नूर का दरिया
जीत जांगिड़
सिवाणा (राजस्थान)
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नज़रों ने तेरा चेहरा देखा,
नूर का दरिया गहरा देखा।
चलते फिरते एक चांद पे,
घनी घटा का पहरा देखा।
कारवां मासूम दिलों का,
तेरी बस्ती में ठहरा देखा।
तेरी गलियों में आते जाते,
होता दिल आवारा देखा।
झील सी नीली आंखों में,
घुलता एक इशारा देखा।
सुर्ख लाल गुलाब खिलाते,
गुलशन का नजारा देखा।
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लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा
निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान)
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