तुम भी दगा न करना
कविता

तुम भी दगा न करना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हे नववर्ष! तुम भी दगा न करना आओ हे नववर्ष! तुम हमसे कोई दग़ा न करना बीते जैसे साल पुराने वैसी कोई ख़ता न करना। पहले के ज़ख्म़ों से ही चाक शहर का सीना है नये साल में दर्द मिलें किसी को ख़ुदा न करना। मेरी इल्तज़ा तुझसे बस इतनी है हे नववर्ष अपनों को यूँ अपनो से तुम ज़ुदा न करना। संकट के इस दौर में तू पूरे मन से पूजा जाएगा फरिश्ता साबित होगा, किसी का बुरा न करना। संकट से जूझ रहे हैं सब,विषाद से गहरा नाता है ऐसे में आकर के शेष जीवन बे-मज़ा न करना। सबका हो सुनहरा आने वाला हर एक पल किसी के लिए कोई भी बुरी बद्दुआ न करना। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प...
साल बदल गया
कविता

साल बदल गया

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** साल बदल गया लेकीन जिंदगी थम सी गई नाम बदल ओमीक्रोम, जिंदगी थम सी गई ** कई अपने पराएँ अपनों को छोड़ चले गए सूर्य उदय ओर रात भी, जिंदगी थम सी गई *** न कुछ बदले हे नही कुछ बदलेगा यहां पर पाप पुण्य राब्ते भी रहे जिंदगी थम सी गई ** प्यार के दो लफ़्ज बोल लो तुम यारो न समय तुम गवांओ जिंदगी थम सी गई ** मुश्किलो सी जीवन पाया है हमने, इस साल के साक्षी बनो जिंदगी थम सी गई ** मिलेगी हमें तो फ़कत तारीख ही तारीख नए रोजगार नहीं हे जिंदगी थम सी गई ** मोहन ने गीने जिंदगी के साल अट्ठावन नये पुराने अफसाना में जिंदगी थम सी गई ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सु...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
वो बचा रहा है गिरा के …
ग़ज़ल

वो बचा रहा है गिरा के …

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है। न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है।। मेरी ज़िंदगी का जो हाल है, वो कमाल मेरा अमाल है। जो किया उसी का सिला है सब, मैंने ख़ुद लिखा ये नसीब है।। जिसे ढूँढता रहा उम्र भर, रहा साथ-साथ दिखा न पर। मेरा साथ उसका अजीब है, न वो दूर है न क़रीब है।। जहाँ दिल में प्यार बसा हुआ, वहीं जन्म शायरी का हुआ। जो क़लम से आग उगल रहा, वो नजीब है न अदीब है।। भरी नफ़रतें जहाँ दिल में हों, वहाँ दिल सुकूँ कहाँ पाएगा। जो फ़िज़ा में ज़हर मिला रहा, वो मुहिब नही है मुहीब है।। वो डरे ज़माने के ख़ौफ़ से, जिसे मौत पर है यक़ीं नहीं। मैं डरूँ किसी से जहाँ में क्यूँ, मेरे साथ मेरा हबीब है।। यहाँ आया जो उसे जाना है, यही ला-फ़ना वो निज़ाम है। है...
उसी के पास जाना चाहती है …
ग़ज़ल

उसी के पास जाना चाहती है …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उसी के पास जाना चाहती है। जिसे रस्ता दिखाना चाहती है। गुजरती है कभी खामोश रहकर, कभी ये गुनगुनाना चाहती है। मिले कोई कहीं अपने सफ़र में, उसे अपना बनाना चाहती है । बवण्डर सी कभी आकार लेकर, समुन्दर को उड़ाना चाहती है। बहा करती है धरती-आसमाँ पर, मग़र इक ठौर पाना चाहती है। बदलतें हैं उसी के रुख़ से मौसम, हवा सबको जताना चाहती है । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पंथी पंथ निहार लें
कविता

पंथी पंथ निहार लें

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पंथी पंथ निहार लें, कर ईश्वर का ध्यान। नश्वर है संसार तो, सच को ले पहचान। शब्दों से होता नहीं, भावों का अनुवाद। भाव बसे हैं हृदय में, शब्द करें संवाद। हरित चूनरी ओढ़कर, धरा करें श्रृंगार। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। विडम्बना है देश की, न्याय हो रहा जीर्ण। अदालत लाचार हुई, रहें कैसे अजीर्ण। हाड़ कॅंपाती ठंड है, पाला पड़ा तुषार। फसलें सारी जल गई, शीतलहर संचार। भूखे पापी पेट का, करतें रोज जुगाड़। रोजगार के नाम से, तिल का बनता ताड़। मानव तेरी जाति का, कैसे हो उत्थान। काम क्रोध मद लोभ में, लुप्त हुई पहचान। धीरे- धीरे चली वधु, वरमाला कर थाम। दुल्हा तोरणद्वार में, जोडी सीता राम। भाव- भावना से भजो, हो जाओ भव पार। योग भोग सब छोड़ के, हृदय बसाए राम। कोरोना के कहर से, बेबस हुआं इंसान। आज प्...
बीत गया यह वर्ष..
कविता

बीत गया यह वर्ष..

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** बीत गया यह वर्ष, साल दो हज़ार इक्कीस। अपनों के गिला शिकवों की, अविस्मरणीय रहेगी टीस।... जिंदगी की सोच में, गहरा बदलाव आया। हमें समय की पुकार ने, संघर्ष करना सिखाया। निर्धनता की आड़ में, बुज़ुर्ग जीये किन हालातों में। समय-चक्र है कैसे फिरता, सीखा कोरोना विपदाओं में। जनमानस भूलेगा ना इसकी चीस। बीत गया यह वर्ष.......। घर बाहर स्वच्छ रखना, है कितना ज़रूरी। आसपास की सफाई में, रखो ना कभी मगरूरी। हर तबके की जिंदगी में, यह कैसा पड़ाव आया। अबलों की रोजी-रोटी पर, काला बादल छाया। आपस में रखी ना कोई खीस। बीत गया यह वर्ष......। हे! सृष्टि के नियामक, जनता पर उपकार करों। रखो कृपादृष्टि अब, और ना अधीर करों। हर्षोल्लास का जनजीवन में, माता तुम शीघ्र भाव भरो। जीवन विपदा के सागर से, अनुगतो का उद्धार ...
बहुत कुछ खोकर भी …
कविता

बहुत कुछ खोकर भी …

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहुत कुछ खोकर भी बहुत कुछ पाया है। जिंदगी के हसीन पल और कुछ सपने खोया है। परंतु जीवन की सबसे बड़ी चीज प्राप्त हुई है। जिसे साधारण भाषा में लोग इंसानियत कहते है।। चलो अच्छा हुआ कि काल ऐसा भी आया। जहाँ लोगों ने लोगो को निकट से जान जो पाया। अमीर और गरीबी की खाई को भर जो पाया। और लोगों ने लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़या।। सिखा देते है हालात इंसान को इंसान बनने को। भूलकर अपने अहंकार को नम्रभावों को जगाना पड़ा। क्योंकि इन हालातो में न दौलत न शोहरत काम आई। बस लोगों की अच्छाई ही लोगों के काम में आई।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं...
करना है मुहब्बत तो …
कविता

करना है मुहब्बत तो …

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों माशूका के मुहब्बत में, रखा ही क्या है..!! देकर छणिक सुख लूट लेगी तेरी खुशियाँ मिलेगा गम, तड़प, कशिश, ताउम्र मेरे यारों..!! इश्क में दिल तोड़ने की फितरत है उनकी टूट जाए गर दिल तो गम ना करना यारों..!! करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों…. करेंगे लाख वादे साथ जीने मरने की ताउम्र वादे से मुकरने की पुरानी फितरत है यारो..!! ना कर मोहब्बत उनसे कदर न कर पाएगी साथ तेरा छोड़ गैर को गले लगाएगी यारों..!! करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों…. इश्क में तुम्हें करके बर्बाद,खुद आबाद रहेगी बना के तुम्हें इश्क में गुलाम आजाद रहेगी..!! ना अपनायेगी तुझे तेरी दौलत खोने के बाद थाम लेगी दामन किसी दौलतमंद का यारो..!! करना है मोहब्बत तो वतन से करो यारों…. कत्ल तेरा करके इल्जाम तुम...
मोहब्बत की दुनिया…
कविता

मोहब्बत की दुनिया…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू रब से मुझे कुछ भी नहीं बस तेरी मोहब्बत चाहिए मेरे बुझे हुए दिल में तुमने मोहब्बत के दीप को जलाया भावनाओं को भरकर अपनी मोहब्बत का जादू चलाया मोहब्बत में मैंने सब हारना चाहा मगर सब कुछ है पाया तुम मोहब्बत की दरिया हो मोहब्बत की प्यास बुझाओ मोहब्बत की पावन धारा बनकर मोहब्बत का आशियाँ दो निराकार ब्रह्म की जैसी रूप मोहब्बत का साकार रूप दो मोहब्बत कैसा है ये नहीं जानता मेरे जीवन की तकदीर हो मैं अनजाना सफर का राही बन जाओ तुम मेरे हमसफ़र हो नफरतों के इस जहां में बस तुम मोहब्बत की देवी हो कंटकमय जीवन के पथ में मोहब्बत के फूल बिछा दूँ जीवन से सारे दुःख हर कर लूं हमदर्द की दवा बना दूँ मोहब्बत के आकर्षण में बहोत हैं आ सच्ची मोहब्बत दूँ रंग हीन जीवन पथ में मोहब्बत की दुनिया बनाएं बिछड़े हुए हम खुद से आ ...
खुशियों का स्पंदन
कविता

खुशियों का स्पंदन

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** दिल में खुशियों का स्पंदन। नूतन वर्ष का करें अभिनंद।। सभी सुखमय निरोगी हो। षटरस भोजन भोगी हो।। स्वछंद मस्त होकर घूमे। सफलता कदमों को चूमे।। विपदा-बाधाएं दूर रहे। खिले चेहरा मुख नूर रहे।। सबके सारे ही काज सरे। अन्न-धन से भंडार भरे।। फले कामना सबकी सारी। हर कोई बानी बोले प्यारी।। सुखमय हो ये जग सारा। एक रहे सदा देश हमारा।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। रचना की भाषा : हिंदी, राजस्थानी विधा : कविता, कहानी, व्यंग्य, लघु कथा, बाल कविता, बाल कथा, लेख। प्रकाशित : माणक, जागती जोत, शिविरा, सुलगते शब्द (संकलन में) व मासिक पत्रिका...
अब की नूतन वर्ष में
कविता

अब की नूतन वर्ष में

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब की नूतन वर्ष में एक प्रण हम करते हैं, टूटे-फूटे रिश्तो की चलो मरम्मत करते हैं। बहुत हुआ रिश्तो की बखिया उधेड़ना, अब एक काम करते हैं, खफा हुए जो संगी साथी, उनका अभिनंदन करते हैं। अब की नूतन वर्ष में.... जिनसे ना मिले हो एक अरसे से, उनकी नाराजगी दूर करते हैं, मिलकर खुद अपनी तरफ से, रिश्तो में...फूलों की सी महक भरते हैं। आपकी नूतन वर्ष में.... दम तोड़ते कुछ रिश्तो में, न‌ई ऑक्सीजन भरते हैं, चोट लगे हुए रिश्तो पर, स्नेह का मरहम....….रखते हैं। अब की नूतन वर्ष में.... करके दूर गलत फहमियां दिलों की, खुश फहमियां भरते हैं, बड़ा के एक कदम हम आगे, चलो.....खुशियों की महफिल रखते है। अब की नूतन वर्ष में.... बड़े बच्चों और हम उम्र अपनों से, प्रेम लगाव का बंधन रखते हैं जो आज दूर है हमसे किसी भी वजह से, ...
देखो मेरे समाज में क्या हो रहा है
कविता

देखो मेरे समाज में क्या हो रहा है

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** देखो मेरे समाज में ये क्या हो रहा है? इन्सानियत छोड़ आदमी, हैवान हो रहा है, सूख रही है रिश्तों की फसल, चारों ओर अनैतिकता का बोलबाला हो रहा है। प्रेम-करूणा, त्याग को, अधर्म निगल रहा है, उदण्डता-उछृखंलता फैशन बन रहा है। दामन बहु बेटी का तार-तार हो रहा है, देखो ! मेरे समाज में ये क्या हो रहा है? सच्चाई दिखाने वाला खुद शर्मशार हो रहा है, आदमी स्वार्थ के कीचड़ में धंसा जा रहा है, यश लोलुपता में पहचान अपनी खो रहा है, नशे के गर्त में पड़, विवेक अपना खो रहा है। देखो मेरे समाज में ये क्या हो रहा है? बलात्कारियों की दरिंदगी से सिर झुका जा रहा है, न शर्म, न हया इनका हौसला बढ़ता ही जा रहा है, हर रोज की वारदातों से, चिंता में खून सूखता जा रहा है, कैसे भेजें बेटी बाहर, यही भय सता रहा है। नारी की थी जहां होती पूजा, ...
वफ़ा के नाम पे …
ग़ज़ल

वफ़ा के नाम पे …

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया। घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया। जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया। यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया। हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया। 'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन ...
क्या हो तुम
कविता

क्या हो तुम

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन मंदिर कर दो मेरा तृप्त शबनम हो अगर पत्तों पर की दे दो कमनीयता मुझे तुम जैसा क्षणि के जीवन जीने की रजत रश्मि हो गर आफताब की दो बिछा दो बिछा चांदनी आंगन में गर्व हो मेहताब की रश्मि तो दे दो कुछ क्षण शाम के अलसाई से परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...
सर्दी की वो खिलखिलाती धूप
कविता

सर्दी की वो खिलखिलाती धूप

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** निश्चिंत रहो कि बहुत जल्दी ही बहती ये सर्द हवाएँ अपना रुख बदलेंगी। और सूनी-सूनी ये फिज़ाएँ फिर रंगों को ओढ़ लेंगी। क्योंकि समय सदा एक -सा नहीं रहता, बदलता ही है। और समय के गर्द से ढँके आइनों में बीते पलों का चित्र उभरता ही हैं। जिनमें कुछ चित्र दुख देते हैं पर कुछ ऐसे सुकून देते हैं जैसे, सर्दी में खिलने वाली धूप । जिनके आते ही ये सर्द हवाएँ हो जाती हैं मन के अनुरूप। तो बस इंतजार करो उस निहाल करने वाली सर्दी की धूप का। जिसकी गरमाई जीवन को सुख से भर देती है। और कानों में हौले से कहती है कि आखिर ये सर्द हवाएँ कब तक बहेंगी। विस्मृति के दलदल में एक दिन ये भी तो ढहेंगी। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (म...
एहसास
कविता

एहसास

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सर्दी बहुत है गर्मी का एहसास करवाइए । नफरत बहुत है मोहब्बत का एहसास करवाइए । गम बहुत है खुशियों का एहसास करवाइए। बेगानापन बहुत है अपनेपन का एहसास करवाइए। अंधेरा बहुत है रोशनी का एहसास करवाइए। शोर बहुत है शांति का अहसास करवाइए। अस्थिरता बहुत है स्थिरता का एहसास करवाइए। मिथ्या बहुत हौ सत्यता का एहसास करवाइए। दोगलापन बहुत है एकसारता का एहसास करवाइए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
दो वक्त की रोटी
कविता

दो वक्त की रोटी

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं। बालश्रम नियम सच बयां करे ऐसा ज़माने में नकीब नहीं।। मजबूरियों का मारा बदनसीब, दर-दर भटकता वह गरीब है। उम्र के हिसाब से समझाये उसे, क्या अच्छा-बुरा न कोई हबीब है। वक्त के हालात से मोड़ें ऐसा कोई कबीर नहीं। मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।..... बालश्रम पर चर्चा रोज हम करते है। दशा उनकी देख झूठी ही आहें भरतें है। ज़माने के इस दौर में उनके जैसा कोई यतीम नहीं। मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।...... बालपन में औरों की भांति, वह पढ़ क्यों नहीं पाया। निज स्वार्थ किस मजबूरी में, अपनों ने काम पर उसे लगाया। अमीरी-गरीबी की मध्यस्थता का उस जैसा कोई रकीब नहीं मासूम तरसती आँखों को, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं।..... ये बातें...
काश! वो कह देती …
कविता

काश! वो कह देती …

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** घर में एक बुढिया... भरा पूरा परिवार... उसके खुशियों की बगिया हैं सब अच्छा हैं.... खाना भी मिल जाता हैं पीना भी मिल जाता हैं मगर .... बहू को ये बुढिया अच्छी नहीं लगती क्योंकि बहू के आधे से अधिक काम वो बुढिया कर लेती हैं बुढिया को पता है काम करने वाले बहुत हैं मगर फिर भी उनका मन.... कहता है... शायद ! वो सुनना चाहती हैं अपने बहू के मुँह से कि माँ जी आप बैठो ये काम मैं कर दूंगी। ये समझ कर कोई न कोई काम हाथ में ले लेती हैं शनैः शनैः उम्र भी ... जवाब देने लगी हैं बुढिया बीमार थी प्यास के मारे .. कंठ सुखे जा रहा हैं पर पता है कोई नहीं कहेगा कि माँ जी पानी पीना हैं सो बुढिया स्वयं उठ अपने पैरो पर.... भरोसा कर पनघट को चली ही थी इतने में तो पैरो ने जवाब दे दिया ... वो धडा़म... से गिर पडी़ शायद ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ३)
छंद

राम नाम की मधुशाला (भाग- ३)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नाम नशेमें डूबी शबरी, नित्य बाहरू करती थी। प्रभू राम आएंगे निश्चित, गुरु वचन पर मरती थी। इतना डूबी नाम नशे में, जूठे बेर खिला डाला। राम प्रेम मदिरा पीते थे, वो बन बैठी मधुशाला। जो करवाना चाहे ईश्वर, उसको तू अर्पित हो जा। उसकी कृपा मानकर अपने, अहम भाव को तू खा जा। तू तो केवल निमित मात्र है, ईश्वर बस करने वाला। हर पल जाम नाम के पीकर, तू भी बन जा मधुशाला। नारायण खुद राम रूप, धरकर पृथ्वी पर आए थे। मान बढ़ाने को हनुमत का, उनको काम बताये थे। राम नाम की मदिरा पीकर, लंका को था जला डाला। नहीं जली बस एक कुटी, जो राम नाम की मधुशाला। राम नाम इतना फलदायी, पूर्ण कवच बन जाता है। जो भी इस मदिरा में डूबा, मन वांछित फल पाता है। बाल्मीक ने नाम जपा तो, उन्हें सुपात्र बना डाला। नाम जाप में डूब गया जो, वो बन ...