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गद्य

निर्णय
लघुकथा

निर्णय

माधवी तारे लंदन ******************** लग्न मंडप से अपने-अपने कमरों में चले गए दूल्हा और दुल्हन, थोड़े समय बाद पूरी रात भर सुनाई देने वाली दूल्हे के कमरे से चिल्पो सुन रही थी दुल्हन, सुबह वरमाला लेकर मंडप में तो गई, पर सबके सामने बोल पड़ी मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली हटा लो कहारो.... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...
औषधीय गुणों से युक्त “काफल”
आलेख

औषधीय गुणों से युक्त “काफल”

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** फलों में पोटेशियम की अधिक मात्रा होने से उच्च रक्तचाप और गुर्दे में पथरी होने से बचा जा सकता है। साथी हड्डियों के क्षय को भी रोका जा सकता है। फलों के तुल्य कोई भी अन्य भोज्य पदार्थ नहीं हो सकता है फलों में कई ऐसे जादुई सूक्ष्मात्रिकतत्वोंऔर एंटी-आक्सीडेंट्स का मिश्रण पाया जाता है जिनकी पूर्ण खोज वह ज्ञान अभी भी अज्ञात है। जिन फलों के सेवन से स्वास्थ्य को अच्छा लाभ बनाए रखने में मदद मिलती है उनमें- सेव, अमरुद, अंगूर, संतरा, केला, पपीता, विशेष रूप से प्रयोग किया जा सकता है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल उत्तराखंड और नेपाल में पाया जाने वाला सदैव हरा भरा रहने वाला "काफल' का वृक्ष प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। जिसके फल को "बेबेरी" नाम से भी जाना जाता है का- फल खाने में अत्यधिक स्वादिष्ट, हरा, लाल, व काले रंग में पाए जाते ...
अनूठा प्रेम
कहानी

अनूठा प्रेम

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी। रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका मन बार बार...
श्रद्धांजलि
लघुकथा

श्रद्धांजलि

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ********************  "विभोर, कॉलेज से आते आते एक फूल माला लेकर आना।" फुलमाला किसलिए मां.. ? आज कोई त्यौहार है क्या? अरे नहीं, वो हमारे स्नेही माधव काका..., उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जाना है, तो मैंने सोच लिया.. साथ में फूल माला लेकर जाते हैं। तस्वीर पर चढ़ा देंगे, उनके आत्मा को शांति मिलेगी। "अरे मम्मी, फूल माला चढ़ाने से न आत्मा को शांति मिलती है, न कोई पुण्य मिलता है। यह तो केवल दिखावा है। जब बिस्तर में पड़े थे तो उन्होंने कितनी बार तुझे याद किया, मिलने को बुलाया। वह आपसे बातें करना चाहते थे। अपना दिल हल्का करना चाहते थे। पर तुझे उन्हें मिलने को न समय मिला, न उनके साथ ठीक से बात कर पायी और आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही हैं!!!!" बेटे की बात सुनकर माँ बोली "वैसा कुछ नहीं है, विभोर। मैं उनसे मिलने कई बार गई थी। इस छ:...
मुझे भी जीना है!
कहानी

मुझे भी जीना है!

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी, कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी पर वो खुद को रोके हुए थी! वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था! नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी! बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी! कही कुछ कमी नहीं अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले, इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही, चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली " कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे! कला भाभी, बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी! अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया, माँ "कला ने बाहे फैला दी" पर अंश उसके पैरों में झुक गया "जुग-जुग जिऐ" उसने अंश को गले लगा लिया कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी " बहू को ...
माँ तू बहोत याद आती
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माँ तू बहोत याद आती

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होले से चपत लगाकर के सूरज संग मुझे जगा देती जो मेरे सपने सजाती थी वो सपनों में क्यूँ समा गई माँ ! तू बहोत याद आती माथा मेरा सहला करकर बालों को तू सुलझाती थी लाल रेशमी रिबन बांधके भालपे मीठी मुहर लगाती माँ ! तू बहोत याद आती नाज़ुक महकते हाथों से गरम नाश्ता रोज़ कराती बस में मुझे चढ़ा कर के भारी  बस्ता थमा जाती माँ ! तू बहोत याद आती जन्मदिन की तैयारियों में कई रातें माँ तू नहीं सोती मुश्किलें जो आती मुझपे हर मर्ज़ की दवा बताती माँ ! तू बहोत याद आती अब तेरी नातिन मुझको दिनभर  नाच नचाती है झुंझलाती थकके मैं बैठूँ तस्वीर से तू है मुस्काती माँ ! तू बहोत याद आती परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सीखना व्यर्थ नहीं जाता
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सीखना व्यर्थ नहीं जाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भी एक पहेली है। जो सोचते हैं वह कब कहाँ छूट जाता है कह नहीं सकते है। मैं अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर हूँ। किन्तु जब नौकरी का सोचा तो शुरुआत सहकारी बैंक से की। शब्दों को छोड़ अंकों का दामन थामा। सहकारी प्रशिक्षण में म.प्र. में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाया। किन्तु एक माँ व पत्नी को छुट्टियों वाली नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक होती है। दस वर्ष पश्चात शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखने के लिए बी एड किया। एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश हुआ। यहॉं भी चुनौतियाँ थी। अंग्रेजी की ज्ञाता तो थी पर अंग्रेजी अच्छे से बोलने में झिझक थी। एक गाँव की लड़की व सरकारी विद्यालय की छात्रा जो थी मैं। बस लगी रही मुन्नाभाई की तरह। एक शिक्षिका होकर घर पर विद्यार्थी बन जाती। एक प्रशिक्षक के साथ कॉन्वेंट वाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करने लगी। और गटर-पटर करते मेरी गाड़ी चल ...
कुछ तो है उसमें
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कुछ तो है उसमें

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी। "मैं बहुत थक गई हूं।" सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी। सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर "माँ'" है ना! सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था। भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी। सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था। बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह...
मैं बचूँ या ना बचूँ
लघुकथा

मैं बचूँ या ना बचूँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे शोभा जी ! आप अपनी संगीत कक्षा में ही व्यस्त रहो। खबर भी है आपको कि बिट्टू कहाँ है?" "क्या हुआ नीता जी बिट्टू को? वह तो स्वीमिंग क्लास गया है। बस आता ही होगा।" तभी बाहर से शोर सुनाई देता है, "बिट्टू राजा जिंदाबाद।" लड़कों ने हार पहने बिट्टू को काँधे पर उठा रखा है। आशंकित शोभा जानना चाहती है कि आख़िर माज़रा क्या है। स्वीमिंग क्लास के सर हाथ जोड़कर बताते हैं, "मेडम ! आपका बेटा बड़ा दयालू व बहादुर है। इसने एक पपी को पूल में डूबते हुए देखा। अपनी जान की परवाह किए बिना यह पास पड़ी तगारी लिए पानी में कूद गया। और झट से पपी को तगारी में डाल सिर पर रख लिया। खुद अपने हाथ ही नहीं चला पा रहा था। मैं वहीं खड़ा था तो दोनों को बचा लिया।" बिट्टू को आगोश में भरते हुए शोभा पूछती है, "बच्चे ! तुम्हें कुछ हो जाता तो...।" "मम्मा ! आप ही तो सिखाती हो...
पुस्तकों का जीवन में महत्व
आलेख

पुस्तकों का जीवन में महत्व

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज में रहता है, जिसमें रहने के लिए बहुत सी बातों का ज्ञान होना चाहिए। मनुष्य का समाज में सामाजिक और मानसिक विकास भी होता है। पुराने मंदिर और इतिहास की चीजें नष्ट हो जाती है, लेकिन किताबों में सब कुछ सुरक्षित रहता है, जिसके द्वारा हम इतिहास के विषय में जान सकते हैं। अगर पुस्तक ना हो तो हम बहुत सी बातें हैं बातों से अनजान रह जाएंगे। जिस प्रकार तन को स्वस्थ रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार मन को स्वस्थ रखने के लिए साहित्य की आवश्यकता होती है। जीवन की वास्विकता का अनुभव करने के लिए पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुस्तकें ही हमारे ज्ञानकोष का भंडार है। पुस्तक इंसान की सबसे अच्छी मित्र है, हमेशा पास रहती है, वह बिना बोले ही सब कुछ कह जाती हैं। पुस्तक...
माँ बहन या बेटी
संस्मरण

माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं। वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया। वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
क्षमा- एक दिव्य गुण
आलेख

क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी 'सरस' अबोहर फाजिल्का (पंजाब) ******************** एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी को डांटकर...
देशदीपक
लघुकथा

देशदीपक

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नवविवाहिता नवोढ़ा पत्नी के साथ मधुमास बहुत जल्दी व्यतीत हो गया। बहुत शीघ्र वापस आंऊगा बोल कर, मनोज जाने की तैयारियां करने लगा। दबी आवाज में बस इतना ही कह पाई थी अंजु जल्दी आइयेगा। अब आप आयेंगे तो आपको मेरी और से बहुत अनुपम भेंट मिलेगी। वह पत्नी को प्यार कर, माता-पिता का आशीर्वाद लेकर चल दिया। इकलौता बेटा था, माता पिता का मन भर आया। अभी तो ब्याह हुआ हैं, बहू के साथ और कुछ दिन रहता। सीमा पर शत्रु का आक्रमण हो जाये, पता नहीं। इसी वजह से मनोज को तुरंत बुलावा आया था। अनहोनी होनी थी हो गई। मनोज फिर नहीं आया। अंजु बेटे को जतन से बड़ा कर रही थी। अपने सास-ससुर के साथ रह वह बेटे को पढ़ा लिखा रही थी। बचपन से बेटे के मन में बैठा दिया की देश सेवा के लिए ही तुम्हें जाना है, और उसी की शिक्षा लेनी है। लोग कहते कि आजकल त...
बूढ़ी अम्मा
लघुकथा

बूढ़ी अम्मा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  शीतला सप्तमी होने से सास बहू नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं। पूड़ी सब्ज़ी, दही बड़े, गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहू भलीभांति सासू माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया, ऐसा माजी का कहना है। बहू पूजा की थाल सजाकर तैयारियाँ कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके। आदतानुसार सासू माँ याद दिलाना नहीं भूलती हैं, "चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना। दीया ठंडा ही रखना है। याद है चिकित्सक भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं। और हम माता जी के आने पर दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटकाते हैं।" "हाँ माँ ! आप हर साल दुहराती हैं, अब मैं पक्की हो गई हूँ।" बहू आश्वस्त करती है। सुबह सवेरे बहू लाल चूनर ओढे, पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है। सासू माँ ब...
होलिका और भक्त प्रहलाद
आलेख

होलिका और भक्त प्रहलाद

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** राक्षस राज हिरण्यकश्यप और उसकी पत्नी कयाधु प्रहलाद के जन्म से बहुत खुश थे। परन्तु प्रहलाद की भक्ति देख हिरण्यकश्यप बहुत परेशान रहने लगा। भक्त पहलाद के जन्म लेते ही वह भक्ति के सागर में गोते लगाने लगा और जब यह बात उसके पिता राक्षस राज हिरणयकश्यप को पता लगी। तो उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने का प्रयास किया। कि वह भगवान विष्णु की भक्ति करना छोड़ दें, क्योंकि हिरण कश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। और बदले की भावना में जलता रहता था।क्योंकि भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना करना नहीं छोड़ा। अंततः हिरण्यकश्यप ने हार मान कर भक्त पहलाद को मारने का निश्चय कर लिया। और उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली।ज्ञहिरणयकश्यप की बहन होलिका एक दुष्...
पापा
लघुकथा

पापा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "पापा ! आपको हो क्या गया है? देखिये, शर्ट आधी पेन्ट के अन्दर है, आधी बाहर। और बालों में कंघी क्यों नहीं की?" एक क्षण मुझे लगा बेटे तुषार के स्थान पर मैं खड़ा हूँ और मेरे स्थान पर मेरे पापा। मैं अपने पापा को अगाह कर रहा हूँ कि शर्ट ठीक ढंग से खोसी नहीं गई है। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे अनजाने में धीरे-धीरे पापा बनता जा रहा हूँ। लोगों को प्रभावित करने वाली बोली धीमी पड़ गई।पापा के समान टोका-टोकी की आदत बदल गई। ढेरों कपड़े अभी भी हैं पर चार कपड़ों से ही काम चला रहा हूँ। पुनः अपनी सोच से बाहर आकर अपनी शर्ट पूरी तरह पेन्ट में डाल, बालों में कंघी करके सब्जी का थैला कंधे पर डाल पापा के समान धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर निकल गया। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी :...
अनपढ़ चम्ची
लघुकथा

अनपढ़ चम्ची

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गरीब परिवार था जिसमें चार बहनें और चार भाई थे। जिस कारण केवल लड़कों को ही स्कूल भेजा गया, लड़कियों को नहीं। लड़के सुबह स्कूल जाते थे और लड़कियां पशुओं को लेकर जंगल में चराने जाती थी। धीरे-धीरे सभी लड़कों ने इंटरमीडिएट की परिक्षाएं पास कर ली। सभी लड़कों की शादी करा दी गई। कुछ दिन बाद चारो लड़कियों में से सबसे बड़ी लड़की चम्ची का विवाह रसोईपुर में रहने वाले युवक चम्चे से करा दिया गया। चम्चे के पास एक बड़ा घर तथा अच्छी जमीन जायदाद थी। चम्ची के चार-पांच साल तो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी गुज़रे परन्तु चम्चा अब शराब पीने लगा था। उसने धीरे-धीरे घर की सारी जमीन बेच दी। चम्ची ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया जिनमें एक लडका और एक लड़की थी। बच्चे भी बड़े हो रहे थे। दोनों बच्चे दस साल के हो चुके थे। वह इतनी शराब पीने लगा था कि कुछ ही दिनों में शर...
बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने लगा ज्यादातर...
पंचम आरा और कलयुग
आलेख, धार्मिक

पंचम आरा और कलयुग

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** २१००० हजार वर्ष का यह पंचम आरा है उसमें से विक्रम संवत २०२६ वर्ष पूरें हो चुके है। २१०००-२०२६=१८०७४ वर्ष बचें है, पांचवा आरा पूरा होनें में। इस पंचम आरें को कलयुग कहा है। इस युग में जीने की इच्छा से देवता भी धरती पर आना चाहतें है पर जन्म नही ले सकते क्योंकि "कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे तारा" अगर प्रभु का स्मरण भाव से व केवल नाम का रटन मात्र से इन्सान भव तिर जायेगें। मगर मन इन्सान के पास नही होगा सो देवता धरती पर आकर क्या करेंगें। साल बितते वक्त नही लगता। समय जैसे पंख लगाकर बैठा है, पलक छपकतें ही बीतता जा रहा है और हमारी मात्र १०० वर्ष की आयु कहाँ बीत जाती है इन्सानों को पता भी नही चलता। ८४ लाख अवतारों में जन्म लेने के बाद ऐसा दुर्लभ मानव भव हमें भाग्य से मिलता है, और अगर इस भव में आकर मानव होने का महत्व नही समझ...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ही...
शालू
कहानी

शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...