अपनी-अपनी बगिया
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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सबकी अपनी-अपनी बगिया
मेरी भी बगिया है सुरभित
कलियाँ चटकीं महकी बगिया
रौनक से भर आई बगिया।
रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं
पुलकित मन से हिले-मिले हैं
इन फूलों के रंगों से मिल
चेहरे पर छाई है लाली।
सूरज-चाँद-सितारे झाँकें
यहाँ प्रेम की खुशबू छाई
दिवस-रात तुम्हीं से होता
सुबह-शाम दोनों सुखदाई।
पूजा-अर्चन तुमसे होता
सभी तीर्थ हैं तुमसे होते
सारा उपवन तुमसे महके
जीवन का हर कोना बिहँसे।
मन मंदिर में पूजा तुमसे
हरि पद में हिय दीपक चमके
साथ तुम्हारा जबसे पाया
जीवन का हर पल हर्षाया।
परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी
निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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