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जनसंख्या बढ़ती जाती है

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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जनसंख्या बढ़ती जाती है,
कौन नियंत्रण कर पाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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सोच समझकर काम करें हम,
खुशहाली घर आंगन लाएं।
मनमाने आचरण हमेशा,
हमें गर्त में लेकर जाएं।।
शोलों पे चलने वाला क्या,
गीत मल्हार कभी गाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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धरती जितनी है उतनी ही,
रहने वाली है ना भूलें।
सत्य यही है याद रखें हम,
कोरे भ्रम में कभी न झूलें।।
क्या कोई घर बना हवा में,
मालिक घर का कहलाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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भार बढ़ाया धरती पर तो,
टुकड़े टुकड़े हो जाएगी।
इसकी या उसकी होगी तब,
काम कहां सबके आएगी।।
पैर काट जो बना अपाहिज ,
खुद पे कहर फकत ढ़ाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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कितनी मारा मारी जल की,
देख रहे हो आंखें खोलो।
क्या प्यासा रह पाए कोई,
रक्तपात ना होगा बोलो।।
कोई शजर रहा पानी बिन,
अगर कभी तो मुरझाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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मांग बढ़ी तो महंगाई भी,
आसमान पर जाएगी ही।
जनसंख्या गर नहीं थमी तो,
बढ़ती मांग रुलाएगी ही।।
ऐसे मैं अपना भी अपने,
घर आने से कतराएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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सुकूं छीन जाएगा अपना,
जब अरमान अधूरे होंगे।
बढ़ते परिवारों के सपने,
“अनंत” कैसे पूरे होंगे।।
वेतन सिकुड़ा तो चेहरे की,
चमक नहीं क्या खा जाएगा।
संसाधन सीमित हैंं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा।।
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परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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