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कविता

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दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीत गठबंधन का हमारे, अभी न होगा अंत! बसी है हृदय में प्रिये, तुम्हारी छवियां अनंत! अधर मधु रस पान की आशा! उर को प्रीत की चिर प्रत्याशा! मन की कैसी कैसी अभिलाषा! मानो हृदय बस गया हो वसंत! तुम चिरानंद का दिव्यप्रपात! सुरभि कस्तूरी तुम्हारा गात! अहे,प्रेम की मधुर ये सौगात! उर ताप करती शीतल तुरंत! रोमकूप उत्फुल्ल उर्मिताप से! सुर्ख लब कपोल रक्तदाब से! सज्ज देहयष्टि कठिन नाप से! समाया हैं मानो तुझमे दिगंत! प्रीत गठबंधन का हमारे, अभी न होगा अंत! बसी हैं हृदय में प्रिये, तुम्हारी छवियां अनंत! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
बुदीयां बरसे मोरे अंगनवा…
कविता

बुदीयां बरसे मोरे अंगनवा…

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखी घिर घिर छाये बदलवा, छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। जित देखूं उत है हरियाली झूम रहीं है डाली डाली, महकें कलियां फूल चमनवा। छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। दमक रहीं चहुँ और दामिनी, छेडे़ कोयल संग रागनी, सनन सनन सन चले पवनवां। छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। कहती मस्त बहार दिवानी आई मिलन ऋतु मस्तानी तरसाओ न और सजनवा छन-छन बरसे बुंदिया मोरे अंगनवा...। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमण...
आर्यावर्त के सूर्य
कविता, संस्मरण, स्मृति

आर्यावर्त के सूर्य

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन-हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परिवार-पाल-पोस के दायित्व...
गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ गुरु की वंदना करें, जो सच्ची बात बतलाते हैं। गुरू की सुमिरन जो करें, सो जीवन बदल जाते हैं।। पुरानी परम्परा में आचार्य जी, कठोर नियमों का पालन किया। यम नियम संयम में ही रहकर, चेला जो गुरू का सम्मान किया।। यही गुरू चेला का संबंध बतलाते हैं ... जीवन में कई गुरु मिलते हैं, पर सब सीख जरूर देते हैं। असतो मा सद् गमय सुक्ति ऐसे शिष्य गुरुकुल में सीख लेते हैं।। जो सद्कल्याण का पाठ पढ़ाते हैं ... माता पिता भी प्रथम गुरू हैं, समाज के लिए संस्कार शुरु हैं। शिक्षक का भी क्या कहना, छात्र जीवन का असली गहना।। जो सर्वांगीण विकास कराते हैं ... श्रवण की बात समझ लें प्यारे, जो गुरुवर क महिमा गाते हैं ... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद ...
गुरुवर
कविता

गुरुवर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की राहों पर चलना आपसे सीखा है, हर मुश्क़िल से पार निकलना गुरुवर आपसे सीखा है।। कच्चे धागे जैसे थे हम, पल-पल टूट जाया करते थे, मन को मजबूत कर रस्सी बनना गुरुवर आपसे सीखा है।। हर काम आसान नहीं, सोचकर छोड़ दिया करते थे, असम्भव को संभव बनाना, हाँ गुरुवार आपसे सीखा है।। समझ न थी सही गलत की, हर बात में गलती होती थी, सत्य की पहचान करना, गुरुवर आपसे सीखा है।। जब भी दुविधा में होती हूँ, तो आप ही राह दिखाते हैं। आपके वचन मेरे लिए ईश्वर की वाणी बन जाते हैं। भाग्यशाली हूँ बहुत, जो गुरु का सानिध्य मिला है, गुरु के आशीष से ही आज मुझको सबकुछ मिला है, सबकुछ मिला है....।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
मेरा पहला सावन
कहानी

मेरा पहला सावन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** उसका चेहरा मुरझाया हुआ था। वह पिछले दो दिनों से उदास थी। माँ भी बेटी के कारण परेशान थी। अभी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। क्यों बेटी, क्या बात है? झुमरी की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे। यह आंसू खुशी के थे। वह शर्माते-शर्माते बोली, माँ उनकी बहुत याद आ रही हैं। माँ झुमरी की बात सुनकर हँसे बिना ना रह सकी। क्या सचमुच झुमरी? झुमरी आगे कुछ ना बोल सकी। वह चुपचाप दौड़तीं हुई अपने कमरे में चली गई। उसने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। माँ बहुत हैरान थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि उसकी बेटी पागल हो गई हैं। इतने समय बाद अपने घर आई है। पर उसका मन कहीं----। फिर वह खुद के ही माथे पर हाथ मारकर हँस पड़ी। झुमरी शादी के बाद से बहुत खुश रहती थीं। यहाँ आने का तो नाम तक नहीं लेती थीं। ऐसा भी क्या, पति मोह! वह झुमरी के कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई। वह उ...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। धनपत राय श्रीवास्तव से, प्रेमचंद हो, जीवन का संपूर्ण व्यवधान लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, समाज में फैली बुराइयों को, दूर करने का संकल्प लिखा। मानसरोवर के आठ भागों में, देकर कहानियों के ३०१ मोती। उस युग का महा त्राण लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। कर्मभूमि की राहों में, रंगभूमि का नया आयाम लिखा। नारी की दुर्दशा सहेज कर, मंगलसूत्र का प्राण लिखा। विधवा विवाह की कर अगवाही, कायाकल्प का आगाज़ लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। देकर नवजीवन, नवल सोच साहित्य को, वह कथा सम्राट नौ कहानी संग्रह, नौ उपन्यास का, कर योग गया। प्रथम अनमोल रत्न साहित्य का, कर गोदान, कफन में, ...
सपनों का घर
कविता

सपनों का घर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ख़ूबसूरत ख़्वाबों की तरह वो अपना घर बसाना चाहती है वो अपने घर को ख़ुशियों से भर देना चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। घर के प्रवेश द्वार पर हों गणपति, कोने-कोने को वो रोशनी से जगमगाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। रसोई में उसकी पसंद के बर्तन हों, खिड़की दरवाज़ों पर उसकी ही पसंद के कर्टन हों सिर्फ़ इतना ही तो वो चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। पलंग के सिरहाने एक लैम्प रखा हो और पलंग पर पसंद का चादर बिछा हो और क्या वो चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। टेबल पर रखी प्लेट को फूलों से भरकर घर का कोना कोना महकाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। दीवारें अपनों की तस्वीरों से सजी हो उदासियों का नमोनिशां नहीं हो उन तस्वीरों में ख़ुशियों के रंग भरना चाहती है हाँ वो अ...
बेटी का सम्मान करो
कविता

बेटी का सम्मान करो

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बेटी को ना कोस, उसका सम्मान कीजिये बेटी होने के डर से, भ्रूण हत्या मत कीजिये बेटी को बोझ समझ, अपमान मत कीजिये ना ही दहेज दीजिये, ना ही दहेज तुम लीजिये बेटी को भी तुम अब, बेटे सा ही प्यार दीजिये बेटी बेटे में अब ऐसे, भेदभाव ना ही कीजिये बेटी को भी, अफसर बनने का अवसर दीजिये बेटी को पढाने में ना, तुम कंजूसी अब कीजिये परिवार को बनकर जरा, माली अब तुम सिचिये गुलाब को भी, और चमेली को भी पानी दीजिये अपने घर के कुल को, बेटी से भी रोशन कीजिये समाज में आगे बढने कि, तुम स्वयं हिम्मत दीजिये नितिन एक साथ मिलकर, अब सब प्रतिज्ञा लीजिये बेटी का ना अपमान करीये, ना ही होने अब दीजिये परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मी...
कारगिल के शूरों की वाणी
कविता

कारगिल के शूरों की वाणी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिंह हम दहाड़ कर! शत्रु को पछाड़ कर!! सबक दिया पाक को झंडा अपना गाड़ कर!! कर उठे जो सिंहनाद! अरि कहाँ फिर आबाद!! राष्ट्र हवन कुंड में आहुति का आह्लाद!! करके वज्र हुंकार! शत्रु को चीर - फाड़!! कर भस्म समर में पहने हम विजयहार!! राष्ट्र कोई मेष नहीं! पाक सिंह-वेश नहीं जो ले दबोच अंक में हिंद कोई दरवेश नहीं!! अरि के हर घात का सौ सौ प्रतिघात का दिया मुँहतोड़ जवाब हर विश्वासघात का! हम नहीं हैं डरने वाले! मातृभूमि पर मरने वाले!! पग तले कुचलके मसलके अरि का गर्व हरने वाले!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
शिव आराधना
भजन

शिव आराधना

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे बेआस-बेसहारे लो हम तो आ गए अब शरण में तुम्हारे शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे मुफलिस गरीब हम हैं औकात क्या हमारी आन पड़ी है हम पर आज विपदा भारी मझधार में फंसे हैं मिलते नहीं किनारे शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे लो हम तो आ गए अब शरण में तुम्हारे शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे तेरी दया से चलती ये दुनिया सारी एक तुम ही दाता सारा जग है भिखारी हम पर दया जो कर दो बन जाए बिगड़ी हमारी शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे बेआस-बेसहारे लो हम तो आ गए अब शरण में तुम्हारे शिव ‌भोले हम भक्त तुम्हारे दर से न तेरे लौटा कोई ले‌ के झोली खाली हम पर भी दया कर दो हे नीलकंठधारी बिगड़ी मेरी बना दो बस इतनी अरज हमारी दर पर तेरे खड़े हैं ले के झोली खाली झोली मेरी भी भर दो हे त्रिनेत्रधारी। परिचय :- सुनील कुमार निवासी ...
दर्द
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दर्द

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** दर्द जो था तेरे जन्म का, जननी ही जाने दर्द को। भला निष्ठुर दर्द क्या जाने, आया है सहने तू दर्द को।। है तू खिलौना एक दर्द का, क्या तू देगा इस दर्द को। तेरा तो साथी दर्द है रे संवारेगा वही तेरे दर्द को।। ना होता तू दर्दी तो, संभालता कौन दर्द को। है तू आसरा दर्द का, मौन सहेज ले दर्द को।। न मिटाया किसी ने दर्द तेरा, क्यों भला मिटाये दर्द को। न कर्म उसका दर्द मिटाना, वह जुडा ही दर्द देने को।। मिला जन्म से दर्द तुझे तो, चाहता क्यों छोडना दर्द को। न छोडेगा कभी तुझे दर्द तो, अपनाले तू स्वयं ही दर्द को।। जिया है जिसके दर्द के लिए, उसने ही बढाया तेरे दर्द को। जियेगा जिसके दर्द के लिए, वही बढायेगा तेरे दर्द।। भुलायेगा प्यारे अगर दर्द तू , तो अपनायेगा कौन दर्द को। अनुपथगामी है तेरा दर्द तो, सदा दे तू सहारा इस दर्द ...
जनम का साथ
कविता

जनम का साथ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू तेरा मेरी जिंदगी में आना फकत इक सपना सा ही है मुझे मालूम तेरे जीवन में बस एक जिम्मेदार किरदार हुँ मैं बेइन्तहा मोहब्बत करता हूँ मुझे ज्ञात तेरे लायक नहीं था तूने भी मोहब्बत बे इंतेहा की एहसान-ए-जिंदगी बन गई मेरी मैंने चाहा है जान से बढ़कर जीना है आब-ए-हयात बनकर मालूम है तुझे गंवारा नहीं मेरा साथ दे सांस टूटते तलक दामन का नही तेरे साये का फिर भी हक जताना चाहता हूं माना कि खण्डहर सा जीवन है नूतन निर्माण की चादर समेटे जज्बातों का कारवां सजा कर साथ नई कहानी गढ़ना चाहता हूं एक नए किरदार के मानिंद तू नए जीवन का आरम्भ समझकर गर तुझे साथ मेरा गवारा हो तो तेरे जज्बातों का सपनों के साथ अपनाकर तेरी हर यादों वादों का तेरा हमसफ़र मैं बनना चाहता हूं अब तलक सूना सूना ये जहां अपलक तेरे आने की राह ताकती खुश...
गजल है जिंदगी
कविता

गजल है जिंदगी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खूब "गजल है जिंदगी" मचलते दिल की तड़प है जिंदगी। कहीं खुशियों का महल है जिंदगी, कहीं आँखों से बहता काजल है जिंदगी।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी भी तो एक आईना है, कुछ खरोंच आ ही जाती है। कितना भी एहतियात बरतो, पर,कुछ कसर रह ही जाती है।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" जिंदगी में आते हैं प्यार के रहनुमा, मिलते हैं तो जिंदगी होती है खुशनुमा। न मंदिर की घंटी,न मस्जिद की धूम, हर तरफ सुनाई देती है बस प्यार की गूँज।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" मौत तो आसाँ है जीना मुश्किल है दोस्त, हिम्मत है तो तेरे लिए सब मुमकिन है दोस्त। ठोकर लगे तो भी तू रुकना मत ए दोस्त, एक नजर तो डाल सामने मंजिल है दोस्त।। क्या खूब "गजल है जिंदगी" परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि स...
सावन का सोमवार
कविता

सावन का सोमवार

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** सावन माह शिव को समर्पित, करते हैं जप, तप, व्रत विचार, सोच समझकर खाना लेते जन, शिव की भक्ति अमिट अपार। सावन का जब आये सोमवार, शिव आराधना का दिन होता, पूरे साल जिसने पाप किया है वो भी अपने पाप कर्म धोता। अपार शक्ति लिये होते शंभू, जिसके आगे शक्ति है जीरो, उसकी भक्ति में सुख मिले, बन सकता है जग में हीरो। शिव तपस्या का होता माह, शिवरात्रि का आता है पर्व, शिवभक्त कांवड़ लाते चल, होता उन भक्तों पर ही गर्व। सावन माह का बड़ा महत्व, उससे महत्वपूर्ण है सोमवार, शिव आराधना दिनभर चले, शिव शक्ति जग का आधार। विभिन्न रूपों में समाये शिव, त्रिनेत्र धारी जग में कहलाते, अल्प ज्ञान से उनको पुकारो, शिवभोले बस चलकर आते। सावन का आता है सोमवार, भर देता मन उमंग और प्यार, बेलपत्र, गंगाजल से कर पूजा, जग में कभी नह...
आदिदेव महादेव
भजन

आदिदेव महादेव

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** श्रावण मास सोमवार को, भोले का यश गाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की, भवसागर तर जाना हैं।..... वंदन चंदन कर तिलक लगाएं, अर्पित करते पुष्पों की माला। आदिदेव महादेव का ध्यान धरें, सबके हित उत्तम करने वाला। गौरीशंकर भक्ति में चित्त लगाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... तात कार्तिकेय-गणनायक की, आभा बड़ी निराली हैं। मयूर केतु-गजानन की, छवि नैन सुखदायी हैं। माँ गिरिजा व विश्वनाथ का अलौकिक श्रृंगार करना है। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
तितली बन उड़ जाने दो
कविता

तितली बन उड़ जाने दो

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** मुझे मत मारो इस स्वर्ग सी कोख में मुझे इस जग में अपना अस्तित्व बनाने दो मुझे समझो ना तुम एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक पेड़ इस धूप में मुझे इस जग में अपना छाया फैलाने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं नही एक बोझ सी घर में मुझे दो घरों को संभालना है मैं आपकी पैसे लेने नही पापा ढेर सारी खुशियां बांटने आई हु मुझे उन खुशियों को बाटने दो मुझे समझो ना एक फूल की कली बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी परी इस जमाने की मुझे पापा की रानी बन जाने दो मुझे समझो ना एक कली की बाग से तितली बन उड़ जाने दो। मैं हूं एक छोटी सी चिड़िया इस दुनिया में जो दो घरों को संभालेगी मुझे जीने दो मैं कुछ करना चाहती हूं मुझे भी कुछ करने दो मुझे समझो ना एक फूल की क...
उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं
ग़ज़ल

उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं। कि जिनके साथ में लाचारियाँ हैं। ज़रूरत है उसे मिलता नहीं है, बड़ी मजबूर जिम्मेदारियाँ हैं। हवा को आसमानों की पड़ी है, जमीं पर जान की दुश्वारियाँ हैं। तरक्क़ी हो रही है झूठ साबित, कड़ी इस दौर की बीमारियाँ हैं। बदल लेता है, चलकर रूप अपना, ये कैसी मर्ज़ की अय्यारियाँ हैं। बचाते हैं वही दामन यहाँ पर, कि जिनके हाथ में पिचकारियाँ हैं। लगेंगे कैसे पंख इन इरादों को, पढ़ें-लिक्खों में जब बैगारियाँ हैं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्...
ज्ञानोत्कर्ष अकादमी ने किया गुरुओं का सम्मान
साहित्य समाचार

ज्ञानोत्कर्ष अकादमी ने किया गुरुओं का सम्मान

भारत देश के बिहार राज्य मे स्थित ज्ञानोत्कर्ष अकेडमी के संस्थापक ने हमारे भारत देश के विभिन्न राज्यों से शिक्षा के क्षेत्र मे कार्य करने वाले गुरुओं को महर्षि वेदव्यास सम्मान-२०२१ देकर सम्मानित किया संस्था के संस्थापक रुपेश कुमार जी ने अपने उद्बोधन से कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा की बिन गुरु ज्ञान है सूना और जिंदगी मे गुरुओं का महत्व बताते हुए गुरू को सदैव सम्मान देने की बात कही संस्था की संरक्षक सह वरिष्ठ कवयित्री ममता गिनोड़िया जी ने भी खुशी जाहिर करते हुए समस्त गुरुओं को बधाई देते हुए नमस्कार किया संस्था की राष्ट्रीय सचिव कवयित्री और मंच संचालिका वीना आडवानी ने कहा की वो भी कभी शिक्षिका थी विद्यालय मे परंतु आज साहित्यिक जगत मे ही जितना मेरा ज्ञान है वो सभी को सिखा कर आनंद पाती हूं साथ ही राष्ट्रीय महासचिव एव पूर्व शिक्षिका गरिमा विनित भाटिया जी ने भी खुशी का इज़हार किया गुरुओं के सम्...
सुंदर प्रतिफल
कविता

सुंदर प्रतिफल

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** महा विभीषिका का संत्रास, कल इतिहास में अंकित होगा; जब मनुष्य हुआ था कैद घरों में, मुक्त विचरते थे पशु पक्षी। मानव असहाय मूक दर्शक बन, रहा देखता अजब नजारे; वृक्ष फलों से लदे हुए थे, कोई न उनकी ओर निहारे। धरा दोहन से मुक्त होकर, पुष्पों की चुनरी ओढ़ सजी थी; नदियां साफ सुथरी सी होकर, मदमाती मस्त कल कल बहती थीं। अदृश्य जीवाणु ने कुपित होकर, जग में हाहाकार मचाया था; अस्त्र शस्त्र बेकार हुए, जीवन गति पर विश्राम लगा था। दुनियां को छोटा कहने वाले, लक्ष्मण रेखा में सिमट गए थे; चांद तारों को छूने वाले, जीने को मोहताज हुए थे। मानव ने तब हिम्मत बांधी, लेकर धैर्य संयम का संबल; और अंततः विजयी हुआ वह, पाया संकल्पों का सुंदर प्रतिफल। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निव...
गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** मिट्टी को जो भगवान बना दे, मूर्ख को जो विद्धवान बना दे, ग्वार को जो इंसान बना दे, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। गुरु वही जो मन को शांति दे, गुरु वही जो धर्म से जोड़ दे, गुरु वही जो सत्कर्म का रास्ता दिखाए, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। जिसे माया का लोभ नही, सच जिसकी जुबान में हो, सादा जीवन उच्च विचार, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। गुरु हो तात्या टोपे सा, जिसने साधारण कन्या को, भारत का कान्तिवीर बना दिया, ऐसे गुरु को प्रणाम, जो मन की जाने सारी बात। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ शिक...
आजाद
कविता

आजाद

नन्दलाल मणि त्रिपाठी गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** धन्य धन्य हे माता जगरानी बदरका भावरा की माटी का कण कण धन्य।। कोख और माटी ने मिलकर भारत को दिया अनमोल रत्न पंडित सीताराम पिता गौरव पल।। जुलाई तेईस सन ऊँन्नीस सौ छः माँ भारती का लाल चन्द्रशेखर आजाद जन्म।। लालन पालन सत्य सनातन नित्य निरंतर संस्कृति संस्कार अन्याय अत्याचार का प्रतिकार पुरुषार्थ।। भारत के जन-जन घुट-घुट कर जीता जाता परतंत्रता की पीड़ा का घूंट पिता जाता समय काल प्रतीक्षा।। चंद्रशेखर नाम दिया मां बाप ने आज़ाद स्वय का दिया नाम राष्ट्र के अन्तर्मन की वेदना आज़ादी की चाह।। आजादी के संकल्पों प्रतिज्ञा पराक्रम का स्वयं आज़ाद जन जन के भाँवो का प्रतिबिंब प्रतीक आजाद।। युवा उमंग उत्साह ऊर्जा हुंकार नौजवानों की टोली जैसे राष्ट्र अस्मत की रक्षा के जवान।। भगत सिंह राज गुरु बिस्मिल असफा...
हर कोई रंज में डूबा जैसा
कविता

हर कोई रंज में डूबा जैसा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मुल्क का मंजर ऐसा। हर कोई रंज में डूबा जैसा। हर कोई अरज करे ऐसा, मरज दूर हो जैसा। मुल्क पर कोरोना खंजर ऐसा। हर कोई लहू में डूबा जैसा। मुल्क पर कोरोना अंगार ऐसा। हर कोई आग में जल रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की धुंध छाई ऐसी। हर कोई आग में जल रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की धुंध छायी ऐसी। हर कोई तड़प रहा चंद सांसों के लिए जैसा। मुल्क पर कोरोना विपदा बस्ती पर ऐसी। हर कोई अपनी डूबती कश्ती बचा रहा जैसा। मुल्क पर कोरोना की गंध ऐसी। हर कोई अपने घर बंदी बना जैसा। मुल्क का मंजर ऐसा कई मइयते देखी ऐसी। हर कोई कोरोना तपन में जलने लगा जैसा। मुझे मेरे मुल्क पर गुरुर ऐसा। मेरा मुल्क मेरा चमन जैसा। मेरे मुल्क पर कोरोना। इनायत कर ऐसे। मेरा मुल्क गुलशन बनेगा जैसे। मेरे मुल्क में कोरोना का इलाज होगा ऐसे। एक ...
क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे
कविता

क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे

विकास शुक्ला दिल्ली ******************** राम सा भाई सब चाहें, क्या तुम लक्ष्मण बन पाओगे, जो चौदह वर्ष भार्या से दुर रहा, क्या तुम एक वर्ष रह पाओगे... निज राम चरण की धूल बना, वह धुप छाँव बन साथ चला, अरण्य में अपने भाई के, जो बिन स्वार्थ खिदमत को चला गया... उस भरत के ह्रदय को तो देखो, जो अनुराग का सागर बन आया, राज पाठ सब छोड़-छाड़ कर, तात चरण में खुद आया... चरण पादुका को सर लेकर, सिंहासन पर शोभित कर आया, निज भ्रात के कारण योगी बन, खुद भी अरण्य में पड़ा रहा... बोलो ऐसे भरत बनोगे, क्या वही लक्ष्मण बन पाओगे, राम सा भाई सब चाहें, क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे... क्या भरत या लक्ष्मण तुम बन पाओगे...।। परिचय :- विकास शुक्ला निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
अच्छा लगा
कविता

अच्छा लगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा हँसना, रुठना, मनाना, अच्छा लगा। जरा जरा सी बातों पर तुनक कर तेरा मुँह को फुलाना, अच्छा लगा। महफ़िल में या यूँ ही अकेले कहीं तेरा गले से लगाना, अच्छा लगा। सौंपकर मुझको खुशियाँ अनमोल तेरा यूँ नखरे दिखाना अच्छा लगा। तुझ पे लिखा हूँ जितनी भी नज़्में तेरा उनको गुनगुनाना अच्छा लगा। वहशी तरीके तुम टूटती हो मुझ पर मुझे सितमगर बताना अच्छा लगा। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष त...