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बाहर से हँसता हूँ
कविता

बाहर से हँसता हूँ

========================= रचयिता : रामनारायण सोनी दो पल को जागा फिर बरसों तक सोया हूँ आशा के पंखो पर सपनों को ढोया हूँ साँसों ने मोहलत दी उतना भर जी पाया कतरा भर पानी था सागर में खो आया आँसू का मोल यहाँ बालू से सस्ता है झूँठों की बस्ती में साँच हुआ खस्ता है फूलों की सेज सजी नीचे बस शूल धरे सूनी इस अमराई में गिद्धों के शोर भरे दोहरे इस चेहरे से दर्पण भी हार गया जीवन के उपवन को पाला क्यूँ मार गया सुर तो सब मीठे है कँपते उन तारों के पिटते हैं ढोल सभी गीत सजे प्यारों के जीवन की धारा संग तिनके सा बहता हूँ भीतर सौ ज्वाल लिये बाहर से हँसता हूँ   परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रकासिया", जिन्दगी के कैनवास लेखन :- गद्य, पद्य सेवानिवृत अधिकारी म प्र विद्युत मण्डल आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
जीवन और बारिश भाग – 2
कविता

जीवन और बारिश भाग – 2

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आँखों पर हाथ रखे वह देख रहा था टकटकी लगाए आस है जिनके रुकने की बरसने से गति तगारी लिए मजदूर की जो कमर पर लपेटे मैली सी चादर भूख मिटाने के यंत्र की भांति सड़क किनारे खड़े अपनी काग़ज की फिरकियों के रूप में अपने सपनों को बारिश के पानी में गलता देख रहे अधनगें कपड़े पहने उस अधेड़ की ठेले पर आधे कच्चे आधे पके केले लिए बैठी मक्खियां उड़ाती उस बूढी नानी की जो पाल रही है अपनी मृत बच्ची के बच्चों को जिन्हे छोड़ गया उनका जल्लाद बाप जब वह बेच ना पाया बूढी नानी के विरोध के चलते अपनी मासूम बेटियों को किसी और जल्लाद के हाथ दारु से अपना गला तर करने आस है इन सबको की रुके बारिश तो शुरू हो काम उस ऊँचे भवन का जिसके भरोसे छोड़ आये हैं अपना गाँव कई मजदूर की बारिश रुके तो खुले उनके पेट पर बंधी वह चादर रुके बारिश तो रुके गलना फिरकियों का आएं बच्चे ग्राहक ...
पहला अधिकार
लघुकथा

पहला अधिकार

===================== रचयिता : कुमुद दुबे ड्राईंग रुम में फोन की घंटी बजी, बेटी सिया ने झट से फोन उठाया, आशीष का फोन था। सिया ने आवाज लगाई मम्मा  ....मामा का फोन है। अमिता रसोई में थी, फटाफट हाथ धोये और  सिया से रिसिवर लेकर सीधे बोलना शुरु कर दिया भैया कल आ रहे हो ना? आशीष बोला हाँ आ रहा हूँ ! पर, यह बताने के लिये फोन लगाया कि मुझे आते-आते शाम हो जायेगी तुम लोग मेरा खाने पर इन्तजार मत करना। मैं रमा दीदी से राखी बंधवाकर आऊँगा। तुझे तो पता ही है, रमा दीदी खाना खाये बगैर आने नहीं देगी।  क्षणिक  चुप्पी के बाद "ओके भैया'' कहते हुये अमिता ने रिसिवर रखा और रसोई में जाने लगी। पीछे-पीछे सिया आयी और प्रश्न करने लगी; मम्मा, मामा कल आ रहे हैं ना? अमिता ने हामी भरी। सिया बोली- वाह.., फिर तो कल मामा की पसंद की खीर जरूर बनेगी। अमिता बोली- खीर तो तेरे लिये भी बना दूँगी, पर भैया रमा दीदी ...
क्या है किताब ?
कविता

क्या है किताब ?

====================== रचयिता : मनीषा व्यास ज्ञान का भंडार समाज का आइना भटकन की राह मुसाफ़िर का सहारा अकेलेपन का साथी अंधेरे में उजाला सूचनाओं का भंडार निराशा में आशा अनुभव का निचोड़ शब्दों का शृंगार भावनाओं की अभिव्यक्ति विधि का विधान विजय का तिलक कर्म का कुरुक्षेत्र सपनों की उड़ान अपने में समेटे ये है किताब का सृजित परिधान लेखिका परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन एवं विधालय पत्रिकाओं की सम्पादकीय और संशोधन कार्य  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानि...
रक्षाबंधन पर दोहे
दोहा

रक्षाबंधन पर दोहे

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख श्रावण मे फिर आ गया, राखी का त्यौहार। मन में भगिनी के जगा, निज भ्राता का प्यार। सावन की बौछार में, आया पावन पर्व। करासीन राखी सुखद, शोभित हुई सगर्व। तन्वंगी कृशकायिनी, है राखी की डोर। पर इसकी संसार में, चर्चा है चहुँ ओर। रक्षाबंधन से जुड़ा, भ्राता-भगिनी स्नेह। इस बंधन में आत्मा, इस बंधन में देह। भाई राह निहारता, बहना मिले तुरंत। स्नेह-सूत्र कर पर सजे, उपजे हर्ष अनंत। लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक...
स्वतंत्र राहों में
कविता

स्वतंत्र राहों में

============================= रचयिता : स्वतंत्र शुक्ला तुम्हारे जिस्म जब-जब, धूप में काले पड़े होंगे।। हमारी लेखनी के, पाँव में छाले पड़े होंगे।। अगर आंखों में, गहरी नींद के ताले पड़े होंगे।। तो कुछ ख्वाबों को, अपनी जान के लाले पड़े होंगे।।        "जिनकी साज़िशों से, अब हमारी जेब खाली है।।" वो अपने हांथ जेब में, कहीं डाले पड़े होंगे।। हमारी उम्र मकड़ी है, हमें इतना बताने को।। बदन पर झुर्रियों की, शक्ल में जाले पड़े होंगे।। क्यूं पहुंच न पाई नज़रें..? मायूस चेहरों तक।। "स्वतंत्र" राहों में उनके, केश घुघराले पड़े होंगे।। लेखक परिचय :- नाम :- स्वतंत्र शुक्ला आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हम...
हट गई धारा तीन सौ सत्तर
कविता

हट गई धारा तीन सौ सत्तर

============================= रचयिता : आशीष तिवारी "निर्मल" कश्मीरी वादी को नही किसी की बुरी नजर लगेगी ना ही अब खून से लथपथ वर्दी कोई सनी मिलेगी। किताब ही होगी हाथों पर अब ना कोई पत्थर होगा, केसर वाली क्यारी में अब ना कोई नस्तर होगा। अजानों संग भजनों की अब सुखद आशनाई होगी कौमी एकता की बजती सुरीली शहनाई होगी। हिन्दू मुस्लिम में अब ना कोई नफरत का मंजर होगा फूल ही बरसेंगे वादी से ना किसी हाथ में खंजर होगा। आतंकी मंसूबे, देश विरोधी नारे अब नहीं सुनाई देंगे कश्मीरी पंडित बेचारे ना अब लाचार दिखाई देंगे। हट गई धारा तीन सौ सत्तर सिंहों ने ताकत दिखलाई है कश्मीर हमारा था, है, और रहेगा भी गाथा दोहराई है। लेखक परिचय :- नाम :- आशीष तिवारी निर्मल रीवा (मध्यप्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानि...
जय, जय माँ भारती
कविता

जय, जय माँ भारती

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक विधा-तेवरी जय, जय माँ भारती।   सिंह-सुता दहाड़ती।।  आगे कभी, पीछे कभी   नीचे कभी, ऊपर कभी   घूम-घूम अग्नि बाण मारती   जय, जय माँ भारती ।   सिंह-सुता दहाड़ती।।  मार्ग दुष्कर था,लक्ष्य अटल था।  पर निश्चय उसका भी, प्रबल था।।   बढ़ रहे थे , असंख्य दुशासन।    चीर डालने को, तेरा दामन।।     जय, जय माँ भारती ।     सिंह -सुता दहाड़ती।।     मानो खड़ी हो साक्षात माँ चण्डी।    ़धर जोर वो जब थी हूँकारती ।।       जय, जय माँ भारती ।     सिंह -सुता दहाड़ती।।  असंख्य तोप थे गरज रहे।  नरमुण्ड भी थे बिखर रहे।।    जय,जय माँ भारती।  सिंह -सुता दहाड़ती।। होकर खून से लथपथ।   माँ तेरी चरणों को   वो थी पखार रही।  और दुशासनों पर अपने अन्त तक थी वो हूँकार रही।। जय, जय माँ भारती। सिंह-सुता दहाड़ती।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि '...
हिंदी भाषा पर गर्व है
आलेख

हिंदी भाषा पर गर्व है

============================= रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" हिंदी में वैज्ञानिक भाषा समाहित है। अंग्रेजी भाषा ये खूबी देखने को नही मिलती। कंठ से निकलने वाले शब्द, तालू से, जीभ से जब जीभ तालू से लगती, जीभ के मूर्धा से, जीभ के दांतों से लगने पर, होठों के मिलने पर निकलने वाले शब्द। इन निकलने वाले शब्द इसी प्रक्रिया से निकलते है। इसी कारण हमें अपनी भाषा पर गर्व है। वर्तमान में अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में से निकालना यानि बड़ा ही दुष्कर कार्य है। सुधार का पक्ष देखे तो हिंदी व्याकरण और वर्तनी का भी बुरा हाल है। कोई कैसे भी लिखे , कौन सुधार करना चाहता है ? भाग दौड़ की दुनिया में शायद बहुत कम लोग ही होंगे जो इस और ध्यान देते होंगे। जाग्रति लाने की आवश्यकता है। जैसे कोई लिखता है कि "लड़की ससुराल में "सूखी "है। सही तो ये है की लड़की ससुराल में "सुखी "है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे। बच्चों को अपनी सृ...
सरहद
कविता

सरहद

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सरहदों पर खड़ी, यह बर्फ की दीवार। देश का समर्पित,शहीदों का परिवार। हर क्षण-क्षण के पहरेदार यह हैं। सहते गिरते तुफानो के वार यह है । चट्टानों से अटल खड़े हैं। सैनिक सीना तान खड़े हैं। प्रेम,संवेदनाओं का समर्पण कर,चारो प्रहर डटे खड़े हैं। वतन की रक्षा की खातिर सीने पर कई वार सहे हैं। मुश्किलों को पार कर। देश की ये आन बने है। शीतल लहरों की मार यह सहते। हमको चैन की नींद ये देते। फिर भी आँखे खोल खड़े हैं। सजगता की मिसाल बने हैं। भारत का गौरव,अभिमान रहे है। सम्मान करो मातृभूमि के इन लालो का। शूरवीर जो माँ ऐ है,इनकी। सच्ची देशभक्ति का पुंज बनी है। नमन देश के उन परिवारों को। देश की खातिर बेटो की कुर्बानी देकर। चेहरे पर मुस्कान लिए है।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं,...
नीर
कविता

नीर

============================== रचयिता : रीतु देवी जब से तुझसे जुदा हुयी, पानी की तरह अनवरत आँसू बहती रही। लाख कोशिशों बाबजूद न छुपा पाती, बूंद इसके मोती बनकर सबके समक्ष बिखर जाती, हाल ऐ दिल बहुत नाजुक है साजन, काजल भी बह जाए इन नयनों से पानी बनकर साजन। लगता है जैसे समंदर बना है मेरे नयनों में तेरी याद में लहरें उठती रहती हैं सपनों में क्या करूँ कुछ समझ न पाऊँ? हाल ऐ दिल मैं किसे सुनाऊँ।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोब...
शहीद तुम्हें नमन्
कविता

शहीद तुम्हें नमन्

============================== रचयिता : अर्चना मंडलोई अन्धेरा उस घर में हो गया हाथ बढा कर एक दिया रख देना तुम।। निगल गया उसे मौत का कोई सौदागर हो सके तो, बेटी के सर पर हाथ जरा रख देना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम मेरा घर रौशन हो जाए जला डाला उसने अपना घर आँखे उसकी तकती रही ताबुत हो गया उसका तन हो संभव तो, हाथ बढाकर चुडी हाथो में उसके पहना देना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम।। मेरे घर में दीवाली हो हो जाए बैसाखी और ईद इसलिए हो गया वो शहीद हो सके तो बढकर उसे नमन् कर लेना तुम अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया उसके भी घर रख देना तुम। नन्हें हाथों ने जब पकडी होगी चीता की लौ काँप गई होगी उसकी रूह आशीषों का हाथ जरा तुम उसके सर पर रख देना अन्धेरा उस घर में हो गया एक दिया रख देना तुम।। काँपते हाथो ने जब छुआ होगा धूँधली नजरो ने माथे को जब चूमा होगा तिरंगे म...
कान्हा
कविता

कान्हा

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा कान्हा ! जब तुम पूछते हो  जब तुम देखते हो  चाहत भरी आँखों से तुम्हारे भाव  दिख जाते है।  कान्हा ! जब तुम मुरली बजाते हो  ऐसे सुबिरस मिलती है   कानों और हृदय को  सुध ही खो जाते है। कान्हा !  तुम्हारी प्रेम में अतीन्द्रिय झूले में  हम खो जाते है तुम्हारी भावनाओं में । परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे...
बुंदेली ग़ज़ल
ग़ज़ल

बुंदेली ग़ज़ल

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" हाड़ टोर रये, पसी बहा रए । शैर भेज कें, तुमे पढा रए । झूठी-सांची कसमें खा रए, खूब चूतिया हमें बना रए । दारू पी रये, मुर्गा खा रये, सोने जैसौ, समओ गमा रये । हम सोचत्ते, पढ़-लिख जै हौ, तुम पैसा में आग लगा रए । कौन बनक की है, जा पीढ़ी ? छोड़े आम, धतूरो खा रए । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, ...
कदम
हायकू

कदम

============================== रचयिता : रीतु देवी   कदम बढा मेहनत करके मस्तक उठा पीछे न देख निगाह सामने रख लक्ष्य तू भेद कठिन पथ मत तू घबराना बढाना पग हर कदम नयी है चुनौती जोश न कम रूक न कभी मिलता है मंजिल हौसला रख अभी   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com  कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने मोबा...
कहावतों की कविता – 3
कविता

कहावतों की कविता – 3

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" स्वर-"आ" को लेकर बनाई गई कविता ... आप न जोगी गीदड़ी कागे न्यौतन जाय, आस पराई जो तके जीवत ही मर जाय, आगे पग से पत बढ़े पाछे से पत जाय, आम फले नीचो नमे एरंड ऊंचो जाय। 0000 आभा चमके बीजली गधे मरोड़े कान, आई बहूँ आयो काम गई बहूँ गयो काम, आप करे सो काम पल्ले हो सो दाम, आम के आम गुठलियों के दाम, 0000 आओ रे पत्थर पड़ मेरे पांव, आदर न भाव झूठे माल खाव। कहावतों के अर्थ-- * गीदड़ी स्वयम तो जोगन (योगिनी) है नहीं, कौवे को जोगी (योगी) बनने के लिए आमंत्रित करे अर्थात जो काम स्वयम करना न जानता हो वही कार्य दूसरों को करने के लिए प्रेरित करे। * जो दूसरों पर निर्भर रहते है उनको तो जन्म लेते ही मर जाना चाहिए--अर्थात दूसरों पर निर्भर रहने वाला कभी सुखी नही रह सकता-सफल नही हो सकता। * आगे बढ़ने से आबरू बढ़े और पीछे लौटने से आबरू घटे-अर्थात जहां ...
मित्र वही है
कविता

मित्र वही है

============================= रचयिता : श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' दर्द ह्रदय का जो बहला दे मित्र वही है राह कंटीली  सुगम बना दे मित्र वही है टूटे मन में उम्मीद जगा दे मित्र वही है बिना भेद के जो अपना ले मित्र वही है मरहम बन नासूर मिटा दे मित्र वही है खुशियां गम मेरे अपना ले मित्र वही है विश्वासों केसंग  जो न खेले मित्र वही है  विकट घडी़ मेंसंग खड़ा हो मित्र वहीहै प्रेम की ज्योति सदा जलाए मित्र वही है दिल का राजदार बन जाए मित्र वही है जीत हार में सदा संग हो मित्र वही है समझे जो हर बात मित्र की मित्र वही है न हो ईर्षा द्वेष न हो मलाल मित्र वही है रखें इस रिश्तै का सम्मान मित्र वही है लेखिका परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्शन के प्रथम से चतुर्थ भाग साम...
बारिश और जीवन – भाग १
कविता

बारिश और जीवन – भाग १

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आँखों पर हाथ रखे वह देख रहा था टकटकी लगाए बादल को आस है जिनके बरसने की आस बंधी है जिनसे मंगलू की धापू की खेत में खड़े बबूल की दाल पर बैठी चिड़िया की खेत की मेढ़ के किनारे बिल में बैठे मूषक मेंढक की और वहीँ मारे कुण्डली बैठे काले नाग की कि बादल गरजेगें पानी बरसेगा हल चलेगें बीज डलेगें छाएगी हरियाली होगी हर और खुशहाली हरे-भरे खेत देख हर्षायेगा मन की अब होगें सारे दुःख दूर हो दीवाना मजदूर गायेगा दूर नहीं अब वो दिन जब धापू-मंगलू का बस्ता कॉपी किताब गणवेश स्कुल की और जूते आयेगें दूर नहीं दिन जब बच्चे नई पोषाख पहन इतरायेगें कमला-विमला सखियों संग गायेगी गीत बादलों की तारीफ़ में की तुम ना होते तो क्या होता हमारा ...? बबूल की डाल बैठी चिड़िया दोहराएगी गाना की उसे और उसके बच्चों को भरपेट मिलेगा खाना खेतों में दौड़ते फिरेगें मूषक चुगने को द...
जीवन की नौका
कविता

जीवन की नौका

============================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ये जिंदगी है    फ़ूल, बेल, लताओ       की तरह लेने हिलोरे है लगती बहती हवाओ के सहारे गम और खुशियो के मोती पिरोकर गले में माला डाल देती है हमारे अन्तता तक जीवन में खुशियो के लिए दौड़ हम करते रहे खुद ही खुद से लड़ झगड़ कर जीवन की नौका में विहार हम करते रहे क्योंकि बहुत चलकर देख सुनकर जिंदगी के साथ अकेले के अकेले ही रहे लेखक परिचय : नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं रुचि :- अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन " आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के ...
जिंदगी के खेल
कविता

जिंदगी के खेल

====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा   जन्म से मृत्यु तक  कितने खेल होते है आते  वक्त रोता है इंसान जाते वक्त रुलाता है।  चिता के आग एक बार जलता  चिंता का चिता बार बार   आत्मा  उड़ जाता है जब शरीर हो जाता है जड़।  मैं और मेरा पन छोड़ दे   राग अनुराग छोड़  धन की मोह छोड़ मानव  कल्याण की दिशा मोड़ ।   भाई भाई की रिश्ता रख बदले भाव न रख   खुद बदले तो  जग बदले यह सद्भवना रख  क्या लेकर आए थे क्या लेकर जाएंगे  अच्छे कर्म से मानव जीवन सार्थक कर पाएंगे परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ...
भारत माता
दोहा

भारत माता

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक जय जय जय है भारत माता। शौर्य, बल, बुद्धि ,यश प्रदाता।। जय जय जय है भाग्य विधाता। अखण्ड ब्रह्मांड की अधिष्ठाता।। जय जय जय है पतितपावनी। सुख, समृद्धि ,ऊर्जा प्रदायिनी।। जय जय जय है महातपस्विनी। अध्यात्म, योग, विज्ञान प्रवाहिनी। जय जय हे आयुर्वेद प्रदायिनी। सकल जगत की संताप हरिणी।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास :- साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
प्रीत की रीत कही तुलसी ने
कविता

प्रीत की रीत कही तुलसी ने

********** बबिता चौबे शक्ति कि हरे रामा प्रीत की रीत कही तुलसी ने प्यारी रे हारी ... कि हरे रामा रच दियो रामचरित  मानस अति  प्यारो रे हारी रत्ना प्रेम में विह्वल होकर नाग पकड़ के तेरे रामा कि हरे रामा बोल  दिए कटु बोल बने हरि प्यारे रे हारी.... प्रेमविवस चूड़ामणि देखत धनुष तोड़ दिय राम ने रामा की हरे राम रचाये सिय से व्याव जोड़ी अति प्यारी रे रामा शबरी के घर जाए रामा जूठे बेर फल खाये रामा कि हरे रामा प्रेम की रचके रीत शरण बलिहारी   रे हारी भरत मिलाप होत रघुवर के निरखत तुलसी दास हो रामा कि हरे रामा असुउन बह रही धार मिलन बलिहारी रे हारी प्रेम विवश हनुमत रंग सिंदूरी सिया देख मुस्काये रामा कि हरे रामा परम भक्त हनुमान निहारी हारी रे हारी अहिल्या जोहत राह हो रामा पाथर जन्म निकारत रामा कि हरे रामा चरण रखत रघुनाथ  उठत बलिहारी रे हारी लेखीका परिचय :- नाम : श्रीमती  बबित...
मानव धर्म
लघुकथा

मानव धर्म

============================== रचयिता : रीतु देवी देखते-देखते बाढ का पानी पूरे गाँव में प्रवेश कर गया है। कयी घरें भी डूब गये हैं। सुगिया का घर भी डूब गया है। सुगिया रमा के घर में काम करती है। बदहवास होकर सुगिया रमा के घर आती है। "मालकिन! हमलोग कैसे रहेंगे? हमलोग प्रकृति की इस लीला के प्रकोप से बचने के लिए कहाँ जाए? सुगिया रमा से बोली। "तुम मेरे यहाँ आ जाओ। ईश्वर सब ठीक कर देंगे। रमा सुगिया को सांत्वना देते हुए बोली। नहीं! चमार, डोम जाति सब इस घर में नहीं रहेंगे। हमारा ब्राह्मण धर्म नष्ट हो जाएगा।" रमा का पति रवि ने मना किया। फिर भी रमा सुगिया को बच्चों सहित घर में शरण देती है। "मैं मानव धर्म का पालन करूँगी। इस विपत्ति की घड़ी में सुगिया के साथ रहूँगी। आप भी अपना सोच बदले। "रमा बोली। रवि नाराज होकर वहाँ से चला जाता है। लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, ...
मुक्तागिरी की यात्रा पर 100 सदस्यी दल रवाना
धार्मिक

मुक्तागिरी की यात्रा पर 100 सदस्यी दल रवाना

इंदौर। दिगम्बर जैन सोशल ग्रुप यूनिक का १०० सदस्यी दल सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिर जी की ३ दिवसीय यात्रा पर आज जैन कालोनी से रवाना हुआ। प्रवक्ता मनीष अजमेरा, सुमित डोसी व समर पाटनी ने बताया कि परम् पूज्य मुनि श्री विप्रणत सागरजी महाराज ने तीन बसों को मंत्रोच्चार के साथ यात्रा का शुभारंभ किया। यात्रा संयोजक रितेश सुरभि गंगवाल, तेजकुमार दीपाली पाटोदी, आशीष वैशाली टोंग्या, राजीव मोनिका कासलीवाल, अक्षय रितिका काला, सुधीश रुचि गंगवाल, जुम्बिश दीपाली अजमेरा, अनुज सोनल जैन है ।आज प्रातः ७ बजे प्रस्थान कर दल मातमोर, नेमावर, होते हुए मुक्ता गिर जी पहुचेगा। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६...
कैनवास
कविता

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==================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका दाता ने दिया था बहुत मजबूत,साफ सुथरा बुना था उसने एक मुलायम ताना बाना तांत से तांत जोड़े हंसते ओंठ मुस्कुराते नैन किलकारी ऐसी की देव भी झूमें मां की कोख में सहेजा नाजुक ह्रदय,वात्सलय भेजा था परमेश्वर ने इंद्रधनुषी रंगों के साथ भरोसा किया अपने कैनवास पर यह क्या किया ? दाता के साथ छलावा रंग भरे भी तो, कैसे कैसे छल,कपट ,लोभ,लालच मजबूत कैनवास पर कच्चे ,फरेबी रिश्ते लिख लिये उसका कैनवास और उसी के साथ छल रंग भर लेते कोई वासंती प्रीत का या हरितिमा आंनद की भरते। गुलगुले से मीठे चाशनी पगे, मौन भाव भरते। स्वार्थ मत भरते, कुछ खाली कोने में ही परमार्थ रखते। सफेद झक्क न रख पाये,काश इतना बदरंग न करते। सम्मान किया होता दाता के  कैनवास का। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता...