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साहस भर लो अंतर्मन में
गीत

साहस भर लो अंतर्मन में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा। जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा। काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं। जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।। मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है। सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।। असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है। रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।। चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है। एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।। हार मिलेगी, तभी जीत की...
मैं चेतना हूंँ …
कविता

मैं चेतना हूंँ …

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं सोचती हूंँ, जन्मतिथि पर तुम्हें क्या उपहार दूंँ, तुम स्वयं में चेतना हो। जीवन जीने की कला है तुममें, तुम्हें क्या सीख दूँ, तुम स्वयं में प्रज्ञा हो। नित नवीन सद्विचार लाती हो, तुम्हें क्या उपदेश दूँ, तुम स्वयं में ज्ञानवती हो। जन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ देती हो, तुम्हें क्या याद दिलाऊँ, तुम स्वयं में सुधि प्रकाश हो। मैं तुम्हें ह्रदय से पुकारती हूंँ, सुनो चेतना ! मेरी अंतरात्मा की आवाज, इस दिवस उर-मस्तिष्क की बधाई स्वीकार करो, स्वयं के साथ-साथ औरों का उद्धार करो। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
ये दाग़ कौन धोएगा…?
आलेख

ये दाग़ कौन धोएगा…?

माधवी तारे लंदन ******************** लंदन में यहां की संसद में राहुल गांधी का वक्तव्य सुन कर मन द्रवित हो गया। आज तक कितनी बार मैं यहां आई हूं पर ऐसा अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ। भारत के लोकतंत्र का चीरहरण और खासकर देश के प्रधानमंत्री की बुराइयां, बीबीसी जैसे ख्यात न्यूज चैनल पर सुनकर मुझे गुस्सा आया। परदेश की सर जमीं, जहां पर अपने ही देश का मूल निवासी जो उच्च पद पर आसीन है, उनके सम्मुख देश के लिये अपमानजनक शब्दों को सुन कर गुस्सा नहीं आएगा क्या? परदेश में अपने देश की बुराई सुनकर मैं शर्मसार हो गई। गुस्से में मैंने मेरे बेटे को टीवी बंद करने को कह दिया। एक साधारण सा सांसद, जिनके पूर्वजों ने ७० साल तक इस देश की बागडोर संभाली और अनिर्बंध रूप से शासन चलाया। उनके एक शख्स का देश के प्रजातंत्र पर कुठाराघात करते हुए आलोचना करना, हमारे जैसे भारतीयों की नाक कटवाने जैसा है। वर्तमान में अपना सर उ...
हे प्रेम जगत में सार
दोहा

हे प्रेम जगत में सार

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** हे प्रेम जगत में सार कोई सार नही, मन करले प्रभु से प्यार और कोई प्यार नही। भाव का भूखा हूं मैं भाव ही एक सार है, भाव से मुझको भजे तो समझो बेड़ा पार है। प्रेम के कारण ही भगवान श्रीराम जी, ने शबरी के यहां जूठे बेर को खाए। प्रेम कारण ही श्री-कृष्णा जी ने विदूर, के यहां केले के छिलके के भोग लगाए। प्रेम न उपजे बाड़ी में प्रेम न बिके बाजार, प्रेम करले उस परमात्मा से करेगें बेड़ा पार। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
आसमां ने कहा
कविता

आसमां ने कहा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। क्यूँ मायूस है आज तू, क्यूँ खफा है आज तू, मैने भी उससे कहा, सून ले आज तू, ना मै मायूस हूँ, ना मै खफा हूँ। चाँद की चाँदनी, आज कुछ यूँ बिखरी, चेहरे की मुस्कान ने, कुछ यूँ बयांकिया, देखते ही देखते, सपनो का बादल यूँ छटा, मानो सारा भ्रम अभी टूटा। आँखो मे नीर था, मन मे उद्वेग था, क्या आज तुमसे मै, मायूस और खफा था। आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी...
तुम आगए
कविता

तुम आगए

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** अब तुम आगए सब रंग छागए नज़र क्या उठी दिल में समागए होली के बहाने, वो ओर करीब आगए क्या बोछार हुई गीत वो सुना गए बेरंग जो लगते कल आज हमें भीगा गए खार से लदी राहे थी आज हमें सजा गए जीने के ढ़ंग निराले मोहन गले लगा गए परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हि...
प्रेम का दीपक जला दो
कविता

प्रेम का दीपक जला दो

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवींद्रनाथ टैगोर की कविता Light the lamp of thy love का हिंदी रूपांतर हे प्रभु, मेरे ह्रदय में अपने हाथों से प्रेम का दीपक जला दो आलोकित कर दो मेरे ह्रदय को प्रेम की किरणों से इसकी मोहक किरण ह्रदय को भेद जाए बदल कर मेरे भावों का संसार। हे प्रभु, दूर कर दो तम को ह्रदय के उसमें प्रेम का प्रकाश भर दो दुर्भावना में सद्भावना जगा दो दुर्व्यसनों को जलाकर ह्रदय में सद्गगुणों का वास कर दो हे प्रभु, एक बार तो कर दो स्पर्श मेरा मैं बदल जाऊँगा, मेरा मृदातन स्वर्ण बन जाएगा इंद्रिय-जाल से ढके मेरे अंतर को अपने प्रेम प्रकाश से भर दो कुत्सित भावनाओं का दमन कर दो इंद्रियों का शमन कर दो हे प्रभु मेरे ह्रदय में प्रेम का दीपक जला दो। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिट...
घर बैकुंठ
कविता

घर बैकुंठ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आज खो गया हूँ अतीत में, याद पुरानी आई। याद पुराना घर आया है, जिसमें उम्र बिताई। रहता हूँ तिमंजिलें घर में, पर वह मजा कहाँ है। ऊधम के बदले में पाई, अब वो सजा कहाँ है। लिपता था जब घर का आँगन, गोबर और चूने से। घर बैकुंठ नजर आता था, हाथों के छूने से। घर से लगे एक कमरे में, गाय बँधी रहती थी। पानी गिरता था छप्पर से, खुशी-खुशी सहती थी। लक्ष्मी जी से पहले पूजन, होता था गैया का। शुद्ध दूध से भोजन होता, था छोटे भैया का। कच्चे घर में पक्के रिश्ते, प्यार भरे दिखते थे। सीता-राम लाभ-शुभ घर के, द्वारे पर लिखते थे। मिट्टी घास-फूस से मिलकर, बनते थे घर प्यारे। घर के आँगन से दिखते थे, सूरज चाँद सितारे। बिना साधनों के ठंडक थी, खुशहाली थी घर में। थे पुष्पित गाँवों में रिश्ते, दिखते नहीं नगर में। ...
कहो कैसे हुआ
मुक्तक

कहो कैसे हुआ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कहो कैसे हुआ यह सब, मनुज का दिल ज़हर देखो। हुए हैं क्रूर वे कितने, ज़रा तो आचरण लेखो। बचाना अब तो हमको बेटियाँ, यह ही शपथ लें हम, करें सब काम अब चोखा व्यर्थ नारे नहीं फे़को।। गर्भ में मारते क्योंकर, जन्म लेने तो उनको। वे हैं जननी, बहन-पत्नी, शिकंजे में कसा जिनको। नहीं पर ज़ुल्म का यह दौर, आगे चल सकेगा अब, ज़रा समझाओ, अब बदलो, अपावनता भरे मन को।। सुनो हर हाल में, अब तो बचाना बेटियां हमको। पुत्र ही होता है बेहतर, बदलना आज मौसम को। उठो नामर्द सारे चेतना कुछ तो जगा लो अब, बदलना ही बदलना है, मलिनता, दर्द और ग़म को।। न मारो गर्भ में कोमल कली को, फूल बनने दो। महकने दो, चहकने दो, सुवासित होके खिलने दो। न शोषण बेटियों का हो, यही बस आज हो जाए, जहाँ की हर खुशी, आनंद, बेटी को तो मिलने दो।। परि...
फ़रेबी
कविता

फ़रेबी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुझे मालूम है वह फरेबी है, पर मुझ तन्हा के लिए वहीं तो सबसे करीबी है, मकड़जाल से ज्यादा उलझनों वाली रिश्तों का भयानक रूप, मेरे लिए वो जरूर है कुरूप, पर वही है मेरे सिर को छांव देता रोककर कंटीली नुकीली धूप, उसके कारण थोड़े बोल लेता हूं नहीं रहना पड़ता है चुप, उनका लगाव तो देखिए लाखों संभावनाएं के बाद भी सिर्फ मुझसे ही फरेब करता है, मेरे लिए प्यार इतना उनका मुझे छोड़ दुनियादारी से डरता है, कहता है आपको शत्रु की क्या जरूरत जब मैं आपके साथ हूं, कुछ और की चाहत क्यों मैं ही तो जज्बात हूं, देता है दर्द रिश्तों का दिया हुआ, अब मैं हो चुका हूं मर मर के जीया हुआ, अब तो एक जैसा है नफरत और लाड़, अब कोई प्यार जताये या लताड़। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प...
सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता
कविता

सूरज मुझे जगाता चाँद मुझे सुलाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की पहली किरणें पलकों को सहलाती मेरी अँगड़ाई लूँ, वक़्त नहीं उनींदी ही मैं उठ जाती मुन्नू को लिहाफ़ उड़ाके खिड़की पे पर्दा सरकाती ख़लल, पति को नापसंद धीरे से किवाड़ अटकाती मन में प्रभु को याद कर फ़िर चाय अपनी चढ़ाती यही पहर मेरा अपना है अख़बारों पे नज़र घुमाती कोई अनपढ़ ही ना कह दे ख़बरों की खबर मैं रखती हाथों की कसरत चालू है मटर मैथी की सफ़ाई में झटपट मैं नहाकर आती मुन्नू व पति की हाज़िरी में फ़टाफ़ट दो टिफ़िन लगा तौलिया हाथों में थमाती बरौनी व दूधवाले का भी मुहरत यही तो होता है ? पोछ पसीना दौड़ लगाती मुन्नू का तांगा आया है हाय बाय करूँ कब कैसे बिगड़े गए तेवर पति के डिनर,पसंद का बनाना है अस्त व्यस्त हुए घर को रोज रोज सजाना है ख़ुद को ना सँवारूँ तो बेढंगी कहलाती हूँ मैं समझ नहीं पाती हूँ मैं किसको कैसे स...
समाधान ढूँढने होंगे
कविता

समाधान ढूँढने होंगे

रंजना श्रीवास्तव नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** देश प्रेम स्वच्छता की आदत और एक स्वस्थ सोच, शिक्षा में क्रांति आवश्यक जो नैतिकता को दे ओज। सुविधासम्पन्न औलादें कर रहीं अनाज की बरबादी, वहीं गुज़र बसर मुश्किल हुई भूखी चौथाई आबादी। फोन से मन हटता नहीं दिन भर फोटो मैसेज कॉल, मुखिया भी न बच सके सपरिवार मानसिक फॉल। राजनीति के कूटनीतिक खेल में जातिवाद गहराया, सफलता क्यों न चूमें कदम मुफ्त अनाज बँटवाया। मानसिक स्वास्थ्य की किसे पड़ी कर्मसिद्धान्त छूटा, अस्मत को बर्बाद किया निर्भया को नोच-नोच लूटा। बस कार मोटर काला धुआँ बढ़ता जाए प्रदूषण, खाँस-खाँस अधमरे हुए सब घटता जाए जनजीवन। दिखावे का आवरण चढ़ा निज प्रशंसा बार-बार, संयमित जीवन जीने वाले सहज छोड़ते हैं घर बार। भौतिकतावादी संसार में क्यों बेवजह जश्न मनाना, शोर शराबा और भ्रम में जीना अच्...
सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’
पुस्तक समीक्षा

सबरस समाहित अद्वितीय कृति है ‘निहारिका’

  पुस्तक का नाम- निहारिका समीक्षक- आशीष तिवारी "निर्मल" रचनाकार- कवि उपेन्द्र द्विवेदी रूक्मेय प्रकाशक- विधा प्रकाशन उत्तराखंड कीमत- २२५ कवि सम्मेलन यात्रा से मैं लौटकर रीवा पहुंचा ही था कि देश के तटस्थ रचनाकार कवि उपेन्द्र द्विवेदी जी का फोन आया कि अल्प प्रवास पर रीवा आया हूं शीघ्र ही राजस्थान निकलना है। मैं बिना समय गवाएं उपेन्द्र जी से मिलने पहुंचा तो एक गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद उन्होंन अपनी एक अद्वितीय व दूसरी कृति 'निहारिका' मुझे भेंट की। इसके पहले मैं उनकी एक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कृति राष्ट्र चिंतन पढ़ चुका था। अत: दूसरी कृति पाकर मन प्रसन्न हो गया। उपेन्द्र जी एक संवेदनशील कवि हैं। वे सबरस कविता और गद्य लेखन दोनों में सामर्थ्य के साथ अपनी रचनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। कवि उपेन्द्र द्विवेदी काफी समय से लेखन में सक्रिय हैं। दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ...
लक्ष्य की ओर
कविता

लक्ष्य की ओर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** दौड़ सकता है तो दौड़, भाग सकता है तो भाग। मंजिल पाने के लिए, अंतर्मन में लगी है आग।। ठण्डे खून के उबलने तक या खून सूखने तक। पागलपन की जुनून तक या मुर्दा बनने तक।। जब तक मंजिल ना मिले, राहों में तुम रुकना नहीं। चुनौतियों का सामना करना, स्वयं कभी टूटना नहीं।। जीवन की सांसें फूलने तक या सांसें रुकने तक। कंकाल की राख उड़ने तक या चमड़े गलने तक।‌। कुछ विरोधी और बुरे लोग, तुम्हें पथ से भटकायेंगे। खूब हंसी उड़ेगी गलियों में, जन भ्रमजाल फैलायेंगे।। मिट्टी में दफन होने तक या सब कुछ खत्म होने तक। आत्मा की शुद्धि होने तक या परमात्मा दिखने तक।। डटे रहना मैदान में वीर योद्धा, शत्रुओं को करने ढेर। धीरज रखना साहस भरकर, जीत में भले होगी देर।। हार के काली रात के बाद, आयेगी सफलता भोर। दृढ़ आत्मविश्वास से...
ज़िंदगी कभी
कविता

ज़िंदगी कभी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** ज़िंदगी कभी गमों में रूलाती है, ज़िंदगी कभी खुशी के पल बिताती है, ज़िंदगी कभी खुद से रूठ जाती है, जिंदगी कभी खुद ही खुद को मनाती है, जिंदगी कभी उल्लास मनाती है, जिंदगी कभी आंसू भी लाती है, ज़िंदगी कभी अपनों संग बांधे रखती है, जिंदगी कभी अपनो से दूर निकल जाती है, ज़िंदगी कभी भरपुर हंसाती है, जिंदगी कभी जम कर रूलाती है, जिंदगी कभी मिट्टी सी बन जाती है, ज़िंदगी कभी आसमां को छुं जाती है, ज़िंदगी हम से संघर्ष करवाती है, ज़िंदगी हमें जीना सिखाती है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र...
वजह तुम हो
कविता

वजह तुम हो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मेरे चेहरे की रौनक की वजह तुम हो। मेरे लबों पर आई मुस्कुराहट की वजह तुम हो। मेरे दिल की हसरत की वजह तुम हो। मेरे मन में आए एहसासों की वजह तुम हो। मेरे गालों में आई रंगत की वजह तुम हो। मेरे ह्रदय में आये जज्बातों की वजह तुम हो। मेरे होठों पर गुनगुनाते गीतों की वजह तुम हो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मुझे जग में आने दो
कविता

मुझे जग में आने दो

अजय गुप्ता "अजेय" जलेसर (एटा) (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे जग में आने दो अजन्मे की पीर से फटे बिवाई जो अधिकार की दे रही दुहाई मुझको जग में आने दो मां। यूं मत मुझको जाने दो मां। सदा तुझे आभार कहूंगी, मां तुझसे मैं प्यार करुंगी। मां तेरी हूं मैं लाड़ो प्यारी, बनूंगी सारे जग में न्यारी।। मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो.. मै हूं जीवित अंश तिहारा, मैं भी हूं तेरा वंश सहारा। बदला समय बताना होगा, पापा को समझाना होगा। बिगड़ गया अनुपात जताना, जनसांख्यिक हालात बताना। अगर न माने फिर भी पापा, मैं उनसे मनुहार करुंगी। जीवन भर आभार कहूंगी।। मुझे जन्म दो, मुझे जन्म दो.. लक्ष्मीबाई या मदर टेरेसा, क्या कोई बन पाया बैसा। केवल ना एक धाय थी पन्ना, ममता का अध्याय थी पन्ना। जरा बता दो प्यारी अम्मा, दादी को समझाओ मम्मा। सब गुण अंगीकार करुंगी, जीवन भर उपकार करुंगी।। ...
नारी तू नारायणी
दोहा

नारी तू नारायणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तू नारायणी, है दुर्गा का रूप। रमा, उमा, माँ शारदे, में तेरी ही धूप।। नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना, मान। जिस गृह रहती तू वहाँ, पलता नित उत्थान।। नारी तू नारायणी, जीवन का है सार। तेरे कारण ही मिला, जग को यह उजियार।। नारी तू नारायणी, है सुर, लय अरु ताल। गहन तिमिर हारा सदा, काटे तू सब जाल।। नारी तू नारायणी, तू हर पल अभिराम। तू धन, विद्या, नूर है, तू है मीठी शाम।। नारी तू नारायणी, गरिमा तेरे संग। खुशियों का उत्कर्ष तू, तेरे अनगिन रंग।। नारी तू नारायणी, रोते को है हास। मायूसी में तू रचे, जगमग करती आस।। नारी तू उर्जामयी, नारी तू तो ताप। तेरे गुण, देवत्व को, कौन सका है माप।। नारी तू नारायणी, ममतामय हर रोम। करुणामय, शालीन है, ऊँची जैसे व्योम।। नारी तू नारायणी, कभी न माने हार। साहस तेरा...
नारी क्या है?
कविता

नारी क्या है?

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** वो मानसरोवर, ऋषिकेश वो रामेश्वर वो संगम है वो मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का एक दृश्य विहंगम है।। वो लक्ष्मी, अहिल्या, नारायणी वो केशव की मीरा है वो सीता, सावित्री, गंगा वो बहती पवन समीरा है।। वो जननी, भगिनी और बेटी भाभी, बुआ और रंभा है वो काली, कल्याणी,दुर्गा कभी बन जाती वो अंबा है।। वो आशा, अभिलाषा, उम्मीदें वो प्रेम का बहता सागर है वो दया, करुणा,आदर की एक झलकती गागर है।।4 वो अपने हाथों के प्यालों से सदा प्रेम नीर बहाती है वह संकट में उलझे मन को हरदम ही सहलाती है।। वो मन के कोमल पंखों से ऊँची उड़ान भी भरती है वो सीने में कई दर्द छुपा कर ख्याल सभी का रखती है।। वो माथे की बिंदिया है वो भरी मांग है सिंदूरी वो है स्वर्णिम कंठ हार वो कंगन भी है बहुरंगी।। वो राखी की पावन डोरी वो चुनरवाली गणगौरी वो ...
कितना कठिन होता है
कविता

कितना कठिन होता है

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच, कितना कठिन, दूभर होता है एक स्त्री के लिए ख़ुद को समझना उससे भी कठिन औरों को समझाना वह सोचती है सबके लिए दिल से ख़याल रखती सभी का हर तरह से फोड़ा जाता है बुराई का ठीकरा बस और बस उसी के सिर पर पेट भरती है बचा खुचा खाकर ही सबको खिलाकर गर्म घी वाले फुलके सुनना पड़ता है बीमार होने पर उसे क्यों नहीं करती समय पर भोजन राय ली जाती है उससे हर मुद्दे पर नहीं मिलता गर मनचाहा परिणाम कोसा जाता है उसे बेवकूफ़ कह कर पर सफ़लता का सेहरा खुद बाँध लेते बच्चे अच्छे निकले तो पति के होते रक्तसम्बन्ध की दुहाई देने लगते बिगड़ी औलाद के लिए माँ जिम्मेदार उसी के दूध को दाग लगाते हैं सब अपनी रुचियों को छुपा कर कबर्ड में घर की रंगीनियों को ताज़गी देने टूटी कूची, सूखे रंगों को धूप दिखाती भूलती आँगन में उतरे सूरज को परिचय : सरला मे...
करुणा
कविता

करुणा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छल, कपट, दुष्काम, लोभ,लालच के बीच पंकज की भांति खिलती है करुणा, जो दैदीप्यमान रवि की लाती अरुणा, यह सम्पूर्ण व्यक्तित्व का है सार, नहीं कोई लालच, नहीं कोई व्यापार, जियो और जीने दो, प्रत्येक को समता का रस पीने दो, आचार विचारों में करुणा लाओ, बुद्ध के और करीब आओ, अहम को घटाओ, वहम को मिटाओ, यह त्याग और शील का साथी है, मानवता का प्रेमपूर्ण पाती है, हर क्षण हर काल में है प्रासंगिक, हृदय में जगाती है प्यार अत्यधिक, बुद्ध, कबीर, रैदास, बाबा साहेब थे सब करुणा के वाहक, यूं ही नहीं इनका नाम लिया जाता नाहक, प्रकृति से, स्वकृति से, कर्म से मन से, निःस्वार्थ स्वच्छ तन से, प्रवाहित होती है करुणा, बस खुद में है भाव जगाने की जरूरत, तब चहुँ ओर नजर आएंगे करुणा लिए बुद्ध ही बुद्ध की सूरत। ...
कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने
ग़ज़ल

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने या मुहब्बत बची हैं दरमियां अपने हर इक चेहरा नया, अभी प्यार हुआ कुछ नजाकत बची हैं दरमियां अपने वो मुहब्बत नहीं शायद नादानिया थी अपनी शरारत बची हैं दरमियां अपने चाँद तोड़ लाते थे मुहब्बत में लोग इक नदामत बची हैं दरमियां अपने कह न पाए आपस मे बारहा हम तुम यही शिकायत बची हैं दरमियां अपने जीना किसको हे ताअबद यहाँ पर एक कयामत बची हैं दरमियां अपने हम छुपा भी गए ख़ामोशियों को यही हकीकत बची हैं दरमियां अपने बारहा नज़र उठतो तेरी सूरत पर मेरो कोई चाहत बची हैं दरमियां अपने तेरा अतीत मेरी ज़िंदगी बन गई यारो यही इमारत बची हैं दरमियां अपने मेरे अलफ़्फ़ाज सुनाइ नहो देते मोहन यही मुसीबत बची हैं दरमियां अपने नजाकत-कोमलता नदामत-पश्चाताप ताअबद-अनंत काल तक पर...
वो शख़्स दूर होने लगा
कविता

वो शख़्स दूर होने लगा

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** उसकी शोहरत में इजाफा जो होने लगा, वो हमसे अब दूर होने लगा, छा गया नशा शहर की चकाचौंध का उस पर, मेरे गांँव से अब वो शख़्स दूर होने लगा, बदल लिए हैं उसने अपने दोस्त अब सारे, नये दोस्तों का खुमार उस पर होने लगा, भूल गया है साथियों को अब वो पुराने, उसको तो बस दौलत से प्यार होने लगा, पहचानता नहीं है पुराने किसी यार को अपने, जो नई-नई दौलत का गुमान उसे होने लगा, तोड़ दिए हैं ख़्वाब सीधे-सादे साथियों के उसने, नई-नई शोहरत का नशा उस पर होने लगा, मिला था उसका भाई मुझे गाँव के चौराहे पर, पुछा उसके बारे तो उसे याद कर वो रोने लगा, उम्मीद छोड़ दी हम ने उस शख़्स से अब तो, जो अपनों करीबियों से भी अब दूर होने लगा, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर...
वादियाँ बुला रही है
कविता

वादियाँ बुला रही है

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शहरी चकाचौंध से दूर, कोलाहल से इतर, सुकूं से गुजारने दो पल, ये वादियाँ बुला रही हैं। पक्षियों का कलरव, नदियों की कल-कल, प्रकृति का संगीत सुनाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। फूलों से सजी ये घाटियाँ, बर्फीली ये चोटियाँ, इन्हें जी भर निहारने, ये वादियाँ बुला रही हैं। पर्वतों की सर्पिल डगर, झरनों की ये झर-झर, नजारों को मन में बसाने, ये वादियाँ बुला रही हैं। चारों ओर बिखरी हरियाली, उगते सूरज की लाली, उर में भरने आनंद समंदर, ये वादियाँ बुला रही हैं। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एव...
हे! नारी तू उठ
कविता

हे! नारी तू उठ

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** हे! नारी तू उठ जा विजयपथ पर जीत का परचम लहरा जा तू मत डर आंधी की तरह बढ़ आगे डटी रहो जीवन रथ पर अरमानों को मत दबा रख बाजुओं पर भार अपना चल पड़, निकल ले उठा ले खुद को। राहों में मिलेंगे टेढ़े-मेढ़े रास्ते मत डरना मत रुकना डटी रहना पथ पर मंजिल की कुछ दूरी पर होगी तू डांवाडोल जरूर फिर ऊर्जा से भर जाना रास्ता अब नजदीक है पथ पर पहुंचेगी ठोकरे होंगी हजारों सीमा ठोकरों को मार ठोकर बढ़ जाना विजय की ओर परचम जीत का लहरा देना मर्दानी तू, दुर्गा रूप में खड़ी रहना सिंह पर हो सवार डटी रहना विजय रथ पर लहरा देना जीत का परचम है नारी तू डटना यूं ही परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ ब...