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क्या रोजगार पा सकेंगे हम

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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एक बात पूंछनी है रेहबरों बताओगे,
सच-सच बताओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

वादा किया था आप हमको देंगे रोजगार।
आएंगी रोनकें घरों में आएंगी बहार।।
उतरेगा बदन का लिबास जो है तार-तार।
सरकारी नौकरियों से कर पाएंगे श्रृंगार।।
सोचा न था निजीकरण पे आप जाओगे।
सारी ही नौकरियाँ ठेकों पे उठाओगे।।
कुछ को बढ़ाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

विश्वास किया आपको हम चुनके ले आए।
परचम उठाए आपके गुणगान भी गाए।।
कुर्सी पे बिठाया है ऐसे पैर जमाए।
जिनको हिलाने कोई शूरवीर न पाए।।
उम्मीद न थी हमसे यूँ नजरें चुराओगे।
विश्वास एक जगा था बड़े काम आओगे।।
खुशियां लुटाओगे,
क्या रोजगार पा सकेगें हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

जाकर के नजर फेर लोगे किसको पता था।
आश्वासनों की भेंट दोगे किसको पता था।।
खुद आप महलों में रहोगे किसको पता था।
हमको बुरा भला कहोगे किसको पता था।।
घर बार बेच दोगे खुद जलेबी खाओगे।
एहसान मानने की जगह भूल जाओगे।।
मजे खुद उड़ाओगे,
क्या रोजगार पा सकेगें हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

सपने हमारे चूर-चूर हो गए हुजूर।
बदले हैं आप कितने क्रूर हो गए हुजूर।।
थे जितने पास उतनी दूर हो गए हुजूर।
दिल में हजारों क्यों फितूर हो गए हुजूर।।
अब और कितना आप हमको बरगलाओगे।
उंगली पे और कितने दिनों तक नचाओगे।।
बुद्धू बनाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

“अनंत” अब भी जागो सुनो देर न करना।
सत पथ पे चलो अब भी अगर तुमको उभरना।।
शक्ति है एकता में है गुण इसका निखरना।
पतझड़ को बुला लाएगा यूँ टूट बिखरना।।
नफरत की आग में ये देश क्या जलाओगे।
पुरखों की पगड़ी अपने लिए बेच खाओगे।।
सबको रुलाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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