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हनुमान महिमा…
भजन

हनुमान महिमा…

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमान जी के पकड़ ले चरण जो, प्रभु राम उसपे हैं करुणा बहाते। हनुमान जी तुझसे संकल्प लेते, फिर दे शक्ति,युक्ति हैं पूरा कराते। हनुमान जी के ... हनुमान प्रतिपल रमे राम जप में, वो श्रीराम कह, सागर लांघ जाते। मिली लंकिनी मार्ग रोका जो उनका, तो एक मुष्टिका मार, परिचय बताते। हनुमान जी के... मिले माँ के दर्शन, हुआ कार्य पूरा, तो ले माँ से अनुमति, मधुर फल वो खाते। खबर पाके रावण ने अक्षय को भेजा, उसे मार रावण को शक्ति दिखाते। हनुमान जी के... जब ब्रम्हास्त्र उन पर चलाया गया तो, उसे कर नमन वे स्वयं बंध हैं जाते, जब रावण ने पट बांध घी तेल डाला, जली पूंछ तो स्वर्ण लंका जलाते। हनुमान जी के... बुझा पूँछ सागर में ले माँ से चीन्हा, प्रभू राम के पास वे लौट जाते। सिया की दशा का सुना करुण वर्णन, वो प्रभु राम के शौर...
मुक्त प्रदूषण से धरती को
गीत

मुक्त प्रदूषण से धरती को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** नगर-नगर औ गांव गांव तक, ये संदेशा पहुचाएं मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।।, नदियां सबसे गंदी हैं तो, उनकी करें सफाई हम। गंदा जल होने से रोकें, सबकी करें भलाई हम।। उनके घाटों पर मेले फिर, लगें करें वो काम सदा। ना अस्थी ना राख बहाएं, याद रखें अंजाम सदा।। शुद्ध बनाकर सरिताओं के , कूलों को हम दिखलाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। अगर हवा गंदी होगी तो, साँसों का संकट होगा। पेड कटेंगे तो आबादी, से ज्यादा मरघट होगा।। ध्वनि प्रदूषण से बहरे हम, हो जायेंगे यार सुनो। अंधे बहरों के समाज में, फैलेंगे परिवार सुनो।। इससे पहले के डूबे सब, बचा किनारे हम लाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। शुद्ध अगर मिट्टी होगी तो, फल पे असर पड़ेगा ही। चढ़ने व...
त्राहिमाम
चौपाई, छंद

त्राहिमाम

अजय गुप्ता "अजेय" जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम हो जग के पालनहारे, ब्रहां, विष्णु, महेश हमारे। हे आपदा प्रबंध प्यारे, सबहु तेरी कृपा सहारे।। सूनी सड़क गली चौबारे, जैसे नभ से ओझल तारे। घर-घर में नर-नारी सारे, बिन प्राणवायु जीवन हारे।।१ भौतिक सुख इच्छा ने भुलाये, पर्यावरण क्षति हमें रुलाये। जगह जगह हम पेड़ लगायें, अब नहीं वन-कटान करायें।। त्राहिमाम! हम शीश नभायें, माथे पग रज तिलक लगायें। प्राणवायु जग भर फैलाये, फिर से धरा सकल महकायें।।२ हमने किये पाप हैं भारी, भूले थे हम तुम अधिकारी। म़ाफ करो हम रचना त्यारी, त्राहिमाम! देवधि उपकारी।। हम तेरे बालक मनुहारी, त्राहिमाम! हे जग गिरधारी।। प्रभु सुन लीजिए अरज हमारी, करो दया जग लीलाधारी।।३ परिचय :- अजय गुप्ता "अजेय" निवासी : जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) शिक्षा : स्नातक ऑफ लॉ एंड कॉमर्स, आगरा वि...
कभी तुम चुप रहो
कविता

कभी तुम चुप रहो

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी तुम चुप रहो, कभी मैं चुप रहूँ, कभी हम चुप रहें खामोशियों को करने दो बातें, यह खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हम कह न सकें वह भी कह जाती हैं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें‌। आओ आज युंही बैठे एक-दुजे की आंखो में डुबे उस प्यार को महसुस करे जो जुंबा पर कभी आया ही नहीं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ हम तुम नदी किनारे हाथों में हाथ दे चहलकदमी करें मुद्दतों से जो सोया था एहसास उसे तपिश की गर्माहट को महसुस करें। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ आज छेडे, ऐसा कोई तराना जो धडकनों में बस जाये बिन गाये, बिन गुनगुनाये संगीत की लहरियों में हम डुब जाये। कभी तुम.... चुप रहना कोई सजा नहीं चुप रहना एक कला है, जो बिना कहें सब कुछ कह जायें ...
संस्कार
कविता

संस्कार

श्‍वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** हम सब देते है बच्चो को,कुछ संस्कार भी देने चाहिए! हारे हुए को सहारा देने आना चाहिए, गिरते हुए को गले लगाना आना चाहिए! छल कपट और बेईमानी को ठेंगा दिखाना आना चाहिए! इज्जत देना और इज्जत कमाना आना चाहिए! माता पिता, बुजुर्गो की सीख को अमल मे लाना आना चाहिए!ना करे जो व्यवहार पसंद हम, वो व्यवहार भी नही देना आना चाहिए! दीन दुखी बेसहारा को देखकर करूणा का भाव होना चाहिए! कर चले कुछ उनके लिए, ऐसा विचार उनका होना चाहिए! संस्कार होंगे उच्च कोटि के तो जीवन खुद उज्जवल हो जाएगा!करेगा रोशन नाम हमारा,धन्य जीवन हमारा भी हो जाएगा! परिचय : श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
मन की हरीतिमा
लघुकथा

मन की हरीतिमा

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** नीरू मेरे पास ये रिश्तेदारी निभाने का बिल्कुल वक्त नहीं है। तुम तुम्हारे हिसाब से देख लो। ये कहते हुए हेमंत कम्पनी जाने के लिए निकल गया। नीरू अपने घर के लॉन में आकर कुर्सी पर बैठ गई। उसकी स्मृति में अतीत की पुरानी यादें घूमने लगी। रीता दी कितने हँसमुख और अच्छे स्वभाव की हैं। मुझे तो कभी लगा ही नहीं कि वो मेरी ननद है। हमेशा बड़ी बहन की तरह ही स्नेह दिया। जीजाजी के बीमार होने पर आज रीता दीदी ने फोन पर थोड़े से पैसे और थोड़ी सी सहायता माँगी है। हेमंत ने काम की व्यस्तता के कारण जाने से मना कर दिया। नीरू की आँखें नम हो चली थी। उसने संयत होकर लॉन के दूसरी तरफ देखा तो माली दादा पौधों में पानी और खाद दे रहे थे। पौधों से बातें करना तो उनकी पुरानी आदत थी ही। लहलहाती हरियाली देखकर नीरू के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तैर गई। उसने शाम की ...
एक घरौंदा ऐसा हो
कविता

एक घरौंदा ऐसा हो

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** एक घरौंदा ऐसा हो जहां हरियाली का वास हो पर्यावरण प्रदूषण का नाश हो बगीचों में खिली फुलवारी हो अपनत्व की एक क्यारी हो ... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ पीपल का घनेरा वृक्ष हो मस्त हवा का झोंके हो मन को जो लुभाते हो हरियाली में बुलाते हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ लहलहाते खेत-खलिहान हो नदी के पानी में मिठास हो वृक्ष पर लदे फल-फूल हो नन्हे परिंदों का कलरव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ जेब से कोई तंगहाल ना हो रिश्तों का फैलाव हो खुशियों को बौछार हो आत्मीयता का बहाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ राजनीति का प्रभाव ना हो बुराई पुराण की कथा ना हो सास-बहू की व्यथा ना हो परस्पर स्नेह का भाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ तनाव का नामों निशान ना हो कष्टों का झंझावात ना हो लड़ाई, झगड़ा, लूट, हत्...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

पूनम शर्मा मेरठ ******************** आज पर्यावरण मुस्करा रहा है, सिर हिलाता ठंडक उड़ेलता है, पेड़ स्तंभ-वत खड़े हैं, टहनियां झूम-झूम पंखा झलतीं, जडों ने जकड़ रखा है मज़बूती से, सायरन बजाती एंबुलेंस सरपट भागती सूनी सड़कों पर, बेतहाशा दौड़ता मानव, आक्सीजन दबोचने को, कुटिल मुस्कान वृक्षों की, "हमसे दुश्मनी?", काटते हो हमें ! हम तो मुफ्त उपहार देते रहे, कतरा-कतरा बिखेरते रहे, अपना अंश वातावरण में, चेतावनी भी देते रहे गाहे-बगाहे, लेकिन तुमने, माहौल बिगाड़-बिगाड़ कर खिल्ली उड़ाई और बढ़ गए आगे, आज लौट रहे हो हमारे ही पास, ये नदियां, पहाड़, झरने, जंगल आदि और हम, दोस्त हैं बिलकुल तुम्हारे एक व्हाट्सएप ग्रुप की तरह तुम काम पड़ने पर हमें ही पुकारते हो पीछे मुड़कर, आक्सीजन-आक्सीजन... बचाओ-बचाओ, जीव-जंतु, मानव, सब हैं हमारे आसरे लेकिन, कोई हमारा ख्याल भी रखेगा क...
नष्ट ये जंगल ना हो पाए
कविता

नष्ट ये जंगल ना हो पाए

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो जाए।। बादल को तोड़ेगा कौन? कहो नदी मोड़ेगा कौन? माटी को रोकेगा कौन? गरल वायु सोखेगा कौन? उज्जर त्रिभुवन ना हो जाए उपवन 'अनुपम' ना खो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। (त्रिभुवन-जल,थल,नभ) रौंद-खौन्द खोखली धरा का गर्भ-पात जो कर जाओगे? हो भूचाल उजाड़े आँगन कोप अवनि का सह पाओगे? ताप बढ़ा हिम पिघलाओगे अति मति की दिखलाओगे! प्रलय समन्दर ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। मृग-खग, सिंह-गज गृह निवास जो यूँ टुकड़ों में बाँटोगे, हरियाली ही नहीं रही तो! बन्धु 'हीरा' चाटोगे? भूख का दंगल ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। पानी को बाँधेगा कौन? कंठो को साधेगा कौन? स्वास संचरित कौन करेगा? खनिज तुम्हारा पेट भरेग...
पहले
कविता

पहले

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** युद्ध से पहले शांति का प्रस्ताव होना चाहिए। मरने से पहले जीवन का एहसास होना चाहिए। नफरत से पहले मोहब्बत का इजहार होना चाहिए। छोड़ने से पहले मिलने का गुनाह होना चाहिए। इश्क करने से पहले थोड़ी आवारगी होनी चाहिए। जुड़ने से पहले टूटने का एहसास होना चाहिए। झुकने से पहले अपने आत्मसम्मान का एहसास होना चाहिए। मिट्टी से खेलने से पहले मिट्टी में मिलने का इंतजार होना चाहिए। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रकृति की भी अजब माया है निःस्वार्थ बाँटती है भेद नहीं करती है, बस कभी-कभी हमारी उदंडता पर क्रोधित हो जाती है। हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए खाने, रहने और उसकी जरूरतों का हरदम ख्याल रखती है, बिना किसी भेदभाव के यथा समय सब कुछ तो देती है, हमें प्रेरित भी करती सीख भी देती है, कितना कुछ करती है, क्या क्या सहती है परंतु आज्ञाकारी प्रकृति हमें देती ही जाती है, हम ही नासमझ बने रहें तो प्रकृति की क्या गलती है? अपनी गोद से वो हमें कब अलग-थलग करती है? हाँ हमारी नादानियों, उदंडताओं पर खीछती, अकुलाती, परेशान होती है, हमें बार-बार संकेत कर चेताती, समझाने की कोशिश करती, थक हारकर अपने क्रोध का इजहार करने को विवश हो जाती, फिर भी हम समझने को तैयार जब नहीं होते, तब वो भी बस! अपना संतुलन...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
आलेख

कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
ईश्वर का संधान
कविता

ईश्वर का संधान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है रातदिन की घटना, हल करने सामर्थ्यवान होता है द्वेष भाव रखने से ही, संबंधों में व्यवधान होता है स्पष्टवादी तथ्यों से, पक्ष अपना आसान होता है बिन सटीक जवाब से, मानव का नुकसान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। पथगामी को सुख सिवाय, कष्टप्रद कमान होता है मुसीबत से बचने में, किसी वक़्त का दान होता है ईश्वर निर्मित विधान से, मानव तो नादान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। राह की अदृश्य मुश्किलें, नितांत अनजान होता है शायद इसी वजह से कभी, भाग्य वरदान होता है पुल तले शेर पसरा, ऊपर मानव महान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। हाथ पर हाथ रखे रहना, बहुत आसान होता है आसमां से गिरे बिजली, जीवन अवसान होता है कभी अन्य भाग्य से चलित, ...
सोच हमारी संस्कृति पर भारी
व्यंग्य

सोच हमारी संस्कृति पर भारी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** हमारा देश बहुत कमाल का देश है। हमारी एक ख़ासियत है कि जो कुछ स्वदेशी है हमने उससे हमेशा नफरत की है और जो कुछ विदेशी है उसे बेइन्तहां प्यार करते हैं। हमें तो बेहूदगी और बेशर्मी भी प्यारी है, बस शर्त यह है कि वे विदेशी हों। अपने देश की तो सादगी भी वाहियात लगती है। हमारे यहाँ महान ऋषि-मुनि हुए, हमें वे फूटी आँख नहीं सुहाते, हम उनसे नफ़रत करते हैं। नैतिकता, भाईचारा, अपनापन, बड़ों का आदर, नारियों का सम्मान ये सारी सीख हमारे पूर्वजों की देन है। लेकिन हम इन सारी अच्छाइयों को दकियानूसी समझकर नफ़रत करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं कि कहीं हमारे बच्चे ये बहियात बातें सीख न जाएँ? हम कितनी उच्चकोटि की निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं कि 'लिव इन रिलेशन' और 'समलैंगिकता' जैसी वाहियात विचारधारा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन करते हैं। संस्कृत और हिंदी भा...
माँ की सीख
कविता

माँ की सीख

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** विदा होती बेटी को प्यार से। माँ ने ये बात सिखाई थी। सुखमय जीवन बेटी का हो। एक बात की गांठ बंध बाइ थी। बेटी अपने घर मे सदा तू। बड़ो का सम्मान है करना। छोटो पर सदा प्रेम है रखना। अपने घर का मान है रखना। थोड़ा कुछ तू सह जाना। पर दिल मे कोई बात न लेना। उस घर के राज है तेरे। तेरे अपने तक ही रखना। सुख दुख का जो बना है साथी। विश्वास का मान सदा तू रखना। इस घर के संस्कार जो तेरे। उस घर के आदर्श बना रखना। मां बाप की लाडो बिटिया। अपना सदा ध्यान तू रखना।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
बेजुबान
लघुकथा

बेजुबान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी। अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं। चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लि...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ ये संदेश फैलाना हैं पर्यावरण को शुद्ध बना के जीवन को स्वस्थ बनाना है॥ मत काटो पेड़ों को तुम, इस पर किसी का बसेरा हैं, इसके दम पर सांसे चलकर नित आता नया सबेरा हैं॥ नयी पीढ़ी से ये अनुरोध, आओ मिलकर वृक्ष लगाओ पेड़ों की रक्षा तुम करके, पर्यावरण सुरक्षा में हाथ बढाओं॥ चारों तरफ हरियाली हों, हर घर में खुशहाली हों सुन्दर सा एक दृश्य बनायें, हर घर ऑंगन में वृक्ष लगायें आओ पर्यावरण बचाने का मिलकर हम संकल्प उठायें परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष...
मानवता का दीप
कविता

मानवता का दीप

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** चलो मिल मानवता का दीपक जलाएं एक सुंदर सा मानव समाज बनाएं। देखो चारों ओर फैला ईर्ष्या, द्वेश, आपसी सद्भावना से इसे मिटायें। आज मानव माया मद में अंधा हुआ, जला ज्ञानदीप सही पथ उसे दिखाएं। विकास नाम पर साफ होते वन कानन, रोक प्रकृति विनाश पर्यावरण बचाएं। कल कारखानों से फैल रहा है जहर, कर पौध रोपण जीव जगत को बचाएं। कहता ओम अगर हो मानव तुम सच्चे तो मानवता का प्रकाश तुम फैलाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल...
कटते-कटते पेड़ कट गए
कविता

कटते-कटते पेड़ कट गए

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** कटते-कटते पेड़ कट गए अब विकास के नाम पर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। रोज पहाड़ धसकते रहते बर्फ बहे सैलाब सा, उत्तराखंड में कहर राजता डर बसता शमसान सा। जीव जंतु जल जहर में पलते उनका भी तो ध्यान धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। ग्लोबल वार्मिग बढ़ती जाती धरा भी वंध्या हो चली नित नई प्रकृति की विपदा कितना टालो,नहीं टली। ऊपर से कोरोना आया बदले वाले भाव धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण महानगर की देन है। स्वच्छ नदी गंगा को रक्खो मिलता जीवन चैन है। वृक्ष लगाने,जल को बचाने श्रम तू कुछ तो दान कर पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। कर ले प्रण न कचरा फैले न ही खुले में शौच हो। सड़कें अपना आंगन जानो घर से पहले देश हो। दिशाएं चारों स्वच्छ बने ये, तू त...
जग में रहना सिखा दिया
कविता

जग में रहना सिखा दिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** अपना बना के श्याम ने, न हमें जग में रहना सिखा दिया। जैसे कमल रहता है जल में, इस तरह तुम भी रहो। आए दुख सुख चाहे जितने, सब को सहना सिखा दिया। जितने भी प्राणी है जगत के, सबके अंदर मैं ही हूं। श्याम ने हमें जग में सबसे, प्रेम करना सिखा दिया। काम कर दुनिया के सारे, मन में मुझको याद कर। फल की इच्छा ना कर कभी, यह हमें बतला दिया। जो आया इस जगत में, एक दिन उसको जाना है। आत्मा की अमरता का सार, हमको समझा दिया। जो शरण आता है मेरी, मुझको अपना मान कर। मैं हूं उसका वह है मेरा, यह हमें बदला दिया। सच्चे मन से शांत मन से, आओ इन प्रभु की शरण। बातों ही बातों में जिसने, रूप अपना दिखला दिया। क्या कहूं कैसे करूं, प्रार्थना की लीला अपरंपार है हम जीवो को तारने को, प्रार्थना स्वरूप बना दिया। हो भला सबका यह दिल में, धारणा हृदय में डाल...
आपसे जब हुई दूरियाँ
ग़ज़ल

आपसे जब हुई दूरियाँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आपसे जब हुई दूरियाँ। हो गई कितनी मजबूरियाँ। हमने उतने बढ़ाये क़दम, मिल गई जितनी मंजूरियाँ। क्यों सभी ने मना कर दिया, आज लेने से दस्तूरियाँ। थे जहाँ फ़िर वहाँ आ गये, पाँवों में बंध गई धूरियाँ। हम भले हाँ कहें, भले ना कहें, पाल ली हमनें मगरूरियाँ। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
हम पर्यावरण बचाएँगे
कविता

हम पर्यावरण बचाएँगे

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** निज हित के लिए हमने, किया पेड़ों पर प्रहार है। हर पेड़ यहाँ कराह रहा, यह कैसा अत्याचार है? पेड़ों को जब काट-काट, हमनें शहर बसाया था। खुद से एक सवाल करो क्या हमने पेड़ लगाया था? जहरीली हो रही हवा, चहुँ ओर बीमारी छाई है। ऑक्सीजन भी न मिल रहा, ये कैसी विपदा आई है? ऑक्सीजन देते पेड़ को, कभी हमने ही कटवाया है। ऑक्सीजन का महत्व हमें, प्रकृति ने आज बताया है। जल को किया बर्बाद कभी, खरीद उसे आज पी रहे। जल की बर्बादी कर हम, ये कैसी जिन्दगी जी रहे? जल है तभी प्राण है, रखना इसका ध्यान है। जल की बर्बादी रोक कर, बचानी अपनी जान है। लोभ-मोह में आकर हमने, प्रकृति से खिलवाड़ किया। इससे क्या नुकसान है? क्या हमने कभी विचार किया? रोका न गया खिलवाड़ तो, हम चैन से कैसे सोएँगे? जैसे धरती माँ रो रही, एक दिन हम भी रोएँगे।...
कदाचित
कविता

कदाचित

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** अकाल मृत्यु कदाचित् हमारी दृष्टि में। ईश्वर का सबसे बड़ा अन्याय है। जो आज प्रेम कि बात करते हैं, कल वो अपने बच्चों के प्रेम के खिलाफ खड़े हो जाएंगे माता-पिता के कमाई से खरीदा हुआ उपहार किसी के हाथ में आ जाने से कोई ज्ञानी नही हो जाता कदाचित हम हैं इन सब के दोषी हैं परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
जब मैं हुई बीमार
ग़ज़ल

जब मैं हुई बीमार

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ कभी जब मैं हुई बीमार बेटे काम आते हैं न होना माँ परेशाँ तुम यही कहकर लुभाते हैं बिना मेरे कहाँ ये सब कहीं आराम पाते हैं नहीं होते मगर नाराज़ चाहे हाँफ़ जाते हैं बनाते रोटियाँ बेडौल टेढ़ी या कभी मोटी न रहने दें मुझे भूखा क्षुधा मेरी मिटाते हैं निहारूँ जब कभी भी मैं बड़ा ही प्यार आता है निवाले तोड़कर मुझको वे ही खाना खिलाते हैं दवा खाओ चलो मम्मी सदा आवाज़ देकर वे समय अब हो गया हर पल यही मुझको बताते हैं न ख़ुद का होश है उनको न चिंता है उन्हें अपनी लगें चलने मेरी मम्मी इसी में दिन बिताते हैं ज़रा सी खाँस दूँ तो वे चले आते तुरत दौड़े कहो क्या हो गया मम्मी बड़ी चिंता जताते हैं तरस जाती है ये 'रजनी' बिठा लूँ गोद में उनको शिफ़ा मिल जाए अब मुझको यही बेटे मनाते हैं परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रि...
मेरे दो शब्द
कविता

मेरे दो शब्द

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** एक मंच, सबके विश्वास का प्रतीक एक मंच, जहांँ मिलती कुुछ सीख, अगर आपके अंदर खूबी है तो लिखो, हम आपकी रचना को सदा करेेंगे प्रकाशित। यह मंच टिका भरोसेे की बुनियाद पर, और रचता लीक से हटकर अपनी एक नई लीक। हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए पूर्ण समर्पित। सभी करते यहाँ कुछ न कुछ अर्जित। पूरे आदरभाव से बात करते सभी न आलोचना, न हीन भावना, न तिरस्कार अच्छी रचनाओं से यह मंच रहता शोभित। हर जगह, हर प्रांत से लोग जुड़ते हैं। अपनी रचनाएँ, नृत्य, संगीत भी प्रस्तुत करते हैं। हमेशा कुछ नई ही लेकर सोच कोई, अपने समूह संग पवन जी काम करते हैं। राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच सबके लिए काम करता इस मंच का है कार्यक्षेत्र असीमित। शुभकामनाएँ ये मेरी कि मंच बढ़ता रहे। मातृभाषा हिंदी की प्रगति के काम करता रहे। हमारी हिन्दी दिन दूनी, रात ...