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ये हिन्दुस्तां हमारा है।
कविता

ये हिन्दुस्तां हमारा है।

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** जगत को सीख देता है प्रभू की अमर कहानी से। पतित तरु सींच देता है प्रभू की मधुभरी वानी से। शत्रु दल कांप जाता हैं यहां की अमित जवानी से। सत्य की जीत होती है औं धरमों का सहारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां हमारा है। यहां की गोद में गंगा जी प्रतिदिन वास करती हैं। पतित नर का पतन वो क्षण भर में नाश करती हैं। यहां के राज धरमों में प्रजा विश्वास करती है। यहां का हर शहर हर गांव लगता कितना प्यारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां हमारा है। मां के सिर-मुकुट में बर्फ़ कि मणियां चमकती हैं। यहां हर पुत्र के हर रोग कि जड़ियां लटकती हैं। यहां हर एक औषधि डाल में चिड़िया चहकती हैं। हिमालय से भवानी ने रामेश्वर को निहारा है। ये हिन्दुस्तां हमारा है ये हिन्दुस्तां...
जीवनधारा
कविता

जीवनधारा

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** कोई नहीं चाहे गम यहां पर, खुशियां ही सबको है प्यारा, चलता नहीं किसी का वश, यही है धुवसत्य जीवनधारा, माया जाल में गोता लगाएं, ज्ञान, धन या रुतबा जुटाएं, कितना भी कर लें हमारा तुम्हारा, मृत्यु द्वार तक ले जाये जीवनधारा, बेचा ईमान, चाहे किया महादान, करती यह है, सबका कल्याण, सेठ, साहूकार या हो निर्धन-बेसहारा, सबकी नाव खेबे यही जीवनधारा, जन्म मृत्यु का जीवन चक्र, खुशी और गम इसका किनारा, करे चाहे हम लाख जतन, निर्बाध, उन्मुक्त यह है बंजारा, रहो चिंतामुक्त, करो सत्कर्म, रहेगा अमर, कृति और जीवन, जब तलक रहेगा चांद सितारा, यही पावन संदेश देता जीवनधारा.. . .परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक...
चराग़ घी के
ग़ज़ल

चराग़ घी के

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** रौशन चराग़ घी के। हों घर में हम सभी के हाथों का बढ़ना, अच्छा ! लेकिन हों, दोस्ती के। हैं मोतियों से मंहगे, हों अश्क गर खुशी के। जीना करेंगे मुश्किल, कुछ काम आदमी के। उन का भी कोई होगा, जब "प्रेम" हैं, सभी के। . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य व बुंदेली ग़ज़लो...
मोहब्बत की है
ग़ज़ल

मोहब्बत की है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शिकायत सभी ने की है उस रब से यारो, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। गुनाह करके हर शख्स परेशान सा दिखता है, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दर्द दिखा नही सकते आंसू बहा नही सकते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। दुनिया की नज़रों में अक्सर गिरा करते है हम, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म इतना गहरा है और दवा मिलती नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। उम्मीद दिखती नही और साथ कोई देता नही, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। जुबां अगर खोली तो कितने राज़ खुल जाएंगे, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ज़ख्म देना हमे भी आता है पर उन्हें खोना नही चाहते, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। ये शिकायतों का दौर तो चलता रहेगा मगर, हम खामोश है क्योंकि हमने मोहब्बत की है। . परिचय :-...
तंहा सफर में
कविता

तंहा सफर में

मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव बिजनौर, लखनऊ ******************** यादों के इस तंहा सफर में यादों के इस तंहा सफर में, मनोहर, एक हमसफर की तलाश है दुख के काले अंधियारों में, सुख के पुलकित राहों में, साथ जो निभा सके उम्र भर, मनोहर, एक हमराह की तलाश है यादों के एक हमसफर की यूँ तो चेहरे हैं कई हजार, दुनिया के इस भीड़ में, पर उन हजारों के बीच में, मनोहर, एक अपने की तलाश है यादों के एक हमसफर की जीवन के कड़े संघर्ष में, राह जो दिखा सके अंत तक, पथ प्रदर्शक बन जाये जो, मनोहर, एक उम्रदराज की तलाश है . परिचय :-  मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव निवासी : बिजनौर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
पैकेट
लघुकथा

पैकेट

शिरीन भावसार इंदौर मध्य प्रदेश ******************** लछमी ओ लछमी पेशाब पानी कछु की जरूरत हो तो उतर आओ नीचे....अरे का सोच रही हो...इतना देर की बैठी हो...पाव मुरहा जाही...उतर आओ। सुरेश की आवाज़ सुन ट्रक पर सिमटी बैठी लछमी भय और पीड़ा से और भी ज्यादा सिमट गई। उस पूरे ट्रक में लछमी ही अकेली महिला थी इस विकट परिस्थिति में परेशानी अब वह कहे भी तो किससे और कैसे? लॉक डॉउन की घोषणा होने के बाद जल्दबाजी में अपने गांव वापस लौटने के लिए वे दोनो पहने हुए कपड़े और खाली टिफ़िन के साथ रात १० बजे इस ट्रक में चढ़े थे और अब दोपहर का १ बजने आया था। बढ़ते समय के साथ उसकी परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। अपनी गन्दी साड़ी को समेटती वह गठरी सी हो गई थी कि तभी उसे बाहर एक महिला की आवाज़ सुनाई दी. वह किसी से पूछ रही थी कि क्या तुम लोगो के साथ औरते भी है ? महिला की आवाज़ सुन लछमी ने राहत की सांस ली और गर्दन बाहर कर जब उस महि...
नदी और नारी
कविता

नदी और नारी

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** निश्छल नदी में अक्सर लोग पाप धोने आते हैं। आस्था के नाम पर गंदा कर चले जाते हैं। उसकी पवित्रता को दिल में रख कर देखना। कभी जलजला, कभी किनारे मंदिर बन जाते हैं। स्त्री और नदी दोनों की पवित्रता में है समानता। दोनों के गर्भ गृह में सृष्टि का स्पंदन होता। नदी भी सृजन करता स्त्री भी सृजन करता। इनकी अमृतधारा पावन करती धरा। इनकी बाहों में अठखेलियां करते गौतम राम कृष्ण। इनके पावन तट पूजे जाते कौन हो इनसे उऋण। नारी से नर बना, नदी में नर तर जाते। नदी और नारी भक्ति का एक रूप कहलाते। दोनों की गहराई में उतरकर ही इन्हे पाया जाता है। इन दोनों का सम्मान करने वाला ही पूजा जाता है। इनके पावन चरणों में जीवन सुगम सुहाने हो जाते हैं। ऋषि मुनि पावन धरा पर इनकी वजह से पूजे जाते हैं। स्वयं को इनमें अर्पण कर दो। नदी को पूजो, नारी में समर्पण कर दो। नारी में...
पपीहे की साधना
छंद

पपीहे की साधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** महाश्रृंगार छंद गगन से होती जब बरसात। धरा की बुझती है तब प्यास। सूर्य ढलने से होती रात। चाँद लाता है नया उजास।।1 मेघ को तकता चातक रोज़। नहीं मिलती उसको वह बूंद। स्वाति की प्रतिदिन करता खोज। प्रार्थना करता अँखियाँ मूंद।2 ईश का करता निशदिन ध्यान। स्वाति की बूंद एक मिल जाय। मेघ करते उसका कल्यान। बूंद पी फूला नहीं समाय।3 बुझी है जब से उसकी प्यास। प्रेम से गाता है वह गीत। अटल है प्रभु पर अब विश्वास। मानता उनको अब वह मीत।4 परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक ...
ख़ुद पर भरोसा
ग़ज़ल

ख़ुद पर भरोसा

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बहर मीटर-१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन जिसे ख़ुद पर भरोसा है किसी से वो नहीं रोता। उसे देखा है बढ़ते जो जवानी मे नहीं सोता।। नहाए कितना भी गीदड़ वो गीदड़ ही रहेगा बस। चमक रहती है जब की शेर अपना मुँह नहीं धोता।। सफ़ेदी पर न जा मेरी अगर कुछ अक़्ल है थोड़ी। बुढ़ापे में किसी का दिल कभी बूढ़ा नहीं होता।। पड़ी हो आग पर गर राख तो बस दूर ही रहना। की अंगारा कभी अपनी तपिश जल्दी नहीं खोता।। निज़ाम ऐसा करो कुछ काम दुनिया नाम ले तेरा। वही शायर है अच्छा जो कभी नफ़रत नहीं बोता।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
लाइब्रेरी
लघुकथा

लाइब्रेरी

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजिट अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) शेफाली लाइब्रेरी में कुछ किताबें ढूंढ रही थी। उसने जो कल किताब पढ़ी थी वो इसी जगह रखी थी। लेकिन अब उसे उसी जगह पर वो किताब मिल नहीं रही थी। उसने उसी विषय की दूसरी किताब उठा ली।यह सोच कर कि हो सकता इसमें वो चैप्टर उसे मिल जाए वो किताब लेकर टेबल पर बैठ गई।  तभी .....उसने वही किताब सामने वाले टेबल पर देखी। वह पहचान गई कि यह वही किताब थी उसके कवर पर पीला रंग -सा लगा हुआ था। वह पहचान गई इससे पहले वे देखती कि किताब किसके पास है वह लड़का किताब उठाकर लाइब्रेरी से निकल गया। वह उसका चेहरा भी नहीं देख पाई। मन में यह सोच कर कि चलो, वह पढ़ के किताब रख देगा। लाइब्रेरी से वह आज नहीं तो कल किताब ले लेगी। अगले दिन वह फिर किताब ढूंढने गई क्योंकि जो किताब उसन...
प्रीत का रोग
कविता

प्रीत का रोग

जसवंत लाल खटीक देवगढ़ (राजस्थान) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) प्रीत का रोग लगा मुझे, नींदे उडी रात की। तुम अलबेली शाम हो, मेरे प्यारे गाँव की।। प्रेमरस में खो जाता, इंतजार में कटे रतिया। हे खुदा उससे मिला, बरसती है ये अंखिया।। चाँद देख उसे याद करू, तारों की मैं सैर करु। तेरे प्यार में पागल हूँ, सपनो में तेरी मांग भरु।। तेरी एक झलक पाने, दिन भर मैं राहे तकता। पागल प्रेमी आवारा मैं, खाना पीना भी तजता।। तुझसे मैं आँखे मिलाता, शर्म से नैन झुक जाते। कोमल हाथो के स्पर्श से,रोम-रोम मेरा महकाते।। तेरे ख़ातिर जीवित हूँ मैं, तेरे ही सपने बुनता। चलता अगर मेरा राज, हमसफ़र तुझे चुनता।। सुनो तुम मेरी बन जाओ, परी बना कर रखूंगा। जीवन के इस सफर में, पलकों पे बैठा के रखूंगा।। बारिश का मौसम सुहाना, आ गयी बरसात भी। तुम ...
पिता की याद
कविता

पिता की याद

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** दुनिया के गम को हंसकर झेल लेती हूं, सहेजकर रखी यादों को तस्वीर में समेट लेती हूं पिता की याद में अक्सर छिपकर रो लेती हूं । जिंदगी के लम्हों में यादों को ताज़ा करती हूं चेहरे की झुर्रियों में, सदियां खोज लेती हूं, पिता की याद में अक़्सर रो लेती हूं। घर पहुंचकर ठिठक जाती हूं, अचानक फिर तस्वीर देख लेती हूं। चौखट पर सर को झुकाकर नमन कर लेती हूं,,................. पिता की याद........ स्मृतियां क्षण-क्षण सामने आती हैं, फिर उनके हौसले को सलाम कर लेती हूं। कलम थमने सी लगती है शब्द फिर बटोर लेती हूं पिता की याद,..... गमगीन जिंदगी की उदासी भरी शाम और दर्द से भरी सुबह के आभास में पिता की कर्मठता, धैर्य ,विवेक और साहस फिर खोज लेती हूं। पुरुषार्थ की कर्म गीता पढ़ लेती हूंl पिता की याद में अक्सर छिपकर रो लेती हूं। परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शि...
श्रापित गुड़िया
कहानी

श्रापित गुड़िया

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** वह ७ जुलाई २०१७ का दिन था, जब मैं पहली बार किसी शहर के लिए रवाना होने वाला थ। जैसा कि हमारे गांवों की रीति है कि जब कोई अपने घर से दूर प्रवास के लिए जाता है तो जाने से पहले मां, बहन, बुआ, भाभी आदि लोग रास्ते में खाने पीने के लिए कुछ ना कुछ तल भुनकर दे देती हैं ताकि मेरा बेटा, भाई, भतीजा, देवर रास्ते में भूखा ना रहे। ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। जब मैं नहा धोकर तैयार हो गया तो मम्मी और भाभी ढेर सारी पकौड़ी तैयारी मेरे लिए रख दिया लेकिन मेरी इन सब चीजों को साथ ले जाने की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और मेरी पलकें भीगी हुई थी क्योंकि पहली बार जन्म देने वाली मां और जीवन प्रदान करने वाली जन्मभूमि को छोड़कर कहीं दूर जा रहा था। जैसे तैसे मैं अकबरपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। भैया ने ट्रेन का समय बता दिया था लेकिन जब मैं स्टेशन पर पहुंच...
गुरू मंत्र निराला
कविता

गुरू मंत्र निराला

अंजली सांकृत्या जयपुर (राजस्थान) ******************** मेरे पथ का साथी हैं, पाखी मेरे हूनूर का... गुरु संग क़दम बढ़ाते चल, गुरु द्रोण की तस्वीर बन... मैं मुसाफ़िर, मँझधार में... मेरे उड़ान को भरते चल... क़िस्मत का खेल ना बन, कर्म का भाग्य बन।। मैं उदय हो जाऊँ सूरज सा, ऐसा उत्साह भरता चल... तूँ परछाईं बनाता चले, मै संग रास्ते चलता चलूँ।। गुरु हैं सफ़लता का मंत्र, थामे उसका हाथ चल।। मेरे ज़ुनून की आग को, पाक नज़रो ने तराशा हैं.. मैं हीरा तेरे कक्ष का, मंज़िल का साथी बन।। क़िस्मत की आँखे दिए, हवाओं को सन्न करता चल... गड़गड़ाहटों के दोर का, मेरा हिस्सा बनता चल... क़लम तूने सिखाई हैं, हवाओं में रूत आइ हैं.. छेड़खानिया मेरे सपनो से, शैतानिया बढ़ाई हैं।। तूँ संग मेरे जलता गया, मैं लोहे जेसे पिघलता गया।। मैं हथियार, तेरी धार का.. तेरा नाम जहांन में करता गया... तेरा ...
कलयुग के भगवान
गीत, भजन

कलयुग के भगवान

संजय जैन मुंबई ******************** तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। तुम हो ज्ञान के भंडार गुरु विद्यासागर। हम नित्य करें गुण गान गुरु विद्यासागर।। बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी सयंम नियम के महाव्रतधारी। तुम हो जिनवाणी के प्राण गुरु विद्यासागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। दया उदय से पशु बचाते भाग्योदय से प्राण बचाते मेरे मातपिता भगवान गुरु विद्यासागर । हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। जैन पथ हमको चलाते खुद आगम के अनुसार चलते। वो सब को देते विद्या ज्ञान गुरु विद्या सागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर। तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। ज्ञान के सागर विद्यासागर हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्या सागर।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
आत्म  मंथन
कविता

आत्म मंथन

अनुराग बंसल जयपुर राजस्थान ******************** जब भी अकेला बैठता हूँ, शुन्य की गहराइयों मैं यह सोचने लग जाता हूँ। क्या खोया और क्या पाया समझ नहीं पाता हूँ।। जब भी अकेला बैठता हूँ, अतित की गहराइयों मैं डूबने लग जाता हूँ। क्या गलत किया और क्या सही का हिसाब नहीं लगा पाता हूँ।। जब भी अकेला बैठता हूँ , खुद से ही बाते करने लग जाता हूँ। क्यों हो रहा हैं ये का जवाब ढूंढ नहीं पाता हूँ।। जब भी अकेला बैठता हूँ, कुछ हसीन लम्हे याद आ जाते है, फिर दिल को ये समझाता हु, जो होना था हो गया, और आगे बढ़ने की कोशिश करने लग जाता हूँ।। . परिचय :- अनुराग बंसल निवासी : जयपुर राजस्थान शिक्षा : एम.टेक. (स्ट्रक्चर), बी.टेक (सिविल) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्...
जीत निश्चय है हमारी
कविता

जीत निश्चय है हमारी

अमर सिंह राठौड़ राजसमन्द राजस्थान ******************** कोरोना वुहान से आया, लगता इसे प्राप्त वरदान। मानवता का है ये शत्रु, तोड़ देंगे इसका अभिमान। विश्व की भांति भारत को, इस जंग से लड़ना है। हर जंग में हुआ विजेता, ठान फिर से करना है। हमे है कोरोना से लड़ना, मानव तुम करो एकता। अनेकता में होती एकता, ये भारत की विशेषता। समाजिक दूरी रखना है, ये जीत हमे दिलवाएगी। आखिर ये बकरे की माँ, कब तक खैर मनाएगी। बीमार से न लड़ना हमे, कोरोना से लड़ लीजिये। जंग की दवा बस दुआ, योद्धा सम्मान कीजिये। मूल धर्म क्या है? अपना, जरा तुम यह सोचना। धर्म, जाति और पार्टीवाद, ये पड़ेगा अब छोड़ना। आत्मविश्वास व संकल्प से, जीत निश्चय है हमारी। इस भारत के गौरव का, गान करेगी दुनिया सारी। . परिचय :- अमर सिंह राठौड़ पिता : मोखम सिंह जी निवासी : कनावदा "राजसमन्द" राजस्थान शिक्षा : १२वी विद्यार्थी रा.उ.मा.वि.देवपुरा र...
हद कर दी आपने
कविता

हद कर दी आपने

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ********************  सारा माल हजम, कुछ तो करो शरम, नोट लगे छापने, हद कर दी आपने ! खोटे तुम्हारे करम, माल उड़ाते गरम, कमा रखा था बाप ने, हद कर दी आपने ! कुछ तो पालो धरम, भ्रष्टाचारी घोर चरम, पीढ़ियां लगेगी धापने, हद कर दी आपने ! मत पालो अब वहम, पापी नारकी बेशरम, क्या डस लिया सांप ने, हद कर दी आपने ! प्रभु की मार बड़ी मरम, किसी दिन बिकेंगे हरम, फिर लगोगे यहीं कांपने, हद कर दी आपने ! हिस्सा खाते दूसरों का, पाप घड़ा भरा अपनों का, जल्दी कंडे लगोगे थापने, हद कर दी आपने ! बगुला भगत बनते हो, स्वांग मदारी धरते हो, माला लगते जापने, हद कर दी आपने ! परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
वारिस
दोहा

वारिस

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** वारिस बुद्धू सिद्ध हो गया माता जी भी फेल सभी सूरमा हाथ मल रहे ख़त्म हो रहा खेल फूट डाल गद्दी हथियाना रही सर्वदा नीति सब के सब हैं भारतवासी नहीं चलाया रीति तख़्त ताज की अभिलाषा में भारत हुआ विभक्त लाखों लोग शहीद हो गए बहा असीमित रक्त हिंदी चीनी भाई भाई का लगवाया नारा लूट लिया इज़्ज़त ड्रैगन ने नेहरू हुए बेचारा चीन ने हड़पा तिब्बत कश्मीर को पाकिस्तान दंश झेलता आज भी इसका अपना हिंदुस्तान माया ममता और मुलायम ने जो तीर चलाया धीरे धीरे दुर्ग ढह गए हाथ काम न आया चेता नहीं अभी तक कुनबा गई भैंस मँझधार सारे साहिल ध्वस्त हो गए हो कैसे बेड़ा पार . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कव...
एक रात यूँ ही
कविता

एक रात यूँ ही

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** एक रात यूँ ही मै ठिठक कर सहम गया अस्मा की ओर हाथ बढ़ाकर लपक गया। निस्तब्ध शांत रात में क्या दीवाली माना रहे हो अपने घर मे तुम महा पटका उड़ा रहे हों। तोपो की जैसी गरज आवाज में तिमिर की प्रकाश में तुम महदीपवाली माना रहे हो बोलो बदलो तभी उत्तर में कुछ बूंदे टपकी। अचानक अंधकार की घानाआवरण सम्पूर्ण दिशा में फैल गयी। मालूम हुआ कि कम्पन से सम्पूर्ण दिशा ही हिल गयी। तिमिर की प्रकाश सभी मीठे दिख पड़े सभी स्वच्छ निरभ्र शांत। ईस्वर की तरफ से यह ओमकार ध्वनि होता है प्रार्थना रूपी साक्षात्कार होता है। वर्षा की रात सुहानी झींगुर की गुंजन दादुर की टर टर की आवाज में यह रात शोभायमान होती है परी रूपी बदलो की समूहों से वर्षा की बूंदो रूपी पुष्पो से मातृ भूमि की अभिषेक होती है जन जीवन मे फिर से नव गीत की संचार होती है। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक म...
निर्दयी
लघुकथा

निर्दयी

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                गांव के एक स्कूल में टीचर पांचवी कक्षा को पर्यावरण का पाठ पढ़ा रहे थीं। सभी बच्चे शांत भाव से सुन रहे थे, किंतु पलाश कुछ ज्यादा ज्यादा ही उत्साही लग रहा था। टीचर जी मेरी दादी भी पेड़ पौधों और पशु पक्षियों की सुंदर-सुंदर कहानियां सुनाती है। मुझे ऐसी कहानियां सुनना बेहद पसंद है। "बहुत बढ़िया बेटा।" दादी की कहानियां सुनते समय आस पड़ोस के बच्चों को भी बुला लिया करो।" टीचर ने पलाश से कहा। इतने में प्यूयू ने आकर टीचर को संदेश दिया "मैडम जी। आपको प्रिंसिपल साहब बुला रहे हैं।" अंतिम पीरियड की समाप्ति में अभी पाँच मिनट बाकी थे अतः बच्चों की छुट्टी कर दी गई वे अपने अपने बसते बंद कर खेल के मैदान की ओर चल दिए। स्कूल से बाहर का रास्ता खेल के मैदान से होकर ही गुजरता था सभी बच्चे घर जाने की खुशी में भागे जा रहे थे पलाश थोड़...
फिर खुशी नाचेगी
ग़ज़ल

फिर खुशी नाचेगी

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** क्यों जमाने के सितम यूं बेवजह हमको लड़ाये, हम सियासत की बिसातें दूर पीछे छोड़ आये। साफगोई से यहाँ बच कर निकल जाना भला, उलझनों के जाल बुनने की किसे अब होड़ भाये। सरहद के उस पार दुश्मन ,हैं बड़े इस पार भी, देखना होगा कोई अपना ही घर ना तोड़ पाये। फैसला मुश्किल हुआ किस डगर का रुख करें, ज़िंदगी की राह में कितने ही ऐसे मोड़ आये। इस फरेबी, मतलबी दुनिया में अक्सर ये हुआ, झूठ का हर ठीकरा सच के ही सर फोड़ आये। दिल की ही बातें सुनी, अनसुनी करके विवेक, टीस जो बाकी रही नाता उसी से जोड़ आये। फिर खुशी नाचेगी आंगन में अंधेरा दूर होगा, आस्था का एक दीपक हम जलाकर छोड़ आये। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका...
मानवता
लघुकथा

मानवता

रोशन कुमार झा झोंझी, मधुबनी (बिहार) ******************** मानवता मतलब मानव जो अपने घर परिवार समाज के लिए जो भलाई करता, इसके प्रमुख रूप दया, प्रेम, सहनशीलता, संघर्ष आदि है। यहाँ हम मानवता से सम्बंधित रचना प्रस्तुत किये है। :- बात हम बग़ल वाली की ही कर रहा हूँ, वही कोमल, बेबी, मीना की, उसकी नहीं उसकी मानवता की, वह तीनों मानव सेवा को पूजा पाठ और अपना धर्म मानती, तीनों अंधेरा में रोशन, दुख में सुख करके आनंद करने वाली, कुछ देकर तो कुछ अपनी मधुर वचन से वह कैसे तो जानिए, उन तीनों की घर की आस पास राखी नाम की ग़रीब लड़की रहती रही, बेचारी पढ़ना चाहती पर कैसे पढ़ती, लेकिन पढ़ी भी वह कैसे? तो वही कोमल, बेबी, मीना, राहुल, राजन के सहयोग से, पांचों मिलकर राखी की विद्यालय की शुल्क जमा करते, उसे किताब कॉपी खरीदकर देते और अरुण निःशुल्क ही पढ़ाते, इस तरह राखी बारहवीं तक पढ़ी, उन लोगों के सहयोग से। तो इस लघु कथा से ...
कृषक
कविता

कृषक

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** धरती माता के आँचल में, हरियाली जो बोते। अमन चमन की, खुशियाली को, श्रम का बोझा ढोते। वो किसान होते। शीत धाम आंधी वर्षा में हँसते कदम बढा़ते। खेत और खलिहानों के हीं गुण गोरव ये गाते। पले धूल मिट्टी में जन्मे इस में ही मिल जाते। अर्द्ध नग्न तन भूखे रत हैं किन्तु नहीं कुम्लाते। अन्न देश को जुटा रहें हैं ये किसान कहलाते। लगे जूझनें संघर्षों से, वे विश्राम न पाते। माँ समेट लेती गोदी में ये तो श्रम के है दीवाने। नमन उन्हें मे करती, उनकी व्यथा कोन जाने। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ...
मजदूरों की आंखें
कविता

मजदूरों की आंखें

पायल ‌पान्डेय कांदिवली, पूर्व- मुंबई ******************** इन मजदूरों की आंखें नम हैं, ज़रा, पूछों इनसे, इन्हें क्या ग़म है? नेत्रों से अश्रु धारा बही जा रही है, लग रहा है, जीवन जैसे वीरान वन‌ है। मीलों दूर चल रहें हैं, अधर जैसे एक मुस्कान के लिए तरस रहे हैं, इक आस में छोड़ कर अपना घर-बार, सुकून कि तलाश में ये इतना भटक रहे हैं। पैरों में थकन बेशुमार है, ह्रदय में पीड़ा अपार है, ये कैसा समय आया है, दर दर की ठोकरें खाने के लिए, ये मजदूर बेबस और लाचार हैं। सरकारी राहतों की योजना भी, अब इनके मन की व्यथा नहीं मिटाती, जल की शीतलता भी, अब इनकी प्यास नहीं बुझा पाती। लाचारी का इतना बेबस आलम है की, शरीर की काया भी अब इनका साथ छोड़ती जाती! मंजिल तो अभी दूर है, फिर भी अपने कर्मों में प्रयत्नरत इनका तन है! कभी तो बदलेगी यह स्थिति भी, इसी आस में बीतता, अब इनका जीवन है। इन मजदूरों की आंखें नम हैं, ...