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कविता

मैं अक्सर भूल जाती हूँ
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मैं अक्सर भूल जाती हूँ

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हां मैं भूल जाती हूँ सच कहा तुमने, मैं अक्सर भूल जाती हूँ, अपमान के घूंट हर रोज़ पी जाती हूँ। पर याद रखती हूँ मिटाना सलवटें, और उधड़ने लगे जो कमीज़ … चुपचाप सी जाती हूँ।। हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ अपनी पसन्द न पसन्द, उलझे से केश .... साज शृंगार और मुस्कान, पर याद रखती हूँ कहीं बिगड़े न तुम्हारा कोई भी जोड़ीदार जुराब । मैं अक्सर भूल जाती हूँ, सरल सी .... एक से दस तक की गिनती, पर बखूबी याद रहता, वो सत्रह का पहाड़ा ... जो बचपन में कभी याद न था। हां .... मैं ..... हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ, व्याकरण के नियम ... मेरे लिए उपयोग हुए पशुवत संबोधन। पर याद रखती हूँ, अपने से छोटों के लिए भी, सम्मानजनक उद्वोधन।। हां मैं अक्सर भूल जाती हूँ इतिहास की बातें .... भूगोल की बातें पर याद रखती हूँ ...
भाषा व्यक्तित्व का दर्पण
कविता

भाषा व्यक्तित्व का दर्पण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पंक्ति नहीं वो जिसमें बहती संस्कृति की धार नहीं नहीं काव्य वह जिसमें मानवता का प्यार नहीं नहीं कला वो जो न उद्वेलित करती हो नहीं काव्य रचना वो जो न प्रेरित करती हो। साहित्य नहीं जो करता ईश्वर की रचना को साकार नहीं मानवीय मूल्यों का जो बनता आधार नहीं। संस्कृति, मानवता का वाहक साहित्य की‌ अपनी‌ मर्यादा है समाज के दर्पण को जीवन मूल्यों से कर सज्जित साहित्य वही कहलाता है। ऊर्जित करने जन-धन को साहित्य रचा जाता है जिसमें न हो प्रेम मनुजता हित जहां समर्पण नहीं राष्ट्र हित वह कविता कब कहलाता है? शब्दों को न रख मर्यादित जो तीखे बाण चलाता है मानव हृदय नहीं वो कौओं की टोली कहलाता है। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्...
आनंद अनुभूति
कविता

आनंद अनुभूति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मृत्यु योग बनता रहा पर मेरे महाकाल काल का भक्षण करते रहे। शत्रु योग बनता रहा पर मेरी मां काली शत्रुओं का रक्त पान करती रही। भयभीत करने का प्रयास लोग करते रहे मगर मेरे कालभैरव भय के साथ भयाकारक का भी भयानक विनाश करते रहें। दुरात्मा योग बनता रहा पर मेरे सदाशिव ज्ञानामृत देकर पापयुक्त करते रहे। वियोग का योग बनता रहा पर मेरी मां काली का ममतामई स्पर्श आनंदमय करता रहा। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
क्या है कविता
कविता

क्या है कविता

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं नहीं जानता ये पद्य है या फिर गद्य है सावद्य है या फिर निरवद्य है पर इतना जानता हूँ भावों से ओतप्रोत रचना पूर्णतया सद्य है......! व्याकरण मुक्त है मन भाव युक्त है सरस्वती कृपा से संवेदन सशक्त है मन उभरे जो भाव लिख रही कलम उद्विग्नता से कागज पर आवेग भी है... संवेग भी है... शायद श्रेणी इसकी मुक्त छंद है..... चिन्तन है मनन है स्तवन है सम्मोहन है स्पंदन है ज्ञान है... मन विद्वान है निचोड़ है भाव अभिव्यक्ति सच की निरंतर... निर्लिप्त... होती है कविता.... ! सपने सजाती अंतस भाव दर्शाती अवसादी पीड़ा उन्मादी क्रीड़ा सच दिखलाती वाद विवाद की लक्ष्मण रेखा से परे निर्द्वन्द्व निस्पृह मनभावों से झरती है कविता...! ना पूंजीवाद ना साम्यवाद क्यों करें रचना कोई वाद-विवाद बात ...
मायका केवल एक घर नहीं होता
कविता

मायका केवल एक घर नहीं होता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मायका केवल एक घर नहीं होता वो एक ऐसी जगह होती है, ऐसा ठिकाना जहाँ एक बेटी खुद को 'बस बेटी' समझ सके।" मायका वो अहसास होता है जहां बेटियाँ खुद से जुड़ सकें, जिन सपनों को उनकी आँखों ने देखा था उसको पूरा कर सकें! जहाँ वो बिना किसी संकोच या औपचारिकता के, मनचाहे आरामदायक कपड़े पहन सकें… जहाँ दिन की शुरुआत घड़ी के अलार्म से नहीं, बल्कि माँ-पिता की मीठी शुभ प्रभात से हो… जहाँ नींद अधूरी नहीं रहती, और सुबह की कोई आपाधापी नहीं होती, चाय की गर्म प्याली उसका इंतजार करती! मायके का दरवाज़ा उनके लिए दुनिया का सबसे सुरक्षित कोना होता है जहाँ वो सूकून से अपने भविष्य के सपने बुन सकती हैं! जहाँ न उन्हें कोई किरदार निभाना होता है, न किसी की उम्मीद पर खरा उतरना होता है। वहाँ वो रिश्तों में ...
दहेज
कविता

दहेज

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** दहेज दानव कुछ बोल रहा है, मुंह अपना ये कितना खोल रहा है, प्रेम को तराजू मे तोल रहा है, रिश्तों मे विष ये घोल रहा है। शिक्षा का कोई महत्व नहीं, संस्कारों का कोई अस्तित्व नही, झूठ का यहाँ बाजार लगा, और सत्य का कोई खरीददार नही। डॉक्टर, इंजीनियर बनाये बेटे, फिर झोली ले बाजार चले, खरीद लो कोई मेरे घर का चिराग, हरे- गुलाबी नोट चले। जिसको अपने लहू से बनाया , श्रमवारि से जिसे तृप्त किया, नाजो से पाली अपनी बिटिया को, अब पराये घर को विदा किया। पराई बेटी का कोई मोह नही, संस्कारों का यहाँ कोई मोल नही, कौनसी गाडी? कैश कितना? सोने का अब कोई तोल नहीं। लालच का ये रुप निराला, बहरूपियों का नित लगता मेला, इससे बचना है अब मुशिकल, शांतिदूत का इसने पहना है चोला। भाँति-भाँति के लगा मुखोटे, दानव ने कई रुप...
धर्म जरूरी है
कविता

धर्म जरूरी है

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इंसानियत के लिए धर्म बहुत जरूरी है। इसके बिना जीवन बिल्कुल अधूरी है।। जिस दिन इस संसार से धर्म मिट जायेगा। उसी दिन से सारे रिश्ते-नाते टूट जायेगा।। माँ-बाप, भाई-बहन की परिभाषा नहीं रहेगी। धर्म के बिना आदमी और औरत ही बचेगी।। भाई अपनी बहन का बलात्कार करेगा। इंसान, इंसान नहीं जानवर बन जायेगा।। अभी भी समय है, धर्म का रास्ता न रोको। कानून का सहारा लेकर बेवजह न टोंको।। किसी के षड़यंत्र भरी बातों पर न आओ। इंसानियत के लिए सनातन धर्म अपनाओ।। भारतीय संस्कृति का अपमान मत करो। लिव-इन रिलेशन जैसे कानून मत बनाओ।। हमारी पुरातन संस्कृति को बचाओ। भारत देश से पाश्चात्य संस्कृति हटाओ।। धर्म को ध्यान में रखकर कानून बनाओ। कानून को धर्म से ऊपर मत बताओ।। कानून अपराध करने पर सजा दे सकती है। किन्तु धर्म अपराध करने से रो...
मैं हूँ ना …
कविता

मैं हूँ ना …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब ज़िंदगी उलझने देती है और सारे दरवाज़े बंद लगते हैं तब दिल सबसे पहले जिस नाम को पुकारता है वो है- ‘पिता’ हर मुश्किल का टोल फ्री नंबर। ना नेटवर्क चाहिए ना कोई बैलेंस ना ही कोई समय तय करना होता है बस एक कॉल दिल से जाता है और उस तरफ से आता है "बोल बेटा, क्या हुआ?" जब जेब खाली हो और सपने भारी जब दुनिया मुंह फेर ले और दोस्त भी न साथ दें तब वो कहते हैं "मैं हूँ ना… तू बस चल" न टाइमटेबल न ही शिकायत की फुर्सत लेकिन फिर भी वो हमेशा अवेलेबल रहते हैं, हर दर्द, हर चिंता के लिए। उनकी आवाज़ में वो जादू है, जो आँसुओं को रोक देता है और उनके कंधे मानो पूरी दुनिया से मज़बूत हैं। "पिता" वो टोल फ्री नंबर है जो कभी व्यस्त नहीं होता जो हर बार जवाब देता है चुपचाप, लेकिन पूरे दिल ...
और आना
कविता

और आना

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** विदा होते ही आँखों की कोर में आँसू आ ठहरते और आना/जल्द आना कहते ही ढुलक जाते आँसू इसी को तो रिश्ता कहते जो आंखों और आंसुओ के बीच मन का होता है मन तो कहता और रहो मगर रिश्ता ले जाता अपने नए रिश्ते की और जैसे चाँद को बादलों से होता रिश्ता ईद/पूनम का जैसा दिखता नहीं मन हो जाता बेचैन हर वक्त निहारती आँखे जैसे बेटी के विदा होते ही सजल हो उठती आँखे कोर में आँसू आ ठहरते फिर ढुलकने लगते आँखों में आंसू विदा होने के पल चेहरे छुपते बादल में चाँद की तरह जब कहते अपने- और आना दूरियों का बिछोह संग रहता है आँसू शायद यही तो अपनत्व का है जादू जो एक पल में आँसू छलकाने की क्षमता रखता जब अपने कहते- और आना परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय ...
प्रेम संदेश के प्रेमचंद
कविता

प्रेम संदेश के प्रेमचंद

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हो चाहे नाटक, या‌ हो कथा का संसार कलम के जादूगर ने समृद्ध किया हिंदी का संसार उपन्यास का अनमोल खजाना जगत् को दे, बने उपन्यास सम्राट सम्राट् कर्म पथ पर चलते-चलते हर विधा से किए दो-दो हाथ सुधारवाद संग यथार्थवाद का परचम लहराकर दे दी अनमोल सीखों की सौगात "सौत" ‌से "कफ़न" तक सफ़र किया आदर्शों संग मुंशी बने जीवन के सिखा गये जीवन जीने का हिसाब दया, करुणा के धनपत प्रेम संदेश दे कर बने अमर प्रेमचंद परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
पहचान
कविता

पहचान

अंजली सांकृत्या जयपुर (राजस्थान) ******************** परवाह ना थी, लापरवाह हो गए, चलो एक बार फिर से, शुरुआत करते हैं, खुद की परवाह कर, खुद से हम प्यार करते हैं, ज़रा खुद से हम मुलाकात करते हैं, आओ ज़रा खुद से हम बात करते हैं, थोड़ा ठहर जाओ, खुद के लम्हों की हम, बरसात करते हैं। थोड़ा तारो संग, थोड़ा चाँद सितारों संग, मुलाक़ात करते हैं। जरा नदियों की, दस्तक को सुनो, अपने ख्वाबो को बुनो। पेड़ पर सूखे पत्तो की, गड़गड़ाहट को सुनो। टहनियों पे लगी, लताओ को बुनने दो। कलियो पर लगे, फूलो पर भवरें मंडराने दो। बगिया में खिले, फूलों को महकने दो। मिट्टी की सोन्धी-सोन्धी खुशबू, में खो जाने दो, आ खुद से प्यार हो जाने दो।। कुछ धरा पर गिरी, पानी की बूंदो को सजने दो। बैठे किनारे पर तन्हा, हवा की सरसराहट को, बाहों में अपने समेटकर, इस जगमगाती रात में, अपने जज्बातो की, बौछार...
एक बाप
कविता

एक बाप

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** एकटक देखता रहा निहारता रहा नहीं निगाहें ओझल है उसकी, चेहरे पर खुशी होंटो पर मुस्कान लिए देखता रहा प्यार भरी निगाहों से, एक पिता बचपन सा दुलार बचपन का प्यार, गाड़ी में बिठाते उसका सामान चढाते फिर टकटकी लगाते देखता रहा खिड़की में से, एक बाप ! जब तक बस ना चली जाए खिड़की पर ताकता रहा देखता रहा, पर बेटे की निगाहें ना टिकी अपने बाप पर। नहीं मुस्कान नहीं सम्मान बस डिग्री थी और ऊंचे पद और शिक्षा का अभियान, नई दुल्हन, नया शहर, नई नौकरी, बस अपनी मस्ती में मस्त था एक नौजवान, भूल गया बचपन ! पिता के कंधे वह मेलों में जाना जलेबी, गराडू खाना, खिलोने की जिद, गाड़ी पर बैठकर आम और आइसक्रीम लाना, स्कूल के लिए बस में बिठाना और चॉकलेट टॉफी दिलाना, मैं देखती रही उसके मिजाज, उसके आव-भाव, बस यहां तक ही...
अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना
कविता

अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** जीवालय अनुलोम ============ नाहक हय खरगोश वकी मछली गो गज सेरह। नाहर बकरी नाग खर सुअर, बारह कपि तेरह।। शब्दार्थ :- नाहक=अनावश्यक, हय=घोड़ा, वकी=मादा बगुला, गो=गाय, गज=हाथी, सेरह=भेड़िया, नाहर=शेर, खर=गधा, कपि=बन्दर अनुलोम का अर्थ =========== स्वामी ने स्वामी से पूछा हमारे जीवालय में कुल कितने जीव हैं इस पर सेवक ने स्वामी को बताया कि आपने अनावश्यक ही अपने चिड़िया घर में कई पशु पक्षी जिनमें घोड़ा खरगोश बगुली मछली गाय हाथी भेड़िया शेर बकरी नाग गधा सभी एक एक व बारह सुअर एवं तेरह बन्दर पाल रखे हैं। यलवाजी-विलोम =========== हरते पिक हर बार असुर खग, नारी कब रहना। हरसे जग गोली छमकी वश, गोरख यह कहना।। शब्दार्थ :- हरते=चुरा लेते हैं, पिक=कोयल, असुर=राक्षस, खग=पक्षी, रहना=बचना, हरसे=प्रसन्न होता है,...
निर्झर
कविता

निर्झर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निर्झर निरन्तर, निर्झर निर्मल निर्झर निशब्द नही निर्झर नमित हे धरा को निर्झर, निर्भय नित प्रवाहित। कभी लगता निर्झर श्वेद है लगता कभी निर्झर बर्फ का झाग है निर्झर, झरझर बहता लगता, लक्ष्य की ओर भाग रहा उस लक्ष्य की ओर जिसका उसे ठौर ज्ञात नही। धरा को नमन करता निर्झर सरगम के स्वर गाता निर्झर कही दिखता, पाषाणो को तोडता निर्झर कहीं पाषाणो को पीछे छोड सीमा लाथता निर्झर वृक्ष को अपनी ओर झुकाता सा निर्झर निर्झर की फुहारो का आनंद लेते चक्षु कही तन मन को भिगोता निर्झर । निर्झर लगता कही प्रकृति के गले के हार सा कही प्रतित होत पकृति की पायल सा रूनझुन, रूनझुन गीत गाता क्या कहु इस निर्झर को, जन जन को है लुभाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चकमक जैसा शौर्य नदी में, चिंगारी ऐसी लहकी। चाल चली शकुनी ने टेढ़ी, आग युद्ध की फिर दहकी।। काली पड़ती चंचल हिरणी, धूप तेज है कुँवार की। कोमल कलियाँ भी झुलसी हैं, कैसी रुत है बहार की । शहर गाँव वीरान पड़े हैं, उम्मीद नहीं सुधार की। अपने तोता से बिछड़ी जो, मैना है बहकी बहकी।। हुए घरों के खंडित चूल्हे, बिलखें गोदी में बच्चे। दूर कबीला छूटा कुनबा, सगे मगर रिश्ते कच्चे।। चौसर की कपटी बिसात में, फँसतें धर्मराज सच्चे। पृथकवाद की राजनीति में, विद्रोही आहट चहकी।। जहरीला इंसान हुआ है, निष्ठाऐं सच की जलतीं। मोल नहीं है बलिदानों का, हिय बस छलनाएं पलतीं।। तेजाबी माहौल हुआ है, गोली अंतस को छलतीं। कटुता के भावों में पनपी, क्षति फिर अंदरुनी महकी।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : ज...
संशय
कविता

संशय

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हां मैं लिखता हूं तुम्हारी मुस्कुराहट में अपना वजूद लिखता हूं। हां मैं देखता हूं तुम्हारी छुपती निगाहों में अपना अस्तित्व देखता हूं। हां मैं मुस्कुराता हूं तुम्हारी स्मृति में खोकर हृदय तल से मुस्काता हूं। हां मैं डरता हूं एक बेनाम रिश्ते को एक नाम देने से डरता हूं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
छत्तीसगढ़ के पहली तिहार
आंचलिक बोली, कविता

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) खेत-खार दिखे हरियर-हरियर रँग, डीह अउ डोंगर म पानी के बहार हे। नरवा अउ नदिया उलानबादी खेलँय, जम्मों कोती हरियाली के उछाह हे।। मेचका मन बजाथें मांदर, गुदुम बाजा, केकरा मन बजाथें सुलुड अउ बसुरी। जलपरी मछरी मन नाचँय मगन होके, पिरपिटीया साँपिन चुप देखथे बपुरी।। बनिहार मन गावत हें ददरिया गीत, बबा ढेरा चलावत गावत हे आल्हा। सुआ अउ मैना मया के गोठ गोठियाथें, कारी कोइली चिरई रोथे बइठे ठल्हा।। गाँव ल बाँधे बइगा करके जादू-टोना, लोहार ह चौंखट म खीला ल ठोंकथे। सियारी फसल म रोग-राई नइ होवय, यादव मन लीम डारा ल घर म खोंचथें।। छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली, सावन महिना म किसान मन मनाथें। नाँगर, हँसिया, कुदरी के पूजा करँय, लइका मन बाँसिन के गेड़ी खपाथें।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीस...
सावन
कविता

सावन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आया सावन झूम के। सावन की झड़ी संग, बूंद-बूंद से मोती सजे। देख नज़ारा सावन भी खुद, महादेव को जल चढ़ाने आया। बदरा ने भी ढोल बजाया। आराधना के तीज त्यौहारों में, महादेव भी चौमासे के त्योहार लाये। झरते झरने मन को कितना रिसायें। बरसे सावन की घटाएं, मन को रिझायें। नव-श्रंगार कर, सखियां मिले। मिलकर मन मोतियों से झूला सजायें। खुशियों मे सबका मन समाये। उमंगों का झूला लहरायें। उमड़ घुमण बरसे सावन, बदरा ने भी ढोल बजाये। झरते-झरने मन को रिझाये, झूम के बरसे सावन की घटाएं। पेड़ो की डाले भी झुक झुक जायें।। हरियाली की बिछा चादर धरा को घूंघट उड़ायें। नाचे मेरा मयूर मन। सावन की घटाएं मन को इतना रिझायें। झूमके बरसे सावन की घटायें। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता...
सावन महीना
आंचलिक बोली, कविता

सावन महीना

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ल भावत हे! हरियर-हरियर खेत दिखत हे कोयली गीत सुनावत हे !! झरझर-झरझर पानी गिरइ तरिया डबरी लबलबावत हे! खोचका, डबरा पानी भरगे मेचका हर घलो मेछरावत हे !! किसानमन के दिनबादर आगे किसानी गोठ गोठियात हे! करे बियासी नांगर धोवय जुरमिल हरेली जबर मनावत हे!! सावन सोमवारी रहे उपवास शिवभोला के गुण गावत हे! बेल, धतुरा, नरियर धरे शिव भोला म पानी रितोवत हे !! बोलबम के जयकारा लगावत कांवरिया मन ह जावत हे! सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ला भावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
बचपन का जमाना
कविता

बचपन का जमाना

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** बारिश की बूंदों का टिमटिमा के बरसना स्कूल की छूटी होते ही बारिश के पानी में चलना मानो जिंदगी का सारा आनंद और सुकून देके चला गया हो वो बचपन का जमाना। छोटे-छोटे हाथों से छतरी लेके चलना नन्हे-नन्हे कदमों से बारिश के कीचड़ में मस्ती करना मानों जिंदगी का सारा खज़ाना देके चला गया हो वो बचपन का जमाना। बारिश की बूंदों से उठते हुए बुलबुलों का फटना थक कर स्कूल से आते ही दोस्तों के संग बारिश में खेलना मानों जिंदगी की सारी आज़ादी देके चला गया हो वो बचपन का जमाना ... वो बचपन का जमाना ... परिचय :- रमेश चौधरी पिता : श्री नारायण लाल जी चौधरी माता : श्रीमती सुन्दरी देवी शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) निवासी : तह.- सोजत सिटी पाली (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
सावन में भीगी मेरी गौशाला
कविता

सावन में भीगी मेरी गौशाला

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सावन की बारिश में भीगी गौशाला, पीपल, नीम, बरगद की शाला, झूमे हर जीव बन के मतवाला, अद्भुत निराली, अनुपम गौशाला!! उन्मुक्त पवन के झोंके निराले, सारे जीव लगते है बड़े न्यारे! रिमझिम बरखा की पड़ती फुहार, नन्हें गौ वंशों की रूनझुन बयार! सावन की सोंधी मिट्टी की खुशबु, चूल्हे पर सेंकते भुट्टे की सुवास, अभावों के बीच भी सौंदर्य है अपार खुशियाँ बरसती यहाँ अपरम्पार! हरी भरी खेतों की क्यारी निराली, सावन की सोंधी खुशबु से फैली हरियाली! गौशाला का जीवन है कितना पावन, हर एक जीव में मिलता अपनापन!! बरसती यहां सिर्फ करुणा और स्नेह, यहाँ आके सबको मिलता है प्रेम! माटी की जड़ में जहाँ बसते हैं रिश्ते, देवी-देवता यहां हर रंग-रूप मे बसते! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश क...
थोड़ा तरस खाओ
कविता

थोड़ा तरस खाओ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** निरीह प्राणी शिक्षक को न समझा जाये भगवान, सत्ता वालों की नजर में नौकर है अपनी दुर्गति से वो नहीं अनजान, हमने देखा है शौच करने वालों की निगरानी उनको करना पड़ा, उसने तो ड्यूटी कह मान लिया जग ने देखा व्यवस्था है पूरा सड़ा, आफत के समय शिक्षक ही थे जां लगा दांव ड्यूटी थे किये, संग पुलिस वालों ने राहगीरों से भर भर पैसे खुलेआम लिये, अब वक्त है उनसे ट्रैफिक ड्यूटी कराने का, उन्हें उनकी औकात बताने का, कल को नाली साफ करने कहा गया तो बेझिझक करेंगे, उन्हें सरकारों का खौफ है बुरी तरह से डरेंगे, ऐसा कोई काम नहीं जिससे शिक्षक डरते हैं, वो शिक्षा पर ही जीते हैं और शिक्षा पर ही मरते हैं, सियासतदानों अपनी हरकतों से बाज आओ, अपनी लिखी किताबों के भगवान रूपी शिक्षक पात्रों पर तो थोड़ा तरस खाओ। ...
बिखर गए सांसों के मोती
कविता

बिखर गए सांसों के मोती

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शब्द श्रद्धांजलि : मृतक बच्चें (हादसा - पीपलोदी शाला, झालावाड़) बिलख रहे बापू जिनके, वो छोड़ गए मां को रोती। टूट गई जीवन की माला, बिखर गए सांसों के मोती। पोथी बस्ता अनाथ हुए, और कलम रह गई सोती। तम के गहरे आघातों से, बुझ गई जीवन ज्योति। मृत्यु बड़ी निर्दय हुई, बाल-सभा को खाती। वीभत्स दृश्य चीत्कार देख, हर आंख आँसू बहाती। मौत भी मजबूर हो, जिस गुलशन को आती। बरसों से क्यों पाले थे, फिर मरघट की सी थाती। क्या आंखो से अंधे थे, अथवा गांधारी की जाति। दिखी नहीं सर्पणी जिनको, मासूमियत को डसती। तुम शीशमहल में रहते हो, क्यों कच्चे हमको पाती। कौन जिम्मेदार बुझाने को, बच्चों की जीवन बाती। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
माँ का खत
कविता

माँ का खत

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। वह घर-आंगन में खेलना और पेड़ों पर चढ़ना। उछल -कूद करके सारा दिन मां को बहुत सताना। इसने मेरे बचपन की सारी नादानियों को याद दिलाया है। बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। सबका लाड़ला था मैं, वहां न कोई पराया था। हर घर से ही मैंने प्यार बहुत पाया था। बहुत मजबूत था, हम यारों का याराना। खुशी का हर गीत ही मैंने बचपन में ही गया है। बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। शुद्ध हवा और शीतल पानी। झरने-नदियां कहती अपनी ही कहानी। तालाबों में मैंने देखी मीन की अठखेलियां। बारिश की नन्ही बूंदों ने हर तरु का मन हर्ष...
परछाइयाँ
कविता

परछाइयाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कब पीछा छोड़ती है परछाइयाँ ये प्रतिबिंब होती है उसके व्यक्तित्व की झलक होती है निजी अस्तित्व की आभास होती है प्रछन्न अनुभूति की प्रबल विश्वास होती है मानसिक संवेदनाओं की... इसकी सघन जकड़न में अलग उन्माद है अजब आक्रोश है भीनी महक है चुलबुल चहक है सहमी सी कुंठा है पाने की उत्कंठा है सही की आशा है गहन जिजीविषा है.... फिर भी परछाई तो परछाई है कभी कभी दिखती है शेष बस अहसास है प्रत्यक्ष है... परोक्ष है... परंतु प्रति पल संग है.... ये तो मीठी मीठी सिहरन है पगलायी सी विरहन है नीलोत्पल की दमक दामिनी आवेश की सरस चाशनी पागलपन भी कैसा कैसा प्रिय-प्रिये मिलन जैसी परछाइयाँ.. पर क्या टूटेगा ये अमर प्रेम स्व से परछाई का वहम ना... कभी नहीं... क्योंकि ये स्व का दर्पण है स्व श्रद्...