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ध्वज-गीत
गीत

ध्वज-गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अपने प्यारे ध्वज पर हर पल, गर्वित हिन्दुस्तान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। केसरिया है त्याग प्रदर्शक, श्वेत शांति दिखलाए। हरा रंग है समृध्दि सूचक, चक्र उन्नति गुण गाए। मातृ भूमि का अपना यह ध्वज, गौरव का गुणगान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। यह निशान अपने भारत का, यह तो अपना मान है। यही हमारा सच्चा सुख है, यह अपनी मुस्कान है। प्राणों से प्रिय सतत तिरंगा, आन-बान है, शान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। सदा जिएँगे और मरेंगे, इस झण्डे के वास्ते। आँच न आने देंगे इस पर, कभी किसी भी रास्ते। नर-नारी, बच्चा या बूढ़ा, हर कोई क़ुरबान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
इंतजार
गीत

इंतजार

संजय जैन मुंबई ******************** मेरा दिल खाली खाली है किसी दिल वाली के लिए। लवो पर जिसके रहता हो सदा ही संजय संजय। बना कर रखूँगा उसको अपने दिल की रानी। तो आ जाओ मेरे दिलमें खुला है मेरे दिल का द्वार।। अभी तक न जाने कितनो ने पुकारा है। तभी तो हिचकियाँ मुझे आ रही है बार बार । जो भी हो तुम दिलरुबा सामने तो आ जाओं। और झलक अपनी तुम मुझे जरा दिखा जाओं।। मेरे दिल की धड़कने नहीं है अब मेरे बस में। न जाने कौन है वो जो इन्हें तेजी से धड़का रहा। और अपनी धड़कनो को मेरे दिलसे मिला रहा। न खुद सो रहा है और न मुझे सोने दे रहा।। बीस की उम्र से लेकर बहुत मुझे वो सता रहा। पर अपने चेहरे को वो अभी तक छुपा रहा है। कसम से पता नहीं मुझको क्यों वो इतना सता रहा। शायद कोई पूर्व जन्म का बंधन हमसे निभा रहा है। इसलिए मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान म...
बेटियाँ
कविता

बेटियाँ

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जिस आँगन में जन्मी खेली - पली - पढ़ी बेटियाँ उस आँगन को छोड़ दूजै आँगन से समझोता कर लेती है प्यारी बेटियाँ माँ - बाप के लाड - प्यार सौ सुखों को त्याग कर अपनों की आँखों में आँसू अपनों से विदाई का पल बाबुल के घर से जाती बेटियाँ सपने में भी नहीं देखा कभी वो घर, दीवार -ओ- दर कभी सब कुछ नया ही नया वहाँ उस घर को भी अंगीकार दिल से कर लेती है बेटियाँ नये रिश्तों की राह पर आहिस्ता-आहिस्ता कदम रख मन को समझा नये संसार में स्नेह रूपी डोर में बाँध कर अपने जीवन को संवारती बेटियाँ पढ़ी -लिखी बेटी अपने संस्कार से घर -परिवार -समाज को संवारती बेटी बचाओ अभियान को भी घर - घर की आवाज बना कर अक्षरशः जीवन में उतारती बेटियाँ परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
वर्षों बीत गए
कविता

वर्षों बीत गए

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** वर्षों बीत गए तुम्हारी याद में डूबती नैना उमरता हृदय भावुक मन लिये। कहाँ जाऊँ? किसको सुनाऊँ? मन का विरहा मन को सुनाऊँ। चहुँ ओर अँधेरा फैल रहा मन के प्रकाश पुंज में भाव विभोर हो रहा मन आँगन के कोने में। वर्षों बीत गए तुम्हारी याद में डूबती नैना उमरता हृदय भावुक मन लिये। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर ...
सुभाषचन्द्र बोस
कविता

सुभाषचन्द्र बोस

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** देश सुरक्षित और सुखी हो, इस हेतु जो खार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। युद्ध घोष 'जय हिन्द" रहा है, लोगों जिसका जीवन में। देशभक्ति का रक्त रगों में, कुर्बानी मन आंगन में।। रही भूमिका जिसकी पावन क्रांतिकारी परिवर्तन में। कहां मरा जिंदा सुभाष है, देखो आज हरेक मन में।। ऐसे देशभक्त रहबर का, सचमुच जो अवतार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। आजादी पे मरने वाले, परवानों से प्यार करे। आजादी की कीमत खूं है, सच्चाई स्वीकार करे।। हाथ उठा कर पदवी लेने, वालों पर जो वार करे। भ्रस्टव्यवस्था जिसे देखकर, लोगों हाहाकार करे।। स्वाधीनता प्यारी जिसको, पराधीनता भार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। जहां कहीं भी रहे हमेशा, बस माता का ध्यान रहे। सोते जगते जिसके ख्वाबों, में बस देश प्रधान रहे।। हो न्योछाव...
बस एक रात की बात
कहानी

बस एक रात की बात

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** साक्षी सड़क के किनारे बने चबूतरे पर बैठी लगातार इधर-उधर देख रही थी, पता नहीं वह किसका इंतजार कर रही थी? पप्पू लगातार उसे देख रहा था, उसे देखकर पप्पू को अतीत की कुछ यादें स्मरण हो आई, जब पप्पू सोलह साल का था, वह घर से भागकर मुंबई जैसे शहर में आ गया था। उसके पास कोई ठोर ठिकाना नहीं था। उसे चारों तरफ इंसान ही इंसान दिखाई दे रहे थे। दिन हो या रात उसे भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी। वह मन ही मन में सोच रहा था, क्या यहाँ रात भी नहीं होती? रात को भी दिन से अधिक चकाचौंध रहती है। पर उसने सुन रखा था कि महानगरों में रात को भी लोग काम करते हैं। उनके के लिए दिन और रात एक समान होते है। पर हमारे गाँव में तो आठ बजे रात हो जाती है। पूरे गाँव में सन्नाटा पसर जाता है। आदमी तक दिखाई नहीं देता। वह अक्सर रात को घर से बाहर निकलने से घबराता था। वैसे भी उसे दाद...
देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस
आलेख

देदीप्यमान भास्वर व्यक्तित्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंँगा" इस सम्मोहक कालजयी नारे के प्रणेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के देदीप्यमान सितारे और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। जिन्होंने भारत के आजादी के लिए प्राण-प्रण से लड़ाई की और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के नाजी नेतृत्व और जापान के शाही सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन कर उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया और उन्हें इस देश को छोड़कर अपनी जन्मभूमि जाने पर विवश कर दिया। अत्यंत प्रभावशाली युवा व्यक्तित्व श्री सुभाष ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दरम्यान भारतीय राष्ट्रीय सेना (आई एन ए) की स्थापना की और उसमें अपनी प्रभावशाली भूमिका एवं अग्रणी प्रखर नेतृत्व के द्वारा "नेताजी" की उपाधि अर्जित की! आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व उन्हें बड़े ...
पत्थर में भगवान
कविता

पत्थर में भगवान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये महज विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों के चक्कर तो लगाते हैं, परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं। विडंबनाओं पर मत जाइये अपने हर कठिन, मुश्किल हालात के लिए बिगड़े काम के लिये भगवान को ही दोषी ठहराते हैं, अपनी खुशी में भगवान को शामिल करना तो दूर याद तक नहीं करते, सारा श्रेय खुद ले लेते हैं। जिस भगवान का हम धन्यवाद तक नहीं करते कष्ट में उसी को याद भी करते हैं, पत्थर के भगवान से जिद करते,अड़ जाते हैं विश्वास करके भी नहीं करते। क्योंकि हम खुद पर भी विश्वास कहाँ करते? हमारे अंदर भी तो भगवान बैठा है यह सब जानते हैं, उस पर जब हम विश्वास नहीं करते, तब पत्थर के भगवान पर विश्वास कैसे जमा पाते? हम तो बस औपचारिकताओं में जीते जीते मर जाते, ...
खून की मांग
कविता

खून की मांग

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद, भारत का निर्माण किया।। "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। कौन..... भूला पाएगा। मातृभूमि के सपूत ने... जो किया। होकर खड़े अकेले "आजाद हिंद" सेना को साकार किया।। "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। भीख में नहीं मिलती आजादी। जीवन देकर यह आह्वान किया।। अपने खून के कतरे-कतरे को, आज़ाद भारत के नाम किया।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
देश की माटी
गीतिका

देश की माटी

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' कोलार रोड, भोपाल (म.प्र.) ******************** आधारछंद-विधाता (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ समांत- अन, अपदांत हमारे देश की माटी~~~~हमारे माथ का चंदन बहे गंगा नदी पावन तरें सब भक्त कर मज्जन सजे मंदिर-महल गलियाँ सजी हैं झांकियाँ घर-घर, कन्हैया-अष्टमी आई~~~~~पधारे नंद घर नंदन. नहीं है देश भारत सा~~~जहाँ मठ धाम तीरथ हैं, लिए हैं ईश ने अवतार ~~~करने को असुर मर्दन लगे जब ध्यान ईश्वर में~नहीं फिर मन भटकता है, विरागी भाव जाग्रत हों~~न इच्छा कामिनी-कंचन तरसते देवता भी जिस~~मनुज तन को यहाँ पाने, उसे सत्कर्म सेवा में लगा ~~ करलें सफल जीवन नहीं संसार में आसान~~~~~दुर्लभ वस्तुएं पाना, मिले तब ही मधुर नवनीत~जब दधि का करें मंथन. सदा ही सोचकर बोलें ~ किसी का दिल न दुख जाये, निकल जाये कटुक वाणी त्वरित 'रवि' कीजिए खंडन परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रव...
मैं एक गरीब किसान हूं
कविता

मैं एक गरीब किसान हूं

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** लघु कथा मैं एक गरीब किसान हूं कहने को मैं अन्नदाता हूं मेरे हृदय से पूछो मैं बहुत दुखी हूं क्या तुम मेरी दर्द वेदना व्यथा को समझ पाओगे कभी मुझ पर कुदरत का कहर बरस जाता है कभी सरकार का मुझे रोता देखकर क्या तुम मेरे आंसू पहुंच पाओगे मेरे दुख दर्द में मेरे साथ खड़े होकर मुझे दिलासा दोगे मैं हूं ना यह कह कर मेरे साथ खड़ा रहोगे पूरे साल मुझे काम बहुत रहते हैं मेरे बूढ़े माता-पिता का देखभाल मेरी जीवन संगिनी की देखभाल मेरे नन्हे नन्हे छोटे-छोटे बच्चे हैं साहब मेरे बच्चे कुपोषित रहते हैं मैं उन्हें दो वक्त का खाना नहीं खिला पाता एक बच्चे के विकास के लिए जितना पोषण चाहिए वह नहीं है मेरे पास मेरे बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाता हूं मैं उनके स्कूल की फीस नहीं भर पाता हूं मैं एक उम्र होती है बच्चों की पढ़ने लिखने क...
मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द
आलेख

मेरे जीवन के कुछ अधुरे शब्द

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन मे मुझे कुछ शब्दों से काफी नाराज़गी मिली जो कभी पूरा हुआ ही नही भले उसे किसी तरह उपयोग किया जाये अगर हुआ भी तो सिर्फ भाग्य-वालो का ही ! जैसे-रिश्ता जिसमे कभी ना कभी मन-मुटाव आ ही जाता है कैसा भी रिश्ता हो माँ से बेटा का, पिता से बेटा का, चाचा से भतीजे से, भाई से भाई का, बहन से भाई का प्रेमी से प्रेमिका का रिश्ता जैसे हाल ही मे बहुत घटना पेपर, टी.वी पर सुनने को मिलता है, आरूषी तलवार का रिश्ता माँ बाप का रिस्त्ता ! इसी प्रकार प्यार या प्रेम का रिश्ता जो जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जिसका जीवन मे सबसे ज्यादा एव खास स्थान है! वो बिरले ही पूरा होता है खास तौर पे देखा जाये तो अधूरा ही होता है जैसा प्रेमी प्रेमिका, माता-पिता, भाई-बहन इस आधुनिकता मे अधूरा एक शौक हो गया है जैसे लैला मजनु का रिश्ता, शीरी फरहाद का रिश्ता आदी! अगला ले ले तो...
सासु मां …
लघुकथा

सासु मां …

कुमारी सोनी गुप्ता जोगेश्वरी ईस्ट, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पूर्वा की कल ही शादी हुई थी, और आज ससुराल में पहला दिन था। आँखों में ढेर सारे सपने, हृदय में बहुत सी नए जीवन की आशाए संजोये थी लेकिन मन में एक डर भी छुपा था कहीं। हर सुबह माँ-माँ पुकार के होती थी पूर्वा की, आज वो माँ को बहोत याद कर रही थी। सास के बारे में सुना था बहुत ही अनुशासन प्रिय थी और न जाने बाकि घर वालो का स्वभाव कैसा हो। तो थोडा डर लग रहा था। सुबह तैयार हो कर जब बैठक में गयी तो शादी में आई सब बुजुर्ग महिलाओ ने सास से पूर्वा की माँ के घर से आई चीजे देखने की इच्छा जताई। सास ने पूर्वा को बुलाके सारा सामान सबको दिखाया देखके अन्दर-अन्दर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई, फिर उनमें से एक बुजुर्ग महिला जो की ससुर की बुआ थी वो मुंह बनाके बोलने लगी ये क्या दिया हे लड़की को ना कार, न बाइक, न फ्रीज, नाही पलंग... बस थोड़े से कपड़े...
गुरु चालीसा
दोहा

गुरु चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* नमन करो गुरुदेव को, धर चरणों में ध्यान। ज्ञान दान के कुंभ में, सभी करें अस्नान।। जय जय जय गुरुदेव हमारे। हम आए हैं शरण तिहारे।।१ तुमसा कौन जगत में दानी। सादा जीवन मीठी वाणी।।२ गुरु बिन ज्ञान मिले ना भाई। चाहे लाख करो चतुराई।।३ मंत्री संत्री सभी गुरु से। यह परिपाटी रही शुरू से।।४ गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु कहाये। गुरु को शिव में हमने पाये।।५ गुरु ज्ञानी गुरु जग निर्माता। गुरू हमारे भाग्य विधाता।।६ गुरु ज्ञान की खानहि जानो। गुरु सम मात पिता को मानो।।७ गुरु नानक गुरु गोरख अपने। शंका मन में करो न सपने।।८ शिष को जीते प्रभु सुमरते। धन्य सभी को वे ही करते।।९ गुरुहि गोविंद तक पहुंचाये। अंधकार को दूर भगाये।।१० जिसने गुरु से लगन लगाई। नर से नारायण पद पाई।।११ सद्गुरु आये दर्शन पाये। कमल नैन देखत खिल जायें।।१२ मीरा ने रैदास हि पाया। रा...
किसान
कविता

किसान

सपना दिल्ली ******************** अन्नदाता ख़ुद  होकर पानी पीकर भूख मिटाएँ जग को भूखा न सोने दें अन्नदाता किसान कहाएँ...... आँधी हो चाहे तूफ़ान चिलमिलाती धूप हो ठण्ड से निकलती जान मेहनत से  नहीं घबराते करते फसलों की देखभाल प्यारी संतान  समान....... दुनिया  न सोये भूखी उसके लिए न जाने गुजारते कितनी रातें बिना सोये परिवार से पहले देश की चिंता इन्हें छोहे..... कहने को तो संविधान हमारा सबसे प्यारा सबको मिलता समान अधिकार इसके द्वारा आज क्यों किसान हमारा सड़क़ों पर उतरा सारा फिर भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा ... कब जीतेगा वह जो कभी न हारा। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता तथा प्रपत्र...
एक स्वर्णिम संध्या
कविता

एक स्वर्णिम संध्या

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। निशा भी खूबसूरत ख्वाबौं को देकर चली गई। प्रभात की किरणें शबनम के मोती की तरह प्यार भरा माहौल सनम तुम्हारे बिना दे गई। अब इंतजार कर, इंतजार कर हर आहट कहने लगी अपने आप से जिन्दगी, मधुर मधुशाला के लिए तड़फने लगी। कभी जो मय पिलाई थी, अपने मुस्कराते नयनौं से, कशमकश माहौल को पाने के लिए तड़प उठी थी गगन एक मोहब्बत की रोशनी के लिए जिन्दगी बेबस लाचार सी लगने लगी और खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य ...
बड़ा आसान था गिरिधर
गीत

बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बड़ा आसान था गिरिधर, बता दिल तोड़ कर जाना! मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? दर्द यमुना का तो सुनते, कदम के शूल तो चुनते। तजा पनघट तजी राधा, तजा सारा वो याराना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बजी वंशी बहुत प्यारी, लगे चितवन बड़ी न्यारी। उसे भी छोड़ बैठे तुम, किसे दूँगी मैं अब ताना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? तड़प कर गोपियाँ रहतीं, विरह कैसे भला सहतीं? चमन के पुष्प हैं सूखे, कहें तितली नहीं आना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? कुँआ भी प्यास का मारा, हृदय मेरा रहा खारा। नयन से मोतियाँ बिखरीं, धरा पहने तरल बाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बिछायी द्यूत की क्रीड़ा, सही जाये न यह पीड़ा। कहूँ कैसे बनी धीरा, यही तुमको है समझाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला ...
भोर का पंछी
कविता

भोर का पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जागरण संदेश लाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में! मधुर वाणी गूंजती है, व्योम से लेकर धरा तक। गान-पारावार में सब, डूब जाते हैं अचानक। मन सभी का है लुभाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। मनोहर लय ताल सुन्दर, धुन अनोखी गान की है। प्राकृतिक अद्भुत प्रथा यह, जागरण अभियान की है। स्वरों की गंगा बहाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। कुशल है संगीत में वह, जानता आरोह भी है। तान है उसकी सुरीली, समय पर अवरोह भी है। कंठ से सरगम सुनाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक...
नवाकुँरित पौधें की चिंता
कविता

नवाकुँरित पौधें की चिंता

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नवसृजन की पीड़ा सहकर, धरा ने मुझे जन्म दिया, इस शहरी जीवन के आँगन में लाकर मुझे खड़ा किया, डरता हूँ यहाँ की निर्बाध हवाओ से, लपलपाते गर्म जलाते झोको से, नहीं हैं यहाँ कोई बरगद झाँव न कोई खग कलरव न कोई, प्यारा गाँव पता नहीं बढ भी पाऊँगा, या शैशव वय में ही मारा जाऊँगा यदि गाँव की माटी में ही उगता स्वछंद प्रेमपगी हवा में पनप विशाल पेड़ बन जाता परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
विधाता की निगाह में
कविता

विधाता की निगाह में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ये जिंदगी गुजर रही है आह में जाएगी एक दिन मौत की पनाह में। कर लो चाहे जितने पाप यहां हो हर पल विधाता की निगाह में। मेरी कमी मुझे गिनाने वाले सुन शामिल तो तू भी है हर गुनाह में। छल प्रपंच से भरे मिले हैं लोग दगाबाजी मुस्काती मिली गवाह में। खोने के लिए कुछ भी शेष नहीं सब खोये बैठा हूं किसी की चाह में। आंखों में छिपे हैं राज बड़े ही गहरे इतनी जल्दी पहुंचोगे नहीं थाह में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान...
दिखाओ तो सही
गीतिका

दिखाओ तो सही

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** क्या किया है आपने मुझको बताओ तो सही। कर्म की अपनी कहानी कुछ सुनाओ तो सही।।१ आह से अपनी तिजोरी भर रखी हैं क्यों भला। खोल‌ करके कोष अपना तुम दिखाओ तो सही।।२ लूट कर खुशियाँ गरीबों की खड़े मुसका रहे। मुस्कुराहट तुम उन्हें उनकी दिलाओ तो सही।।३ हाथ आता है नहीं‌ बादल घिरा आकाश में। घूँट जल की नेह से आकर पिलाओ तो सही।।४ झाँकता है चंद्रमा खिड़की तुम्हारी बंद है । खोल‌ खिड़की चाँद को अंदर बुलाओ तो सही।।५ जोड़ कर के या घटा कर देख लो क्या है मिला। क्या गलत है क्या सही कुछ आजमाओ तो सही।।६ बाँट कर खुशियाँ कभी तो मुस्कुरा कर देख लो। खिल खिलाकर के कभी तुम मुस्कुराओ तो सही।।७ परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
जिंदगी एक सफर है
कविता

जिंदगी एक सफर है

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** जिंदगी एक सफर है। कदम बढ़ाते चलो हंसते गाते मुस्कुराते चलो, ऐ चलने वाले मुसाफिर सफर लंबा है। कदम बढ़ाते चलो राह में रुकना नहीं है। सफर जितना लंबा होगा सफलता उतनी ही बेहतर होगी, जीवन में सफर करते समय अनेक बाधाएं आएंगी, इन बाधाओं में रुक ना जाना ए मंजिल के मुसाफिर, लोग यहां थक हर कर बीच सफर में ही रुक जाते हैं। वह लोग यह नहीं जानते उस समय हम मंजिल के कितने करीब थे, सफर में जब निकल चले हैं। मंजिल मिले बगैर रुकने का सवाल ही नहीं होता, आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी, जिंदगी एक सफर है हंसते गाते मुस्कुराते कदम बढ़ाते चलो। चलते चलो मुसाफिर चलते चलो। परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्...
आर पार की लड़ाई
कविता

आर पार की लड़ाई

संजय जैन मुंबई ******************** मेहनत करे किसान पर मलाई हमें चाहिए। खेत बिके या बिके गहने उसे हमको क्या लेने-देने। हमको तो उसकी फसल बिन मोल चाहिए। और हमे कमाने का मौका हमेशा चाहिए। फर्ज उसका खेती करना तो वो खेती करे। हमको करना है धन्धा तो हम लूटेंगे उसे।। होता आ रहा है यही अपने देश में। तो क्यों हम बदले अपनी परंपराओ को। बात बहुत सीधी है जरा तुम समझ लो। तुम हो किसान तो दिलसे खेती करो। ऋण में पैदा होते हो ऋण में ही मरते हो। पर फिर भी खेती खुशी खुशी करते हो।। फिर क्यों उलझ रहे हो देश की सरकार से। जो खुदको बेच चुकी पूंजीपतियों के हाथो में। अब सरकार का भी हाल किसानो जैसा होगा। न जी पायेंगी न मर पायेंगी कठपुतली बनकर रह जायेगी। क्योंकि इतिहास अपने आपको फिर से दोहरायेगा। और देश अपनी पराम्पराओ को कैसे भूल पायेगा।। चुनावो में पूंजीपतियों के पीछे दौड़ लगाएंगे। और फिर इन के गुलाम बन जायेंगे...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ममता रथ रायपुर ******************** जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी कभी तारों सा चमकेगी कभी बूंदों सा बरस जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी मुसकुराहट बनकर आएगी कभी सुख -चैन चुरा ले जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हवा सी लहराएगी कभी तुफान सा बवंडर मचाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वक्त
कविता

वक्त

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** तुझको मुझसे, मुझको तुझसे क्या काम है? वक्त ने वक्त से मिलाया, वक्त ही जरुरत है! बेवजह नहीं यूँही वक्त का बर्बाद होना कुछ और नहीं, मिटने मिटाने की हसरत है! वक्त पे खामोश रहे, वक्त पे चिल्लाएं वक्त पे आंसू बहाएँ, वक्त की ही सियासत है! मैंने जो लिखी इबारत, वक्त ने मिटा दी खुद के लिखे पे इतराएँ, वक्त वो इबारत है! दोस्ती और दुश्मनी वक्त की मोहताज है हम नादाँ, कहीं मोहब्बत कहीं नफरत है! कोशिश कर ऐ इन्सां, तू वक्त को पढ़ सके तेरी हो या मेरी, सब की इबादत वक्त है! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दि...