Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: अख्तर अली शाह “अनन्त”

तू शीतल मंद समीर
कविता

तू शीतल मंद समीर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू शीतल, मंद समीर बनी, ठंडक मुझको पहुंचाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। ठंडा करना तेरा गुण है, तू गहरा शांत सरोवर है। मैं सरिता का चंचल चेहरा, निर्भीक बनी तू पत्थर है।। हर चोट सहज ही सह लेती, हंसती मूरत मदमाती है।। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। संतोषी है तू साबिर है, खुश उसमें जो मिल जाता है। राजी तू रब की मर्जी पर, हर मौसम तुझ को भाता है।। घर भर को तृप्त करें पहले, कब भूख तुझे तड़पाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। ठंडी पट्टी जब माथे की, तपते तन की बन जाती तू। छू मंतर कर देती दुख सब, यूँ चारागर कहलाती तू।। "अनंत" तू ममाता की देवी, शीतलता तेरी थाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, ...
कोरोना का टीका
गीत

कोरोना का टीका

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** राहत सरकारी पाना हो, गर तुझको सुखदाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ****** टीका नहीं लगाओगे तो, कैसे सफर करोगे। कंट्रोल के राशन के बिन, कैसे पेट भरोगे।। सुविधाओं से वंचित रहना, तो होगा दुखदाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ***** अगर परीक्षा देनी पहले, टीका बहुत जरूरी। लापरवाही क्षम्य नहीं है, हसरत रहे अधूरी।। शर्त यही पहली प्रवेश की, हमने यार लगाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ***** हो कोई सम्मेलन चाहे, उसको मान दिलाए। टीका लेने वाला ही तो, प्रथम पंक्ति में जाए।। जो अपना ही दुश्मन हो, कब जाने पीर पराई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ****** सेवाहित ऑफिस जाना हो, लो टीका फिर सेवा। वेतन रुक जाएगा वरना, दूर रहेगा मेवा।। टीके का प्रमा...
लोक अदालत और गांधी दर्शन
कविता

लोक अदालत और गांधी दर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सभी सुखी खुशहाल रहे सब, गांधी जी का ये सपना था। भले कोई कितना दुश्मन हो, वो भी तो उनका अपना था।। गांधी के सपनों का भारत, ये था इसको याद रखें हम। उनके पदचिह्नों पे चलकर, भारत को आबाद रखे हम।। सत्य अहिंसा की ताकत से, कब तक कतराएगी दुनिया। है विश्वास यकीनन एक दिन, इस पथ पर आएगी दुनिया।। जिसकी लाठी भैंस उसी की, क्या ये सोच बनी फलदाई। झगड़े से झगड़ा बढ़ता है, क्या दिल से आवाज न आई।। सदा युद्ध के परिणामों में, जीता एक, एक हारा है। पर क्या हार जीत ने बोलो, समाधान को स्वीकारा है।। समाधान की दिशा अहिंसा, इसमें कोई हार नहीं है। जश्न जीत का दोनों ही मिल, मना सकें त्यौहार यही है।। नही फैसले, समाधान की, ओर बढ़ें तो सुख पाएंगे। लोक अदालत गांधी दर्शन, है ये सब को समझाएंगे।। *...
बदला-बदला मौसम का मन
ग़ज़ल

बदला-बदला मौसम का मन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बदला-बदला मौसम का मन, बादल घिर-घिर आते हैं। विरही नैना मन आंगन में, अंगारे बरसाते हैं।। ***** नींदे रातों की रूठी है, रूठे हैं सपने सारे। काले बादल बरसे हैं, बैरन काली रातें हैं।। ***** चुभन बड़ी बेदर्दी से तब, दर्द बढ़ा देती तन का। गीली नर्म हवा के झोंके, जब-जब शूल चुभाते हैं।। **** कितनी पीड़ा होती होगी, आंखों से निकले आँसू। मौन लबों के रहते भी सब, राज उगलते जाते हैं।। ****** पानी आग बुझाने वाला, जब शोले भड़कता है। सिर्फ तपस्वी तन ही उसको, काबू में कर पाते हैं।। ***** मदिरा ऊपर से जब बरसे, पवन नशीला बन जाए। पीने वाले क्यों चूकेगें, अपनी प्यास बुझाते हैं।। ***** गीली राते हों साथी हों, "अनंत" जिनके पहलू में। रोज दिवाली होती उनकी, हर दिन ईद मनाते हैं।। **** ...
जनसंख्या बढ़ती जाती है
गीत

जनसंख्या बढ़ती जाती है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** जनसंख्या बढ़ती जाती है, कौन नियंत्रण कर पाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ***** सोच समझकर काम करें हम, खुशहाली घर आंगन लाएं। मनमाने आचरण हमेशा, हमें गर्त में लेकर जाएं।। शोलों पे चलने वाला क्या, गीत मल्हार कभी गाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ****** धरती जितनी है उतनी ही, रहने वाली है ना भूलें। सत्य यही है याद रखें हम, कोरे भ्रम में कभी न झूलें।। क्या कोई घर बना हवा में, मालिक घर का कहलाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ****** भार बढ़ाया धरती पर तो, टुकड़े टुकड़े हो जाएगी। इसकी या उसकी होगी तब, काम कहां सबके आएगी।। पैर काट जो बना अपाहिज , खुद पे कहर फकत ढ़ाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ******** कितनी म...
भंवर में सफीना
ग़ज़ल

भंवर में सफीना

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** गजल - १२२,१२२,१२२,१२२ भंवर में सफीना न हिम्मत डरी है। न गम जो झुके हैं खुशी कब झुकी है।। उधर एक कंधों पे वो जा रहा है। इधर एक दुल्हन चली आ रही है।। यही जिंदगी है मुसलसल लड़े जो। गमों में खुशी गुनगुनाती फिरी है।। महामारिया भी बहुत देख ली हैं। डरें तो डरें क्यों खुदा तो नहीं है।। खिंजा है कभी तो कभी हैं बाहरें। झरे पात शाखे शजर तो हरी है।। भले रात कितनी ही लंबी रही हो। मगर रात की भी सहर तो हुई है।। हकीकत यही है बता दो सभी को। चली कब किसी की भी दादागिरी है।। खुशी कब किसी की ऐ "अनंत" हुई है। बड़ी बेवफा है बड़ी मनचली है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नी...
हम कबीर के वंशज
गीत

हम कबीर के वंशज

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कलम हाथ में है हमको ये, नाविक पार उतारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। हिन्दू मुसलमान दोनों को, जो उठकर ललकार सके। अंधकार को नूर के कपड़े, पहना कर तम मार सके।। नहीं दुश्मनी किसी से पाली, मित्र सभी के कहलाये। क्या करते वे आईना थे, सब के दाग नजर आये।। हम भी उनके पथ अनुगामी, लोक हमें स्वीकारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। अपनी प्रतिभा और गति को, अपनी जिद से चमकाई। राम नाम का मंत्र सीखकर, निर्गुण की महिमा गाई।। मंदिर मस्जिद काबा काशी, छाप तिलक या हो माला। सब को दूर रखा चाहत को, अपना खुदा बना डाला।। यही सिखाया कर्म सभी के, पथ के खार बुहारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। जिस पथ चले "अनन्त" कबीरा, पथ कबीर का कहलाया।...
अष्टांग योग पर दोहे
दोहा

अष्टांग योग पर दोहे

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** चंचल मन को रोकना, लोगों योग महान। स्थिर चित्त से ही मिला, करते हैं भगवान।। योग भोग में एक ही, अंतर जान सुजान। जाना आना एक को, मुक्ति एक की जान।। मन शरीर को शुद्धकर, कर लो तुम उद्धार। योग करो निशिदिन यहां, भवसागर हो पार।। प्रकृति, पुरुष भेद का, हो जाता है ज्ञान। तम के गम का योग से, होता रहा निदान।। आठ मंजिली योग की, कर बिल्डिंग में वास। रोग नहीं फटके कभी, मानव तेरे पास।। 'यम ''नियम''आसन' हो या, करें' समाधि' ध्यान। आठ अंग के योग में, है इनका अवदान।। 'प्राणायाम' हम करें, या हो 'प्रत्याहार'। करें 'धारणा' योग तो, तन में रहे निखार।। यम (सामाजिक नैतिकता) 'सत्य' 'अहिंसा' धार ले, 'ब्रह्मचर्य' ले ठान। 'अपरिग्रह' 'अस्तेय' से, होते लोग महान।। नियम (व्यक्तिगत नैतिकता) 'स्वाध्...
लोग जब सिर पे बिठाने लग गए
ग़ज़ल

लोग जब सिर पे बिठाने लग गए

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** लोग जब सिर पे बिठाने लग गए। भावनाएं हम भुनाने लग गए।। **** बैठ जब कमजोर कंधों पर गए। रोज ही उत्सव मनाने लग गए।। ***** जो हमें बर्बाद करने के लिए। आए थे वो सब ठिकाने लग गए।। ***** जो छिड़कते थे नमक वे लोग भी। घांव पर मरहम लगाने लग गए।। ***** बैठ चरणों में गए, काबिल हुए। लोग वो ईनाम पाने लग गए।। ****** नेकियाँ कर वो छपे अखबार में। लोग कुछ नजरें झुकाने लग गए।। ***** झूठ अपना सच बना पाए न हम। अब तलक कितने बहाने लग गए।। ***** गांठ रिश्तो में पड़ी "अनंत "ऐसी। खुल न पाई है जमाने लग गए।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
क्या रोजगार पा सकेंगे हम
गीत

क्या रोजगार पा सकेंगे हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** एक बात पूंछनी है रेहबरों बताओगे, सच-सच बताओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। वादा किया था आप हमको देंगे रोजगार। आएंगी रोनकें घरों में आएंगी बहार।। उतरेगा बदन का लिबास जो है तार-तार। सरकारी नौकरियों से कर पाएंगे श्रृंगार।। सोचा न था निजीकरण पे आप जाओगे। सारी ही नौकरियाँ ठेकों पे उठाओगे।। कुछ को बढ़ाओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। विश्वास किया आपको हम चुनके ले आए। परचम उठाए आपके गुणगान भी गाए।। कुर्सी पे बिठाया है ऐसे पैर जमाए। जिनको हिलाने कोई शूरवीर न पाए।। उम्मीद न थी हमसे यूँ नजरें चुराओगे। विश्वास एक जगा था बड़े काम आओगे।। खुशियां लुटाओगे, क्या रोजगार पा सकेगें हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। जाकर के नजर फेर लोगे किसको पता था।...
जीवन साथी
ग़ज़ल

जीवन साथी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सब का तन जीवन साथी है, सब का मन जीवन साथी है। होता परिवर्तन पल-पल पर, परिवर्तन जीवन साथी है।। जिस पर खेला बचपन मेरा, सर्दी गर्मी बरसात सही। ना भूला हूँ उस आंगन को, वो आंगन जीवन साथी है।। पानी से दूर रहा कब मैं, पानी है मेरे जीवन में। जल जीवन है सब देख रहे, जल का धन जीवन साथी है।। सांसो की सारी माया है, आती जाती हर सांस कहे। वायू का जीवन मैं होता, जो नर्तन जीवन साथी है।। गर्मी जीवन का लक्षण है, ठंडा होना मर जाना है। अग्नि का दामन छूटा कब, ये दामन जीवन साथी है।। है गगन नहीं कुछ भी लेकिन, ये अंश मगर मानव का है। संतुलित रखें जो अंशों को, वो पावन जीवन साथी है।। हम सफर रहा वो बनकर के, पग-पग पर साथ दिया मेरा। वो भी जीवन साथी, उसका, अपनापन जीवन साथी है।। परिचय :- अ...
मुक्त प्रदूषण से धरती को
गीत

मुक्त प्रदूषण से धरती को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** नगर-नगर औ गांव गांव तक, ये संदेशा पहुचाएं मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।।, नदियां सबसे गंदी हैं तो, उनकी करें सफाई हम। गंदा जल होने से रोकें, सबकी करें भलाई हम।। उनके घाटों पर मेले फिर, लगें करें वो काम सदा। ना अस्थी ना राख बहाएं, याद रखें अंजाम सदा।। शुद्ध बनाकर सरिताओं के , कूलों को हम दिखलाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। अगर हवा गंदी होगी तो, साँसों का संकट होगा। पेड कटेंगे तो आबादी, से ज्यादा मरघट होगा।। ध्वनि प्रदूषण से बहरे हम, हो जायेंगे यार सुनो। अंधे बहरों के समाज में, फैलेंगे परिवार सुनो।। इससे पहले के डूबे सब, बचा किनारे हम लाएं। मुक्त प्रदूषण से धरती को, रख के जीवन सुख पाएं।। शुद्ध अगर मिट्टी होगी तो, फल पे असर पड़ेगा ही...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ****** मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। सरकारें उत्तरदायी सब, अपने फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए तो, कल की फिक्र नहीं होती। अंधकार में जल जाती है, अपने आप नई ज्योति।। काबिल होंगे बच्चे तो हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। उड़ने वाले पंखों को ही, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं सो जाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, लौट धरा पर आएंगी।। जब निर्भर बने बच्चे सब, गगन चूमने जाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बच्चों के सपने ही तो...
भूल गई थी सच्चाई ये
ग़ज़ल

भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** भूल गई थी सच्चाई ये, वो अपनी नादानी से। मछली कैसे रह पाएगी, दूर, गई जो पानी से।। मानवता तो आभूषण है, मरने तक जो साथ रहे। मानव कैसे भुला सकेगा, मानवता मनमानी से।। तर्क जीत भी जाए लेकिन, सच तो हार नहीं सकता। ज्ञानी कब हारा है लोगों, दुनिया में अज्ञानी से।। नाहक, चुपड़ी रोटी खाए, हक जेलों में सिर पीटे। आंखें देख रही है मंजर, सारा ये हैरानी से।। नम होने की देर फकत है, मिट्टी है जरखेज बहुत। जल्दी ही चहकेगा गुलशन, बाहर आ वीरानी से।। माना जान है तुझमें लेकिन, है क्या जानवरों सा तू। कब तक दूर रखेगा खुदको, तू फितरत इंसानी से।। दूर करें क्यों "अनंत" उनको, रूहें जिनकी एक हुई। मर जाता है दूर हुआ तो, दीवाना, दीवानी से।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन...
माल पराया
ग़ज़ल

माल पराया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** माल पराया खाने वाले, जो धन जोड़ रहे हत्यारे। कितने पागल हैं अपनी ही, किस्मत फोड़ रहे हत्यारे।। जैसे गीद्धों की बन आती, झपट रहे देखो ये हरसूं। अवसर खोज रहे अवसर में, कैसे दौड़ रहे हत्यारे।। कोरोना में जिंदा लाशों, के अंबार अस्पतालों में। मौका पाते ही ताकत से, खूब झंझोड़ रहे हत्यारे।। जिनका फर्ज रहा है आंसू, इस विपदा के वक्त में पोंछें। बेशर्मी से देखा वो ही, खून निचोड रहे हत्यारे।। हमदर्दी के पथ को थामे, लोग यहां कम ही दिखते हैं। दुनिया में जो डूब गए हैं, रिश्ते तोड़ रहे हत्यारे।। कैसे हैं नालायक वे जो, फूलों कांटो को ना जानें। कांटो पर ही चलने की जो, करते होड़ रहे हत्यारे।। सेवा का अवसर सम्मुख हैं, ऐसे जैसे घट पीयुष का। तज कर ऐसा अवसर लगता, घट वो फोड़ रहे हत्यारे।।...
मौका तुझे मिला है अर्जुन
कविता

मौका तुझे मिला है अर्जुन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** वर्तमान में फैल रही महामारी को समाप्त करने की जंग में जितने भी सहयोगी किरदार हैं, चाहे डॉक्टर हों, चाहे नर्स हों, चाहे पुलिसकर्मी हों, चाहे सफाईकर्मी हों,चाहे वार्ड बाय हों, चाहे वैज्ञानिक हों चाहे अंतिम संस्कार करने वाले हों चाहे सर्वेयर हों या अन्य कोई दायित्व स्वेच्छा से या शासन के आदेशानुसार निर्वहन करने वाले हों, सभी योद्धा हैं और आज के अर्जुन हैं उन्हीं से भगवान श्रीकृष्ण गीता में कह रहे हैं.... कहा कृष्ण ने अर्जुन से ये, तेरा ये कर्तव्य है सुनले। धर्मयुद्ध से बढ़कर कोई , काम कहां है जो तू चुनले।। धर्मयुद्ध है द्वार स्वर्ग का, भाग्यवान इसमें जाते हैं। खोकर के स्वधर्म लोग यश, खोते पापी कहलाते हैं।। तू योद्धा है पापी मत बन, अपकीर्ति में लिपटा मत तन। भाग गया है डर कर अर्जुन, क्या सुन पाएगा तेरा मन।। अगर मरा तो स...
अखबार बेचने वाला हूँ
गीत

अखबार बेचने वाला हूँ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदू ना मुसलमान हूँ मैं, इंसान हूँ इज्जत वाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं रोज नई खबरें लाता, तम चीर उजाला फैलाता। हर सुबह यही वंदन करता, रखना खुश सबको ऐ दाता।। हूँ पढ़ा लिखा कम, सच है पर, मैं आदर्शों का पाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। अखबार बेचता हूं मैं क्यों, है शर्म नहीं मुझको कोई। मिल जाती मुझको दो रोटी, है काम कहां छोटा कोई।। मैं तो भविष्य भारत का हूँ, मैं भारत का रखवाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं काम सभी कर लेता हूँ, अपनी मस्ती में रहता हूँ। कल मैं भी जिलाधीश बनकर, आऊँगा ये सच कहता हूँ।। मेहनत "अनंत" ईमान मेरा, मुट्ठी में लिए उजाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्...
श्मशानो में देह धधकती
ग़ज़ल

श्मशानो में देह धधकती

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** श्मशानो में देह धधकती, कुछ लालच में अटके हैं। दुनिया के बीहड़ में राही, वे ही पथ से भटके हैं।। जिन पे जिम्मेदारी सौंपी, दुनिया ने भगवान कहा। चोरी पर सीना जोरी है, देखो कैसे खटके हैं।। कुछ को राहत मिट्टी ने दी, कुछ के साथ किया ऐसा। इस दहरी से उस दहरी पे, ले जाकर के पटके हैं।। उम्मीदों का दामन जिस-जिस, ने भी छोड़ दिया हारे। घर के पंखों पर शव उनके, हमने देखा लटके हैं।। जिससे ताकत भू से पाई, ताकतवर वे पेड़ रहे। फूल उन्ही की शाखों पे तो, बाधाओं में चटके हैं।। सब कुछ देकर भी जो खुश हैं, मानवता के वाहक हैं। लोग यहां कुछ ऐसे ही तो, अलग सभी से हट के हैं।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत...
होती नही पुरानी कविता
कविता

होती नही पुरानी कविता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कड़वाहट जीवन की जीकर, आंसू बन बहती है कविता। पीड़ाएं पी पीकर अनगिन, जख्म बड़े सहती है कविता।। कितने गम के सैलाबों से, टकराती रहती है कविता। चेतनता की वाहक बनकर, सत्य मगर कहती है कविता।। दंश प्यार का पाकर देखा, मजनू बनी दीवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। अंतर रोता तो कविता का, शब्द-शब्द जीभर रोता है। अर्थों में पीड़ा बहती तो, सैलाबी मंजर होता है।। घनीभूत पीडाओं से ही, कोई सुध अपनी खोता है। क्रांति हुआ करती है तब ही, जब कोई आंसू बोता है।। आहत अपमानों से होकर, बनकर तनी भवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। भक्तिभवन में जाकर कविता, गंगा जल बन जाती लोगों। पार लगाती भव सागर से, दुःखसे मुक्ति दिलाती लोगों।। वात्सल्य में डुबा बदन को, सूरज बन चमकाती लोगों। फंसे भंवर में जो-जो...
वक्त गुजर जाएगा
गीत

वक्त गुजर जाएगा

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** अब तक लाखों को रुला चुका, अब नहीं रुलाने पाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। चिंता की कोई बात नहीं, हरदम रहती है रात नहीं। क्या वक्त कहीं पे रुकता है, क्या आता रोज प्रभात नहीं।। डर जाएगा फिर क्यों तन मन, क्यों नहीं प्रभाती गाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। अब प्राणवायु उसके घर से, आ पहुँची है रहमत बरसे। अब कमी नही ऑक्सीजन की, मन खुशियों से अब क्यों तरसे।। खुशियों के आँसू आँखों में, अब होंगे कौन रुलाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। संक्रामित रोज बढ़े जाते, विष कोरोना का फैलाते। पर अब टीका मैदां में है, हम देख रहे राहत पाते।। "अनंत" कोरोना भागेगा, विषधर कैसे डस जाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) ...
फिर से होगी सहर
कविता

फिर से होगी सहर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** फिर से होगी सहर उजाला आएगा। अंधियारे का बादल ये छंट जाएगा।। फूल डालियों पर लौटेंगें। भंवरे आकर पहरा देंगे।। गंध हवा में घुल जाएगी। कोयल कूंकेगी गाएगी।। फिर बदला मौसम आएगा। सबमें जीवन छा जाएगा।। हरा भरा गुलशन फिर नगमे गाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिर से हाथ मिलाएंगे हम। मिलजुल जश्न मनाएंगे हम।। रंग उड़ेंगे फिर होली के। बंद खुलेंगे फिर चोली के।। नृत्य करेंगे गीत गाएंगे। हाथ कमर में रख पाएंगे।। फिर से रूठी राधा कृष्ण मनाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिरसे रोज अजानें सुनकर। नहीं रहेंगे बैठे हम घर।। फिर मंदिर में हलचल होगी। पूजा फिर से अविरल होगी।। धर्म - कर्म लेंगे अंगड़ाई। कर देंगे पिछली भरपाई।। ईश्वर का आशीष नहीं तरसाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। रोजगार फिर घर आएंगे। अन्न पेट भरकर खाएंगे।। नहीं पलायन...
मंदिर मस्जिद से बाहर आ
गीत

मंदिर मस्जिद से बाहर आ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं। कल की गलती आज सुधारें, सेवा कर सेवक कहलाएं।। ठोकर खाई जान गए हम, क्यों कर घर में नफरत पाली। क्या अच्छा वह पेड़ लगेगा, हरी नहीं जिसकी हर डाली।। हराभरा सुरभितगुलशन कर, दूर - दूर खुशबू पहुंचाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। केवल हम अच्छे हैं ऐसा, सोच हमेशा खंडित करता। कहो खुदा या ईश्वर उसको, पेट सभी का वो ही भरता।। उसने कहा यही, वो सबका, उसके पथ से दूर ना जाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। हम निरोग हों सदा सर्वदा, ऐसी जो योजना बनाते। अस्पताल हर गांव में होते, हम सब उनका लाभ उठाते।। गलियारों में बेड ना होते खुद अपने को ये समझाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। निहित स्वार्थ से ऊपर उठके मानवता का मंदिर खोलें। बंदों की सेवा से बढ...
परम पिता ने कुंभा बनाया
गीत

परम पिता ने कुंभा बनाया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** परम पिता ने कुंभा बनाया, जो चाहें जो इस में भर लें। परम पिता की करें वंदना, भवसागर के पार उतर लें।। हम कतरे हैं धर्म हमारा, सागर में मिलना ही तो है। इससे पहले तन मन माँजें, पिया मिलन को बनें संवर लें।। कितना सुखद बनाया है तन, खुशियों की खुशबू डाली है। जान लुटा दें कुंभकार पर, शिल्पकार पे दिल से मर लें।। मनका अश्व नियंत्रित करने, बुद्धि की चाबुक भी दी है। मंजिल तक की बाधाओं को, अपने बुद्धि बल से हर लें।। परमपिता का घर अपना दिल, झांको अंदर मिल जाएगा। नहीं जरूरत उसे तलाशे, घर बैठें, सच जान अगर लें।। करना उसको हम कठपुतली, मगर प्राण वाले हैं भाई। प्राण उसी के उसको सौपें, हर-हर है तो क्यों डर वरलें।। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रहम, कैसे हैं लासानी बंदे। इसे समझ लें, इसे जान लें, फिर "अनंत" जो चाहें करलें।। परिच...
संस्कृति अपने भारत की
गीत

संस्कृति अपने भारत की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है। सत्य अहिंसा न्याय दया की, जो जग में महतारी है।। सच्चाई के पथ पर चलकर, हम विपदाएं सहते हैं। झूठों की दुनिया में दो गज, दूर सदा ही रहते हैं।। धर्म युक्त जीवन जीने में, झूठ नहीं चल पाता है। यूँ ही सत्यनारायण लोगों, जगत पिता कहलाता है।। कोई भी युग हो असत्य की, खिली नहीं फुलवारी है । संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है ।। हम हैं पथिक अहिंसक पथ के, सब जीवों से प्यार करें। एक घाट पर शेर बकरियां , पानी पीएं नहीं ड़रें।। बिना वजह जीवों की हत्या, घोर पाप कहलाता है। हमको तो मन दुखे किसीका, ये तक नहीं सुहाता है।। उसे नरक में फेंका जाता, जो नर अत्याचारी है। संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है।। न्याय सुलभ हो सस्ता हो इस, नीति नियम पे चलते हैं। सबको न्याय समान ...
कवि का जीवन
कविता

कवि का जीवन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कवि का जीवन संस्कारित पथ, तारणहार कवि है। कुरीतियाँ हैं व्याधि अगर तो, बस उपचार कवि है।। गुरु है वो जो "अनंत" कहता, उसकी कथनी मानें। जिसपे टिकी सभ्यता की छत, वो दीवार कवि है।। अंधकार में रहकर के कवि, करे उजाला घर-घर। भले हलाहल पीले वो पर, बनता सच्चा रहबर।। "अनन्त" धुन का मालिक है वो, निर्देशित है खुद से। उसका जीना उसका मरना, कब होता है डरकर।। खिला कमल है कवि कीचड़ में, सबकी करे भलाई। तुम बारूदी कर लो खुद को, वो है दियासलाई।। "अनन्त" नम भूमि में ही तो, जीवन नित फलता है। बिना प्रयासों के कब मिलती, लोगों दूध मलाई।। कवि वही जो संप्रभु शक्ति, से ताकत पाता है। दरबारों में नहीं उठाता, हाथ न यश गाता है।। आती-जाती सरकारों के, क्यों "अनंत" गुणगाए। सेवक बनकर बंदो का जो, ऊपर से आता है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पित...