सब कुछ फिसलता जा रहा है
डॉ. सुलोचना शर्मा
बूंदी (राजस्थान)
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सब कुछ फिसलता जा रहा है
बंद मुट्ठी से रेत की मानिंद..
हरा भरा जीवन हो चला है
बिन मेड़ के खेत की मानिंद..!!
खो गए हैं इंद्रधनुषी रंग सारे..
रह गया कैनवस श्वेत की मानिंद!!
ये दिल तो धड़कता है मगर
रह गया अंतस अचेत की मानिंद!!
उड़ चला हंसा अकेला
छोड़ काया अनिकेत की मानिंद!!!
परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा
निवासी : बूंदी (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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