बसंत
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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अधरों पर मंद स्मित सजाएं,
बसंत पूरब से लालिमा लिए।
सुरभित सुमन रजनीगंधा के,
आ गया पात पात आनंद किए।
पीत वसन मुख चांदनी सा,
शीतल मन्द समीर लिए।
हरी दूब से शबनम चुनता,
हलधर दौड़े बसंत लिए।
कली फूल चितचोर बने,
लता यौवन मकरंद लिए।
घर आंगन में उतर गया,
ऋतुराज आंखें चार किए।
सज स्नेहिल हरित वसुधा,
नेह मिलन की आस लिए।
फागुन में गौरी बाठ निहारे,
यादों की खुशबू पास लिए।
परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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