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सूर्यवंशी राम
भजन, स्तुति

सूर्यवंशी राम

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चतुर्भुज गोविन्द के अवतारी, लीलाधारी घनश्याम। दशरथ नंदन, रघुकुल भूषण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम।। सूर्यवंश के प्रतापी अधिपति, त्रेतायुग के पुरुष विराट। प्रजाओं के परम पूजनीय, आदर्श देव महान सम्राट।। गुरु वशिष्ठ के प्रिय शिष्य, धनुर्विद्या में अति प्रवीण। करुणानिधान, दयालु,जन मन कीर्ति किया उत्कीर्ण।। दीन-हीन, पतितों के अभिरक्षक, रणबांकुरा, रणधीर। दानव और राक्षस संहारक, सर्व शक्तिमान, शूरवीर।। माता-पिता वचन अनुगामी, प्रिया के प्रति समर्पण धर्म। भ्राता के प्रति स्नेहिल व्यवहार, न्याय संगत, राज कर्म।। मित्र के प्रति सहयोग भावना, मृदुभाषी,सरल व्यक्तित्व। लोकमंगल, जनकल्याण, खुशहाल, समृद्ध था प्रभुत्व।। रामराज्य में अंगीय, अगत्या, पार्थिव तापों से थी मुक्ति। किंचित मृत्यु, व्याधि व्यथा की थी प्रभावज...
माँ भारती शर्मसार हो गई
कविता

माँ भारती शर्मसार हो गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पाशविक दहलाती करतूतें हदों से ही गुज़र गई दरिंदों की दारुण बेहयाई अब सीमा पार हो गई नैतिक मूल्यों की वो बातें कहाँ बिखर बिसर गई अमानवि दुःशासिनी हरकतें अब तो कारगार हो गई देवियों से पूजित बेटियों की चुनरी क्यूँ तार तार हो गई ये मासूम अधखिली कलियाँ अब दर्द से बेज़ार हो गई नोची खसोटी गई कई गोरियाँ अनब्याही ही आज रह गई ख़्वाबों की सुरमई गलियों से बदनाम बस्तियाँ बन गई शिवानी एलीना आसिफ़ा सी निर्भया दामिनी चली गई हाथरस में मनीषा की हड्डियां हथौड़े से चूर चूर हो गई ना रहा भय महामारी का इन्हें दुर्दांत कहानी मशहूर हो गई रक्तरंजित गूंज रही कराहों से यम- ड्योढ़ी तरबतर हो गई लक्ष्मी दुर्गा पद्मिनी के देश में माँ भारती शर्मसार हो गई परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
नारी का समर्पण
कविता

नारी का समर्पण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** देखो-देखो नारी समर्पण, इस जग में सबसे न्यारा और प्यारा। इतिहास भी साक्षी है, हर नारी बोले, हर पुरुष नारी तोले, बिन बात पति बोले, पत्नी से हौले-हौले, तुम सारा दिन करती ही क्या हो ? प्रश्न सुन पत्नी का क्रोध खौलें, पत्नी कहे मत दिखाओ, नयनों के गोले, तुम कितने हो भोले, ऐसी कटु वाणी से रिश्ते हो जाते पोले। तुम सब पुरुष पहन लो मानवता के चोल़े, हर्ष से भर लो अपने-अपने झोले। जीवन नैया तुम्हारी क्यों डोले ? यह जानो और समझो। तुम बजाओ शहनाई, और सुंदर जीवन संगीत के ढोलक-ढोले। अपने-अपने अंतस भरे अहंकार कालिमा धौले। हटाओ घृणा, द्वेष, ईर्ष्या के फफोले। समझो नारी समर्पण का मोल, भस्म करो पंच विकार ज्ञान यज्ञों की अग्नि में, मत करो नारी से अति अपेक्षा का लोभ। अब जान भी जाओ और मान भी जाओ। न...
नव वर्ष संकल्प करें
कविता

नव वर्ष संकल्प करें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ इस नववर्ष संकल्प करें बीते कल का आभार करें, नव संवत्सर का सत्कार करें उज्जवल भविष्य की सोच लिए अपनी मंजिल की ओर बढ़ें तमस मिटा अंतर्मन का, हर भेद भाव को दूर करें नई उमंग नई चाह लिए जीवन में नया प्रवाह भरें भूल गए जिन कर्तव्यों को संपूर्ण उन्हें इस वर्ष करें हर जीव को सम्मान मिले, जीने का अधिकार मिले, हर चेहरे पर मुस्कान खिले, हौसला ये रख हर कदम बढ़ें क्यों भूल गया मानव इनको, धरती माता के लाल हैं ये निर्बल, असहाय, कमजोर मगर ईश्वर का प्रतिरूप हैं ये ले दृढ़ प्रतिज्ञ इनके हक़ में इनका मार्ग प्रशस्त बनाना है सृष्टि के उपहार हैं ये इसका कर्ज चुकाना है ये धरा-गगन कल कल नदियां, हर जीवन का आधार हैं ये वन का मूल्य पहचान हमें इनका अस्तित्व बचाना है ले प्रण हर जीवन के संरक्षण का धरती का सौंदर...
आ जाओ हे राम
स्तुति

आ जाओ हे राम

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** आज भी विपदा भारी, आ जाओ हे! नाथ। धरती पर संकट बहुत, पीड़ा हर लो नाथ।। मानव तन में घूमते, दानव दल का राज । संत जनों को कष्ट दे, करते हैं वो राज।। वचन तुम्हारा नारायण, लोगे तुम अवतार । जब जब धरती पर बढ़े, पाप औ अत्याचार ।। संत जनों के साथ में, धरती करे पुकार। धर्म की रक्षा करने वाले, सुन लो आज गुहार।। त्रिभुवन के तुम स्वामी, आ जाओ हे राम । नर के अंतस से रावण का, नाश करो श्री राम।। चैत्र मास शुक्ल पक्ष की, नवमी तिथि है आज। अवधपुरी के साथ ही, उत्सव जग में आज।। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
ये ख्वाब हमारे
कविता

ये ख्वाब हमारे

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** जब देश की आजादी के १०० वर्ष पूरे होंगे आजादी के अमृत काल तक भारतीय शिक्षा नीति सारी दुनिया को दिशा देने वाले दिन होंगे ये ख्वाब हमारे संकल्प सामर्थ्य से पूरे होंगे अमृत काल में हिंदुस्तान की शिक्षा नीति की विश्व प्रशंसा करे, यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ होंगे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षकों प्रशासकों ने गंभीरता से अमल में लाना है शिक्षा क्षेत्र में भारत को विश्वगुरु बनाना है भारतीय युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं बस गंभीरता से उसे पहचानना है शिक्षण को स्वांदात्मक बहुआयामी आनंदमयी अनुभव बनाना है छात्रों में मूल्यों को विकसित करने शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित करनाहै छात्रों के आचरण को सुधारने विपरीत परिस्थितियों का स...
राम आते हैं
कविता

राम आते हैं

रेणु अग्रवाल बरगढ़ (उड़ीसा) ******************** युग-युग में आकर सदा अपना वचन निभाते हैं हर अहिल्या को तारने एक राम ही आते हैं। सदियों से हो सिलारूप असह्य वेदना भोग रही कब आएँगे वो तारनहार आतुर नैनों से जोग रही स्नेह स्पर्श देकर अपना उसकी व्यथा मिटाते हैं। हर अहिल्या....। पुरुष तत्व रहा दंभ भरा नारी को न स्वीकार पाया बदला था न बदलेगा कभी अहं विरासत उसने पाया अहं का मर्दन करते हैं वो पुरुषोत्तम राम कहलाते है हर अहिल्या को....। नारी पावन होकर भी देती रही अग्नि परीक्षा पुरुष प्रधान समाज ने कब जानी उसकी इच्छा हर सीता के आँचल में क्यों सदा काँटे आते हैं हर अहिल्या...। प्रेम आड़ में छलता जो स्त्री के कोमल मन को क्या पाएगा आत्मा को छूकर रह गया तन को प्रेम शक्ति की सत्ता की वो अनुभूति कराते हैं हर अहिल्या....। परिचय :-  रेणु अग्रवाल निवासी - बरगढ़ (उड़ीसा)...
पानी
कविता

पानी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रे बाबा कैसी जिंदगानी है, पानी की भी अजब कहानी है, पानी से ही धोना नहाना, पानी से ही पीना खाना, नहीं करती कभी ओछी हरकत, पानी निःस्वार्थ देती है कुदरत, पर कुछ जातियों में जबरदस्त शक्तियां देखी जाती है जो अन्न को, जल को, यहां तक भगवान को भी अपवित्र कर देते हैं, कइयों की भावनाएं आहत कर उनमें मातम भर देते हैं, इनके आगे कोई नहीं ठहरता, पता नहीं कौन है इनमें शक्ति भरता, सुअर, कुत्ते, बैल जैसे जानवर भी किसी घाट, जलाशय को अपवित्र नहीं कर सकते, पर वाह रे अमानवीय नियम कुछ मानव पानी में अपना पांव नहीं धर सकते, मगर धन्य है वो महामानव, जिसने मनुवादियों के सामने पानी छूने से लेकर पीने तक का अधिकार दिलाया, लोगों को पानी पिलाया, रोते रहें वे जो रहते हैं हरदम रोते, लेकिन इतना जरूर जान लें पानी और खून कभी अ...
अबे ओ काले घन!
कविता

अबे ओ काले घन!

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** अबे ओ काले घन! क्यों बना रहे हो हमें और भी निर्धन, पेशे से ‌भले ही मैं 'किसान' हूॅं, लेकिन यार मैं भी तो एक इंसान हूॅं, नहीं मिलती किसी भी प्रकार की हमको पेंशन है, दिन-रात,सुबह-शाम, आठों पहर केवल टेंशन है, चैत माह में जब रबी की फसल तैयार है, फिर बूॅंदों की तलवारों और ओलों से क्यों प्रहार है, हमारी जिंदगी में क्यों रोड़े बन रहे हो, निरपराध के लिए भी क्यों कोड़े बन रहे हो, तैयार फसलों को देखकर कैसे तुम्हारा मन करता है आने को, अब तुम ही बताओ कहाॅं से लाऊॅं अन्न बच्चों को खाने को, खून पसीने से सींच-सींच कर जब मैं अन्न उगाता हूॅं, तब जाकर कहीं बच्चों के लिए मैं दो वक्त की रोटी पाता हूॅं, लेकिन अबकी बार तो रोटियों से पहले तुम आ गए, मौत का तरल दूत बनकर गगन में तुम छा गए, अब तुम ही बताओ कैसे ह...
हाथ तेरा थामकर
धनाक्षरी

हाथ तेरा थामकर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पूर्वाक्षरी अनुप्रास अलंकृत घनाक्षरी हाथ तेरा थामकर, नेह डोर बाँधकर, जुदा कभी ना हो हम, कसम ये खाई है। साथ रहें सातों जन्म, चाहे खुशी चाहे गम, हर दिन बसंत हो, रीत ये बनाई है। बात नहीं हो अधूरी, भले आँखों में हो पूरी, समझ ही लेंगे हम, प्रेम की सच्चाई है। रात-दिन संग रहें, संगम की वायु बहे, ये कहानी अमर हो, मन मेरे भाई है। परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
पतझड़ मानवता का
कविता

पतझड़ मानवता का

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** पेड़ों से छूटा पत्तों का साथ, दिल में बाकी रहे न जज्बात। कोई नहीं बढ़ाता मदद का हाथ, लोग बदल जाते हैं अकस्मात्। ये है नैतिकता के पतझड़ की शुरुआत। कोई समझता नहीं किसी की बात, आपस में टकराने लगे ख्यालात। उजालों को निगलने लगी स्याह रात, बद् से बद्तर हो रहे हालात्। ये है मानवता के पतझड़ की शुरुआत। तरक्की पर अपनों की हृदय में साँप लोट जाता है, ईर्ष्या द्वेष के गर्त में मानव डूब जाता है। अपना कहकर लोगों को छला जाता है, शराफत का लबादा ओढ़े हैवान नजर आता है। अपनत्व का ये पतझड़ थम नहीं पाता है। प्रकृति का पतझड़, मधुमास में बदल जाता है। नई कोपलें आती हैं, पलास भी मुस्काता है। गुलमोहर भी खिलने को आतुर हो जाता है। किन्तु इंसान इंसानियत से दूर ही रह जाता है। मानवीय मूल्यों का ये पतझड़ थम नहीं पाता है। परिचय -...
गौरैया
कविता

गौरैया

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा दिन-भर किया-करें धमा-चौकड़ी फेरा एक नहीं, दो नहीं दस - बीस में आऍ कभी-कभी डेरा करें कभी मंडराऍ बच्चे देख हर्ष करें कभी करें टेरा अढ़उल के फूलों में चीड़ियों का बसेरा सुबह-शाम चीं-चीं-चूॅ-चूॅ, करें ना अघाऍ केलों के पत्तों में दौड़ - दौड़ जाऍ लगे वहॉ घोसल में चुज्जों का जनेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा आर्यन जब पास जाए वो भी फुदक आऍ आर्या भी मम्मी से चावल मॉग लाए चारो तरफ बिखराए बनाकर के घेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा इधर-उधर दाना चुगे दौड़े - कूॅदे धाऍ जरा सा आहट मिले फर्र से उड़ जाऍ पीछे-पीछे दौड़ें सभी हो - कर फिरेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत...
सावधान
कविता

सावधान

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** भारतीय संस्कृति पर हमला, भारत की अस्मत पर हमला चाहे कुछ भी हो जाए, कभी नहीं होने देंगे। चाहे कितने बम बना लें, चाहे कितने पत्थर बरसा लें चाहे कितनी मिसाइल चला लें, उनकी न हम चलने देंगे। छेद रहे हैं देश की संस्कृति, देश की ही दीवारों से सचेत रहना है हमको, इन आतंकी गुनहगारों से। यहाँ वहाँ आतंक मचाते, नहीं देश के काम आते आगज़नी, गोली, गन, ये घर में ही बम बरसाते। कभी राजनीति के ज़रिये, कभी कहीं ये छुप जाते कभी देश के टुकड़े करते, ये बोली से बम बरसाते। छुपेरुस्तम ये देश के दुश्मन, बचना है ग़द्दारों से छेद रहे हैं देश की संस्कृति, देश की ही दीवारों से। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका...
इतिहास का पुनर्लेखन अत्यंत आवश्यक है – डाॅ. धर्मवीर शर्मा
सामाजिक

इतिहास का पुनर्लेखन अत्यंत आवश्यक है – डाॅ. धर्मवीर शर्मा

इंदौर। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के आईएमएस ऑडिटोरियम में डॉक्टर हेडगेवार समिति द्वारा 'चिंतन यज्ञ' नामक व्याख्यान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. धर्मवीर शर्मा का व्याख्यान संपन्न हुआ। अपने कार्य अनुभवों को साझा करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि इतिहास का पुनर्लेखन बहुत आवश्यक है। आर्किटेक्ट सिलेबस में जब तक हम अपने इतिहास का अवलोकन नहीं करेंगे, तब तक अपने बारे में नहीं जान पाएँगे। आगे उन्होंने कहा कि जब उन्होंने फतेहपुर सीकरी के ३० किलोमीटर क्षेत्र में उत्खनन करवाया, तो उन्हें कई मंदिरों के अवशेष मिले। अकबर से पहले यह मंदिरों का एक नगर था। मात्र अकबर को महिमामंडित करने के लिए यह झूठ गढ़ा गया कि फतेहपुर सीकरी अकबर द्वारा बनवाया गया। इसी प्रकार ताजमहल भी पूरी तरह से भारतीय आर्किटेक्चर की निशानी है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि किसी भी बात को मानने से पूर्व स्वयं शोध करें ...
रोटी ही बहुत है
कविता

रोटी ही बहुत है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** घर में न हों जो चार, दाने तो कहीं भी यार, मिल जाए रूखी सूखी, रोटी ही बहुत है। गंजी खोपड़ी पे केश, बचे हों विशेष शेष, तो भी चार बालोंवाली, चोटी ही बहुत है। जेब में न हो छदाम, रखा हो कुबेर नाम, ऐसे नामी को तो खरी, खोटी ही बहुत है।। लट्ठ देख भाग उठे, बिना लिए प्राण ऐसे, भागे हुए भूत की लँगोटी ही बहुत है।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
मसीहा
कविता

मसीहा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वीरान बस्ती का मसीहा भटकता हुआ गाता जाता है गीत तन्हाइयों के देखता है, दिखाता है रूप उन महल खंडहरों के जो बदल चुके हैं खो गए हैं कहीं वीराने में। वीरान बस्ती का मसीहा सुनाता है सुनाता जाता है दर्दो गम अपने और गैरों के यह नहीं सुनते हैं सिर्फ, और सिर्फ खड़े दरख़्त, सुनसान सड़कें और वीराने में भय का आभास। वीरान बस्ती का मसीहा सुनता है सुनाता जाता है। देखता है दिखाता जाता है पर इसके सृजक, ध्यान मग्न है उस बगुले से जो अपने स्वार्थ के लिए गंदे पानी में एक पैर पर खड़ा बात हो रही है किसी सफेद पोते चेहरे की उसे फुर्सत कहां वीरान बस्ती के मसीहा की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभि...
शुभम सनातन वर्ष
स्तुति

शुभम सनातन वर्ष

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** चैत्र शुक्ल की प्रतिप्रदा, शुभम सनातन वर्ष। सृष्टि रची भगवान ने, जीवन हो उत्कर्ष।। तन मन को निर्मल करे, चैत्र सुदी नवरात्र। नियम-धरम से जो रहे, बनता सुख का पात्र।। प्रभुवर ने इस माह में, ले मत्स्य अवतार। मनु की रक्षा खुद करी, नाव उतारी पार।। पावन निर्मल माह ये, शुचिता से भरपूर। ईश्वर की जिन पर कृपा, रहें दुखों से दूर।। नौ दिन हैं नवरात्रि के, करें हृदय सुखधाम। नवमी तिथि पावन बड़ी, जन्में हैं श्री राम।। चैत्र सुदी नवरात्रि में, सजे मातु दरबार।। घट की होती स्थापना, बँधते बन्दनवार।। मैया मेरी आ गयी, ध्वजा लिए हैं हाथ। रक्षा माँ सबकी करो, चरण झुकाऊँ माथ।। मातु भगवती पाठ से, होती विपदा दूर। ध्याएँ निर्मल भाव से, कृपा मिले भरपूर।। परिचय :-  अर्चना तिवारी "अभिलाषा" पिता : स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद बाजप...
गगन गोचर देव प्रचंड हैं
छंद

गगन गोचर देव प्रचंड हैं

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण ॐस रवये नम : गगन गोचर देव प्रचंड हैं । प्रसरते चहुँ रश्मि अखंड हैं ।। परम ज्योति अलौकिक धन्य है । सुखद चारु सरूप सुरम्य है ।। जगत भासित है तुमसे शुभी । निरत रहते ना रुकते कभी ।। जपत जे प्रभु भानु हँ नित्य हैं । भरत ते धन-धान्य सुकृत्य हैं ।। अदिति पुत्र प्रभो तम नाशिकी । रवि अहस्कर तेजस मानकी ।। इसलिए इनको कहते चहूँ । कनक रूप धरे दिखते दहूँ ।। निशि-दिना जगते सुप्रभास हैं । जगत के इक सुन्दर आस हैं ।। अरुणि सारथि हाँकत स्यंदना । करत देव जती सब वंदना ।। दिखत अद्भुत दृश्य मनोहरा । अरुणिमा बिखरे जब भास्कर ।। जयति भानु विकर्तन देवता । प्रथम पूज्य अर्क विभेदता ।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्ड...
तमाम मामले ग़ैरों पे डाल देता है
कविता

तमाम मामले ग़ैरों पे डाल देता है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** तमाम मामले ग़ैरों पे डाल देता है वो बार बार सलीके से टाल देता है मेरा खुदा भी गुनाहों की दे रहा है सज़ा मेरा नसीब भी सिक्का उछाल देता है कभी समझ ही न पाया मैं अपने हाकिम को ज़रा सी बात पे कितने सवाल देता है मैं कितने लफ़्ज़ को आख़िर संभाल कर बोलूं वो एक लहजे पे दिल से निकाल देता है नहीं कुछ होगा तुम्हारी किसी भी कोशिश से वही उरूज वही फिर ज़वाल देता है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
रहने दो
कविता

रहने दो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ ख्वाहिशें अधूरी है तो रहने दो। मोहब्बत की तरफ पाव नहीं जाते तो रहने दो। अपनापन दिखा कर भी कोई अपना नहीं बनता तो रहने दो। मंदिरों मस्जिदों में घूम कर भी हृदय नेक पाक नहीं होता तो रहने दो। दिलों जान से मोहब्बत करने के बाद भी तुमसे किसी को इश्क नहीं होता तो रहने दो। दिल्लगी के बाद भी कोई दिलदार नहीं बनता तो रहने दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
जल ही जीवन है
कविता

जल ही जीवन है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जल है तो कल है, कल से ही सकल है। जल‌ है तो फल‌ है, फल से ही सफल है। जल है तो अधि है, अधि से ही जलधि है। जल‌ है तो वारि है, वारि बिना व्याधि है। जल ही तो अज है, जल से ही जलज है। जल है तो आज है, आज से ही समाज है। जल है तो वन है, वन से ही जीवन है। जल है तो घन है, घन से ही सघन है। जल है तो बल है, बल से ही सबल है। जल है तो हल है, ‌ हल से ही महल है। जल ही तो नीर है, नीर से ही समीर है। जल है तो खीर है, खीर से ही बखीर है। जल है तो तन है, तन से ही वतन है। जल है तो मन है, मन से ही मनन है। जल है तो वर्ण है, वर्ण से ही सवर्ण है। जल है तो वर्ग है, वर्ग से ही संवर्ग है। जल है तो धन‌ है, धन बिना निर्धन‌ है। जल है तो जन है, जन से ही सज्जन है। जल है तो जीव है, जीव से ही सजीव है...
एक प्रेम कहानी
कविता

एक प्रेम कहानी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** एक प्रेम कहानी तुम्हें सुनाऊँ। सच्ची घटना तुम्हें बताऊँ।। जिससे मेरी आँख लड़ी। वो लड़की मुझसे खूब लड़ी।। बेमतलब बोला करती है वो। जहर उड़ेला करती है वो।। सुन सुन कर थक जाता हूँ मैं। हार के चुप हो जाता हूँ मैं।। चुप देख मुझे चुप हो जाती है। मेरी हार देख खुश हो जाती है।। वो नखरे खूब दिखाती है। मुझे देख के मुँह बिजकाती है।। उसे देख के गुस्सा आता है। फिर उससे मन चिढ़ जाता है।। वो मुझको खूब चिढ़ाती है। हँस के गैरों से बतियाती है।। जब थक जाती खूब चिढ़ाने से। तब बोले किसी बहाने से।। जब उसको लगता क्रोधित हूँ मैं। उसकी बातों से आहत हूँ मैं।। झट से वह रो देती है। गुस्से को मेरे धो देती है।। मैं माफ उसे कर देता हूँ। उसको बाहों में भर लेता हूँ।। सब कहते लड़की भोली है। बस कड़वी थोड़ी बोली है।।...
नव वर्ष हमारा
कविता

नव वर्ष हमारा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** सबसे प्यारा नव वर्ष हमारा सारी दुनिया से न्यारा हर मजहब का करता स्वागत जिसको सब धर्मो ने स्वीकारा आशाएं फले फूले, घर-घर हो मंगलगान ये संकल्प हमारा उमंग और उत्साह ये दिलाता दिल से लगता कितना प्यारा अंगद, गौतम झूलेलाल आज के अवतरण, आँखों का तारा आर्यवृत भारत के हम वासी है न कर पाया हमे कोई न्यारा माँ शक्ति का महापर्व है आज मिले नोमी को राम अवतारा चारो पौरूषार्थ कामना का पर्व सुख समृध्दि का पर्व है सारा सृष्टि की रचना रच गए ब्रह्म देव ऐसा चैत्र प्रतिप्रदा २०८० हमारा मंगलमय हो मिले खुशियाँ अपार एक दूजे के हम बने मोहन सहारा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
तुझे क्या लिखूँ
कविता

तुझे क्या लिखूँ

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** कलम जब करिश्मा करती है और शब्द नृत्य करने लगते हैं तब कविता का सृजन होता है कविता अन्तर मन में की गई वो थपकी है जो रूह को सुकून देती है !!!! हूँ मैं कश्मकश में कविता तुझे किया लिखूँ समंदर में बहती हुई सरिता तुझे क्या लिखूँ गुलशन में आज़ाद पक्षियों की चहचहाहट लिखूँ पिंजरे में क़ैद इन परिन्दों की छटपटाहट लिखूँ शजर से झरते इन पत्तों का गरल वियोग लिखूँ नई कोंपलों के उदय का सुहाना सुयोग लिखूँ इठलाते समंदर के खारेपन का अभिशाप लिखूँ दरिया का सिन्धुराज से मिलने का मिलाप लिखूँ सूरज की तपिश से तपती धरती की व्यथा लिखूँ सावन से भीगी इस धरा की उन्मुक्त गाथा लिखूँ उसकी ख़ुशबू से महकता दिल का गुलशन लिखूँ उसके न होने से वीरान होता मन का उपवन लिखूँ डूबती हुई इस शाम का धुंधला सा प्रकाश लिखूँ उगते सूरज का *मधु* सिन्दूरी सा उल...
जब श्रृंगार सजाती कविता
कविता

जब श्रृंगार सजाती कविता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** भाव हृदय का बाहर आकर, कविता बन जाता है। अगर भाव दिल को छू जाए, तब जन-जन गाता है। कविता क्या है,भाव हृदय का, प्रमुदित मन हो जाता भावविभोर खिला जीवन को, सुंदरवन हो जाता। उठा कलम कुछ भी लिख डाला, तब कविता रोती है। सार्थक लिखे कलम जिसकी भी, वही सीप मोती है। अरी कलम, लिख डाल भुखमरी, और गरीबी लिख दे। अत्याचार पाप तू लिख दे, मजबूरी भी लिख दे। रही लेखनी सदा समर में, कवियों का ही गहना। दिनकर सूर निराला जी की, कविता का क्या कहना। कभी तोड़ती पत्थर लिक्खा, मीरा का दुख दर्द लिखा। रसवंती हुंकार भी लिखी, कुरुक्षेत्र, प्रणभंग लिखा। मन की वीणा झंकृत होती, जिसको पढ़ लेने से। कैसे कोई कवि बन सकता, कुछ भी लिख लेने से। कविता भाती सारे जग को, है इतिहास पुराना। ओजपूर्ण कविता का जग में, सब ने लोहा मा...