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मां से बड़ी कोई जन्नत नही है…
कविता

मां से बड़ी कोई जन्नत नही है…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जब छोटा सा था तब की बात याद आती है। उस वक्त का मंजर सोच मेरी आँखें भर आती है। सुना है में बचपन में बहुत रोया करता था। सारी सारी रात में सोया नही करता था। सारी रात मां मुझे लोरी सुनाया करती थी। दिन में नींद के झोंके से रूबरू हुआ करती थी। दिनभर वो खेतो में काम किया करती थी। में अकेला हु घर मे इस बात से वो डरा करती थी। मुझे सीने से लगा रखा जब तक मैं चुप ना हुआ। पूछती रही बार बार मुझसे लल्ला तुझे क्या हुआ। मैं बहुत रोता बिलखता मगर चुप नहीं होता था। और फिर अगले दिन टोटके और नज़र उतारने का चलन होता था। बहुत याद आते है मुझको वो बीते हुए दिन। बहुत मुश्किल होता है एक पल भी मां के बिन। ये तो हुई बचपन की बात अब जवानी की और आता हूँ। मेरी माँ के त्याग और बलिदान का एक किस्सा सुनाता हूँ। जैसे जैसे मैं बढ़ता गया मेरी मांग मुझसे बड़ी थी। मुझे ...
हिन्दी की कविता का अवतार
मुक्तक

हिन्दी की कविता का अवतार

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** ये तो हिन्दी की कविता का अवतार है दिल के दर्दों का ये तो उपचार है लिखते-लिखते तो हम बन गए हैं कवि प्यार से लोग पढ़ते ये उपकार है ढलते ही शाम के रात आ जाएगी तुम आ जाओगे प्यास बुझ जाएगी ये तो सफ़र हैं कहाँ तक ले जाएंगे जिन्दगी क्या है तब समझ आयेगी ऐसे ताँका झाँका नहीं कीजिए जिन्दगी को खुशी से जी लीजिए आज हैं हम यहाँ कल कहाँ जाएंगे आप खुद से जरा ये सवाल कीजिए . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भ...
सच को समझे
कविता

सच को समझे

संजय जैन मुंबई ******************** समय बदल देता है, लोगो की सोच को। पैसा बदल देता है, उसकी वाणी को। प्यार बदल देता है, इर्शा और नफरत को। पढ़ाई बदल देती है, उसके बुधिक ज्ञान को। मिलने मिलाने से, मेल जोल बढ़ाता है। तभी तो लोगो में, अपनापन बढ़ाता है। जिससे एक अच्छे, समाज का निर्माण होता है। और लोगो मे इंसानियत का, एक जज्बा जगता है। जिससे लोगो के दिलो में, इंसानियत आज भी जिंदा है। माना कि परिवर्तन से, प्रगति होती है। परन्तु पुरानी परंपराओं से, आज भी संस्कृति जिंदा है। इसलिए भारत देश, विश्व मे सबसे अच्छा है। तभी तो सारे दुनियां की, नजरे भारत देश पर टिकती है। विश्व का सबसे बड़ा, बाज़ार हमारा इंडिया है। यहां के पढ़े लिखे लोगो को, विदेशी उठा ले जाते है। और उन्ही के ज्ञान से, विश्व बाजार को चलाते है। और दुनियाँ की महाशक्ति कहलाते है। और हम उनकी कामयाबी पर, भारतीय मूल का तम्बा लगते है। और इसी मे...
अपने पराये
कविता

अपने पराये

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** अपने भी अब पराये होने लगे हैं, जज्बात भी अब रोने लगे हैं क्या तू भी उन्हें समझता है, जो दूसरों को उलझाने लगे है, उसने जो किया अपने बलबूते पर, उसके किस्से लोग सुनाने लगे हैं, अच्छे बुरे का जो फर्क ना समझे, उसकी गलतियां भी गिनाने लगे है, तरक्की, विकास के मायने समझ लो, मंजिलें, इमारत बनाने में जमाने लगे है, उन इज्जतदारों की इज्जत भी देख लो, साहूकार बनके दूसरों पर उंगली उठाने लगे है, इज्जत बड़ी शर्मिली होती है आबीद वह क्यों मुंह छुपाने लगे हैं, . लेखक परिचय :- ११ मई १९६५ को मंदसौर में जन्मे मिर्जा आबिद बेग के पिता स्वर्गीय मिर्जा मोहम्मद बेग एक श्रमजीवी पत्रकार थे। पिताश्री ने १५ अगस्त १९७६ से मंदसौर मध्यप्रदेश से हिंदी में मन्दसौर प्रहरी नामक समाचार पत्र प्रकाशन शुरू किया। पिता के सानिध्य में रहते हुए मिर्जा आबिद...
बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज
आलेख

बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है। समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने...
मन की वेदना
कविता

मन की वेदना

सुश्री हेमलता शर्मा इंदौर म.प्र. ****************** हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर दृष्टिपात होता है जिधर, कंटक है, नहीं पुष्प्प उधर तन बोझिल है, मन गंभीर, हृदय व्यथित हो रहा अधीर दुविधा तज तू हिम्मत कर, मत घबरा, चलता जा डग भर ।। हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर मन मस्तिष्क में मचा है द्वंद्व, मन व्याकुल कर रहा पुकार कहां गयी संवेदनशीलता, जागो, अंर्तमन की ये चित्कार कौन सुनेगा, किसे बुलाउ, दीन-हीन अब हाथ पसार तन-मन बोल रहा अब, मत सहो वेदना कर प्रतिकार हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर क्या ’भोली’ से बन जाउं विषधर, या संहार करूं बन चक्रधर या बन शारदा, ज्ञान प्रचार, या फिर चण्डी बन पीयु रूधीर, मातृ शक्ति को है आव्हान, छोड राग ले हाथ खडग-तुणीर बन दुर्गा हो सिंह सवार, कर दो नर पिषाच संहार हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर   परिचय :-  सुश्री...
प्यार मैं सबसे करती हूं
कविता

प्यार मैं सबसे करती हूं

डा. उषा गौर इंदौर म.प्र. ******************** प्यार मैं सबसे करती हूं ख्वाइश थी इतनी मेरी इतना कुछ कर पाऊं मैं जो खुशियां मैंने पाई सबसे साझा कर जाऊं मैं बचपन में इतनी ख्वाहिश थी जल्दी बड़ी हो जाऊं मैं बड़ी होकर अपने स्वभाव से सबका दिल बहलाऊं मैं एक अजब सी उलझन बड़े होने पे समझ आई जीना नहीं था अब आसान हंसने में थी सबको कठिनाई कैसा अजीब नजारा था हर कोई दौड़े जा रहा था किसी को किसी की जरूरत नहीं हर कोई भागे जा रहा था सब रेस में जीतना चाहते थे , ना पीछे छूटना चाहते थे यह दौड़ क्या पाने की थी यह अपना हुनर आजमाने की थी कोई नेता कोई अभिनेता कोई गायक कोई लेखक अपने भाग्य को आजमाने भटकते देखे कई शिक्षक पर सब पर शासन करते देखे हमने बड़े-बड़े भक्षक देखती हूं मैं अब ये भी जीवन में किसने क्या खोया जीवन में किसने क्या पाया और खुद को कितना आजमाया जवानी तक तो सब मस्त थे उसके बाद के रास्ते सब...
स्वप्न
कविता

स्वप्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मदमस्त हो दौड़ पडी़ गगन मे पंछी बन, समझ बैठे हमसे हँसी अब कहाँ यह वन उपवन, भूल गयी यह स्वप्न है मिट जायेगा भोर होते ही, खो जायेगे सब नजारे एक ठोकर के आते ही, विचर रही थी गगन मे इतराती नसीब पर, टूट गया स्वप्न फिर हुई तन्हाई मे मगन . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
डिजिटल इण्यिया
कविता

डिजिटल इण्यिया

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा सड़क में गड्ढे हो या पड़े दरार बन जाए चाहे पगडंडियां डिजिटल हो इण्डिया मंगल मूर्ति मोरया ... किसानों की सूखे फसल, या करे आत्म हत्या सूख जाये चाहे भिण्डियां डिजिटल हो इण्डिया मंगल मूर्ति मोरया ... सलमा आशा की जाए जान बदहाल हो चाहे हिन्दुस्तान अस्पताल पर पड़ जाए घुण्डियां डिजिटल हो इण्डिया मंगल मूर्ति मोरया ... बाढ़ से डूबे घर चाहे मरे बिहारी खुश रहें मुरारी यही है देश सेवा डिजिटल हो इण्डिया मंगल मूर्ति मोरया जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा . परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
ख्वाब करना है वो पूरे
कविता

ख्वाब करना है वो पूरे

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे। पलकों की दबिश में, चाहतो ने जोर मारा, उड गई नीदें हमारी, चैन भी खोया हमारा। मंजिलें हमको बुलाती, डालने को है बसेरा। तोड़ दो सब बंधनो को, आगे खडा है नया सवेरा। करो कुछ ऐसे जतन, हो ख्वाब पूरे अपने अधूरे…. ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे।। परिचय :- पारस परिहार निवासी : मेडक कल्ला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद...
मेरी आवारगी
ग़ज़ल

मेरी आवारगी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरी आवारगी को पनाह दे अपने दिल मे जगह तो दे थक चुका अब ये बंजारा रिश्ते को कोई नाम तो दे प्यार के सिवा कुछ नही आता जीने के कुछ उसूल सीखा तो दे इस शहर में हूँ मैं नया नया शीशे का दिल कहा रखु पता तो दे जख्म हरे है सुखाना चाहता हूँ थोड़ी सी तेरे होंठो की नमी तो दे . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
अब नरसंहार करो
कविता

अब नरसंहार करो

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** कालिका रणचंडी बन तुम भी अब नरसंहार करो। बहुत बन गई नाजुक तुम अब न कोई श्रृंगार करो।। उठो जागो ये कहना भी अब नहीं मायने रखता है। खप्पर और खडग लेकर तुम भयमुक्त हुंकार भरो।। नहीं कहुँगी कोमलांगी हो तुम न हो सुंदरता की मूरत। आत्मबल के संग बढ़ तुम वीरता का इतिहास रचो।। शर्म हया के परदे से बहुत झुका लिया पलकें अब। घूरती उस हर नजर को तुम अपने नजरों से भी बेधो।। खुद की रक्षा के साथ उस माँ के भय को भी समझो। आत्मनिर्भर बनाकर जो विदा करती कर्म पथ पर।। सहमी सी रहती वो सुरक्षित तेरे घर वापस आने तक। अब कर रही हर माँ आह्वान अपनी हर इक बेटी से।। आत्मरक्षा के लिए बेटी परंपरा की बेडियो को तोड़ो। बहुत बन गई नाजुक तुम अब न कोई श्रृंगार करो।। . परिचय :-  नाम : अंजना झा माता : श्रीमती फूल झा पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९ जन्म स्था...
कस्तूरी सा चाँद
कविता

कस्तूरी सा चाँद

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** खामोश सा एक महकी हवा का झोंका चांदनी से उतरकर रूह में बस जाता है भीगे अहसासों की झीनी सी रोशनी में नहाया नूर का कतरा सैलाब बन ख्वाहिशों में बिखर जाता है धुंधली सी किरण ओढ़े कोई कस्तूरी सा महका चाँद तुम्हें पाने की चाहत में आसमां से रोज निकल आता है घिरती उदास तनहाइयों में वक़्त जख्मों को रेशमी मोरपंखों से हौले से सहला देता है गमों की तपिश को गुलमोहर का घना साया पंखुरियों में लपेटकर जख्मों पर बिखरा देता है क्यों पूछते हो वक़्त कब देगा जख्मों पर मरहम वक़्त तो खुद को जख्मों का मरहम बना लेता है . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान ४५ पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में नि...
मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
माटी की पुकार
कविता

माटी की पुकार

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मे मिट्टी का कलाकार, निखार सकता हूँ, तराश सकता हूँ, अभूतपूर्ण सुंदरता दे सकता हूँ। कभी दानी कभी भिखारी, कभी देवता बन सकता हूँ मृत को जीवंतता, अप्रितम सुन्दरता, भ्रामक संजीवता दे सकता हूँ। फ्रिज तो बना नहीं सकता माटी का दिया बना सकता हूँ। विद्धत बल्ब तो बना नहीं सकता। प्राकृतिक शैली को, कुछ न कुछ बदला जा सकता हूँ, पर इसे आधुनिकता की भ्रामिक शैली नहीं दे सकता, बस इसी तरह की उथल पुथल में, मेरा अस्तित्व मिटता जा रहा हैं। कला है मेरे हाथों में, पर मिट्टी तराशने को, अपना जीवन नहीं। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन व...
मृत्युदंड क्यों नही
आलेख

मृत्युदंड क्यों नही

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पता चला है कि हैदराबाद में फिर एक बेटी के साथ हैवानियत करने के बाद भी दरिंदों का मन नहीं भरा। तो उसकी लाश को ट्रक के पीछे बांधकर दूर ले जाकर जला दिया गया, तब प्रशासन क्या कर रहा था। क्या नेताओं और समाज के ठेकेदारों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाया जाता है, और दूसरी तरफ हर रोज बेटियाँ दरिंदों की हवस का शिकार बनती जा रही हैं। क्या गलती थी डॉ प्रियंका की? क्या औरत अपना जिस्म लुटाने के लिए ही बनी है? कि जिसका जब मन किया उसे अपने हवस का शिकार बना ले। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमेशा बेटियों की गलतियां निकालते हैं कि कपड़े छोटे पहनना होगें अपना जिस्म दिखा रही होगी। फिर बताइए कि जो बच्ची मां का दूध पी रही है उसके साथ भी क्यों हैवानियत होती है उसे भी दरिंदे नहीं छोड़ते...
नारी अस्तित्व
हाइकू

नारी अस्तित्व

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** बीती रात। सहसा बदले हालात। घायल जज्बात। सपने बर्बाद। अपनो की याद। कैसे हालात। कलयुगी रावण। हवस का दानव। पड़ा भारी। अबला बेचारी। मुसीबत की मारी। थी वह कुँवारी। अँधेरी रात। बिखरा अस्तित्व। टूटी आस। मन उदास। माँ की आशा। हुई निराशा। बेटियां हमारी। कैसे हो सुरक्षित। चिंता भारी। असंख्य आबादी। दुष्टों की आवारी। संकट भारी। बदला समाज। मानवता का नाश। दानव पिशाच। अकेली बाला। कोई ना सहारा। बिगड़े हालात। कानून बनाओ। उन दुष्टों को नपुंसक बनाओ। बेटीयॉ बचाकर। आने वाला कल। सुरक्षित बनाओ। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोस...
आज न जाने क्यों
कविता

आज न जाने क्यों

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** आज न जाने क्यों? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं किसी ने कोई तोहफा न दिया हैं न पीठ थपथपाई हैं फिर भी न जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कोई हसरत न पूरी हुई हैं न कोई अच्छा ख्वाब देखा हैं फिर भी न जाने क्यों ? आसमां में उड़ने का दिल कर रहा हैं गम भी वही हैं तन्हाई भी वही हैं अपनों से मिले तिरस्कार की टीस भी वही हैं समाज के दोगले चेहरों की बात भी वही हैं फिर भी ना जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कई बार खुद को रोका मुस्कुराने से फिर भी मुस्कान आ ही गई होठों पर बहुत देर बाद समझ आया यह न्यूज़ चैनल के सुर्खियों से आई न्यूज की थी (हैदराबाद) जो दुःख की घड़ी में भी हर स्त्री के होठों पर मुस्कान की लालिमा बिखेर गई शायद इसलिए आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं खुले आसमान में उड़ने को कह रहा हैं ....।। . प...
हे नारी
कविता

हे नारी

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** हे नारी सृष्टि की रचना धार चुप न बैठो। समय सतयुग का नहीं है ख़ामोश न बैठो, विनाशकारी कलयुग कुंडली मारकर बैठा है तुम्हें ही क्रांति की तलवार उठाना है, चुप न बैठो। वर्तमान में समाज बहरा है, इंसानियत गूंगी है, ऐसे में अश्रु व्यर्थ न गंवाओ शस्त्र उठाओ चुप न बैठो इस राक्षसी दरबार में तुम किससे आस लगाओगी चंडी बन बलात्कारियों की मुंड मालाएं तुम ही शिव को चढ़ाओगी। चुप न बैठो   परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन एवं विधालय पत्रिकाओं की सम्पादकीय और संशोधन कार्य  आप भी अपनी कवित...
खता
कविता

खता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में, किसने क्या गुनाह किया, कुछ तूने किया कुछ मैंने किया, गुन्हा बराबर दोनों ने किया, दोस्ती जुनून है एक नशा है, जो तूने भी किया और मैंने भी किया, मिले हैं जिस्म और रूह आपस में, तो रस्मो की बंदिशें क्यों है, सुन ऐ दोस्त, ये जिस्म तो सुपुर्द ए खाक हो जाना है एक दिन, फिर ये तेरे और मेरे बीच, रंजिशें क्यों है, हर गम का इलाज नहीं होता मयखाने में, कुछ दर्द यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ, महफिल सजाने में, खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में ! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी ने...
हिम्मत
कविता, नैतिक शिक्षा, बाल कविताएं

हिम्मत

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ तुम कुछ कर सकते हो तुम आगे बढ़ सकते हो। तुममे है बहुत हिम्मत तुम जग को बदल सकते हो। तुम खुद से हिम्मत नही हारना। कभी खुद का भरोसा मत हारना। तुम झूठ का मार्ग छोड़ सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना। मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में बस डट कर सामना करना। तुम ही देश के भविष्य हो यह बात हमेशा याद रखना। आत्मविश्वास बनाए रखो तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे अपनी प्रयास तुम जारी रखो एक दिन जरुर सफल हो जाओगे। तुम करना कुछ ऐसा की, सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए। तुम बनना ऐसा की महानों की, महानता भी कम पड़ जाए। तुम रखना हिम्मत इतना की, वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए। तुम बनना इतना सच्चा की हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार...
राह कहाँ छोड़ी है
कविता

राह कहाँ छोड़ी है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** आज छोटी उड़ाने गगन चूम लें मिलकरके ऐसा एक संकल्प लें जीत मिलती सदा उन्हीं को यहाँ जो अपने हौंसलों को दृढ़ कर लें लोग कहते हैं कर पाएगा ये क्या अपने जज्बातों को दिखा दो यहाँ भरा है क्या मेरे दिल में जुनूँन सफलता इन्हें भी दिखा दो यहाँ अभी काम व पहचान छोटी है शोहरत की गली थोड़ी छोड़ी है चलते जाएँगे बढ़ने की राह में सफलता की राह कहाँ छोड़ी है . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, ...
डॉ प्रियंका रेड्डी की पुकार
कविता

डॉ प्रियंका रेड्डी की पुकार

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। वो चार मैं अकेली थी, चीखी और चिलाई थी, लेकिन उन दरिंदों को जरा रहम ना आई थी। याद है मैं एक डॉक्टर थी, लाखो की जान बचाई थी। पर न जाने बुरे वक्त पे मुझे न कोई बचाया था बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। देख अब मानव के तन से मानवता ही चली गई, कांप गईं मेरी रूह भी आग में जिंदा जली गई। जब उन दरिंदों ने मेरे जिन्दे शरीर पे आग दिए, हम तो वह तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए। छोटी सी उम्र में माँ-बाबुल का जग में मान बढ़ाया था बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। करना जब इंसाफ तुम तब न्याय का पर्दा हटा देना, बिना सोचे समझे उनको फांसी पर लटका देना। तोड़ देना अब त...
मन मेरा डर जाता
कविता

मन मेरा डर जाता

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मै सोई थी, जगा गया वह हौले से, देखो अब मै आ गया बोला कानो में हौले से, क्यों उदास होती है अब तू, मै तेरा तू मेरी है क्यों भरती नयनो मे आँसू, क्यों चौक-चौंक उठ जाती है। मै बोली तेरे बिन कान्हा, नही चैन मुझे आता है, न भाते यह रास रंग, न सोना ही अब भाता है। जब तू छुप जाता है कान्हा, मन मेरा डर जाता है, न जाने किस डर से कान्हा, हिलक हिलक दिल रोता है, तू कहता है तू मेरा है, फिर क्यो तू तड़पाता है, देख के मेरे ब्यथित ह्रदय को, क्या चैन बहुत तू पाता है, एक यही ख्वाहिश है मेरी, मै तेरे संग रहूँ सदा, जब चाहूँ मै तुझे निहारूँ, कभी न हो तू मुझसे जुदा, वादे बहुत किये है मुझसे, अब यह भी वादा कर दे, हाथ पकड़ लेगा तू मेरा, अन्त समय मे आकर के अन्त समय में आकर के।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने...
प्रियंका रेड्डी को समर्पित
कविता

प्रियंका रेड्डी को समर्पित

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मोमबत्तियां लेकर चलने से कुछ नही होता है। क्या बताऊँ की आज हर पिता घर बैठा रोता है।। ये वाकया पहला नही जो चुप होकर रह जाऊं मैं। मरहम की उम्मीद नही जो सबकुछ सह जाऊं मैं।। क्यों प्रशासन है मौन अब सुनेगा इनकी कौन? अब हर गली का आवारा बनता जा रहा डॉन।। क्या अब भी हम चुप रहने में विश्वास रखते है। गर चाहे तो हम मिलकर क्या नही कर सकते है।। पहले हुआ करता था रहना जंगल मे दरिंदों का। मगर शहर अब भरा पड़ा कई ऐसे बाशिंदों का।। जाने कितनी मासूमो को वहशियों ने लूटा है। बेटी बचाओ का नारा तो लगता अब झूठा है।। मां बहन की इज्जत करना बेटों को सिखाओ। पढ़ाई के साथ घर मे एक पाठ ये भी पढ़ाओ।। नारी होती है समाज व घर को स्वर्ग बनाने वाली। हर रूप में तो रहती है ये इसकी बात निराली।। वो अहिल्या सी निर्दोष मां सीता सी पावन है। वो रंगोली का रंग तो झू...