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सावन आयो रे
कविता

सावन आयो रे

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** सावन आयो रे, सावन आयो रे, उमड़ घुमड़ कर आई बदरिया, आसमान में छाई बदरिया, चम-चम चम-चम बिजुरिया चमके, तन-मन को हर्षाए बदरिया, पशु-पक्षी नर-नारी सभी की, प्यास बुझायो रे, सावन आयो रे। छम-छम-छम पानी की बूंदे, घुंघरू की तान सुनाएं, पुरवइया के मस्त झकोरे, कानों में बंसी बजाए, भर गए सारे ताल-तलैया, बच्चे कागज की नाव चलाए, बरखा की ठंडी फुहार, तन-मन को हर्षाए, रंग उमंग और मस्ती के संग, गीत मल्हार गायो रे, सावन आयो रे। इठलाती बरखा की बूंदे, जब धरती पर आती है, महक जाती है, सौंधी खुशबू से, हरियाली छा जाती है, कल-कल स्वर में बहती नदियां, मधुर संगीत सुनाती है, हरित वर्णों में लिपटी वसुंधरा, दुल्हन सी शर्माती है, वृक्ष लताएं झूम-झूम आनंद मनायो रे, सावन आयो रे, सावन आयो रे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्...
मैं क्या करुँगा
ग़ज़ल

मैं क्या करुँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** अपने दिल की तक़लीफ़ों को मैं ही जानता हूँ इसे दूसरों से बताकर मैं क्या करुँगा। ख़ुद अपने को सिमट-सिमट हर रोज जी रहा हूँ किसी और से बाँटकर मैं क्या करुँगा। मेरी रसके-कँवर ने मेरा फोन तक नहीं उठाया अब इस ज़िन्दगी को लेकर मैं क्या करुँगा। तुमने बिन सोचे कर लिया सगाई किसी और से अब तुम्हारे बिना जीकर मैं क्या करुँगा। हर कोई कर रहा है मुझे दफ़नाने की साज़िश घर में कैद होकर मैं क्या करुँगा। अपने ही लोगों ने मुझे दे दिया है धोखा दोस्ती की भूल में जीकर मैं क्या करुँगा। मैं तो चाहता हूँ हर किसी के होठों पर मुस्कान हो पर ख़ुद रो-रोकर मैं क्या करुँगा। खुश रहना ऐ शातिरों अब मै जा रहा हूँ इससे ज़्यादा तुम्हें दुःखी करके मैं क्या करुँगा। माफ़ करना दोस्तों मैं जा रहा हूँ तुम्हें छोड़कर तुम्हारे साथ रहकर ही अब मैं क्या करुँगा। अपने...
गुरु वंदना
भजन

गुरु वंदना

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** गुरु मेरे सांई गुरु मेरे दाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु बिन डगमग मेरी जीवन नैया गुरु ही तो मेरे हैं नाव खेवइया गुरु बिन भवसागर पार कौन लगाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता तम से भरी दुनियाँ में राह दिखाये ज्ञान ज्योति उर में वही तो जलाये गुरु बिन सदमार्ग हमें कौन दिखाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता गुरु से ही पाऊँ मै भगवन दर्शन गुरु को ही अर्पण करूँ सारा जीवन गुरु चरणन में निशदिन माथ नवाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता संताप मरुस्थल में गुरु ठंडी छांव है जीवन सफर का केवल वे ही ठांव है गुरु मेरे हृदय पूज्य गुरु मेरे ज्ञाता गुरु मेरे जीवन के भाग्य विधाता . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांग...
उपजाऊ जमीन
कहानी

उपजाऊ जमीन

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** "पिछले कई सालों से जिम्मेदारियां निभाने जी तोड़ मेहनत करता रहा। अकेलेपन से कई बार टूटा पर परिवार के लिए हर दर्द सजाता रहा। कभी फर्ज कभी पितृत्व समझ कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहा। पर पिछले कुछ सालों से विचारों की जमीन पर दर्द और अकेलेपन के जो बीज बोए उसकी फसल पकती, झड़ती और लहलहाती। ना कोई काटने वाला ना बांटने वाला। मन में उठती पीरें कभी आंखो तक आ जाती तो वापस अंदर ससका लेता। लॉकडाउन पिछले कुछ समय से था पर मेरी जिंदगी में खुशियों का लॉक डाउन उम्र दर उम्र साथ चल रहा था। "अपने ही ख्यालों में खोया मैं मास्टर ऑफ आर्ट ५९ साल की उम्र में कोरॉना में कंपनी द्वारा की गई छटनी में अपनी नौकरी गवांकर सिक्योरिटी गार्ड इंटरव्यू के लिए तेज कदमों से पैदल भागा जा रहा था। आज अंदर का तूफान आंखों से होते हुए गालों पर और सीने तक पहुंच गया था। कई बार परदेश ...
बरसात की बूंदें
कविता

बरसात की बूंदें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** छत की टीन पर पड़ती बरसात की बूंदें.. टप टप करती ज्यो गिरती हो जज्बात पर बूंदें... अमराई की छाव मे मिट्टी से खेलती यह बूंदें... अन्तर के धुए को मिटाती सहलाती यह बूंदें.. कहते है सब कुछ हंसीन बना देती ह यह बूंदें... फिर क्यो मेरे नयनो से खेलती है यह बूंदें... ऐ आसमा गिरती है क्या तेरी आंख से यह बूंदें... तेरे भी किसी दर्द को वयां करती है यह बूंदें .... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
हे मां सरस्वती
भजन

हे मां सरस्वती

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे ३ इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मैं करता रहूँ अपनी कलम से तेरी सेवा २ मिलता रहे बस तेरी कृपा का मुझे मेवा। २.. इस सृष्टि में हर कोई मुझको ऐसा मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। मां वीणापाणि शारदे दे ऐसी संगती २ हर रूप में तू साथ रहे मात भगवती २.. वर्णन तेरा ही कर सकूं वो वरदान दें... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। सबसे प्रथम प्रभात तेरी वंदना करूँ २ तेरे अलावा मैं कहीं किसी से ना डरूँ २.. तेरे नाम से ही जग मुझे ये सम्मान दे... हे मां सरस्वती तू मुझको ऐसा ज्ञान दे। इस जहां की हर नज़र मुझी पे ध्यान दे। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास कर...
स्वतंत्रता
कविता

स्वतंत्रता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हम सोचे थे हमारे आहूत महान आत्मा सोचे थे। हमारा राष्ट्र कितना प्यारा होगा वह क्षन जब सभी स्वतंत्र होंगे। वे सभी लक्षय उनकी चिर अभिलाषाओ को बेधकर जोक और मच्छरों के बेसुमार। झुंड सा बेगुनाह निरीह बेसहारा भारतीयों का नर पिसाच सा चतुर बहुरूपिया। रक्त चूस रहा है राष्ट्र का युवा मौन इन प्रताडनओ का दंश झेल रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है जहा इनसानीयत नही हो भेद भाव की सिर्फ स्वार्थ भरी कूटनीति हो। जो हैम सभी का प्रतिनिधित्व करते है। इनसानीयत को भूल जातिवाद अलगाववाद की कुचक्र रचते है। सजग होना होगा हम सभी भारतीयों को बेरोजगारी भुखमरी स्थाई समाधान ढूंढना होगा। डपोरशंखी घोसणाओ को समझना होगा माँ भारती की बाली वेदी पर जो सपूत आहूत होगए उन्हें नमन करना होगा। रोजगार परक शिक्षा को सत प्रतिशत लाना होगा हर भारतीयों के घर मे खुशियाली हो ऐसा हमारा नीतिन...
जय किसान
कविता

जय किसान

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** जग निर्माता, भाग्य विधाता मतृ भूमि का लाल है वो वीर किसान। जिसकी छमता का गुण गाता सारा हिन्दुस्तान है वो वीर किसान। बंजर धरती को उपजाउ, लोहे को भी सोना करदे है माने ये विज्ञान ऐसा वीर किसान। उसके घर में चक्की रोती भूखी बूढ़ी औरत सोती फिर भी करता अन्नदान ऐसा वीर किसान। चाहे हो सतयुग, द्वापर या हो त्रेता, कलयुग धरती का प्राणी चाहे पहुँचे बादल पार पर भूख मिटाता बस वो इन्सान जो है वीर किसान जय किसान, जय हिन्दुस्तान परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
पहली बारिश
कहानी

पहली बारिश

मारोती गंगासागरे नांदेड (महाराष्ट्र) ********************                                      जून माह प्रारंभ हो चूँका था, खेत खलियानों की सभी धरा तप-तपकर व्याकुल सी हो गई था। सूरज की अग्नि में जल-जलकर अवस्था विरहणी सी हो गई थी, वह अपने दिलदार का इंतजार कर रही थी, याने की बदल कब आएंगे वर्षा के साथ मिलने और मेरी यह तपन कब मिटाएंगे इसी सोच मे धरा जी रही थी। मृग नक्षत्र भी निकल भी निकल ने वाला भी हैं। ऐसा पता चलते ही सभी किसानों में अपनी खेती भी अच्छी जोतकर रखी थी और कुछ किसानों की बाकी थी। इसी दौर में शहर में पढ़ाई के लिए गया हुआँ राज गाँव लौट आया था। बारिश न होनेक कारण धूप भी हँस-हँस कर चमक रही थी इसी बीच राज खेत मे घूमने गया था। दोपहर का समय ढल चूँका था फिर भी सूरज की ज्वाला कम न हुई थी। इसी बीच हवा ने भी छुटी ली थी। शहर से आया हुआँ राज पसिने से तरबतर हो गया था। मैं कई करूँ यह स...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
बचपन
कविता

बचपन

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सबसे अनोखी ये अवस्था ना कुछ करना ना कुछ पड़ना गलियोंमें गुमते ग्याला बनते खेल -खेल में जो लेते मजा कभी ना हम दिल में चुभाते दोस्ती में ना भेदभाव का चलन........ ऐसा था हम सब का बचपन... माँ -पिता के साथ जो रहते बारिश का हमको खुभ लुभाना, मिट्टी से जो घर बनाना दादी से कहानियां सुनते ननिहाल के लिए हम तो रोते, छोटी सी मुस्कान से आंगन मेरा भर जाता गलती जब हम करते, माँ के आँचल मे जा छिपते माँ की ममता का तब होता मिलन..... ऐसा था हम सब का बचपन... पता नहीं ये कोनसा युग है छुपा है बचपन को लेकर आई एक तकनीक एसी सपनों में होते जेसे घूम, हो गयें उस तकनीक में बूम चलो कुछ एसा करते, जिसका कभी ना आदि-अन्त करना हमको ऐसा प्रचलन.... ऐसा था हम सब का बचपन.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी( राजसमंद)...
रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है
ग़ज़ल

रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है। घर के बाहर पहरा क्यों है। सोच रही हैं आँखें भारी, रात बिना तम गहरा क्यों है। सबके मुश्किल हालातों में, उनका ख़ाब सुनहरा क्यों है। इंसानों की तो हद न कोई, इंसा हद पर ठहरा क्यों है। तन, मन, धन वालों का जमघट, लगता आख़िर सहरा क्यों है। आमजनों की सुनवाई में, मुंसिफ़ इतना बहरा क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@...
वक्त के साथ
कविता

वक्त के साथ

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** वो गलिया, वो दरवाज़े बदल जाते है। बचपन के चाव, जवानी आते-आते ठहर जाते है। कहाँ ढूँढे कोई, यादों के घरों को, यह तो चेहरे -दर-चेहरे वक्त के साथ बदल जाते है। हर एक का, हर एक से, निश्चित है समय। बीते वक्त में, अब जा के कही कोई मिलता है कहाँ वो दोस्त मेरे, वो भाई मेरा, वो छोटी बहनें एक छोटा -सा घर मेरा। एक सपना था मेरा। मां-बाप तक ही, यहाँ सारी, दुनिया सिमट जाती थी। मेरे घर से छोटी -सी सड़क शहर तक भी जाती थी। वक्त गुजरा, सब बदल गया। कोई मोल न था, जिन लम्हों का आज लगता है कि, सब वे-मोल गया। मैं बदला, सब बदल गया। मैं हूँ वही, पर अब वो सब। वो नहीं कहीं। वो गलिया, वो दरवाज़े, अब बुलाते नही। वक्त के साथ, उन से मैं, मुझसे वो अनजान सही। क्योंकि वो चेहरे पुराने अब कहीं नज़र आते नही। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग- २४
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग- २४

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** मेरा सारा ध्यान अंदर की बातचीत पर ही था। अण्णा ने नानाजी की चिट्ठी पढ़ कर एक तरफ रख दी। चिट्ठी सुनकर थोड़ी देर के लिए माहौल गंभीर हो गया था। अण्णा के बाद नानाजी की चिठ्ठी दादा ने भी पढ़ ली और उसके बाद दादा माँजी से बोले, ‘बाळ अभी छोटा है, उसमे भलेबुरे की समझ नहीं है और फिर अभी हाल ही वह आपके पास आया है। एक दूसरे को जानने और समझने में वक्त लगेगा। थोड़े दिनों में सब ठीक हो जाएगा इसलिए इन बातों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।’ ‘पर बाळ के नानाजी तो बच्चें नहीं है। नासमझ नहीं है? उन्हें तो अच्छे बुरे की समझ है।‘ अब सुशीलाबाई बोली। वें गुस्से में थी। ‘मुझे उन्हें चिट्ठी लिखने का अधिकार ही क्या है? और तो और उन्होंने मुझे पराया भी लिखा। मैं इन बच्चों को पराया समझती हूं क्या?‘ क्या मैं पराई हूं?‘ अब उन्हें रोना आ गया। अब माँजी भी भडक गयी, ‘इसमें...
महिमा मंडन
ग़ज़ल

महिमा मंडन

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** महिमा मंडन की चाहत में रोज़ हो रहा खून उजड़ रही रिश्तों की बगिया जीवन होता चून आशक्ति ने बदल दिया है रिश्तों का संसार प्रेम समर्पण बीती बातें स्वार्थ का बस अम्बार हम जो कह दें ब्रह्म वाक्य है यही आज का दौर नारद मोह से ग्रसित ज़माना नही सोचना और अहंकार प्रतिकार का ऐसा चढ़ा हुआ है भूत वाह वाह जो नहीं करेगा होगा वही अछूत रिश्ते भी अब चक्रव्यूह हैं संभल के करो प्रवेश जीना मुश्किल हो जाता है मिले अनंत कलेश स्वहित साधन हुई साधना यही आज का खेल तुच्छ स्वार्थ के लिए हो रहा दुश्मन से भी मेल मित्र बनाने से पहले खूब लीजिए ठोंक बजाय साहिल मान रहे हैं जिसको कहीं मुकर न जाय परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पु...
सवाल क्यूं हैं
ग़ज़ल

सवाल क्यूं हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गर हैं तलाश-ए-वजुद तो, इतना बवाल क्यूं हैं, एक सांस ही तो ली हैं, हजार सवाल क्यूं हैं... हैं हसरत-ए-परवाज और हौसले बुलंद भी, जब आँधिया भी साथ तो, गगन गेरो सा क्यूं हैं... हो मुबारक-ए-अजान औ सज़दे नबी के तुम्हें, हैं ख़ुदाई इश्क़ मेरा, जहांन को शिक़वे क्यूं हैं... दौर-ए-ज़ोर-ए-आज़माईश, ख़ुदी से हैं "निर्मल", हैं हवा भी सँग लौ फिर, ख़ौफ-ए-स्याह क्यूं हैं... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, ...
भूली बिसरी यादें
कविता

भूली बिसरी यादें

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जब हम सब शाला जाते थे, तब पानी बाबा भी आते थे। वो जुलाई की पहली तारीख, तब झूम-झूम होती बारिश। पानी बाबा आया रे और ककड़ी भुट्टा फिर लाया रे। छप-छप चलते जाते थे, हम जोर-जोर से गाते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। वो नई-नई कॉपी किताब, वो नया-नया होता लिबाज़। वो प्रार्थना सभा की पंक्ति में, वंदेमातरम का छिड़ता राग। फिर निश्चिन्त हो जाते थे, हम गा-गाकर इतराते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। रोशनी शिक्षा की आ जाती, वह गाँव-गाँव मे छा जाती। खुली दीवारों सी पुस्तक पर फिर सुंदर चित्र सजाते थे। जब कागज की नाव बनकर, पोखर में चला कर आते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। ना वो सावन के झूले न्यारे, न कजरी-तान, न अमिया-डारे। बदल गए परिवेश, पढ़ाई से, अब बदल गई सब शालाएँ। खेल-खेल में गुरुजी पढ़ते थे, ह...
तूने जो दिया ज़ख्म
ग़ज़ल

तूने जो दिया ज़ख्म

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। धोखा और दिल तोड़ना दस्तूर बन गया। मुझको तू दिखाती रही मजबूरियां सभी...२ मैं भी उन्ही को देखकर मजबूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। बनते हो क्यों शरीफ गुनहगार हो तुम्ही...२ जो दिखाया आईना तो ये कसूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। दुनिया की चमक तुमको मुबारक हो मतलबी...२ तुमको सनम बता के मैं मशहूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) लिखती हूँ पाती नैनन से, आ जाओ अब मेरे मोहन। बहुत बर्ष बीत गए हैं अब, याद बहुत सताती हैं। दो दिन तक कह कर गये थे तुम, अब तक सावरे तुम नही आये। ये प्रीत की पाती लिख लिख कर, नैनन से अश्क बहाती हूँ मोहन। आ जाओ अब मेरे दिलवर, तेरी याद बहुत तडपाती है। जब चिड़िया करलव करती है, नदिया जब कल कल बहती है। तब याद तुम्हारी आती मोहन। आ जाओ अब मेरे मोहन, तेरी याद बहुत तडपाती है। मैं प्रीत की पाती लिख लिख कर, मनमीत तुम्हे भेजवाती हूँ। हृदय वेदना लिख कर, नाथ तुम्हे बुलाती हूँ। नैनन से नीर बरसता हैं, आ जाओ अब मेरे मोहन। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्ष...
गाँव में
कविता

गाँव में

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** झेलता हूँ गाँव को। खेलता हूँ गाँव को। खेलना सरल नहीं। गाँव है तरल नहीं। उलझनों की बाढ़ है। संकट बड़ा ही गाढ़ है। मित्र शत्रु बन रहे। षड़्यंत्र में मगन रहे। रहा न गाँव गाँव है। स्नेहहीन छाँव है। चलता रहा मैं धूप में। जलता रहा मैं धूप में। छाले पड़े हैं पाँव में। रहना कठिन है गाँव में। रहना कठिन है गाँव में। परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन अप्रकाशित रचनाएं - यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना) आप भी ...
अभिमान क्यों करूँ मैं
कविता

अभिमान क्यों करूँ मैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तत्वों के संगठन पर अभिमान क्यों करूँ मै? माटी के तन-बदन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? थम जाएँ कब, कहाँ पर मुझको ख़बर नहीं है गिनती के कुछ श्वसन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? बिजली है, आंधियाँ हैं, तूफ़ान है, ख़िज़ा है हंसते हुए चमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? कल के महल-हवेली अब हो गए हैं खंडहर अपने किसी भवन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? आएगी जब क़यामत, हो जाएंगे फ़ना सब नश्वर धरा-गगन पर अभिमान क्यों करूँ मै? ओढ़े हुए कफ़न जब रहना है क़ब्र में तो अपने रहन-सहन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? मुरझाएगा कभी तो, उड़ जाएगा कहीं पर सुन्दर सुखद सुमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? टिकता नहीं है जो भी आता है इस जगत में ख़ुशियों के आगमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? जाना 'रशीद' जग से है ख़ाली हाथ आख़िर फिर माल और धन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? परिचय -  रशीद अहमद शेख ...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग – २३
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग – २३

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** दूसरे दिन स्कूल जाते वक्त सुशिलाबाई मुझे एक बार फिर स्कूल जाने का बोल कर गयी। मैंने उनकी बात का कोई जवाब ही नहीं दिया पर स्कूल के समय चुपचाप तैयार होकर सुरेश के साथ स्कूल गया। बीच की छुट्टी में मैंने सुरेश को सब बताया। मैं सुरेश को एक तरफ ले गया और उससे कहा, 'तुम्हें मालूम है क्या कि इन सुशिलाबाई की इच्छा अपने दादा से शादी करने की है?' 'करने दो। अपने को क्या करना है?' सुरेश का जवाब मुझे निराश करने वाला था। 'अरे, पर इससे तो वें हमारी सौतेली माँ हो जाएंगी?' 'होने दो। हमें क्या फर्क पड़ने वाला है?' अरे, पर वो तो घर का कुछ भी काम ही नहीं करती?' तो माँजी होती है ना साथ में। वही तो करती है सब काम।' सुरेश बोला। 'पर मुझे वें दोनों बिलकुल अच्छी नहीं लगती।' मैंने कहां। 'पर दादा को तो ताई अच्छी लगती है? एक दिन दादा राजाभाऊ को कह रहे थे की उन्हें व...
जन्मदिन
लघुकथा

जन्मदिन

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रामअवतार जी आज ७० साल के हो गये थे पर जब से उनकी धर्मपत्नी चल बसी उन्होने कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया, मनाता भी कौन एक ही बेटा वह भी शहर में सर्विस करता था छुट्टियों में आता रहता कभी-कभी ... पर इस बार पता नहीं क्यों बार बार लग रहा था कोई तो उनका जन्मदिवस मनाऐ ... सालों से वो अकेले रह रहे थे परन्तु इस बार बच्चे जनता कर्फ़्यू में आये थे मिलने पर लाकडाऊन की वजह से जा नहीं पाये .. बहुत दिनों बाद रामअवतार जी के घर में रौनक़ आई थी यही कारण था की वो मन ही मन अपना जन्मदिन मनाना चाह रहे थे पर सुबह के दस बज गये बहू बेटे किसी ने उन्हें बधाई नहीं दी न पैर ही छुआ, था तो वो थोडा मायूस से हो गये, कामवाली से बोले कला ज़रा चाय बना दे छत पर टहल आता हूँ आज तारिख कौन सी है, कला बोली क्यों बाबू जी तारिख का क्या करोगे कुछ नहीं पेपर नहीं आ रहा है न तारिख ...
सन ६२ का काल नही
कविता

सन ६२ का काल नही

राकेश कुमार साह अण्डाल, (पश्चिम बंगाल) ******************** भारत-चीन ना कभी हो सकता भाई-भाई, सरकार हमारी, करे अब इसपर कड़ी करवाई। सन ६२ का काल नही अब, सरकार हमारी बेकार नही अब। आँख झुकाना बहुत हुआ, आँख मिला कर बात करो अब। वक़्त बुरा था, कमजोड़ थें हम, फिर भी हिम्मत ना हारे थें। अब तो है देश समृद्ध हमारा, मातृभूमि हमे है सबसे प्यारा। विश्व पटल पर हिन्दूस्तान के वीर गाथाओं की धूम मची है। देश की रक्षा में, बेटे क्या, बेटियाँ भी सीमा पर खड़ी है। हम कसम लें खुद से, चीन के सामानो का बहिष्कार करेंगे। मिल कर पुरे देश में स्वदेशी का प्रचार और प्रसार करेंगे। भले हमारी संसकृति की पहचान सौहार्द्र और शान्ति है। परन्तु देश के सम्प्रभुता की माँग, फिर एक स्वदेशी क्रांति है। परिचय :-राकेश कुमार साह निवासी : अण्डाल, पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
आती जाती रहेगी बाधा
कविता

आती जाती रहेगी बाधा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** बाधाओं पर आती बाधा, इधर उधर से आती बाधा। हुआ थकन से चूर चूर तन, शूल डगर में और भी ज्यादा। अँधियारी घनघोर घटायें, कितना भी लहराकर आयें। बहलायें या फिर धमकायें, फुसलायें, पथ से भटकायें। लक्ष्य के पथ पर सजग रहो, खुद मंज़िल परवान चढ़ेगी। अम्बर को छूकर आने की पंछी को वही उड़ान मिलेगी। इच्छाशक्ति विश्वास प्रबल हो, सफल ही होगा अटल इरादा। ओढ़, छोड़कर सभी लबादा, आती जाती रहेगी बाधा। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...