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मन के घर मे ठहरो
कविता

मन के घर मे ठहरो

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मन के घर में आकर ठहरों, देखो जग फिर क्या करता हैं। तूफानों से घिरा समुन्दर, कब तक नाँव किनारे बाँधे, पार पहुँचना इसके पहले जब तक सूरज सीमा फाँदे। तुम किश्ती में बैठो भर ही देखो तूफा क्या करता है। चुभते शूलों का है आंगन कैसे कोई रास रचायें, घणी घटा तम का हैं शासन, बोले कैसे खुशी मनायें, तुम मेरी बाहें बँध जाओ, देखो तम फिर क्या करता है। मन के घर में आकर ठहरों, देखों जग फिर क्या करता हैं। बुझी नहीं है प्यासी आशा फिर भी कल पर सांसे रोके, जीवन के घटियां पिंजरे से, पंछी उड़ जाने से रोके, तुम मुझकों अपनों मे घोलो, देखो यम फिर क्या करता हैं। मन के घर में आकर ठहरों, देखें जग फिर क्या करता हैं। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान...
लोहड़ी मकर संक्रांति  का सामाजिक पहलू
आलेख

लोहड़ी मकर संक्रांति का सामाजिक पहलू

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना एक विशेष महत्व है। जिनको धार्मिक नजर से देखा जाता है परंतु हर त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा सामाजिक कारण समाज को बांधना और जोड़ना है।  यदि हम किसी भी त्योहार को सामाजिक दृष्टि से देखें तो एक दूसरे से गले मिलना ,साथ बैठना ,मिलकर उत्साह से खुशी मनाना तथा नाचना गाना ,खाना-पीना यह सभी हर त्यौहार का हिस्सा होते हैं। भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है इसमें भिन्न-भिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार  देशभर में  मनाया जाता है। लोहड़ी  मकर संक्रांति पोंगल इत्यादि अलग-अलग नामों से यह त्यौहार भिन्न-भिन्न राज्य और धर्म के हिसाब से  मनाया जाता है। यूं तो  लोहड़ी मकर संक्रांत का महत्व सर्दी के खत्म होने और सूर्य के स्थान बदलने  का  सूचक माना जाता है। संक्रांति के दिन बहुत से लोग सूर्य की पूजा कर पवित्र न...
लक्ष्य
कविता

लक्ष्य

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** धनुष से छूटा बाण कब पथ पर रुकता है, तुम तो लक्ष्यपथ के बाण हो, लक्ष्य तक पहुंचे बिना फिर तुम्हें नहीं ठहरना उठो और प्रयत्न करो रुको नहीं जब तक मंजिल पर न पहुंचो। मन की सकारात्मक्ता नई राह दिखाती है। आशाएं भी जगाती हैं तुरंत राह पर चलो। कार्य जो किए निर्धारित अंजाम देना है फ़ौरन। सीखने की प्रक्रिया को तुम रुकने न देना। तरक्की तुम्हारे क़दमों में होगी पथ पर विश्राम ना करना। कड़ी मेहनत का विकल्प नहीं कोई। कामयाबी छिपी है इसमें, तुम्हें उसी आवरण को खोजना।   परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं...
बिरहनी
कविता

बिरहनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बिरहनी इस चांदनी में ज्योति पुंज से तू खड़ी हो। इस धरा पर विपुल स्वर्ग सा मलयानिल फिर मंद गति से। रुक रुक कर बहती है। विरहनी इस धवल चांदनी में ज्योति पुंज सी तू स्थिर हो। बोलो सदियों की चुप्पी तोड़ो कब से मौन व्रत में तुम? चंचलता को रोक खड़ी हो। सृष्टि तो अविराम गति से सदियों से गतिमान बनी है। तुम प्रेरक हो जीवन सुधा की चांदनी फिर सकुचाई देखो। देखो चंपा जूही बेला रजनीगंधा ने ली अंगड़ाई। तेरी बंदन में मग्न रजनी है। नीले अंबर के तारक गण भी बिखरे हैं नभ में अति सुंदर। सुदूर क्षितिज में उज्जवल तारे तुझे देखकर विहंस रहे हैं। नीले अंबर के नीचे" विरहनी" नील मणी सी तू अति सुन्दर हर पल नूतन दिखती हो। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
लाख बचालो मुझसे खुदको
कविता

लाख बचालो मुझसे खुदको

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लाख बचालो मुझसे खुदको, फिर भी तुम पर मेरी नज़र। संग गैरो के प्रीत लगाकर, मुझपे क्यों ढा रहे हो कहर।। छोड़के तुम क्यों चले गए हो, क्या बुरा लगा था मेरा शहर। अब ढूंढता रहता गली गली, अब देखती रस्ता मेरी नज़र।। कोई कहता पागल आवारा, कोई नदी दिखाता कोई नहर। कोई भेजे मंदिर कोई गुरद्वारा, कोई मुझे रोकता एक पहर।। तुम गैर नही थे मेरे लिए, तुमतो थे मेरी जान ए जिगर। जो हाथ दिया था प्रेम रस, वो निकला मीठा एक ज़हर।। गर था नही संग रहना मेरे , क्यों दिल मे चलाई मेरे लहर। देकर तो देखते मौका मुझे, कुछ मुझपर भी कर देते महर।। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी त...
शिद्दत
कविता

शिद्दत

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे चाहा, तुझे पाया पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे पाया, तुझे अपना बनाया है पूरी शिद्दत से। जब भी अपना बनाया, तेरी हुई मैं पूरी शिद्दत से। जब भी तेरी हुई, तुझ में समाई पूरी शिद्दत से। जब भी तुझ में समाई, तुझमें रब नजर आया पूरी शिद्दत से। जब भी रब नजर आया, तुझ पर खुदा का नूर बरसा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरं...
हिंदी भाषा
कविता

हिंदी भाषा

संजय जैन मुंबई ******************** हिंदी ने बदल दी प्यार की परिभाषा। सब कहने लगे मुझे प्यार हो गया। कहना भूल गए आई लव यू। अब कहते है मुझ से करोगी..। कितना कुछ बदल दिया हिंदी की शब्दावली ने। और कितना बदलोगे अपने आप को तुम। हिंदी से शोहरत मिली मिला इसी से ज्ञान। तभी बन पाया एक लेखक महान। अब कैसे छोड़ दू इस प्यारी भाषा को। ह्रदय स्पर्श कर लेती जब कहते है आप शब्द। हर शब्द अगल अलग अर्थ निकलता है। तभी तो साहित्यकारों को ये भाषा बहुत भाती है। हर तरह के गीत छंद और लेख लिखे जाते है। जो लोगो के दिलको छूकर हृदय में बस जाते है। और हिंदी गीतों को मन ही मन गुन गुनाते है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक म...
गजासीन शनि मंदिर के स्थापना महोत्सव में होगा अ.भा. कवि सम्मेलन
धार्मिक, साहित्यिक

गजासीन शनि मंदिर के स्थापना महोत्सव में होगा अ.भा. कवि सम्मेलन

जन्मोत्सव पर निशक्त, दिव्यांगो को होगा वस्त्रों एवं अन्न का दान रीवा, झारखंड, मनावर, कुक्षी, उज्जैन, अमझेरा, धार, महू, इंदौर के करीब २२ कवि करेंगे रचना पाठ इन्‍दौर। उषा नगर स्थित इंदौर के एकमात्र गजासीन शनि मंदिर का नवम स्थापना महोत्सव १७-१८ जनवरी को भव्य रूप से आयोजित किया जा रहा है। मंदिर अधिष्ठाता महामंडलेश्वर दादू महाराज के सानिध्य में विभिन्न धार्मिक, सामाजिक कार्य किए जाएंगे। मंदिर की अलका घुघरे ने जानकारी में बताया कि १७ जनवरी को सुबह ध्वज पूजन होगा जिसके बाद उसे मंदिर के शिखर पर बदला जाएगा। उसके बाद रुद्राभिषेक पारद शिवलिंग पर किया जाएगा। शनि देव का भी विभिन्न तेलों से, शनि देव के मंत्रो के उच्चारण के साथ तेल अभिषेक किया जाएगा। जिसके बाद हवन होगा। संध्या समय शनि देव को 56 भोग का प्रसाद का भोग लगाया जायेगा। १७ जनवरी को ही रात्रि 8 बजे से भजन गीत-संगीत की महफिल सजेगी। प्रसिद्ध गायिका...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पर्व आया मिलजुलकर पर्व मनाएंगे। तिल गुड़ की मीठास संग, हम खुशी जताएंगे। मौज-मस्ती करेंगे हम, मन में विश्वास जगायेंगे, रंग बिरंगी पतंग डोर संग, आसमान में उड़ाएंगे। स्वर्णिम किरणों को छूने, लहराकर ऊपर चढ़ जाए, इंद्रधनुष रंगों में रंगकर, तूफानों में नाच दिखाएं। मंजिल का तो पता नहीं, नील गगन की रानी कहलाए, आसमान में बेखबर, आजादी संग उड़ती जाए। जब जब पेच लड़ा वह भी , लड़ने में जुट जाए , कट जाए या लूट जाए , तो वह निराश हो जाए। ऊंचाइयों का सपना, दिल ही दिल में रह जाता, अपने अस्तित्व को बचाने, फिर से धरती पर आ जाए। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
विरह कुंड में हुए हवन
कविता

विरह कुंड में हुए हवन

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। नेह का नीड़ उड़ा ले गयी स्वारथ की जो बही पवन। पागल करके हमको कहती इस पागल का करो जतन। खुश हैं हम ओस की बूंदों में सागर संग तुम, रहो मगन। प्रेम भाव जो उठे थे मन में अब विरह कुंड में हुए हवन। सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। फिर से तुम्हारी ही यादों का जो बादल घिर-घिर आया है। मैं सोचा इस पल को जी लूं कितनों ने पत्थर लहराया है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
एक दिन ज़रूर होगा
कविता

एक दिन ज़रूर होगा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। मेरे अपनो को भी मुझ पर बेइंतहा गुरुर होगा। उड़ने की कोशिश में हूँ बिना पंखों के आसमान में, हौसलों ने दिया साथ तो छा जाऊंगा जहान में, मेरी नज़्म का एक दिन, तुम्हारे होठों पर सुरूर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। चलता ही रहता हूँ अपनी मंज़िल की तलाश में, आलोचक बहुत है मगर होता नही निराश में, देखना एक दिन आयेगा, जब दामोदर मशहूर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। कोई कहता है तू तो पागल हो गया है, ना जाने कोनसी दुनिया मे तू खो गया है, ये तो मेरा ख़्वाब है, कोई दौलत नही जो गुरुर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। सर्वरस धारा का एक दरिया है ये, दिल की बात कहने का ज़रिया है ये, मैं तो यूँ ही लिखता रहूंगा, अगर तुम्हे मंजूर होगा......
कुदरत का पैगाम
कविता

कुदरत का पैगाम

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** रो रहा है आसमां देख धरती का हाल दंगाइयों के हाथ से पिट रहा यूथ यहां पथ भ्रमित है दिशा चल रही नफरत की हवा खेल रहे भविष्य से आज के पहरेदार दबा रहे जज्बातों को खींच दिलों में दीवार लड़ा रहे एक दूजे से धर्म के पहरेदार गरज रहे हैं मेघ भी देख कर यह अत्याचार ना बांटो इंसान को रहने दो इंसानियत कुदरत यह दे रही चीख चीख कर पैगाम . परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका निवास - द्बारका, दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अप...
कर्तव्य
गीत

कर्तव्य

संजय जैन मुंबई ******************** दीये का काम है जलना। हवा का काम है चलना। जो दोनों रुठ जाएंगे। तो मिट जाएगी ये दुनिंया।। गुरु का काम है शिक्षा देना। शिष्य का काम शिक्षा लेना। जो दोनों भटक जाएंगे। तो दुनियाँ निरक्षक हो जायेगी।। पुत्र का काम है सेवा करना। मातपिता का काम है पालन पोषण करना। जो दोनों एक दूसरे से मुंह मोड़ लेंगे। तो सारी दुनिंया बदल जाएगी।। इसलिए संजय कहता है, करो अपने कर्तव्यों का पालन। तभी सुंदर बन सकता, अपना ये वतन। इसलिए हमारा देश विश्व मे सबसे न्यारा है। जहाँ हर महजब के लोग हिल मिलकर रहते है।। जहाँ हर........।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहि...
शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह
आलेख

शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** अनूठा, अकल्पनीय, अनुकरणीय, असीम सम्भावनाओं को जन्म देने वाला अनन्त विचारों को प्रकाश पुंज की तरह समेटने वाला आयोजन दिनांक २० दिसम्बर २०१९ को संध्या समय धनौरा जिला सिवनी के लिए इंदौर से मैं डॉ. विनोद वर्मा अपने ६ साथियों संजीव खत्री, तोलाराम तंवर, पवनसिंह नकुम, कैलाश परमार, माखनलाल परमार, अशोक राठौर के साथ कार से रवाना हुआ। दि.२१ को प्रातः काल पहुंचे। जहाँ विद्यालक्ष्य फाउंडेशन धनौरा के तत्वावधान में राष्ट्रस्तरीय शिक्षक संगोष्ठी और शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन होने जा रहा था। इस आयोजन में जिला कलेक्टर, अपर कलेक्टर, सीईओ जिला पंचायत सिवनी के साथ शिक्षा विभाग का महकमा संयुक्त संचालक श्री तिवारी जी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री बघेल जी,जिले के सभी विकास खण्ड शिक्षाधिकारी,सभी खण्ड स्रोत समन्वयक ने अधिकांश समय अपनी उपस्थिति देकर इस आयो...
या खुदा
कविता

या खुदा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा। मैं अपने ईमा पे कितना उतरा हूँ खरा। कितने लोगों को आई पसंद मेरी अदा। में कितनो को भाया अभीतक, और कौन मुझपे हुआ फिदा।। कितनो के लिए मैं अच्छा हूँ, और कितनो के लिए हुआ बुरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... फिक्र नही फरिश्तों में गिनती हो मेरी। सब खुश रहे बस यही विनती है मेरी।। फिर भी आज दर्द का एहसास क्यों हुआ, ये किसने मेरे पीठ पीछे घोंपा है छुरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... बंदगी की तेरी मैंने रात दिन यहां। में तेरी चौखटों पे फिरा यहां वहां।। में अपनों की खुशी तुझसे मांगता रहा, रखना तू मेरे अपनो को बस हरा भरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... इस जहां में कोई भी उदास न रहे। मजबूरी के नाम पर उपवास न रहे।। मिले ना कोई मांगता भीख भी यहां, सभी के सर पे छत हो सभी को आसरा। या खुदा तू मु...
हमे बचालो
कविता

हमे बचालो

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** धरती पर पड़ी नववर्ष की पहली किरण ओस की बूंदो के आइने में अपना आकार देख कह रही - ओस बहन तुम बड़ी भाग्यवान हो जो कि मुझसे पहले धरती पर आ जाती हो तुम्हे तो घास बिछोने और पत्तो के झूले मिल जाते है । मै हूँ की प्रकृति /जीवों को जगाने का प्रयत्न करती रहती हूँ किंतु अब भय सताने लगा है फितरती इंसानो का जो पर्यावरण बिगाड़ने में लगे है और हमें भी बेटियों की तरह गर्भ में मारने लगे है आओ नव वर्ष की पहली किरण औंस की बूंद और बेटी हम तीनों मिलकर सूरज से गुहार करें हमे बचालो। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि
आलेख

इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** एक हजारवें स्थापना दिवस पर विशेष संतो और शूरमाओं की मातृभूमि राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में स्थित गढ़ सिवाणा शहर की स्थापना विक्रमी संवत १०७७ में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिधि को वीर नारायण परमार ने की थी! आगामी 1 जनवरी २०२० को इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना के एक हजार वर्ष पूर्ण हो रहे है! इस अवसर पर जानते है सिवाना शहर के इतिहास और विशिष्टता को! गढ़ सिवाणा का ऐतिहासिक दुर्ग राजपुताना के प्राचीन दुर्गो में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। ये दुर्ग राजस्थान के उस चुनिन्दा दुर्गों में शुमार है जहाँ दो बार जौहर हुए है! वहीं यह शहर प्राचीन काल से ही कई महान तपस्वी विभूतियों की तपोभूमि रही हैं। कस्बे के मध्यभाग में स्थित गुरू समाधी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का केंद्र हैं। राजस्थान का मिनी माउंट हल्देश्वर तीर्थ अत्यंत रमणीय स...
आशावादी ‘बीस’
दोहा

आशावादी ‘बीस’

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अगणित अनुभव दे गया, विगत वर्ष 'उन्नीस'। चौखट पर आकर खड़ा, आशावादी 'बीस'। मीठी यादों से मिला, भावुक बीता वर्ष। नूतन सन् को दे गया, आसन-मुकुट सहर्ष। कुछ खोया कुछ पा लिया, हमने पिछले साल। बिदा समय हमसे हुआ, चलकर अपनी चाल। कभी सुमन सम है समय, कभी लगे यह शूल। कभी सुखद अनुकूल है, कभी दुखद प्रतिकूल! नहीं एक जैसी रहे, सतत काल की चाल। कभी सरल सहयोगिनी, कभी विषम विकराल। काटो तो कटती नहीं, दुख की लम्बी रात। सहता है कोमल हृदय, पीड़ा के आघात। समय-साधना से मिले, बड़े-बड़े उपहार। समय सफलता-मंत्र है, समय महा उपचार। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, ...
यह ज़िन्दगी
कविता

यह ज़िन्दगी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** न जाने क्यों चलते चलते, यह ज़िन्दगी ठहर जाती है। त्याग कर प्राचीनता, नवीनते में झांकती आंखें, छोड़ कटुता, मधुरता को तलाशती आंखें, न जाने क्यों स्वयं गुम हो जाती हैं। न जाने क्यों चलते........ हंसते अधर, अठखेलियां करते थिरकते पांव, तपती धूप से तड़प कर, किसी तरु की ढूंढते छांव, न जाने क्यों इनमें शिथिलता आ ही जाती है। न जाने क्यों....... खिलखिलाते होंठ जब नकार बदहवासियों को, मनाते जश्न जब त्याग उदासियों को, न जाने क्यों आंखे विद्रोही हो जाती हैं। न जाने क्यों....... उडें उन्मुक्त हो, परिंदों से, विस्तृत गगन में, भरे मस्त हो उड़ाने, तितली सी चमन में, न जाने क्यों मस्तियां अवरोधित हो जाती है। न जाने क्यों....... मदमस्त भाव उभरते हैं हृदय पट पर, उभरते हैं नये रंग चित्र पट पर, न जाने क्यों चलती लेखनी सिहर जाती है। न जाने क्यों चलते चलते ज़िन्दगी...
कोई हमारा न हो सका
ग़ज़ल

कोई हमारा न हो सका

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** हमको कभी किसी का सहारा न हो सका।। दरिया ए इश्क में कई गोते लगा लिए अपने क़रीब कोई किनारा न हो सका।। मिलने की कोशिशें भी कई उनसे की मगर उनकी नज़र का कोई इशारा न हो सका कितना उनसे प्यार उन्हें कैसे हम कहें उनसे ज़ियादा कोई प्यारा न हो सका।। दिल में हमारे हर लम्हा उनका मुक़ाम है उनसा मुक़ीम कोई दुबारा न हो सका ग़र नहीं तो ज़िन्दगी जीना मुहाल है। उनके बिना"शलभ"का गुज़ारा न हो सका।। . परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्...
अजनबी – अपने
कविता

अजनबी – अपने

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अजनबी के मोहब्बत से डर गई। अपनों के नफरत से डर गई। किसी के इजहार से डर गई। अपनों के इनकार से डर गई। इसी डर से न अजनबी की हुई, ना अपनों की। दूसरों पर विश्वास ना किया और अपनों की बेवफाई से डर गई । मैं ढूंढती रही सारी रात ,सुबह को और अंधेरे के गहराई से डर गई। . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल प...
बसंत
कविता

बसंत

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बसंत जब आती है। कोयल गीत गाती है। इठलाती है डाली पे आम्र मंजरी में छुप छुप गुप चुप नहीं, आलाप तीब्र कूक की। डाली पे छुप गाती है। बसंत की परिधान में मुस्कान नव नव आता है। अतिरंग में वहिरंग हो। नवरंग जब आता है। निराशा में आशा पतन में उत्थान नवताल नव छंद किसलय से वासंती जब मुस्कुराता है। बसंत के आगमन से सृष्टि नव आता है। मुरझायी हुयी कलियों में कोपल मे नव गंध नव सुगंध भाता बसंत जीवन सूचक है। बसंत अंत मरणासन्न कुछ काल तक ही आता है। ब्रह्म बेला में प्राणदायिनी वायु बन। सुगंध के झरोखों से प्रिये सी अभिनंदन करती हैं। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
उनसे कह दो
ग़ज़ल

उनसे कह दो

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** उनसे कह दो फिर दिलकश बाहर लाया हूँँ लुट गया था जो उनका करार लाया हूँँ उनको देख लूँ बस इतनी सी तमन्ना लेकर जिंदगी से मैं कुछ लम्हे उधार लाया हूँँ उदास क्यों हो क्या जख्म देने बाकी है कदम बढ़ाओ खंजर लो आबदार लाया हूँँ यकीं नहीं तो बस एक नजर काफी है अपनी गुमनामी का एक इश्तिहार लाया हूँँ नुमाइश क्या करूं छोड़ो भी छिपे रहने दो हजारों जख्म है उनमें से बस दो-चार लाया हूँँ मयकदे में जो आया तो तन्हाँ नहीं आया साथ मैं और भी इश्क के बीमार लाया हूँँ इबादत कर रहा हूं मानकर उनको खुदा "शाफिर" तिजारत वो करें उनके लिए बाजार लाया हूँँ . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित क...
चंद लम्हो का हूँ मेहमान
कविता

चंद लम्हो का हूँ मेहमान

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। ढूंढता रहता हूँ अक्सर एक पल सुकून का। जवाब देने लगा अब कतरा कतरा खून का। भीड़ दुनिया की मुझे रास नही आती है। अब तो खुशियां भी मेरे पास नही आती है।। करके अपनों को मैं हैरान चला जाऊंगा... चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। करता रहता हूँ सफ़र रात दिन कमाने को। लोग पीछे पड़े ज़िन्दगी की जंग हराने को।। फिर भी रुकता नही मैं कभी थकता नही। चंद रुपयों के लिए मैं कभी बिकता नही।। करके तेरी गली सुनसान चला जाऊंगा... चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। दिल के हालात बयां करने को अल्फ़ाज़ नही। मेरी ये ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नही।। मैं तो हूँ खुद्दार बड़ी शान से रहना है मुझे। बेहरहम दुनिया से बस यह...
जन्मदिन तुम्हारा
कविता

जन्मदिन तुम्हारा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** जन्मदिन हैं तुम्हारा, यह मेरा पैगाम हैं तुमको जीना जिंदगी अपनी, सब कुछ भूल कर के तुम। अपने अरमानों को पूरा करना, हौंसलों से तुम सब कुछ भूल करके, एक नई शुरुआत करना तुम। अनुभव के ज्ञान से, निष्कर्ष पर पहुंचना तुम ज़िन्दगी का हर एहसास अपनी दृष्टिकोण से देखना तुम। ओंस की बूंदों के जैसें, तुम ही गिरना, तुम संभालना, अपनी ही चेतना से सब कुछ भूल कर के एक नई शुरुआत करना तुम। अब तक जो बितायी ज़िन्दगी, उसे याद रखना तुम किन्तु खुद को मत मिटाना, यह सदैव याद रखना तुम। किसी के यादों में, बातों में, नजरों में, अब उठने की कोशिश मत करना तुम छोड़ दो रूठना, मनाना, जताना, अग्नि परीक्षा देना तुम। ज़िन्दगी एक सफर हैं, अब किसी के लिए रुकना नहीं तुम सब कुछ भूल कर, एक नई शुरुआत करना तुम। जन्मदिन तुम्हारा हैं यह मेरा पैंगाम हैं तुमको जीना ज़िन...