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आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जयंती एव कविवर स्व.महेश “राजा” स्मृति सम्मान समारोह सम्पन्न
साहित्यिक

आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जयंती एव कविवर स्व.महेश “राजा” स्मृति सम्मान समारोह सम्पन्न

धार : अखिल भारतीय साहित्य परिषद जिला इकाई धार के तत्वावधान में रामायण रचयिता आदकवि महर्षि वाल्मीकि जयंती के परम पुनीत अवसर पर दिनांक १३ अक्टूबर २०१९ को शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय के विशाल सभागार में आयोजित कविवर महेश "राजा" धार स्मृति सम्मान समारोह वरिष्ठ कथाकार श्री निसार एहमद की अध्यक्षता, प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मंचीय कवि श्री गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण" के मुख्यआतिथ्य, तथा वरिष्ठ अभिभाषक श्री श्रीवल्लभ विजयवर्गीय धार, उस्ताद शायर श्री रशीद एहमद "रशीद" धारवी इन्दौर, ओजस्वी कवयित्री श्रीमती प्रतिमा तोमर इन्दौर के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। कायर्क्रम का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ शारदा के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन चित्रपर माल्यार्पण एवं कवयित्री एवं शायरा श्रीमती अनीता आनन्द के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। इस अवसर पर पधारी कवयित्री ...
नदी
कविता

नदी

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) कलकल बहती है निरंतर नदी, पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी। स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती, अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती। कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण, मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन। सिख लेकर नेक राह बढाए कदम, अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम। रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम, हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...
पागल
कविता

पागल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हर पल मुस्कुराता गुनगुनाता लोगो ने कहा पागल है राह के कंकर पत्थर बिनता लोगो ने कहा पागल है भरी धूप में पौधों को सींचता लोगो ने कहा पागल है अपना खाना कुत्ते को खिलाता लोगो ने कहा पागल है आते जातो को नमस्कार करता लोगो ने कहा पागल है रातो में जागता सिटी बजाता लोगो ने कहा पागल है बुजुर्गों को हँसाता सहारा देता लोगो ने कहा पागल है बच्चों के साथ नाचता कूदता लोगो ने कहा पागल है हर एक खुशी में शरीक हो जाता लोगो ने कहा पागल है अर्थी पीछे गुमसुम मरघट जाता लोगो ने कहा पगला है मंदिर, मस्जिद, चर्च घूम आता लोगो ने कहा पागल है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में...
जिसे चांद कहते रहे
कविता

जिसे चांद कहते रहे

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** साल भर हम जिसे चांद कहते रहे, आज उसने हकीकत में झुटला दिया। मैं तो हूं रोशनी आंखों की पिया, चांद कहकर गले से लिपटा लिया।। इन सांसों में खुशबू महकती तेरी, तेरी यादों में खुशियां चहकती मेरी। जिस दिन मुलाकात होती नहीं, रूह तड़फे और काया दहकती मेरी।। सात जन्मों का बंधन नाता किया।।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. मैं दूर होकर भी कब दूर हूँ, इस जमाने के हाथों मजबूर हूँ। धड़कन हो मेरे दिल की प्यारे सनम, तू मेरा नूर है मैं तेरी नूर हूँ।। मेरी पूजा का रोशन, तुम्हीं से दिया।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, क...
“गणित ज्ञान को गाइये” में है सरलता
साहित्य समाचार

“गणित ज्ञान को गाइये” में है सरलता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** डॉ  दशरथ मसानिया का संग्रह "गणित ज्ञान को गाइये" शिक्षा की हर बात  की गहरी पड़ताल की जाकर बेहतर तरीके से  अपनी  वैचारिक गणित की रोचकता को सरलता प्रदान की जाकर भावनाएं व्यक्त की है। वर्षो से साहित्य की पूजा करते आ रही डॉ दशरथ मसानिया ने ज्यादातर चालीसा के जरिए के ताने बानों को प्रेरणा स्वरुप ढाला है । समय-समय पर तमाम हो रहे परिवर्तनों पर प्रत्यक्ष गवाह बन के उभर रहे हो | गणित ज्ञान को गाइये की विशेषता है कि वो मन को छूता है और पठनीयता की आकर्षणता में बांधे रखता है | डॉ मसानिया के ह्रदय अनुभव ख़जाने में श्रेष्ठ विचार का भंडार समाहित है जो समय-समय पर हमे ज्ञानार्जन में वृद्धि कराता आया है ।इनको कई पुरस्कार एवं निजी चैनल पर इंटरव्यू शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर समझाइस की विधि के लिए प्राप्त हो चुके का प्रसारण समय समय पर जारी है। लेखन की ...
मैं तेरे दिल की गुड़िया
कविता

मैं तेरे दिल की गुड़िया

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला हैं। अगर माँ की गोदी है, तो बाबा ने दुलारा है। मुझे है प्यार दोनो से, मगर ये भी हकीकत है। मैं चिड़िया हूँ आंगन की, पराये घर जाना है। मैं जब माँ बनती हूँ, तो बेटी की याद आती हैं। जब मैं बेटी बनती हूँ , माँ की याद आती हैं। मैं दोनो की ममता हूँ, मुझे दोनो ही प्यारी है। इधर माँ भी प्यारी है , उधर बेटी भी प्यारी है। मुझें दोनो की हालत एक सी मालुम पडती हैं। इधर माता की ममता है, उधर बेटी दुलारी हैं। मुझे हर बक्त ही नैहर की वो दिन याद आते हैं। कभी आंगन में खेली थी, कभी शाला में पढ़ती थी। इधर ममता की पीड़ा है, उधर बेटी की चिंता है। मैं तेरे दिल की गुड़िया हूँ, जिसे बाबा ने पाला है ..... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा :...
अनगिनत यात्राएं
कविता

अनगिनत यात्राएं

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** पिता ने की अनगिनत यात्राएं पर जा नहीं पाए दूरस्थ जगहों पर इस डर से कि हमें कहीं कुछ कम न पड़ जाए साधन की बहुत कमी के बगैर भी मुल्तवी करते गये घूमने का शौक देखते रहे सपनों में हरियाली भरे पर्यटन स्थल चीड़ के वन बर्फाच्छादित उपत्यकाएं बताते रहे प्रसंगों से जोड़कर माँ के साथ संपन्न चुनिंदा यात्राओं का रससिक्त वर्णन उनकी यात्राओं में अक्सर  आड़े आता रहा हमारा बचपन या हमारी पढ़ाई और एक दिन जब हम सब बड़े हो गये  नहीं रहा  हमारी कमी का डर और रह गया उनके पास समय ही समय हमने देखा पिता के शौक को भी अंतिम सांसे लेते हुए एक दिन पिता की तरह   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठ...
करवा चौथ और मृत्यु की जंग
कविता

करवा चौथ और मृत्यु की जंग

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** उसकी जीवन मृत्यु की जंग चल रही थी, मेरी अर्धांगिनी मेरी जिंदगी मांग रही थी, केंसर की काली घटाएँ उसे रंग रही थी ऐसे में भी भारतीय संस्कृति टँग रही थी। करवा चौथ का पवित्र पर्व था, उसके लिए पति व्रत धर्म था, थका शरीर जर्जर हो तप रहा था, फिर भी उसका हौसला बढ़ रहा था। मुझे तिलक लगा टक-टक एक टक देख रही थी, चेहरे की बनावट गड़बड़, आंखों में सैलाब भर रही थी, जल पिला पूछ ही रहा था कि चक्कर से आंखे चक्रा रही थी, चलनी में चेहरा देख बून्द-बून्द अश्क बरसा रही थी। वह मेरी लम्बी उम्र की कामना कर व्रत-उपवास रख भूख सह रही थी, खुद के प्राण अटक-अटक कर रहे वह मुझे देख रही थी, मजबूर पति था,अपने आंसु ओं का घूंट गटकते वह देख रही थी, मेरे बच्चों के साथ मेरे पति का क्या होगा शायद वह सोच रही थी ? रो-रही थी जिंदगी,रो-रहा था प्यार विमर्श को, वह झुकी परम्परा...
हे मिसाइल मानव
कविता

हे मिसाइल मानव

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** हर्षित है आज यह नभतल। याद कर वो सुनहरा कल।।अग्निमानव का कर रहा सहर्ष स्वागत। मानो कहता हो यह सकल जीव-जगत।। अर्पित कर दिया जिसने अपना जीवन। आओ मिल हम उन्हें करें नमन।। कर अर्पित हृदयतल से उनको श्रद्धार्पण। हे अग्निमानव मेरा भी नमन करें स्वीकार। हे माँ भारती के आदरणीय सजग पहरेदार।। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
जीवन का कड़वा घूंट
कविता

जीवन का कड़वा घूंट

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** जीवन का घूंट है कड़वा शिकवा न कीजिए, मौन से स्वीकारें या समझौता कीजिए। गर्दिशों में तबाही का मंजर देखा, मुकद्दर के खेल में भी दुआओं का असर देखा। मेरे शब्दों से आप का दिल छू जाएं , इत्तफाक ही है सोचती हूँ लिखा जाए। दर्द बयां करने को हम बेताब थे, पर किसी ने पूछा ही नही हम खामोश क्यों थे। दूर रहने पर भी यह खबर दिलको सुकून देता है, तुम्हारी खैरियत जानने के बाद रूह को ठंडक दे जाता है . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हम...
मधुवर्षण
कविता

मधुवर्षण

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम दहन वो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पू...
लोकतंत्रीय तानाशाही
आलेख

लोकतंत्रीय तानाशाही

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** भीड़तंत्र की, 'लोकतंत्रीय तानाशाही' पढ़कर और सुनकर अनेक लोग हैरान हो सकते हैं और उन्हें यह विषय हास्यास्पद भी लग सकता हैं, परन्तु वस्तुस्थिति यह हैं कि हम लोकतंत्रीय तानाशाही की ओर बढ़ रहें हैं, जहाँ किन्ही चयनित या निर्वाचित कुछ ख़ास व्यक्तियों को व्यवस्था रूपी तंत्र निर्णय लेने के सारे अधिकार सौप देती हैंI एक दो व्यक्ति, चाहे घर हो या बाहर, या हो राष्ट्र में, योग्य निर्णय लेने की असीम एवं निष्पक्ष क्षमता नहीं रख सकते, बल्कि यह कहें कि सुचारू व्यवस्था के लिए और नित नयी समस्याओं के समाधान हेतु किसी एक या दो व्यक्तियों को योग्य और सक्षम निर्णय लेना संभव ही नहीं हो सकता I लोकतंत्रीय तानाशाही में सलाहकार भी एक वृत्त और उसकी परिधि की चकाचौंध से भ्रमित हो उन्हें योग्य सलाह देने का साहस ही नहीं जुटा पाते, क्योंकि उन्हें हमेशा यह भय सताता रहता ह...
मां
कविता

मां

महक देवलिया सागर मध्य प्रदेश ******************** कैसे बताऊं थाह मैं उस त्याग मई व्यक्तित्व की, जिसने सर्वस्व त्याग दिया, है समर्पण ही छवि जिसकी। है रागिनी वह चांद की, और ताप है वह सूर्य का, कैसे बताऊं शौर्य में, संसार के अस्तित्व का। सार है जो श्वास का, परिभाषा है जो प्रेम की, कैसे बताऊं भावना, ममता के उस जल धाम की। संसार है संतति की जो, जो प्राण है परिवार की, कैसे बताऊं अनिवार्यता, परमात्मा के रूप की। नीरब है जग, बिन ममता के, कैसे बताऊं मां तुझे, अमृत है बिष बिन आपके। . लेखक परिचय :-  सागर मध्य प्रदेश की निवासी महक देवलिया कक्षा 11वीं में पढ़ती हैं, हिंदीसहित्य पढ़ने व कविताएं लिखने में आपकी रूचि हैं ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
तन्हाई बेबस
कविता

तन्हाई बेबस

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** ख्वाबों की दुनियाँ भरी है जिन्दगी गम से भरी है गम भरे हालात में जीकर गुज़ारा कर रहे... जीतना ही जीत जिसको लग रही... क्या बताएं ख्वाब दिल में दिन ब दिन नए उग रहे... हर तरफ़ तन्हाई बेबस लोग चलते जा रहे मैं अधूरा था अभी तक पूरा खुद को कर रहे... देख जालिम ये जमाना बेरहम हर ओर है क्या से क्या सपने गढ़े थे दिख रहे कुछ और हैं... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
आलेख, धर्म, धर्म-आस्था

सौभाग्यवती स्त्रियोँ का पर्व करवा चौथ

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** हिंदुओं का पवित्र त्योहार करवा चौथ सम्पूर्ण देश मे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक  सभी महिलाएं करवा चौथ का व्रत अवश्य करती है। उनमें बड़ी श्र्द्धा व विश्वास उत्साह के साथ सौभाग्यवती स्त्रियां इस पर्व को मनाती हैं। इस पर्व को होई अष्टमी  या तीज की तरह ही उल्लास से मनाया जाता है। पति की दीर्घायु व  अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। दिन भर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद  ही भोजन का विधान है। अपने परिवार में प्रचलित परम्परा के अनुसार ही करवा चौथ महिलाएं मनाती है।लेकिन निराहार बिना जल ग्रहण किये दिन भर महिलाएं उपवास रखती है। चन्द्रोदय होने पर पूजा करती है। अर्ध्य देती है। फिर आंक में अपने पति का ...
वो याद आते हैं
कविता

वो याद आते हैं

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं अपने दिल की धड़कन में उसी का नाम लिखती हूँ उसी का नाम लिख लिख कर उसी को याद करती हूँ। उसे क्या फर्क पड़ता है मेरे होने न होने से, मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने में। मेरे ही साथ रहने का जो वादा कल किये थे तुम, मुझे वो याद है अब भी.... सदैव तुम दिल में रहते हो। मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने मे.... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
कृत्रिम संकल्प
कविता

कृत्रिम संकल्प

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll फोटो खिंचवा के दिखाने का l एक दिन सुर्खियां में आने का ll सेल्फी खिच, इंसान मुस्कुराए l धरा चिंतित, पौधे मुरझाए ll कब बड़े होंगे छोटे पौधे l बूढ़े पेड़ चिंतित खड़े ll सोचने को मजबूर हुए पेड़ l सब एक दिन के माली खड़े ll कौन पानी - कौन खाद देंगा l ये कैसा संकल्प लिया इंसान ll कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास :-  सिवाना, जिला - बाड़मेर (राजस्थान) सम्प्रति :- वरिष्ठ अध्यापक सम्म...
लोरी माँ की थी
कविता

लोरी माँ की थी

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** जिसे पकड़कर चला मैं वो उंगली मां की थी जिससे चिपका रहा हरदम गोदी मां की थी आज क्या है विराने मे अकेला हूं तड़पता मै मै रोके आंसू था पोछता वो चुनरी माँ की थी मुझे इस हाल में अब कौन समझाने को बैठा है दूध पीते निकाला करता नथुनी मां की थी मैं तड़पा हूं तड़पता हूं मेरी मां तेरे लिए पड़ी थी कोने मे शायद कपड़ों की गठरी माँ की थी वक्त बदला और मैं भूल बैठा उस जमाने को रात को नींद ना आती तो वो लोरी माँ की थी जहां हमारे सारे खर्चे पुरे होते तिजोरी मां की थी कभी खूट में बांध के रखती वह चोरी मां की थी जाना होता मेला या कोई सैर शहर की हो कोमल हाथों से पकी हुई कचोरी मां की थी छोटे थे तो खो जाने का डर था अक्सर खड़ी भीड़ तक दरवाजे से आयी वो टेरी मां की थी आजा आ जा मत जा लल्ला हट करता है प्यार भरे शब्दों की सुंदर जोड़ी मां की थी. परिचय :...
अपने-पराये
कहानी

अपने-पराये

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ********************   खुशीनगर में मोहन काका रहते थे। वे शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी, सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले और खुशमिज़ाज व्यक्ति थे। इसी गाँव में मनसुख बाबा का आश्रम था, बाबा हमेशा प्रसन्नचित्त रहते थे। बाबा के मुखमण्डल का तेज व मुस्कराहट को देख हर किसी व्यक्ति का चेहरा इस कदर खिल उठता मानो सूर्य-किरण पड़ते ही कमलिनी खिल उठती हैं। प्रसन्नता महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना जाता है। बाबा ने क्रोध व अहं पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनमें लोगों को खुश करने की कला थीं गर गाँव में कोई भी व्यक्ति नाखुश मिल जाता तो वे उनके रहस्य जान कर उसके मुखमण्डल पर प्रसन्नता की लकीरें खींच देते। बाबा की मान्यता थी कि, दरअसल भगवान मंदिर, मस्जिद व गिरजाघरों में न होकर दीन-दु:खियो व पीड़ितों के दर्द भरी आह के पीछे की मुस्कान में वास करते हैं।...
पूरी बस्ती में अँधेरा है
कविता

पूरी बस्ती में अँधेरा है

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** पूरी बस्ती में अँधेरा है, ना जाने कहाँ घर मेरा है चलो मन्दिर चलते है, पर वहा भी चोरों का बसेरा है रातों के जुगनु किधर जा रहे हैं, पीछा करो शायद वहीं पर आगे सवेरा है बस्ती में सभी घरों में छिपे बैठे हैं घरों के बाहर चोरो का पहरा है सारे चोर बस्ती में सूरज बाटते फ़िरते है जिनके अपने खुदके घरों में, अंधेरा है सभी रांझे को पत्थर मार रहे थे उनमें भी जो सबसे बड़ा पत्थर है वो मेरा है अब किनारे पर है तो उतर भी जाएंगे अंदर तुम पता तो करो कि पानी कितना गहरा है अँधेरे में न जाने किसका हाथ पकड़े हो मरीजों पर वेद, हाकिमों का चेहरा है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय ...
बारिश के बाद
कविता

बारिश के बाद

प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) ******************** जब कई दिनों की बारिश के बाद वो प्यारी सुनहरी सी धूप खिली मन किया गले लगा लू इसे बताऊँ की कितना याद किया तुम्हें .. हालाँकि मैं जानती हूँ कि नाराज़ हो, पिछली गर्मियों में तुमपर गुस्सा करती थी तुमने भी तो कम परेशान नहीं किया पर अब छोड़ो ना सब जाने भी दो दुनिया में सभी ऐसा ही तो करते हैं अपनी तकलीफ़ मे ही किसी को याद हाँ.... बस उतनी ही देर... क्यूंकि उसके बाद तुम बोझ सी ही लगोंगी फ़िर तुमसे बचने की कोशिश के आलम मेरी गलती नहीं हैं... दस्तूर ही यही है.. ज़रूरत के हिसाब की मोहब्बत लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
वो लड़की
कविता

वो लड़की

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये कविता मैंने झाबुआ के राजनैतिक, सामाजिक, पृष्ठभूमि को केंद्र में रख लिखी है, वनवासी जनो के दोहन, शोषण, सरलता, सपने, कुरीतियों को शब्दों में पिरोया गया है, कृपया ध्यान से पढ़ कविता के मर्म महसूस करे, कविता की नायिका १६,१७ साल की नवोढ़ा है ... टूटी हुई खपरैल की छत से आती सूरज की रोशनी देख पट रहित दरवाज़े से बाहर आकर ,चारो तरफ देख धूप अभी गर्म नही हुई सोचती है, वो लड़की। बदरंग होते मटके के पेंदे में कपड़े की चिन्धी को ठूस छिद्र बंद कर, हैंड पम्प के नीचे रख बारम्बार हत्थे को चलाने पर पानी की एक बूंद नही निकली वोट मांगने वाले बाबा जैसे हो गया है हैंड पंम्प जो बरसात में ही पानी देता है। सोचती है वो लड़की। तीन हफ्ते पश्चयात स्कूल में मास्टरनी बाई आई थी दलिया अच्छा बना था उसमे तेल और गुड़ मिला होता तो और मजा आता सोचती है, वो लड़की। कल गाँव मे ...
अधिकारी दामाद
लघुकथा

अधिकारी दामाद

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** प्रिया बैठक में गुमसुम बैठी थी, उसे पता नहीं चल रहा था - रंजन से कैसे जिक्र करे माँ के आने का। क्या शादी के समय हुई घटनाओं को भूलकर सहजता से व्यवहार कर पायेगा रंजन माँ के साथ। माँ की सोच भी तो कुछ गलत नहीं थीं अपनी बेटी के लिए अपने सामाजिक स्तर का ही दामाद चाहतीं थीं। सरकारी अफसर की बेटी का हाथ अपने भविष्य निर्माण में लगे निजी संस्था के कर्मचारी के हाथ में कैसे दे देतीं। अब ये अलग बात थी कि रंजन की पारिवारिक स्थिति से प्रभावित होकर दोनों के दिल में प्यार के बीज माँ ने ही डाले थे। प्रिया के पापा रंजन के ही घर की गली में आलीशान मकान खरीदे और पूरे परिवार को स्थायी रूप से रखकर अपने कार्य स्थल पर चले गए। रंजन के पापा भी उच्च पदासीन पदाधिकारी,बड़े भाई शहर के नामी चिकित्सक। उनका मकान भी कुछ कम आलीशान नहीं था। उसमें सोने पर सुहागा ये कि जात बिरादरी ...
एक भी लम्हा नहीं …
कविता

एक भी लम्हा नहीं …

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर मध्य प्रदेश ******************** बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर पकड़ में किसी के एक भी लम्हा नहीं ... तन्हा सभी है दुनिया में पर कोई तन्हा नहीं ... दिखाते तो हैं हम की खुश हैं पर हुआ कभी मन का नहीं ... हुस्न देखे जमाने में कई तारीफे काबिल जिसकी थी चाह उसका कंगन कभी खनका नहीं ... इशारे तो मिले बहुत जिंदगी से हमे पर ये सर है की हमारा कभी ठनका नहीं ... फूल पर आता है भंवर पराग रस पीता है प्रेमरस अर्पण पर भी हुआ भंवर कभी उपवन का नहीं ... अपने दिल की आप सुध लो कही जो शूल मन मै उठी क्या भला और क्या बुरा है ये दोष पवन का नहीं ... बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर .....!! . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyotthan.Com (DNN) सचिव- दिव्य...
श्रम जल से उपजा कण हूँ
कविता

श्रम जल से उपजा कण हूँ

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर कण कण का संयोजन कर संरक्षण कर संवर्धन कर धरती को जीवित रखने का कोई तो कर प्रबंधन कर ढेरों में भी परिवर्तित हो अन्न कण कण संवर्धित हो जीवन का अटल सूत्र है ये जीवन हित इसका अर्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर ग्रह वातावरण मधुरतम हो मन से मन का अनुबंध रहे श्रम जल को करता नमन कोटि मेहनतकस का आबंध रहे वसुधा के आंचल से उपजे कण का संचित आवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर दिनकर की तीव्र तपन सहकर हठकर बाकी है कहता अल्पित मन भावों में वहकर नीचे संघर्षों में रहता है अंतस में है जो कृषक हेतु उन त्रुटियों का परिमार्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर सिरमौर रहे हर ठौर रहे धन धान्य धन्य तो मान्य रहे जीवन यापन में लिप्त रहे अल्पित धन जन सामान्य रहे प...