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नारी अस्तित्व

वन्दना पुणतांबेकर
(इंदौर)

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बीती रात।
सहसा बदले हालात।
घायल जज्बात।

सपने बर्बाद।
अपनो की याद।
कैसे हालात।

कलयुगी रावण।
हवस का दानव।
पड़ा भारी।

अबला बेचारी।
मुसीबत की मारी।
थी वह कुँवारी।

अँधेरी रात।
बिखरा अस्तित्व।
टूटी आस।

मन उदास।
माँ की आशा।
हुई निराशा।

बेटियां हमारी।
कैसे हो सुरक्षित।
चिंता भारी।

असंख्य आबादी।
दुष्टों की आवारी।
संकट भारी।

बदला समाज।
मानवता का नाश।
दानव पिशाच।

अकेली बाला।
कोई ना सहारा।
बिगड़े हालात।

कानून बनाओ।
उन दुष्टों को
नपुंसक बनाओ।

बेटीयॉ बचाकर।
आने वाला कल।
सुरक्षित बनाओ।

.

लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि :
५.९.१९७०
लेखन विधा :
लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा :
एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:-
बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद, 
कविताएं :-
वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन :
भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान :
“भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा


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