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कविता

माँ का पल्लू
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माँ का पल्लू

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ पहनती थी सूती साड़ी उसे धोती कहा जाता था माँ की रंगबिरंगी साड़ी का वह प्यारा सा लम्बा पल्लू उसकी सर की शोभा बन काँधे से उतर कर हमेशा सामने लटका रहता था मानो खूँटी पर टँगा हुआ मुलायम तौलिया ही हो आँखे मलते जब उठता माँ के मुलायम पल्लू में सुहाना सवेरा होता मेरा कभी कुछ खाऊँ-पीयू पल्लू रुमाल बन जाता बिजली जाने पर पंखा धूप से बचाने को छाता ट्रेन बस की खिड़की पर वह पल्लू ही काम आता आज भी भुला न पाया उस तमाम मसालों की महक से भरे पल्लू को बाबा व मास्टर जी की डाँट पर ढाल बन जाता ढुलकते आँसुओं को पोछ गुलाबी गालों को सहलाता अपना लहराता पल्लू भी माँ ले गई अपने साथ याद में आँखें भर आती दिल ढूंढता उसे बारम्बार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
सजगता ही सुरक्षा
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सजगता ही सुरक्षा

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** एक तरफ़ माता-पिता के मन में अपनी बेटियों को पढ़ाने की चाह, उन्हें आगे बढ़ाने की चाह, उन्हें ‌आत्मनिर्भर बनाने की चाह होती है, वहीं दूसरी ओर उनके समक्ष अपनी बेटियों की सुरक्षा का बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह होता है। मुझे लगता है कि वर्तमान परिवेश में बेटियों के कैरियर बनाने में, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में, सबसे बड़ी बाधा महिला सुरक्षा ही है, तो क्यों ना बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी जाए, उन्हें समझा कर, उन्हें समझदार बनाकर, उन्हें विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराकर, जिससे कि प्रतिकूल परिस्थितियों को पहले ही भांप कर, वे अपनी सुरक्षा स्वयं कर पाने में सक्षम हों। इस विषय पर परामर्श सत्र के दौरान मेरा, मेरी छात्राओं के साथ वार्तालाप होता है, मैं उन्हें, उन्हीं की‌ गलतियों से उत्पन्न कुछ परिस्थितियों क...
स्वर कोकिला
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स्वर कोकिला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ऋतुराज बसंत आये तुम, स्वर कोकिला छीन ले गए | रेवती पंचक में आए तुम, स्वर कोकिला छीन ले गए || गायन बत्तीस भाषाओं की, अद्भुत उपलब्धि छीन ले गए | धरा रत्ना भारत रत्ना हमारी, स्वर कोकिला छीन ले गए || अपरिहार्य पार्श्व गायन की, सुरम्य आवाज छीन ले गए | शारदा प्रतिमूर्ति संगीत की, स्वर कोकिला छीन ले गए || "आएगा आने वाला" महल का गीत, चित्रपट का गीत छीन ले गए | "पाँव लागू कर जोरी" पहले गीत की, स्वर कोकिला छीन ले गए || नग्न पैर संगीत परोसती थी जो, दृष्टांता संगीत की छीन ले गए | आत्मा संप्रति संगीत की जो, स्वर कोकिला छीन ले गए || भक्ति संगीत की महाशक्ति, देशभक्ति स्वरा छीन ले गए | राष्ट्र वंदिता मंगेशकर लता, स्वर कोकिला छीन ले गए || स्वर कोकिला छीन ले गए, स्वर कोकिला ...... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आच...
देशरत्न लता दीदी
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देशरत्न लता दीदी

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लता जैसा कहाँ बन पाता है कोई, स्वर- साम्राज्ञी न बन पाता है कोई। युगों-युगों में किसी वरदान के जैसा, ऐसा अवतार विरला पाता है कोई। कागज की फुलवारी में रहते बहुत, रातरानी के जैसा गमकता कोई। जाने को लोग रोज जाते ही हैं, ऐसे कहाँ विश्व को रुलाता कोई। जीवन का अंत तो सभी का है तय, सूरज-चंदा के जैसा चमकता कोई। त्याग भरा जीवन जीते हैं कम, यादगार पल कहाँ जीता कोई। गाई हैं जो नग्में लता दीदी ने, ऐसा हुनर कहाँ पाता है कोई। वक्त देखो उड़ता हवा की पीठ पे, अदब का फनकार मिलता कोई। हीरे की कीमत जौहरी ही जानता, ऐसा पारखी जहां में होता कोई। वक्त के झरोखे से ही देख पाओगे, स्वर-कोकिला बन के आता कोई। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कव...
सिलसिले
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सिलसिले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सिलसिला यूं ही चलते रहेंगे जिंदगी भर माला पिरोते रहेंगे तारों के कोणों पर कोई मिले ना मिले गम ना कर जिंदगी सोनी राहों में तुझे चलना है अकेले। अपनी पदचाप सुनते हुए झुरमुटो से आतीं पाखी का गीत सुनते हुए वृक्ष लताओं के साथ गुनगुनाते हुए आसमा को दामन से बांधते हुए। जमी को आगोश में रखते हुए देंगे धीरज तुझे इनके विस्तृत आकार। चमकते चांद तारे झुरमुट हरियाली गिरी गव्हर इन्हीं में शांति का अन्वेषण कर। क्योंकि~ क्योंकि यह मूक हैं स्वार्थी नहीं। छाया फल की आशा मनु से नहीं तरु पल्लव से कर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
चांद उतरा जमीं पर
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चांद उतरा जमीं पर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** मौसम की ये कैसी फिदरत हैं। कभी बेरूखी तो कभी शिद्दत हैं। हमें कोई गम नहीं कही पर ना होने का अकेले ही हर्ष हैं अपनों के बीच रहने का। समय की रफ्तार में वक्त भी यूं ही ढल जाएगा। जिंदगी की इबारत में एक नाम और जुड़ जाएगा। कभी अनजाने हैं हम पास रहते भी इस जहां में। आज वे शुमार हैं हो गये शब्दों से तीर चलाने में। देख कर तस्वीर हमारी आज वे शब्द बुन रहें। कोई शिकवा नहीं हमें शब्दों से कि वे क्या लिख रहें। चाहत भरी जन्नत में सबको कुछ कहना चाहिए। ये किस्मत हमारी कि उन्हें तस्वीर समझना चाहिए। भावों के सागर में शब्दों का ये कैसा जाल हैं। अनकहें शब्दों से जो कह दें वही उनका हाल हैं। चांद बता रोशनी से उन्होंने दीदार किया हैं। ना कहते हुए भी बहुत कुछ शब्दों में इजहार किया हैं। चेहरें के भावों को पढ़ना सबकी आदत नहीं हैं।...
अपनी तकदीर लेके आया हूं
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अपनी तकदीर लेके आया हूं

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अपनी तकदीर लेके आया हूं अब न तेरे लिए पराया हूं दूर तक देख लो मुझे तुम भी याद का सिलसिला बनाया हूं जिंदगी खुद नहीं समझ पाई कितने किरदार में समाया हूं वक्त को हम समझ नहीं पाए आस फिर भी कहीं लगाया हूं लोग नफरत की बात करते हैं बस इसी खौफ का सताया हूं जितने गम भी मिले जमानें में उनको दिल में छुपा के लाया हूं खुद पे मुझको यक़ीन है रंजन अपना रस्ता नया बनाया हूं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में...
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वह नाम अपना लिखा गई
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इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वह नाम अपना लिखा गई

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर की देवी स्वर छोड़कर स्वर्ग लोक में समा गई जाते-जाते भी धरती पर सारी दुनिया को रुला गई। भारत रत्न स्वर कोकिला को यह दुनिया भुला नहीं पाएगी अपने सुस्वर से महान हस्तियों की पलकें भीगा गई। साधारण जीवन और उच्च विचार उसकी अनमोल धरोहर थी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वह अपना नाम लिखा गई। माया नगरी में रहकर भी ये माया उसको छू नहीं पाई गरीबी से कैसे लड़ना है सारी दुनिया को सिखा गई। परिवार के खातिर उसने अपनी खुशियों का त्याग किया शोहरत और रुतबा क्या होता है ये सारी दुनिया को दिखा गई उसका गीत सुनकर ही नेहरू जी की आंखें भर आई थी अंतिम सफर पर उसी गीत से मोदी जी की आंखें डबडबा गई। जिस वक्त स्वर की देवी ने स्वर्ग लोक को गमन किया नारी का रिश्ता क्या होता है नारी जगत से निभा गई। परिचय :- सीत...
चेतावनी
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चेतावनी

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** अभी समय है चेतो भाई, बिटियों को आने दो भाई। गरल नहीं, ये अमि हैं भाई, बिटियों को आने दो भाई। अभी जनम न देंगें इनको, बहु बना फिर लाएंगे किनको, तुम्हारी पत्नि, किसी की जाई, बिटियों को आने दो भाई। सृष्टि बगिया के दो माली, एक समान है लल्ला लाली। भिन्न करो मत इनको भाई, बिटियों को आने दो भाई। धन, बल से तुम जांच कराते, अवांछित को नष्ट कराते, पिता बनो, मत बनो कसाई बिटियों को आने दो भाई। जो करतीं ये कृत्य घिनौना, उनको भी है इक दिन रोना। लड़का क्वांरा, बहु न पायी, बिटियों को आने दो भाई। माना पुत्र से वंश चलेगा, क्या बिन पत्नि संभव कर होगा? घटिया सोच को बदलो भाई, बिटियों को आने दो भाई। शायद वे पानी देंगें मरने पर, ज़िंदा तब देता है कौन? चिंतन हो "गम्भीर" सा भाई, बिटियों को आने द...
इस बसंत में
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इस बसंत में

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चित्रपट सा चित्रित होता रवि रश्मि का चित्रांकन पित, श्वेत, रक्तिम रश्मि काफैला प्रांगण। लाल चुनरी, चीर सुनहरी नीलाभ किनारी गगन की आती-जाती नभ पटल में सुंदर नारी रत्नसी। लहराती फहराती आंचल चलो और दिशाएं करती चंचल। पक्षी कलरव कर करते स्वागत कस्तूरी मृग उछल कूद कर प्रकृति का लेते रसास्वादन। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी ह...
देहरी और दीया
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देहरी और दीया

सुधा शर्मा "कोयल" रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** देहरी और दीए का सबंध अनोखा है ... देहरी इंतेजार की औऱ दीया की लौ प्यार की हद है !! देहरी स्वागत है तो दीया ... उम्मीद से अवगत है !! देहरी पर नजरें औऱ ... जलते दीये को जैसे इंतजार किसी पूर्णता की शायद ये पूर्ण हो या हो .. कभी चन्द्र सा आधा अधूरा ... दोनों की प्यास एक है!! आकुलता व्याकुलता दोनों की खत्म हो जाती है ..जब देहरी बन्द हो या फिर हो .. दीये की आखिरी लौ!! दोनों की लिप्सा एक है .. एक प्यास में है.. दूजा प्यार में!! न दीया थकता है .. न देहरी उसे बुझने देती है !! शायद जो आने वाला है ... वह प्यार है, ...प्यार ही है !! परिचय :- सुधा शर्मा "कोयल" निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़) व्यवसाय : लेक्चरर बायोलॉजी साहित्यिक गतिविधि : तीन सांझा संकलन प्रकाशित एवं स्वरचित काव्य संग्रह- प्रेम पीताम्बरी सम्मान : वि...
स्वर की पुजारन
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स्वर की पुजारन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वर की पुजारन चली स्वर की देवी से मिलने बहुत ही कठिन पल हमारे लिए यह बहुत है ममतामई मां को हम सबने ही अब खो दिया है स्वरों की मल्लिका के गीत से हम वंचित हुए हैं स्वर कोकिला भारत रत्न लता दीदी चली हैं माता सरस्वती के धाम वो उनके संग ही गयी हैं बसंत पंचमी का उत्सव एक ओर मनाया जा रहा दूसरी ओर लता जी अनंत यात्रा को जाने लगी है जन्म मृत्यु का चक्र बहुत ही अनोखा यहां हैं जन्म जिसने लिया उसकी मृत्यु निश्चित ही होती शीश झुका बस इतना ही कहना मैं चाहूं यात्रा तुम्हारी मां अपनी पूर्णता को पाए आत्मा का मिलन आज परमात्मा से होने चला है स्वं ब्रम्ह से आज उनका मिलन हैं परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
मेरी राहें
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मेरी राहें

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरी राहें मुश्किल नही, चाहे कितनी भी दूर हो मेरी मंजिल। मुसाफिर हूं मैं राहगीरों का, मिलती है मुश्किल से लहरों को साहिल।। मुसाफिर हूं मैं राहगीरों का, आगें बढ़ना मेरा काम । जब तक न मिलें मेरी मंजिल, करना नही मुझें आराम।। राह में कोई कांटे हो या दु:ख हो, मुझें नही घबराना है। जिंदगी के सफर में हमेशा, आगें हि बढ़ते जाना है।। लोग क्या कहतें है कहने दो, अपनी दिल की सुन और मन की करों। मिलेगीं सफलता एक दिन, अपनी विश्वास अडिग रखों।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
१४ फरवरी शहीद दिवस
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१४ फरवरी शहीद दिवस

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** आतंकवादी भेड़ जब फौज शेर के पीछे से छुपकर एक दर्दनाक दुर्घटना करने को आई थी। आतंक इनके जज्बातों से डर के एक वाहन लदे आरडीएक्स फौज के वाहन से टकराई थी।। रोया होगा आसमान भी उस दिन जिस रात को ये दर्दनाक समय आई थी। आसमा तो क्या धरती को भी दिल से जोरो का जब आवाज निकल आई थी।। माँ की आँखे तो बहुत ही दिनों से बेटे का आने की रास्ता को देखकर आई थी। तभी पत्नी की घर में आवाज गूंजी, जब फौजी पति के शहीद होने की खबर आई थी।। माँ ने भी अपने दूध का कर्ज चुकाने के बहाने, वीरों को आवाज लगाकर जगाने आई थी। बहने और बच्ची भी उन्हें जगाने चिखते–चिल्लाते हुए बहुत दूर तक आई थी।। हर आँखे नम हो गया जब अपने ही देश के ४२ फौजियों के शहीद होने की खबर जब टीवी में आई थी। उन माताओं और बहनों की दिल पर क्या गुजरा होगा, जब किसी के बेटे, ...
ओ मेरी लाड़ली
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ओ मेरी लाड़ली

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** ओ मेरी लाड़ली, नन्ही सी मेरी गुड़िया। तुमको सुनाऊँ मैं लौरी, ओ मेरी प्यारी बिटिया।। ओ मेरी लाड़ली ....।। एक था राजा और रानी, उनकी सुनाऊँ तुमको कहानी। उनके थी एक राजकुमारी, तेरी तरह मेरी गुड़िया रानी।। बहुत ही सुंदर थी वह, करती थी प्यार उसको दुनिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। आयेगा तेरा चंदा मामा, लाल परी तुमसे मिलने। नाचेगा तेरा बंदर मामा, लायेंगे तेरे लिए खिलौने।। फूलों सी है सूरत तेरी, महकी है तुमसे मेरी बगिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। चंदा- तारे सो गये, दोस्त तेरे सभी सो गये। देख रहे हैं सोकर सपनें, फूल-पंछी भी सो गये।। सो जा मेरी राज दुलारी, सो जा मेरी प्यारी मुनिया। ओ मेरी लाड़ली ....।। परिचय :- गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" निवासी : बारां (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
धरती की पुकार
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धरती की पुकार

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मन मे कुछ उमंगे सी जग उठीं हैं, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है। प्रतिदिन पर्यावरण बिगङ रहा है, वृक्ष काटे जा रहे हैं, रो रही धरा है। इस धरा पर कोई तो महा रथी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। इस धरा पर पाप इतना बढ़ रहा, हर व्यक्ति पाप की सीढ़ी चढ़ रहा। पाप करके लोग यहाँ साधु कहलाते, साधुओं के वेश में अधर्मी पूजे जाते ये धरा पवित्रता की भूमि सी है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। नारी सम्मान क्षीण हो रहा, अधर्मी व्यक्ति उत्तीर्ण हो रहा। धर्म का प्रचार कोई न करें, धरा पर धर्म संकीर्ण हो रहा। सहनशीलता की ये तो मूर्ति है, करें रक्षा धरती माँ पुकारती है।। सहनशीलता का ये प्रमाण हैं, ये धरा सुधा के ही समान है। धरती माँ का कष्ट क्या है देखलो, गौरव के काव्य में ये विघमान है। जन्म होता है धरा पर,धरती माँ ही ...
दया प्रेम करुणा
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दया प्रेम करुणा

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** हर मानव मे हर जीव के प्रति दया की भावना होता है अच्छे मानव कि पहचान है, सुख दुख मा हर पल साथ दे दयावान व्यक्ति महान हे.! प्रेम कि बोली से हर व्यक्ति की मन को करते है आकर्षण, सच्चा प्रेम और सही शिक्षा लोगो को सही राह दिखाता है भूले को रास्ता, दिलो मे प्रेम बस जाता है.! बिना वजह के साथ दो दीनहिन असहाय सेवा सम्मान करो, नारी कि इज्ज़त, असहाय लोगो पर करुणा का प्रसार करो.! छोटी सी जिन्दगी दिलो मे हर किसी के लिए इज्ज़त सम्मान प्यार रखो, बेसहारा, दीनहिन, कमजोर की हमेशा मदद करो अच्छा व्यवहार बना लो.!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आया बसंत
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आया बसंत

डॉ. अखिल बंसल जयपुर (राजस्थान) ******************** बसुधा पर लहराया बसंत आया बसंत, आया बसंत। ऋतुराज प्रकृति का प्यार लिए कोयल की मृदुल पुकार लिए। भावों का नव संसार लिए, रस भीनी मस्त बयार लिए। तरुओं का यौवन वहक रहा, वन गंधित मादक महक रहा। सरसों की छटा निराली है, गाती कोयल मतवाली है। पागल पलास लो दहक उठा, 'अखिल' मानस लख चहक उठा। मन मस्ती में डूबा जाता, अनकहा एक सुख में पाता। फूलों पर भोंरे मंडराते, खगवाल फुदकते मुस्काते। मंजरित हो उठे आम्र कुंज, चुम्बन करता आलोक पुंज। हो चला शिशिर का पूर्ण अंत, आया बसंत, आया बसंत। परिचय :- डॉ. अखिल बंसल (पत्रकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी), डिप्लोमा-पत्रकारिता, पीएच. डी. मौलिक कृति : ८ संपादित कृति : १७ संपादन : समन्वय वाणी (पा.) पुरस्कार : पत्रकारिता एवं साहित्यिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु...
मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये
कविता

मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** तारों से जब आंचल सजाओगे सीपों से गहने जड़वाओगे प्रीत में तेरी राधा सी बनकर मन में जब संदल महकाओगे मैं मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये.... नागफनी में भी फूल खिलाओगे छूकर मुझे तुम राम बन जाओगे आशा के तुम ख्वाब सजाकर जब जब मुझसे प्रीत निभाओगे मैं मिलुंगी तुम्हें वहीं प्रिये.... कोयल की कूक सुनाओगेे भवरें सी मधुर गुंजार करोगे अमावस की अंधेरी रातों में जुगनू से रोशनी ले आओगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... हरी चुड़ियाँ जब तुम लाओगे आस के हंस को मोती चुगाओगे सावन में लहराने लगा मन मेरा प्रणय के गीत जब तुम गाओगे मैं मिलुँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... जब जब भी तुम याद करोगे चाँदनी को चाँद से मिलाओगे गुनगुनाती हवाओं के साथ साथ अहसासो में जब मुझे सवांरोगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये .... परिचय :- मधु टाक ...
अच्छा लगता है
कविता

अच्छा लगता है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अपने अनुभव से जो कर पाता जीवन में, देख सुन समझकर बस अच्छा लगता है। देखकर दूसरों की कुछ उपलब्धि प्रगति गूंगा ठगा सा रह जाना अच्छा लगता है। कब कहाँ किसने क्या क्यों कैसे कहा था हर वक़्त याद रख लेना अच्छा लगता है। जरूरी कार्य ताकीद के बावजूद भी देखा अनजाने की भूल कहना अच्छा लगता है। संस्था समाज का ठेकेदार बनता है मनुज, ठेकेदारी चाल बदल लेना अच्छा लगता है। कथा व्यथा लहू में समाई शक्ति कहलाती सूत्र सिद्धांत उपयोग बस अच्छा लगता है। आध्यात्म और सिद्धि साक्ष्य अदभुत मिलते आंखों देखा वृतांत सुनना अच्छा लगता है। मां बाप गुरु सम्मान है किताब व्याख्यान में, साक्षात प्रमाण दिखे कभी अच्छा लगता है। नदी सदृश्य किरदार भी बहता रहा जमीं पर, चुल्लू भर जल में श्रम गंध अच्छा लगता है। चौकीदार सी चौकस निगाहों वाली परवरिश, च...
संविधान
कविता

संविधान

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर शख्स संविधान का सन्मान करेगा। हर शख्स का सन्मान संविधान करेगा। हर शख्स अपना अपना न कानून बनाओ, हर शख्स वतन पे इतना एहसान करेगा। मिलजुल के रहो प्यारा हमें मुल्क चाहिए, मुल्क में न किसी का कोई अपमान करेगा। कुछ मुल्क के दुश्मन हैं जो गद्दार यहां पर, वही गद्दार अपने हिन्द को वीरान करेगा। बहू,बेटी पे हाथ डाले,उसे शूली पे चढ़ा दो, फ़िर काम कोई ऐसा न कभी शैतान करेगा। जो ईमान पै चलते उन्हे मिलती यहाँ ठोकर, जो न कर सके कानून यहाँ बेईमान करेगा। "बेज़ार" मन में आये तुम वो कानून बना लो, संविधान की इज्जत यहाँ इंसान करेगा। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भारत का झंडा ऊँचा कर
कविता

भारत का झंडा ऊँचा कर

डॉ. केवलकृष्ण पाठक आनद जवास, गीता कालोनी, जींद ******************** कर्म ही है देश भक्ति, अपना कार्य पूरा कर सत्य का ले आसरा, चल सत्पथ पर हो निडर सेवा ही हो भावना, जो दीं पीड़ित जन मिले सत्कर्म- व्यवहार से, दुष्कार्य बाधा दूर कर देश की संपत्ति को, हानि न पहुंचाए कोई भावना हो देश भक्ति, सबके मन में पैदा कर निष्ठा पूर्वक कार्य मेरे, देश का हर जन करे स्वर्ग ही फिर उतर, आएगा हमारी धरती पर हो न कोई जाति बंधन, सब में भाईचारा हो देश में अलगाव का, वातावरण न पैदा कर सारे ही संसार में है, मान भारत देश का उस प्रतिष्ठा को बढ़ा, भारत का झंडा ऊँचा कर परिचय :- डॉ. केवलकृष्ण पाठक निवासी : आनद जवास, गीता कालोनी, जींद घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
हम भारत माता की संतान है
कविता

हम भारत माता की संतान है

ऐश्वर्या साहू महासमुंद (छत्तीसगढ़) ******************** न धर्म से संबंध है मेरा न वंश से संबंध मेरा हिन्दुतान से है l कहते है दुनिया वाले हमे बहुत अभिमान हैl तो हाँ हमे बहुत अभिमान है अभिमान हमे इस बात का की हम भारत माता की संतान है | इस भारत भूमि में जन्मे कई वीर पुरुष महान है l हमे अभिमान इस बात का है कि हम भारत माता की संतान है ल अमृत सा इसकी नदियों का जल इसकी भूमि पावन है , जिसके चरणों मे खड़ा हिमालय करता इसका अभिवादन है l जिसके चरणों मे समर्पित सबका जीवन, चाहे मजदूर, सिपाही, नेता, चाहे किसान है l हमे अभिमान है इस बात का की हम भारत माता की संतान है ल विविधताओं का देश है हमारा हर धर्म, हर संस्कृति का आदर करना हमारी पहचान है l हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी पुत्र जिसके लिए समान है l हमे अभिमान है इस बात का की हम भारत माता की संतान है ल विकाशशील व...
कुछ बर्फ सी
कविता

कुछ बर्फ सी

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में.... एक ख्वाब सा लगने लगता है.. यह लाल रंग सा इश्क लिए... मन शोर शराबा करता है ... फिर एक खामोशी सी छा जाती है... कैसे बताऊं ए ग़ालिब तुझे मैं... तन्हाइयो मैं खामोशी जान ले जाती है.... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... वह मेरा ख्वाब उलझता जाता है.. फिर यह इश्क बिखर सा जाता है... ओस की इन बूंदों के तले ....... वह पत्थर सा जम जाता है .... फिर से पिघल के बहने को..... उस भोर की सुनहरी रोशनी में... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांदनी रात की चादर में... फिर खामोशी से निंदिया में ... तेरा अक्स कुछ कह जाता है... चुरा के फिर मेरी नींदों को... पलकों को सहलाता है... दर्द भी यही मेरा मर्ज भी यह... कुछ बर्फ सी बिखरने लगती है... इस चांद...
साथ
कविता

साथ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तेरा मेरा साथ रहे मेरा तेरा साथ रहे। दिलकी फर्याद रहे तेरे दीदार मिले। मिलने मिलाना का दौर चलता रहे। सुखदुख के साथी बने साथ जो तेरा रहे।। तेरा मेरा साथ रहे..। जब से तुम मिलो हो तकदीर गई है बदल। मेरे जीवन की तुम अब एक तस्वीर हो। इसलिए तो मैं हूँ तेरा दिवाना। अब तुम ही मेरी एक पहचान हो।। तेरा मेरा साथ रहे...।। करता हूँ ईश्वर से रोज मैं प्रार्थना। बना रहे जीवन भर अपना ये प्यारा रिश्ता। अब तुम ही हो मेरी जिंदगी की डोर। चल रही है साँसे अब तेरे साथ रह कर।। तेरा मेरा साथ रहे मेरा तेरा साथ रहे।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं...