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नूर का दरिया
कविता

नूर का दरिया

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** नज़रों ने तेरा चेहरा देखा, नूर का दरिया गहरा देखा। चलते फिरते एक चांद पे, घनी घटा का पहरा देखा। कारवां मासूम दिलों का, तेरी बस्ती में ठहरा देखा। तेरी गलियों में आते जाते, होता दिल आवारा देखा। झील सी नीली आंखों में, घुलता एक इशारा देखा। सुर्ख लाल गुलाब खिलाते, गुलशन का नजारा देखा। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
आचार्यश्री से प्रार्थना
गीत

आचार्यश्री से प्रार्थना

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l सच की डगर दिखा, गुरुदेव प्रार्थना है l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणमl ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll हम है तुम्हारे बालक, कोई नहीं हमारा l मुश्किल पड़ी है जब भी, तुमने दिया सहारा l चरणों में अपने रख लो, चन्दन हमें बना दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l१l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll पूजन तेरा गुरवर, अधिकार मांगते है l थोड़ा सा हम भी तेरा, बस प्यार मंगाते है l मन में हमारे अपनी सच्ची लगन जगा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l२l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll अच्छे है या बुरे है, जैसे भी है तुम्हारे l मुंकिन नहीं है अब हम, किसी और को पुकारे l अपना बन लो हमको, अपना वचन निभा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l३l ॐ ...
किसी को ज़ख्म दूँ
ग़ज़ल

किसी को ज़ख्म दूँ

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** किसी को ज़ख्म दूँ ऐसा हुनर आता नहीं मुझे पहले की तरहा अब वो बुलाता नहीं मुझे दिल खोलकर बातें तमाम करते थे रातभर अब पुछता हूँ फिर भी बताता नहीं मुझे इतना चढा हूँ बार बार दारो रसन पर हादसा कोई भी रूलाता नहीं मुझे आजमाया है बहुत भरी बरसात का मौसम अश्कों के जैसा वो भी भिगाता नहीं मुझे इल्ज़ाम से मैनें यूँ बरी सबको कर दिया पीता हूँ ख़ुद ही कोई पिलाता नहीं मुझे कडवा है सच बहुत मुझे होनें लगा यकीन क्योंकि वो अपनें मुहँ अब लगता नहीं मुझे मैं जाग जाता हूँ ख़ुद ही "शाफिर" सुबह लेकिन माँ की तरहा अब कोई जगाता नहीं मुझे . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित...
चाँदनी
कविता

चाँदनी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** शरद चाँदनी के जैंसी तुम हर रोज चमकती हो पगली उसकी किरणों की आभा सी तुम रोज दमकती हो पगली तुम हर रोज चाँद सी लगती हो अनुपम अपनी काया ले करवा चौथ का चाँद देख तुम जो मेरी उम्र बढ़ाती हो राज की बात बताऊं तुमको सच तो यह हैं! साथ तुम्हारा पाकर पगली मेरी उम्र हर रोज हैं बढ़ती चाँद रश्मि के जैंसी तुम खीर की जैंसी मीठी तुम शरद चाँदनी के जैंसी जो हर रोज चमकती हो पगली जो हर रोज चमकती हो पगली ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मे...
क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को
कविता

क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** जिनके नाम का इस जगत में देख हुवा उजाला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। भले ही आगे बढ़ जायेगा दुनिया के व्यापार में , नहीं मिलेगी वो खुशी जो मिलती इनके प्यार में । कुछ नही मिलने वाला इस कलयुग के बाजार में , आज़ा फिर से लौटकर उन खुशियों के संसार में । छोड़ दिया वो दामन कैसे जो जनन्त से निराला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। जैसे जैसे तू बड़ा हुवा, उनका भी सपना खड़ा, लेकिन वो सपना टूट गया , जब साथ तुम्हरा छूट गया ढूढं रहे हो जो तुम वो अब आएगा ना हाथ मे , भूल गये वो दिन कैसे जो गुजरे उनके साथ में दर दर ठोकर खाओगे वो दिन अब आने वाला है । क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। तेरी खुशी देखकर जिन्होंने दुःख झे...
सुप्रभात
कविता

सुप्रभात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** ”निशा के गर्भ से हो गया है, आज़ सुप्रभात का श्रीगणेश, भास्कर की किरणोँ से, नहीँ अब, अँधकार का अवशेष, पँछीयोँ के मधुर गान से, गुँजायमान है, सारा परिवेश, प्राणियोँ मेँ स्फूर्त हुआ, ऊर्जा का नवीनतम, समावेश, भजन गातीँ प्रभात फेरीयाँ, देती ह्मेँ यह सुखद सँदेश, जागो ऊठो, दूर करो, तनमन से आलस का, शेष, बागोँ, खेतोँ मेँ बिखरी है, बसँत की नव बहार, नये कार्योँ का श्री गणेश करो, नव शक्ती की है, यही पुकार, देवी सरस्वती का ध्यान करेँ, पायेँ उनसे सदबुद्धी का उपहार." . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
जम्मू उधमपुर
यात्रा वृतांत

जम्मू उधमपुर

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************* कुदरत बेहद ही खुबसुरत है , मगर उसकी खुबसूरती को बनाए रखना मानव पर निर्भर करता है . जम्मू उधमपुर शहर हमारे भारत का हिस्सा है . पहाड़ों की नगरी . जम्मू का नाम सदैव कश्मीर घाटी से जोड़ा जाता है , जिसे कभी धरती का स्वर्ग माना जाता था मगर बटवारे के बाद से राजनैतिक लिए गए फैसलों ने कश्मीर मुद्दे को कभी खत्म होने नही दिया .देखते देखते धरती का स्वर्ग उजड़ता चला गया . हर वक्त खौफ के साय में ऱहती आवाम की हालात किसी से छूपी नही है , जिसका असर जम्मू , उधमपुर में देखने को भी मिलता है . हर गली चौहारे पे फौजी दिखाई देते है. अभी हाल ही में भांजे की शादि में उधमपुर जाना हुआ क्योंकि हमारे पूर्वज कौटली , मीरपूर से है तो हमारी बिरादरी के बहुत से लोग जम्मू , उधमपुर शहर में बसते है . दिल्ली से जम्मू हम अपनी कार में ही गए . हाई वे का रास्ता अच्छा है , किसी तरह की कोई प...
घर की शान बेटियां
कविता

घर की शान बेटियां

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** निकालिये अपने मन से हर एक बुराई को, आजसे ही बनिये एक जासूस बिना तन्खा के, नौकरी करिए साहब इन बेटीयो को बचाने की। नौबत ना आये इनको भूखा सुलाने की, नौबत ना आये इनको ज़िंदा जलाने की।। ये बेटियां बुढ़ापे तक साथ देती है। मांगती केवल लाड़ प्यार आपका, इसके सिवा भला और क्या लेती है? ये बेटियां आपके घर से निकलकर, दुसरो के घर को खुशहाल बनाती है। खुद तकलीफ सहकर सबको हंसाती है, मगर अपना दर्द किसी को नही बताती है।। कभी कूड़े के ढेर में मिलती है, तो कभी दहेज की पीड़ा सहती है। मां, बहन, बेटियां, बहु ही है जो देश मे, आपके नाम को बढ़ाने में सबसे आगे रहती है।। घर की शौभा, घर का रूतबा घर की शान होती है बेटियां। मजबूर पिता गरीब परिवार का, एक अभिमान होती है बेटियां। बहु-रूपी बेटियों से चलता है वंश आपका, गांव नही, कस्बा नही, नगर नही, शहर नही। अरे ...
आलेख, स्मृति

यादों का गुलदस्ता …

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** मिसाइल मेन देश के प्रसिद्ध अभियन्ता व भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम साहब का जन्म १५ अक्टूबर १९३१ को धनुष कौड़ी ग्राम रामेश्वरम तमिलनाडु में हुआ था। वे एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। इनके पिताजी मछुआरों को नाव किराये पर देने का काम करते थे। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन अधिक पढ़े लिखे नही थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। संयुक्त परिवार में सदस्य कितने थे इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि कलाम साहब के पांच भाई व पांच बहने थी घर मे तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम पर इनके पिताजी का बहुत प्रभाव पड़ा। वे चाहे पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन उनके दिए संस्कार उनके काम आए। पांच वर्ष की आयु में कलाम को रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में भर्ती कराया गया। उनके शिक्षक सोलोमन ने उनसे कह...
सहरा में चलते चलते
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सहरा में चलते चलते

********** कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) सहरा में चलते चलते तन्हा जब थक गये हम जहनो दिल पर कोई तिशनगी गुजरने लगी बारहा ऐसा होने लगा और एक अजाब सा आया सहरा के इस धुँध में उनकी सूरत दिखी तो चाँद वहाँ रौशन हुआ वह दास्ताँ बन गया याद नहीं कब उनके ख्वाब मेरी आँखो में मुनब्बर हो गये और बरस पड़े दो बूंद सुखे सहरा की गलियों में पता नही फिर कब सहर हुई कब रात हो गई चलते चलते सहरा में . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करे...
शरद पूनम का चाँद हो
कविता

शरद पूनम का चाँद हो

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. शरद पूनम का चाँद हो नदी का किनारा हो हाथों में हाथ सिर्फ तुम्हारा हो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो न गम का कहीं भी इशारा हो चाँदनी से महक रहा जहान सारा हो शीतल किरणों सा जगमगा रहा प्यार हमारा हो तो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो कि खो जाए हम एक दूसरे में ही कही इस दुनिया से बेखबर संसार हमारा हो... जहाँ सिर्फ मुहब्बत ही मुहब्बत हो, और गम का न कहीं सहारा हो तो कितना मधुर वो संसार प्यारा हो आओ बसाए वो सपनों का जहान... जहाँ हर पल शरद पूनम का उजास हो उस शीतल चाँदनी में फिर राधा कृष्ण का रास हो,, गोपियों का विश्वास हो, और मधुर मिलन की आस हो... और ऐसा प्यारा वो संसार हमारा हो... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्न...
कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती
आलेख

कितना राष्ट्रप्रेम कितनी राष्ट्रभक्ती

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. किसी भी राष्ट्र की भौगोलिक सीमा ये उस राष्ट्र का अस्तित्व, महत्व, और पहचान के लिये पर्याप्त नही होती। जमीन पर दिखने वाली इस सीमा रेखा के अंदर उस राष्ट्र के नागरिकों के अपने राष्ट्र के प्रति जो आदर, जो कर्तव्य, जो प्रेम और अपनत्व की भावनाएं अपने परिपक्व स्वरूप मे होती है, और यह सब जब राष्ट्र के नागरिकों के व्यवहार और आचरण मे प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होती है, तब हम इसे राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती कह सकते है। राष्ट्र के स्थायित्व और सर्वांगीण उन्नती के लिए तथा भावनात्मक रूप से राष्ट्र को एक सूत्र मे पिरोये रखने के लिए इसी राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की नितांत आवश्यकता होती है। - इतिहास साक्षी है कि राष्ट्रप्रेम के अभाव मे भारत का विभाजन हुआ। आगे संयुक्त पाकिस्तान मे भी नागरिकों के राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ती की भावनाओं का ऱ्हास होने के कारण ...
दीप बनकर
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दीप बनकर

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर दीप बनकर दिवाली मनायें सभी। छोड़ खामोशी बाहर आयें कभी। है सफाई ज़रूरी ,,,,मग़र ध्यान दो। खाली हाथों को भी कोई काम दो। दौर मंदी का है,तेज ना हम चलें। साथ लेकर सभी को मिलकर बढ़ें। छोड़ दें हम पतली प्लास्टिक पन्नियाँ। इस बार बाटें,,,,,,,, धान गुड़ धनियाँ। मिलावट नहीं,,,,,,,,, शुद्ध आहार हो। पुरातन भारत का,,,,,,,,,,, बाज़ार हो। रूप चौदस पर मिट्टी और उबटन रहे। चौथ करबे की चमके,न विघटन रहे। नृत्य घर घर में हों और भजन श्याम के। मोहब्बत बिना,,,,,,,दीप किस काम के।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष...
मेरी राह देखना तुम
कविता

मेरी राह देखना तुम

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम तुमको ही पूरा माना है, तुम ही मेरे मन में हो तुम मेरे हर क्षण में हो ,तुम मेरी सांसों में हो तुम ही प्राणप्रिया हो मेरी, यही याद कर राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। तुम्हीं भाग्य गए हो, तुम्हीं कर्म हो तुम्हीं बुद्धि हो, तुम्हीं सिद्धि हो तुम्हीं हो मेरे, सुख-दुख की रानी तुम्हीं मेरे सपनों की, शहजादी यादों में भी गर्व कर, मेरी राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। जानती हूॅ॑ न लौटेंगे कभी, हृदय उनका निष्ठुर हुआ हैं त्याग कर मेरा समर्पंण तो, मातृभूमि को किया हैं प्रेम में त्याग एक का, दूसरे पर स्वयं बलिदान हो गए रोता हुआ छोड़ कर मुझे, स्वयं जाते-जाते कह गए आएंगे हर रोज सपनों में तेरे, मेरी राह देखना तुम जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम।। . परिचय :- नाम : रेशमा ...
माँ है जो मकान को घर करती है
कविता

माँ है जो मकान को घर करती है

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) मुझसे ज्यादा मेरी फिकर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है धूप मे जब जब में निकलता हु पलकों की छाव मेरे सर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है कभी गिरने नही देती मुझे कहीं उसकी दुआ इतना लंबा तय, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है जब जब भी कभी बिमार होता हूं उसकी यादों की दवा हि बस मुझ पर असर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है लोग चेहरों पर नक़ाब लिए रखते हैं सभी के सारे हिसाब लिए रखते हैं में मेरी तकदीर लिए चलता हूं ज्यादा कुछ नहीं, माँ कि तसवीर लिए चलता हूं उसकी दुआ मेरे साथ साथ सारे, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनि...
तुम लौट आओगे
कविता

तुम लौट आओगे

********** ज्योति शुक्ला औरैया (उत्तर प्रदेश) ग़म जुदाई के सताएंगे तो तुम लौट आओगे आंख में अश्क आएंगे तो तुम लौट आओगे टूटी नाव के सहारे ना लग पाओगे पार तुम तो लहर संग तूफान आएंगे तो तुम लौट आओगे याद रखना कोई आसान नहीं है जमाने में दर्दे दिल रोज़ सताएंगे तो तुम लौट आओगे। पूंछ-पूंछ कर मेरे बारे में तुम से जमाने के लोग बागवां दिल का जलाएंगे तो तुम लौट आओगे। मुझ से खफा हो के जाने वाले रखना याद ख्वाब मेरे जब आएंगे तो तुम लौट आओगे। . परिचय :- कवयित्री ज्योति शुक्ला का जन्म १५ जुलाई सन् १९८८ को जिला औरैया उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा औरैया एवं उच्च शिक्षा कानपुर विश्व विद्यालय से प्राप्त किया। ज्योति शुक्ला एक कुशल गृहिणी होने के साथ ही वर्तमान समय में चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं।समाजिक विद्रुपताओं, सामाजिक विसंगतियों, मानवीय संवेदना से परिपूर्ण काव्य लेखन के...
युवा प्रतिभा खोज कार्यक्रम का आयोजन।
साहित्य समाचार

युवा प्रतिभा खोज कार्यक्रम का आयोजन।

रीवा : द खबरदार टीम के आयोजकत्व में और विंध्य कवि दरबार के संयोजन में २ अक्टूबर  को गांधी जी की १५०वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में शिक्षा इंटरनेशनल स्कूल बोदाबाग रीवा में एक अद्वितीय और ऐतिहासिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। जिसमें रीवा से ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के सैकड़ों नवोदित कवियों ने भाग लिया और काव्यपाठ किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसे नवोदित रचनाकारों को सामने लाना है जो कि कविता, कहानी आदि लिखते तो हैं किंतु कभी उन्हें ऐसा मंच नहीं मिलता जहाँ वो अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें। विंध्य कवि दरबार ने ऐसे ही कलाकारों को खोजकर उनकी प्रतिभा को निखारने और उचित स्थान दिलाने का बीड़ा उठाया है। . . इस कार्यक्रम के प्रारंभ में रीवा जिले के दो वीर से.नि. सैनिकों ए. के. पांडेय एवं पुष्पेन्द्र कुमार शर्मा, दो शिक्षकों डा. के.के. मिश्रा एवं बी.डी. मिश्रा सहित विभिन्न क्षेत्रो...
तेरी सोहबत का असर
कविता

तेरी सोहबत का असर

********** आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश बड़ी मुश्किल है ये प्यार की डगर आई नहीं तुम आने का वादा कर खुश रहने की ख्वाहिश भी बची नही ख़ुदा जाने क्यों उदासी है इस क़दर। प्यास जगाई तूने,उसमें झुलसता रहा मैं तुझे पता ही नही कहाँ खोई है तू मगर सबकी नजरों में खुश ही दिखता हूँ मैं ये सब तेरी ही सोहबत का है असर। अब ना भटको चुपचाप चली आओ तुम दिल में प्यार की अब भी है वही लहर।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन मे...
नजदीक
कविता

नजदीक

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) यूँ लब थरथराने लगे तुम जो मेरे नजदीक आए महकती खुशबू जो महका गई तुम जो मेरे नजदीक आए नजरें ढूंढती रही हर दम तुम्हे तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम को बोल भी न बोल पाए तुम जो मेरे नजदीक आए इजहार तो हो न सका प्रेम का तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम के ढाई अक्षर हुए मौन तुम जो मेरे नजदीक आए कागज में अंकित शब्द खो से गए तुम जो मेरे नजदीक आए नींद भी अपना रास्ता भूल गई तुम जो मेरे नजदीक आए कोहरे में छुपा चेहरा जब देखा तुम जो मेरे नजदीक आए अंधेरों ने माँगा उजाला रौशनी देने तुम जो मेरे नजदीक आए प्रेम रोग की दवा देने तुम जो मेरे नजदीक आए . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
नेह तुमसे लगाऐं
कविता

नेह तुमसे लगाऐं

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) नेह तुमसे लगाऐं, तुम ना स्वीकारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... असर अब कुछ हुआ है। दिखे खाई कुआ है। प्रीत में हार बैठे सब, खेला ऐसा जुआ है । हम दर्द से बिलखें, नजर तुम ना बुहारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... अजब हलचल हुई थी। टाट, मल-मल हुई थी।। तुम्हारे प्रेम बंधन में, देह शतदल हुई थी।। आज दल-दल फंसे हैं, देखकर ना उबारो ? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... भला अनुराग पाला। मन घुली हाय हाला।। अधेरों से हुयी यारी, लगे बैरी उजाला ।। तिमिर की स्याह में डूबे, दीप फिर भी ना जारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि ...
मानव-मूल्य
लघुकथा

मानव-मूल्य

********* डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) वह चित्रकार अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति को निहार रहा था। चित्र में गांधीजी के तीनों बंदरों  को विकासवाद के सिद्दांत के अनुसार बढ़ते क्रम में मानव बनाकर दिखाया गया था। उसके एक मित्र ने कक्ष में प्रवेश किया और चित्रकार को उस चित्र को निहारते देख उत्सुकता से पूछा, "यह क्या बनाया है?" चित्रकार ने मित्र का मुस्कुरा कर स्वागत किया फिर ठंडे, गर्वमिश्रित और दार्शनिक स्वर में उत्तर दिया, "इस तस्वीर में ये तीनों प्रकृति के साथ विकास करते हुए बंदर से इंसान बन गये हैं, अब इनमें इंसानों जैसी बुद्धि आ गयी है। ‘कहाँ’ चुप रहना है, ‘क्या’ नहीं सुनना है और ‘क्या’ नहीं देखना है, यह समझ आ गयी है। अच्छाई और बुराई की परख - पूर्वज बंदरों को ‘इस अदरक’ का स्वाद कहाँ मालूम था?" आँखें बंद कर कहते हुए चित्रकार की आवाज़ में बात के अंत तक दार्शनिकता और बढ़ गयी थी। "ओह! ...
आसमान के तारें
कविता

आसमान के तारें

********* कुमार संदीप ग्राम सिमरा, मुजफ्फरपुर (बिहार) आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में टिमटिमाते हुये तारों को, ऐसा लगता है कि ये तारें सपरिवार स्नेह और प्रेम से रहते हैं मिलजुलकर एक साथ। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, जुगनू की तरह तारों को चमकते ऐसा लगता है कि ये तारें एक साथ हँसते हैं मुस्कुराते हैं, तारों की चमक आँखों को देती है सुकून। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में, तारों को कुछ समय के लिए ओझल होते ऐसा लगता है कि ये तारें भी क्रंदन करते हैं दीन दुखी के दुःख देखकर, ये तारें देखते हैं आसमां से इंसानों के कुकर्मों को। आसमान के तारें हाँ जब देखता हूँ आसमां में असंख्य तारें, ऐसा लगता है कि ये तारें सभी एक जैसे ही हैं, इन तारों में इंसानों की तरह न तो रंग का भेदभाव है, न ही धर्म, जाती का बंधन। . लेखक परिचय :-  नाम : कुमार संदीप पिता : स्वर्गीय ब्रज ...
कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?
आलेख

कौन है शत्रू राष्ट्रभाषा के ?

********* विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. हमारे देश मे तामिलनाडू राज्य मे हिंदी भाषा के लिये कुछ असंवेदनशीलता देखने को मिलती है और वैसा हमे प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है परंतु यह भी सच हैं कि, तामिलनाडू राज्य मे उनकी मातृभाषा के लिये गौरव, सन्मान और अभिमान और आत्मीयता भी उन्हें अनुभव होती है I राष्ट्रभाषा हिंदी के बारे मे तामिल जनता से और राज्य के राज्यकर्ताओ से अन्य भारतीयो का कितना भी मतभेद हो परंतु एक राष्ट्रभक्त होने के नाते हमे निश्चित ही तामिलों की भावनाओ का आदर भी करना चाहिये, और मातृभाषा के प्रती उनके लगाव के कारण हमे गौरवान्वित भी होना चाहियेI हमे इस हेतू निश्चित ही संतुष्ट भी होना चाहिये कि एक राज्य की भाषा (तमिल) को, संस्कृती को और अस्मिता को सहेजकर और सुरक्षित रखने के लिये वहां के लोग जी जान से जुटे है और भावनिक दृष्टी से अपनी मातृभाषा से भी जुडे हुए है परंतु राष्ट्रभाषा हिंद...
पुरानी हर ईमारत
ग़ज़ल

पुरानी हर ईमारत

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) पुरानी हर ईमारत ढहाई जाएगी तब स्मार्ट सिटी बसाई जाएगी सिनेप्लेक्स क्लब या मॉल होंगे झुग्गी बस्ती की जमीन जाएगी यादों का मलबा दबाया जायेगा और नई नेमप्लेट लगाई जाएगी एक ग़ज़ल भर नहीं मेरी संवेदना उम्मीद है दिल से सुनाई जाएगी वहीँ दफ़्न होगी 'मृदुल' की आरज़ू जहाँ से भी मिटटी उठाई जाएगी   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन। संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय ...
जाड़े की दस्तक
कविता

जाड़े की दस्तक

********** कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) जाड़े की धूप खिलने लगी है। जाड़े की धुँध उठने लगी है। छत पर रजाईयाँ सजने लगी है। आँगन में चटाईयाँ बिछ्ने लगी है। रंग बिरंगे फूल खिलने लगी है। तितली फूलों पर उड़ने लगी है। पत्तों पर ओस चमकने लगी है। सिंगरहार पेड़ों पर सजन लगी है। आँगन में आचार सूखने लगी है। दरवाजे दरीचे खलने लगे हैं। माँ भाभियाँ स्वेटर बुनने लगी हैं। शायद जाड़ें की दस्तक मिलने लगी है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूच...