Wednesday, May 14राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

महिमा सावन की
कविता

महिमा सावन की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तप्त धरा है बाट जोहती, आओ बरसो सावन प्यारे; धधक रही मन की ज्वाला को, शांत करो घन मतवारे। रिमझिम रिमझिम बरखा बरसे, घिरे काली घटा गगन में; देख प्रकृति की छटा अनोखी, मयूर झूमे नाचे वन में। सूखी धरती सजी ओढ़कर, हरी चुनरिया मोती वाली; नदियां झरने बहते कल कल, तोड़ के बंधन चारदीवारी। वैभव प्रकृति का ठगी निहारें, चहुं दिशाएं और गगन; महिमा मंडित कर देवों ने, बना दिया सावन को पावन। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा प्रति वर्ष प्रकाशित कहानी संकलनों में कहानियां प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, क...
जीवन को फूलों सा महकाना है….
कविता

जीवन को फूलों सा महकाना है….

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** (यह मेरी प्रथम कविता है, जीवन के चालीस बसन्त पार कर लेने के पश्चात्, ससुराल में सभी का प्रेम, अपनापन, सम्मान, प्रशंसा पाने की आस में अपना सर्वस्व लुटाती महिला को जब यह महसूस होता है कि उसका भी तो अपना जीवन है, उसकी अपने प्रति भी कोई जिम्मेदारी है, तो वह कैसा अनुभव करती है? उन्हीं पलों को अभिव्यक्त करती है यह कविता…) यह मेरा जीवन है, मुझे इसको पार लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... उम्मीद से ज्यादा, उम्मीद करते हैं मुझसे, मुझे इससे ना मुरझाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... मायके के सब रिश्ते छूटे, दूजे के घर आने से, पीड़ा इसकी कोई ना समझे, किसी के समझाने से, इन रिश्तों से भी मुझको, कोई उम्मीद ना लगाना है, अपने जीवन को फूलों सा महकाना है... ससुराल के सारे रिश्ते-नाते झूठे हैं,...
आया सावन
कविता

आया सावन

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** आया सावन देखो आया सावन कितनी खुशी लेकर आया सावन प्राकृतिक स्वयं को सजा रही है कोयल गीत गा रही है ... मेंढ़कों की टर- टर लगी है नाच रहे वन में मयूर... मेरी आंखें तरस जाती है जब सावन की बारिश आती है... महादेव की पूजा, नाग पंचमी, भाई बहन का प्रेम कितना पवित्र होता है ये सावन का माह.... फूलों की खुशबू मिट्टी की महक प्रेम की उमंग मिलन की आस.... आया सावन देखो आया सावन कितनी खुशी लेकर आया सावन!! परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
उड़ान
कविता

उड़ान

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। कभी गिरा कभी चढ़ा हूँ मुफलिसी में पला बढ़ा हूँ लक्ष्य जमीन पर नही है आसमान पर कहि तैयार भरने को उड़ान अपनी और खिंचे आसमान कोई छोड़े उसे छोड़ जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। वक़्त बड़ा संगीन है मुझे खुद पर यकीन है कदम रुक नही सकते इरादे झुक नही सकते जो माना वो ठाना है दुनिया को दिखाना है मिटते है निशान मिट जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। कुछ जाना कुछ पहचाना अपना वजूद है दिखाना इरादों ने घमासान की नेकी ने राह आसान की उम्मीद छोडूंगा नही अब मुड के देखूंगा नही निराशा जा रही उसे जाने दो रुकूँगा नही आगे तो बढूंगा आती है परेशानियां आने दो। तिमिर कुछ ही पल है रौशनी हर पल है उजाला ऐसे जोड़ा हूँ ज...
मन नहीं लगता
कविता

मन नहीं लगता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सावन निकले जा रहा, दिल भी मचले जा रहा। कैसे समझाये दिल को, जो मचले जा रहा। लगता है अब उसको, याद आ रही उनकी। जिसका ये दिल अब, आदि सा हो चुका है।। हाल ही में हुई है शादी, फिर आ गया जो सावन। जिसके कारण हमको, होना पड़ा जुदा जो। दिल अब बस में नहीं है, राह देख रहा है उनकी। कब आये वो यहां पर, लेने के लिए हमको।। कितने जल्दी हो जाता, प्यार एक अजनबी से। मानो उनसे करीब अब, कोई दूजा नहीं है। पल भर में कैसे बदल, गया ये दिल हमारा। अब जी नहीं सकती, उनके बिना एक दिन। कर क्या दिया उन्होंने, जो उनमें समा गये हम। दो जिस्म होते हुये भी, एक जान बन गये हम।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री...
मित्र
कविता

मित्र

शिव चौहान शिव रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** मित्र चेहरे की मुस्कान हैं जिंदगी की उलझनों का निदान हैं विपदाओं में पहचान है दिल की खुली किताब हैं रोशनी का आफ़ताब हैं गम को हरले वो शादाब हैं के अपमान को सह नहीं पाता वो दुर्योधन-सा साथ हैं कृष्ण-सुदामा के मिलन-सा हाथ हैं मित्र चेहरे की मुस्कान हैं! परिचय :-  शिव चौहान शिव निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
व्योम के उस छोर से
कविता

व्योम के उस छोर से

कल्याणी गुप्ता "कृति" इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** व्योम के उस छोर से क्षितिज के अंतिम बिंदु तक, जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है, मैंने तुम्हें खोजा, बहुत खोजा, पर तुम नहीं मिले। घंटियों के शोर में, कंदराओं में, खोह में, नहीं भीड़ में, जलसों में, ढोल बाजों में, नगाड़ों में तुम्हारा कोई अता-पता नहीं था। मैं गौर से देखती रही श्रंगारों में, खुशबुओं में, सुसज्जित प्रासादों में, तुम्हारी एक झलक भी नहीं थी। रोज़ ढूंढती रही मैं तुम्हें नगर-नगर। भटकते हुए यूँही एक दिन पैर पड़ा उस धरा पर जहाँ कुछ दिन पहले मैंने बोया था एक बीज वहाँ अब एक पौधा लहलहा रहा था। मैं मुस्कुरा उठी वहीं तो तुम थे। परिचय : कल्याणी गुप्ता "कृति" शिक्षा : एमएससी., एम ए., डी एड. निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मेरी यह रचना, पूर्ण रूप से मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित है।। आप भी अप...
मित्रता
कविता

मित्रता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मित्रता करनी हो तो दोस्त सुदामा कृष्ण सा करना कसम ये खालो तुम आज कि संग है जीना और मरना किसी की हैसियत न आये दरमियां तेरे और मेरे जो आये बीच में दौलत किनारे उसको तुम करना यकीं तुम दोस्त की बातो पर हरदम इस कदर करना जो कह दे आकर खुदा तुमसे तो कहना माफ करना बचपन की है ये दौलत इसे संभाल कर रखना बहुत अनमोल है रिश्ते हमेशा तुम नज़र रखना दुनिया के सारे रिश्तों को तुम जांचना परखना इसे तुमने बनाया है हमेशा याद ये रखना ऐ मेरे दोस्त सुन इस दोस्ती को ऐसे निभाना मिसालों में रहे हम तुम और देखे सारा जमाना परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
मित्र
कविता

मित्र

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मित्र शब्द श्रवण । कर्ण करते ही मित्र का । चित्र मुख सम्मुख उपस्थित । हो उर अति उमंग भरता । अंतर भावविभोर हो शीतल । निर्झर हिलोरे ले मंद-मंद मुस्कान व्याप्ति,मित्र एक सुखद अनुभूति विश्वास मधुरता युक्त । मित्र प्रति स्थिति,परिस्थिति संग। संबल देता अटूट दृढ स्तंभ सम। ज्यो कर्ण अरू दुर्योधन मित्रता । कृष्ण-सुदामा सम सखा । मित्रता विशाल वृक्ष सम छाया । ज्यो राम-सुग्रीव मित्रता । यत्र-तत्र-सर्वत्र मित्र कथा । पौराणिक कथा प्रमाण । सुख-दुख में संग-साथ निभाना । प्राप्त हुए,मित्र संसार की अमूल्य निधि है,अनमोल धरोहर । मित्रता की महिमा । निराली अरू बहु सरस । मित्रता पावन सुगंध चंदन सम । परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
अच्छे मित्र
कविता

अच्छे मित्र

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** पाप कर्म से बचाने वाले व सत्कर्म में लगाने वाले अच्छे मित्र कहलाते हैं । विपरीत कर्म करने वाले गुप्त भेद बताने वाले मित्र नहीं कहलाते हैं। मित्र गुण जताने वाले आपत में न छोड़ने वाले मित्र सहायक होते हैं। कभी न ईर्ष्या करने वाले मित्रहित में खुश होते जो वे ही मित्र कहलाते हैं। परहित सरिस धर्म नहि भाई उपकार भावना जहां समाई ऐसे योग्य मित्र कहलाते हैं। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) शिक्षा : डी. लिट. (केंद्रीय मध्य अमेरिकी विश्वविद्यालय, बोलिविया) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
मुंशी प्रेमचंद
कविता

मुंशी प्रेमचंद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** लमही बनारस में ३१ जुलाई १८८० को जन्में अजायबराय, आनंदी देवी सुत प्रेम चंद। धनपतराय नाम था उनका लेखन का नाम नवाबराय। हिंदी, उर्दू, फारसी के ज्ञाता शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक कथाकार, उपन्यासकार बहुमुखी, संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से चिंतित अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन लेखन को हथियार बना परिवर्तन की राह पर चले, समाज का निचला तबका हो या समाज में फैली बुराइयाँ पैनी निगाहों से देखा समझा कलम चलाई तो जैसे पात्र हो या समस्या सब जीवंत सा होता, जो भी पढ़ा उसे अपना ही किस्सा लगा, या अपने आसपास होता महसूस करता, उनका लेखन यथार्थ बोध कराता समाज को आइना दिखाता, शालीनता के साथ कचोटता चिंतन को विवश करता शब्दभावों से राह भी दिखाता। अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे सब में कुछ न कुछ...
मित्रता
कविता

मित्रता

गीता देवी औरैया (उत्तर प्रदेश) ************* मन से मन का रिश्ता कहलाता मित्रता या दोस्ती। अच्छे बुरे वक्त में सदा, निभाई जाती है दोस्ती।। दोस्ती कभी ना देखती, सुनो अमीरी और गरीबी। ऊंच-नीच से है परे, बुराई में भी ढूंढे खूबी।। स्मरण करना नहीं छोड़ा, कृष्ण के मित्र सुदामा ने। दे दिया दो लोकों का सुख, मित्र को अपने कान्हा ने।। दुष्ट अत्याचारी था दुर्योधन, कर्ण को सम्यक् ज्ञान था। दोस्ती निभाने की खातिर, प्राणों का किया बलिदान था।। निषादराज जी सखा को, वचन दिया था श्री राम ने लौटेंगे वनवास से जब भी, मिलेंगे अवश्य कहा श्रीराम ने।। रिश्ते बनते और बिगड़ते, दोस्ती रहती सदा बरकरार। एक दोस्ती हुई लेखनी से, निभाएंगे रिश्ता अब लगातार।। परिचय :- गीता देवी पिता : श्री धीरज सिंह निवासी : याकूबपुर औरैया (उत्तर प्रदेश) रुचि : कविता लेखन, चित्रकला करना शैक्षणिक योग्...
स्वर्ग नर्क का द्वार यहां है
कविता

स्वर्ग नर्क का द्वार यहां है

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ********************  कर्मो का हिसाब यहां है, स्वर्ग नर्क का द्वार यहां हैं। हर बंदा परेशानियां है माया की आपाधापी में, कोई राजा के घर जन्मा कोई गरीब यहां पर रहता। पल में तोला पल में माशा, अजब कर्म का तमाशा यहां है। प्रभु के पास सभी का लेखा, फिर भी मानव नादान यहां है। सत्कर्म भूल माया के चक्कर में, फंस चोरी डकैती लूट है करता। जेलों के चक्कर में पड़ता, सत्य कर्म कर प्यार है पाता। सब के दिल में जगह बनाता। कर्मों से अपने सम्मान पाता सेवा से स्वर्ग का द्वार बनाता। कोई योगी तपस्वी यहां बना, कोई झूठ चोरी में पड़ा। हर जन का व्यवहार अलग है। स्वर्ग नर्क का द्वार अजब है, किसी को रोटी भरपेट मिले, कोई दाने-दाने को तरसे। अजब प्रभु की लीला यहां हैं, स्वर्ग नर्क का द्वार यहां है। सत कर्मों से स्वर्ग है मिलता, दुष्कर्मो से नर्क है मिलता। कर्मों का व...
बेटी
कविता

बेटी

संतोष गौरहरी साहू डोंबिवली पूर्व मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** क्या हुआ बेटा नहीं बेटी भी नाम कमायेगी, आएगी जब आंच देश पर वो भी मर मिट जाएगी. रण में लड़ने वाली झाँसी की रानी वो कहलायेगी ! एक मौका दो बेटी को वो सबसे आगे आएगी इस जग में नाम कमायेगी ! रौशन करता बेटा जग को, तो बेटी भी क्या कम है ! बेटी हुई बेटा नहीं, तो फिर किस बात का गम है, बेटी नहीं सृष्टि में, तो सृष्टि यूं ही सिमट जाएगी. एक मौका दो बेटी को वो सबसे आगे आएगी इस जग में नाम कमायेगी ! बेटा बेटी थे घर में दो, बेटे को पढ़ना लिखना सिखा दीया, क्या गल्ती थी बेटी की, जो उसे पढ़ने से मना किया, बेटे की हर जिद को, मम्मी पापा ने है पुरा किया ! पर उस बेटी ने है आज बेटे को भी हरा दिया ! अपने आत्म सम्मान के लिए वह कुछ भी कर जाएगी, एक मौका दो बेटी को वो सबसे आगे आएगी, इस जग में नाम कमायेगी ! ब...
सिर्फ
कविता

सिर्फ

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीत गठबंधन का हमारे, अभी न होगा अंत! बसी है हृदय में प्रिये, तुम्हारी छवियां अनंत! अधर मधु रस पान की आशा! उर को प्रीत की चिर प्रत्याशा! मन की कैसी कैसी अभिलाषा! मानो हृदय बस गया हो वसंत! तुम चिरानंद का दिव्यप्रपात! सुरभि कस्तूरी तुम्हारा गात! अहे,प्रेम की मधुर ये सौगात! उर ताप करती शीतल तुरंत! रोमकूप उत्फुल्ल उर्मिताप से! सुर्ख लब कपोल रक्तदाब से! सज्ज देहयष्टि कठिन नाप से! समाया हैं मानो तुझमे दिगंत! प्रीत गठबंधन का हमारे, अभी न होगा अंत! बसी हैं हृदय में प्रिये, तुम्हारी छवियां अनंत! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
बुदीयां बरसे मोरे अंगनवा…
कविता

बुदीयां बरसे मोरे अंगनवा…

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखी घिर घिर छाये बदलवा, छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। जित देखूं उत है हरियाली झूम रहीं है डाली डाली, महकें कलियां फूल चमनवा। छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। दमक रहीं चहुँ और दामिनी, छेडे़ कोयल संग रागनी, सनन सनन सन चले पवनवां। छन-छन बरसे मोरे अंगनवा...। कहती मस्त बहार दिवानी आई मिलन ऋतु मस्तानी तरसाओ न और सजनवा छन-छन बरसे बुंदिया मोरे अंगनवा...। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमण...
आर्यावर्त के सूर्य
कविता, संस्मरण, स्मृति

आर्यावर्त के सूर्य

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे आर्यावर्त के सूर्य! तुम्हें क्या दीया दिखाऊँ!! हे मानवता के दिव्य उज्ज्वल रूप! बलिहारी जाऊँ। दीन-हीन-पीड़ितों के हित लहराय तुझ हिय में प्रखर कैसी अप्रतिम उत्कट सहानुभूति का अगाध सागर! सादा जीवन जीया औ सदा ही रखे उच्च विचार! अपनी कथनी करनी से दिखाय सदा उच्च संस्कार!! साहस, संघर्ष, पौरुष के साकार रूप रहे सदा तुम! सदा ही किये चुनौतियों मुश्किलों का सामना तुम!! जीवन के पथ पर अनवरत चलते अनथक राही तुम! सतत् प्रेरणा के शुभ स्रोत बने परम उत्साही तुम!! बालकाल से ही जीया अभावों का दूभर जीवन! खेलने-खाने की उम्र से ही करन लगे चिंतन-मनन!! मांँ की ममता से भी वंचित, हा महज आठ की वय में! झेला विमाता का दुर्व्यवहार औ पिता का धिक्कार!! कैशोर वय में ही आ पड़ा तेरे कोमल कंधों पर : पूरे परिवार-पाल-पोस के दायित्व...
गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ गुरु की वंदना करें, जो सच्ची बात बतलाते हैं। गुरू की सुमिरन जो करें, सो जीवन बदल जाते हैं।। पुरानी परम्परा में आचार्य जी, कठोर नियमों का पालन किया। यम नियम संयम में ही रहकर, चेला जो गुरू का सम्मान किया।। यही गुरू चेला का संबंध बतलाते हैं ... जीवन में कई गुरु मिलते हैं, पर सब सीख जरूर देते हैं। असतो मा सद् गमय सुक्ति ऐसे शिष्य गुरुकुल में सीख लेते हैं।। जो सद्कल्याण का पाठ पढ़ाते हैं ... माता पिता भी प्रथम गुरू हैं, समाज के लिए संस्कार शुरु हैं। शिक्षक का भी क्या कहना, छात्र जीवन का असली गहना।। जो सर्वांगीण विकास कराते हैं ... श्रवण की बात समझ लें प्यारे, जो गुरुवर क महिमा गाते हैं ... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद ...
गुरुवर
कविता

गुरुवर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की राहों पर चलना आपसे सीखा है, हर मुश्क़िल से पार निकलना गुरुवर आपसे सीखा है।। कच्चे धागे जैसे थे हम, पल-पल टूट जाया करते थे, मन को मजबूत कर रस्सी बनना गुरुवर आपसे सीखा है।। हर काम आसान नहीं, सोचकर छोड़ दिया करते थे, असम्भव को संभव बनाना, हाँ गुरुवार आपसे सीखा है।। समझ न थी सही गलत की, हर बात में गलती होती थी, सत्य की पहचान करना, गुरुवर आपसे सीखा है।। जब भी दुविधा में होती हूँ, तो आप ही राह दिखाते हैं। आपके वचन मेरे लिए ईश्वर की वाणी बन जाते हैं। भाग्यशाली हूँ बहुत, जो गुरु का सानिध्य मिला है, गुरु के आशीष से ही आज मुझको सबकुछ मिला है, सबकुछ मिला है....।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक...
कलम का सिपाही
कविता

कलम का सिपाही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। धनपत राय श्रीवास्तव से, प्रेमचंद हो, जीवन का संपूर्ण व्यवधान लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, समाज में फैली बुराइयों को, दूर करने का संकल्प लिखा। मानसरोवर के आठ भागों में, देकर कहानियों के ३०१ मोती। उस युग का महा त्राण लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। कर्मभूमि की राहों में, रंगभूमि का नया आयाम लिखा। नारी की दुर्दशा सहेज कर, मंगलसूत्र का प्राण लिखा। विधवा विवाह की कर अगवाही, कायाकल्प का आगाज़ लिखा। कलम सिपाही प्रेमचंद ने, मानव चरित्र का आख्यान लिखा। देकर नवजीवन, नवल सोच साहित्य को, वह कथा सम्राट नौ कहानी संग्रह, नौ उपन्यास का, कर योग गया। प्रथम अनमोल रत्न साहित्य का, कर गोदान, कफन में, ...
सपनों का घर
कविता

सपनों का घर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ख़ूबसूरत ख़्वाबों की तरह वो अपना घर बसाना चाहती है वो अपने घर को ख़ुशियों से भर देना चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। घर के प्रवेश द्वार पर हों गणपति, कोने-कोने को वो रोशनी से जगमगाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। रसोई में उसकी पसंद के बर्तन हों, खिड़की दरवाज़ों पर उसकी ही पसंद के कर्टन हों सिर्फ़ इतना ही तो वो चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। पलंग के सिरहाने एक लैम्प रखा हो और पलंग पर पसंद का चादर बिछा हो और क्या वो चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। टेबल पर रखी प्लेट को फूलों से भरकर घर का कोना कोना महकाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। दीवारें अपनों की तस्वीरों से सजी हो उदासियों का नमोनिशां नहीं हो उन तस्वीरों में ख़ुशियों के रंग भरना चाहती है हाँ वो अ...
बेटी का सम्मान करो
कविता

बेटी का सम्मान करो

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बेटी को ना कोस, उसका सम्मान कीजिये बेटी होने के डर से, भ्रूण हत्या मत कीजिये बेटी को बोझ समझ, अपमान मत कीजिये ना ही दहेज दीजिये, ना ही दहेज तुम लीजिये बेटी को भी तुम अब, बेटे सा ही प्यार दीजिये बेटी बेटे में अब ऐसे, भेदभाव ना ही कीजिये बेटी को भी, अफसर बनने का अवसर दीजिये बेटी को पढाने में ना, तुम कंजूसी अब कीजिये परिवार को बनकर जरा, माली अब तुम सिचिये गुलाब को भी, और चमेली को भी पानी दीजिये अपने घर के कुल को, बेटी से भी रोशन कीजिये समाज में आगे बढने कि, तुम स्वयं हिम्मत दीजिये नितिन एक साथ मिलकर, अब सब प्रतिज्ञा लीजिये बेटी का ना अपमान करीये, ना ही होने अब दीजिये परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मी...
कारगिल के शूरों की वाणी
कविता

कारगिल के शूरों की वाणी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** सिंह हम दहाड़ कर! शत्रु को पछाड़ कर!! सबक दिया पाक को झंडा अपना गाड़ कर!! कर उठे जो सिंहनाद! अरि कहाँ फिर आबाद!! राष्ट्र हवन कुंड में आहुति का आह्लाद!! करके वज्र हुंकार! शत्रु को चीर - फाड़!! कर भस्म समर में पहने हम विजयहार!! राष्ट्र कोई मेष नहीं! पाक सिंह-वेश नहीं जो ले दबोच अंक में हिंद कोई दरवेश नहीं!! अरि के हर घात का सौ सौ प्रतिघात का दिया मुँहतोड़ जवाब हर विश्वासघात का! हम नहीं हैं डरने वाले! मातृभूमि पर मरने वाले!! पग तले कुचलके मसलके अरि का गर्व हरने वाले!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
दर्द
कविता

दर्द

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** दर्द जो था तेरे जन्म का, जननी ही जाने दर्द को। भला निष्ठुर दर्द क्या जाने, आया है सहने तू दर्द को।। है तू खिलौना एक दर्द का, क्या तू देगा इस दर्द को। तेरा तो साथी दर्द है रे संवारेगा वही तेरे दर्द को।। ना होता तू दर्दी तो, संभालता कौन दर्द को। है तू आसरा दर्द का, मौन सहेज ले दर्द को।। न मिटाया किसी ने दर्द तेरा, क्यों भला मिटाये दर्द को। न कर्म उसका दर्द मिटाना, वह जुडा ही दर्द देने को।। मिला जन्म से दर्द तुझे तो, चाहता क्यों छोडना दर्द को। न छोडेगा कभी तुझे दर्द तो, अपनाले तू स्वयं ही दर्द को।। जिया है जिसके दर्द के लिए, उसने ही बढाया तेरे दर्द को। जियेगा जिसके दर्द के लिए, वही बढायेगा तेरे दर्द।। भुलायेगा प्यारे अगर दर्द तू , तो अपनायेगा कौन दर्द को। अनुपथगामी है तेरा दर्द तो, सदा दे तू सहारा इस दर्द ...
जनम का साथ
कविता

जनम का साथ

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू तेरा मेरी जिंदगी में आना फकत इक सपना सा ही है मुझे मालूम तेरे जीवन में बस एक जिम्मेदार किरदार हुँ मैं बेइन्तहा मोहब्बत करता हूँ मुझे ज्ञात तेरे लायक नहीं था तूने भी मोहब्बत बे इंतेहा की एहसान-ए-जिंदगी बन गई मेरी मैंने चाहा है जान से बढ़कर जीना है आब-ए-हयात बनकर मालूम है तुझे गंवारा नहीं मेरा साथ दे सांस टूटते तलक दामन का नही तेरे साये का फिर भी हक जताना चाहता हूं माना कि खण्डहर सा जीवन है नूतन निर्माण की चादर समेटे जज्बातों का कारवां सजा कर साथ नई कहानी गढ़ना चाहता हूं एक नए किरदार के मानिंद तू नए जीवन का आरम्भ समझकर गर तुझे साथ मेरा गवारा हो तो तेरे जज्बातों का सपनों के साथ अपनाकर तेरी हर यादों वादों का तेरा हमसफ़र मैं बनना चाहता हूं अब तलक सूना सूना ये जहां अपलक तेरे आने की राह ताकती खुश...