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कविता

सुपावन बेला
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सुपावन बेला

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** सुपावन बेला अमावस की, यामिनी का दीप श्रृंगार रूप अनूठा आज धरा का, अनुपम छवि नयन भर निहार ।।१।। माँ लक्ष्मी कमलासन बैठी, विराजे आकर के‌ गणेश अन्न व धन बरसाने वाली, गणपति बुद्धि देते अपार।‌।२।। नमामि बिष्णु पत्नी भवानी, करो कल्याण अखिल जग का खड़े हैं दीपमाला लेकर, विनय करते हैं बार -बार।।३।‌। ज्योति अपनी छिटकाओ माँ, कलुष क्लेश रह न जाये माँ दया करो हे गणपति तुम भी, दो हमें बुद्धि का भंडार।।४।। हर कोना प्रकाशित हो यहाँ, हर चेहरे हों खिले खिले विवश बेचारा न हो कोई, खुशियाँ आयें पंख पसार ।।५।। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य ...
वह भी दिवाली मनाएगा
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वह भी दिवाली मनाएगा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अबकी मिट्टी के दीये लाना! फिर देखना उसका मुस्कुराना!! प्यारे मोल भाव तनिक न करना! मुट्ठी उसकी खुशी से भरना!! फिर देखना उसके चेहरे को! कम होते दुख के पहरे को!!! फिर वह भी दीवाली मनाएगा! घर अपने खुशहाली ले जाएगा!! बिटिया उसकी भी इठलाएगी! मांँ के संग दीये जलाएगी!! छोड़ेगी भाई संग फुलझरियाँ! धानी संग पिरोएगा खुशी की लड़ियांँ!! इस बार बनेगा घर में घरौंदा! बिक जाए मुंँहमांँगे दाम जो सौदा!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
सफर के पीछे हमसफर
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सफर के पीछे हमसफर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** आगे सफर था और पीछे हमसफर था.. रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता। मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी.. ए दिल तू ही बता, उस वक्त मैं कहाँ जाता... मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था। रूकते तो बिछड़ जाते और चलते तो बिखर जाते.... यूँ समझ लो, प्यास लगी थी गजब की... मगर पानी में जहर था... पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते। बस! यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए!!! ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए!!! वक़्त ने कहा.....काश! थोड़ा और सब्र होता!! सब्र ने कहा....काश थोड़ा और वक़्त होता! सुबह-सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब...।। आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर।। "हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है और "किस्मत" महलों में राज करती है!! "शिकायतें तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्...
चिंगारी
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चिंगारी

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** जलती हुई चिंगारी हमेशा समाज को रोशन करती है दूसरों की भलाई के लिए स्वयं जल जाती है और जलने वालों का भी पोषण करती है ना ही कभी किसी का और समाज का शोषण करती है चूल्हे में दबीहुई चिंगारी से जब राख हटाते हैं तभी चूल्हा जलापाते हैं और रोटी पकाकर खाते हैं तब मानव रूपी पुतले अपना पेट भर पाते हैं तब इतराते हैं फिर वह होली जलाने वाली आग हो या चूल्हे में दबी चिंगारी जब हट जाती है उसपर चढ़ी राख तो हरे भरे जंगल को भी जलकर करदेती है खाक ऊंचे-ऊंचे पेड़ जो आसमान को छूकर अपने घमंड मैं ईतराते हैं वह भी चूल्हे में दबी चिंगारी की आग से राख हो जाते हैं तब उसकी अहमियत पता चलती है के एक छोटी सी चिंगारी पूरे जंगल पर पड़ गई भारी परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - ग...
मालवा की पहचान
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मालवा की पहचान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १ नवंबर को मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस है इसी उपलक्ष्य में मैं मालवा की पहचान नामक अपनी स्वरचित अप्रकाशित प्रसारित रचना प्रस्तुत कर रही हूं जिसमें मालवा प्रदेश के ग्रामीण जनजीवन प्रतिदिन के नित्य कर्म को दर्शाया गया है आशा करती हूं पाठक वर्ग रचना की गहराई को समझेंगे धन्यवाद। छत से निकलती धूएं की लकीर मन में लिए हुए साहू की पीर अधरों पर फिर भी है राम का नाम वह देखो चला है मालव का किसान यही मेरे मालव की प्रातः पहचान घुंघरुओं की छनन-छन पगडंडी पर फैले पत्तों की चररचर बैलों की झुकती गृवाऐ मानो उगते रवि को करती है प्रणाम यही मेरे मालव की प्रातः पहचान गायों के गोठो से उठती दुलार भरी डपटे कंधों पर डाले मटमेले गमछे हाथों में थामे दूध पात्रों का भार मस्त हो गा रहा आल्हा ऊदल के गान मेरी काली माटी का जवान यही मेरे मालव...
दीपक
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दीपक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कुम्भकार ने माटी घड़कर मुझे एक आकार दिया है मेरे अन्दर स्नेह संग बाती जलती है किरणें आलोकित होतीं हैं दसों दिशाओं में जातीं हैं उन्हें देखकर अंधकार निर्वासित होता शरण माँगता है वह सबसे कहीं आश्रय उसे न मिलता मुझे दया आ जाती उसपर वह विनयी हो कहता मुझसे "मुझे आश्रय दो चरणों में" मेरे चरणों में वह रहता जगमग करतीं सभी दिशाएँ मेरी आलोकित किरणों से परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, ...
करवा चौथ
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करवा चौथ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** करवा चौथ का ये त्यौहार बहुत प्यारा है। जो पत्नी पति के आयु के लिए व्रत रखती है। और साथ पति भी पत्नी के साथ व्रत रखते है। और दोनों लम्बी आयु के के लिए पूजा करते है।। रिश्तो का बंधन कही छूट न जाये। और डोर रिश्तों की कही टूट न जाये। रिश्ते होते है बहुत जीवन में अनमोल। इसलिए रिश्तो को दिलमें सजा के रखना।। बदल जाए परिस्थितियां भले ही जिंदगी में। थाम के रखना डोर अपने रिश्तों की। पैसा तो आता जाता है सबके जीवन में। पर काम आते है विपत्तियों में रिश्ते ही।। जीवन की डोर बहुत नाजुक होती है। जो किसी भी समय टूट सकती है। इसलिए कहता हूँ में रिश्तो में आंनद बरसाए। और पति पत्नी के रिश्ते में बाहर लाये। और एकदूजे के लिए जीकर दम्पतिक धर्म निभाते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान...
एक नई दीपावली
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एक नई दीपावली

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** छाई है नफ़रते हर जगह आओ मिलकर मोहब्बत का एक नया गीत गाये। छाया है अविश्वास का घना अंधकार यहाँ हर जगह, आओ मिलकर विश्वास का एक नन्हा सा दीया जलाएं। छाया है मृत्यु का तांडव यहां हर जगह, आओ मिलकर नव जीवन का संचार करें। छाया है महामारी का प्रकोप यहाँ हर जगह आओ मिलकर स्वस्थ जीवन के लिए ईश्वर के आगे मिलकर पुकार करें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
एक दीप भीतर भी
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एक दीप भीतर भी

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर-घर अनेक दीप जले, चारों और प्रकाशित है समां, रोशनी की चकाचौन्ध में, हर तरफ दमक रहा है जहाँ।। हो रही तैयारी चहुँ और,, हर कोई उमंग से है भरा, रांगोली से सजे है घर आँगन, और दरवाजों पर नव तोरण बंधा।। नव वस्त्र, नव आभूषणों से, चारों और बाजार है सजा।। चहक रहे है जनमानस सब, दीवाली का त्योहार है बड़ा।। आओ इस पावन पर्व पर, हम भी करें अलग कुछ थोड़ा, द्वार द्वार जैसे दीप जलाए, करें अंतर्मन भी रोशन जरा।। मिटाकर मन से राग द्वेष, करे भीतर को भी साफ़ सुथरा, घर बाहर के साथ साथ, भीतर भी रहे फिर उजास भरा।। भीतर भी रहे फिर उजास भरा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है...
जल की पाती
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जल की पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जल कहता इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे आवश्यकता होने पर खोजने लगता है क्यों मुझे। बादलों से छनकर मै जब बरसता सहेजना ना जानता इंसान इसलिए तरसता। ये माहौल देख के नदियाँ रुदन करने लगती उनका पानी आँसुओं के रूप में इंसानों की आँखों में भरने लगती। कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ जल ही जीवन है ये बातें इंसानो को कहाँ से समझाओ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में ...
आयी देखो दीपावाली
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आयी देखो दीपावाली

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। घर घर में शुभ दीप जलेगा, जगमग होगा घर संसार। होली दीवाली जब आती, करते सब जन सारा साज। लीप पोत घर को चमकाते, करते सब ही सुंदर काज। तब चमके खिड़की दरवाजा, चमके सारा ही घर द्वार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। त्योहार हैं कितने सारे, सबके अपने अपने मान। सकल त्योहारों से बढ़ती, भारत माता की नित शान। देते त्यौहार सभी खुशियां, बढ़ता जग में इनसे प्यार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। कहे ओम कवि सारे जग से, मदिरा से सब रहिए दूर। जग व्यसन से रखिये दूरी, मिलती खुशी पर्व भरपूर। व्यसन से ही बिगड़े देखो, कितनों के ही घर संसार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८...
कोहरे में  चाँद
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कोहरे में चाँद

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाँद अब कम ही दिखता है. और देर से भी निकलता है सीमेंट के बढ़ते जंगल हैँ. फिर भी बात जोटते हर पल हैँ.. ना तू आता दिखायी देता है है.. आसमान भी अकेला बैठा है बदली से झाँक ले ऐ चाँद.! बेचैन चांदनी तेरी राह तके है. हो तुम दूर पर पास ही लगते हो। रोज़ आते हो आज क्यों छुपते हो? ढूँढते है तुम्हें धुंधले आसमान में एक नज़र तो मिलाओ इन नज़रों से कल करा लेना फिर इंतज़ार आज है ज़मीं भी है बेक़रार ये "चाँद" चाँद को पुकारे है आ मिलो तुम भी मेरे चाँद से. परिचय :- महिमा शुक्ल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
कोरोना अब तू जा भारत से
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कोरोना अब तू जा भारत से

ज्योति लूथरा लोधी रोड (नई दिल्ली) ******************** हर तरफ है कोरोना का प्रभाव, थोड़ा-सा ऑक्सीजन का अभाव, क्यों आ गया ये दुख का सैलाब? अब तो खत्म हो ये संताप, लोग डर से गए है काँप, जीवन को भी रहे नाप, पीड़ित कर रहे है प्रलाप। जाने किस घड़ी में आई ये महामारी, खुशियाँ लूट ली इसने हमारी, हर समय हो गया हैं भारी, दुःख की घड़ी है सारी। अपने जा रहे है दूर, वक्त हो गया है क्रूर, कोरोना तू आया क्यों? कब जायेगा तू? सब कुछ हो गया बन्द, लॉकडाउन का हुआ प्रबन्ध, प्रकृति का है कैसा खेल? घर ही बन गया है जेल। कोरोना अब तू जा भारत से, दोस्ती नहीं करनी हमे तुमसे, बहुत ले लिया हमारा सुख-चैन, अब बस बहुत हुआ, कोरोना अब तू जा भारत से। अब बस बहुत हुआ, कोरोना अब तू जा भारत से। परिचय :- ज्योति लूथरा संस्थान : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : लोधी रोड, (नई दिल्ली) ...
सात जन्मों का बंधन
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सात जन्मों का बंधन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** जन्म-जन्म नाता हमारा साथ जन्मों का बंधन प्रेम और विश्वास से इसको सिंचित करना है। सुख-दुख के हम साथी बने मिला देव आशीष कल किसने देखा है वादा हर पल निभाना है तुम मेरे सांसों में कुछ ऐसे समाए हो साजन जैसे सरगम का संगीत तुमसे है गहरी प्रीत सारा श्रृंगार तुम्हारे लिए करूं सोलह श्रृंगार तुम्हारा प्रेम जो मिला सुगंध फैली चहुं ओर तुमको पाकर जैसे पूरी हुई है सारी ही आस रहो सलामत सदा तभी मेरे होंठों पर मुस्कान सारी दुनिया से मैं लड़ जाऊं जो तुम मेरे साथ जो तुमको हो पसंद सदा वही मैं करना चाहूं बंधन है प्यार का इसमें बंधकर सुख पाती हूं प्रेम और विश्वास से रिश्ता अनोखा निभाती हूं। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
सन्नाटा…
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सन्नाटा…

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अंधकार को चीर कर आती झींगुर की आवाजे सनसनाती हुई हवाओं का झोंका पेड़ों के झुरमुट से झांकता, ताकता, चांदनी की झिलमिल आहट सन्नाटा... छू जाती है अंतर्मन को। कौन कहता है? सन्नाटे से डर लगता है? हां, लगता है डर, बिल्कुल लगता है मुझे भी लगता था बहुत डर, जब मैं छोटी थी, हर सन्नाटे से कांपता था मन हर कोने को ताड़ता था मन, शायद कोई झांक रहा हो, खट पट की आहट पर, लगता कोई मुझको डरा रहा हो।। आज परिस्थिति उलटी है, नही लगता डर अब किसी सन्नाटे से, किसी अंधेरे से अब तो अच्छा लगता है एकांत एकांत ही मन की शान्ति है अब तो झींगुर की आवाज में भी संगीत सुनाई पड़ता है, चांदनी के झिलमिल में प्रकाशित होता मन जाना चाहता है विश्रांति की ओर रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के बीच अब खुद को तलाशता है मन नही लगता अब कभी सन्...
जाग नौजवान
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जाग नौजवान

सत्यम पांडेय राजीव नगर (गुरुग्राम) ******************** जाग मेरे नौजवान ये देश पुकारे, तेरी साँसों से भरे दूजे हुंकारे, इस देश में कमी है तुझ जैसे महानो की, धरती भरी पड़ी है, बुजदिल हैवानो की, देश की तरक्की और देश की भलाई, एसे है जैसे हो कोई दूध की मलाई, बाँटें कोई और चाटें कोई और, इसी बात का चारों दिशाओं में है शोर, आज तु जाग, भूमी को नवाज़, दुश्मन तु भाग, आज नया है राग, तेरी आँखों में देख के, तुझको हरा दूंगा, देश का अपना तिरंगा फेहरा दूंगा, मुझको जो डरएगा मैं उसको डरा दूंगा देश का झंडा फेहरा दूंगा। देश पर आँच आये सह जाए हम, सीधी सीधी बात करे हम को न कोई गम, देश में पले है देंगे देश के लिए जान, देश के शाहीदों की बढ़ती है शान, आगे तुम भी आओ, करो देश का कल्याण, बात मेरी मानो, ए मेरे नौजवान। परिचय :- सत्यम पांडेय पिता : प्रमोद पांडेय निवासी : राजीव नगर, गुरुग्राम ...
अन्न का दान
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अन्न का दान

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** मासूमियत सी तल्ख आखें सिग्नल लाइट के चौराहे पर हाथ बिखेरे मांग रही अन्न का दान। फटे पुराने कपड़े, हा जी, भूख की मार कर रही, भीख का काम। गरीब, गरीब कहे या किस्मत की मार, देख उन्हें गाड़ीवान बढ़ा देता अपनी रफ्तार दया करुणा ममता? इन आखों में सब है तिरोभाव यही वजह है गरीब होने का इतिहास। ये आंखे बया कर रही अकल्पनीय भोगा हुआ यथार्थ। इंसानियत की मार, डाल रही लोगो में फूंक। मूक दर्शक, देख न पाए, हक़ीक़ी उनकी कांच का लिए पर्दा डाल। बचपन में जो न खेले खिलौनों से खेल रही आज गरीबी के कोने में खिलौना, खिलोने नही न कोई गुड्डा गुडिया, वह तो है पहिया एक गाड़ी का। जिसे घुमाकर, बच्चा हो रहा प्रसन्न-चित्त, गरीबी का दुःख नहीं कर सकता उसकी अभिलाषा को दूर। फिर भी, मासूमियत सी तल्ख आखें सिंगनल ...
करवाचौथ
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करवाचौथ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** कर सोलह श्रृंगार, भर मन में उल्लास। प्रियतम ख़ातिर प्रियतमा, करती करवा का उपवास।.... व्रत सार्थक हो निर्विघ्न, माँ गौरी समक्ष ले संकल्प। निर्जला निराहार रहकर, हो मनोरथ जीवन अकल्प। जीवनसाथी हो दीर्घायु, हो ना दुःखों का सामना। सदा सुहागिन बनी रहूँ, बस करती यही कामना। हर वक्त जीवन में, हो प्रेम सौहार्द का अहसास। प्रियतम ख़ातिर प्रियतमा....। आसमां में चाँद देखकर, पति के हाथों पीती जल। स्नेह प्रेम से हो आतुर, भूलती ना अनुपम पल। रूपसी का रूप निहार, भर्ता खिलाता प्रथम ग्रास। खनकती कंगना दमकती बिंदियां से, होता धरा पर स्वर्ग का आभास। प्रिया भूल जाती, भूख और प्यास। प्रियतम ख़ातिर प्रियतमा....। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...
करवा चौथ का चांद
कविता

करवा चौथ का चांद

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** मैं करवा चौथ का चांद। आज मैं थोड़े नखरे संग। बादलों की ओट में छुप जाऊँगा। तो कभी बादलों की ओट से। बाहर आऊंगा। सभी सुहागन स्त्रियों को सताऊंगा। सताने में मुझे बड़ा। मजा आता है। सब सुहागिनों की मनुहार। पर मैं मान जाऊंगा। फिर मैं अपनी सुंदर सलोनी। छवि पूर्ण चांद सज धज। उज्जवल श्वेत रूप ले। धरा पर आऊंगा। कभी अपना ही प्रतिबिंब। मैं भी ताल, तलैया में देख। कभी शर्माऊँगा कभी। लजाऊंगा तो कभी। हर्षाऊंगा। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
झुकाव कलम का
कविता

झुकाव कलम का

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है। जिंदगी का हाल यही जो, मंजिल तय करवाती है। खड़ी कलम का लेखन, लिखावट बेढंगा दिखता खड़ी तीखी बोली तो, अकुलाहट ही बढ़ा सकता हालातों के चक्कर में, घबराहट बढ़ती जाती है कलम निःसंकोच लिखे, अनुकूलता बन जाती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है अति झुकना भी महज, कायरता युक्त निशानी यथा स्थित कलम से ही, रचनाकार रचे कहानी कुछ ज्यादा झुकने पर, कलम ताल बहकती है जीवन में यदि हरदम हो, कदम चाल खटकती है कलम चले जब झुककर, तभी वो लिख पाती है जिंदगी का हाल यही जो, मंजिलें तय करवाती है कमियां, सुविधा साधन के, सब बदल गए पैमाने तकनीक ज्ञान आजादी, अब आये नवीन जमाने दूध, सूप, चाय जल भी, नमन भाव दिखाती है आदर अभिवादन नमन, पान आग्रह झुकाती है कलम चले जब झुककर,...
सात जन्मों का साथ
कविता

सात जन्मों का साथ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मौत से पहले मैं देख लू जन्नत को। ऐसी मेरी दिलकी आरजू है। तेरे मेरी मोहब्बत को देखकर। जीने का अंदाज देख पाएंगे। और मोहब्बत को जान पाएंगे। दिलको दिल में तभी बसायेंगे।। जात पात ऊँच नीच का इसमें। कोई चक्कर कभी होता ही नहीं। क्योंकि होता है मोहब्बत में नशा। जिस को चढ़ता है ये नशा। हलचले बहुत दिलमें होने लगती है। इसलिए तो जन्नत दिखती है हमें।। मोहब्बत में जीने वाले वो जन। सात जन्मो का करते है वादा। जब भी लेंगे जन्म इस जहाँ में हम। साथ तेरे ही जीना मरना चाहेंगे। और अपनी मोहब्बत को हम। निभायेंगे सात जन्मों तक।। जैसे राधा कृष्ण की मोहब्बत को लोग आज भी याद करते है। ऐसे ही हम अपनी मोहब्बत को। यादगार बनाकर जहाँ से जायेंगे।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। कर...
आगाज़
कविता

आगाज़

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इन अंधेरों को बोलिए रोशनी का आगाज़ करें। इन नफरतों को बोलिए मोहब्बत का इजहार करें इन दुखों को बोलिए सुखों का आगाज़ करें। इन ग़मो को बोलिए इश्क का थोड़ा इजहार करें। इन तारों को बोलिए हमारे चांद का आगाज़ करें। इन परवानों को बोलिए जलने से पहले आपने राग को अनुराग करें। इन मुर्दों को बोलिए जलने से पहले नफरत को छोड़कर मोहब्बत का आगाज़ करें। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
महँगाई
कविता

महँगाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** महँगाई में आम आदमी हो जाता हक्का -बक्का खुशियों में नहीं बाँट पाता मिठाई। जब होती ख़ुशी की खबर बस अपनों से कह देता तुम्हारे मुंह में घी शक्कर दुःख के आंसू पोछने के लिए कहाँ से लाता रुमाल ? दूसरों के कंधे पर सर रखकर ढुलका देता अपने आँसू। सरपट दोड़ती जिंदगी और बढती महंगाई में खुद को बोना समझने लगा और आंसू भी छोटे पड़ने लगे। वो पार नहीं कर पाता सड़क जहाँ उसे पीना है निशुल्क प्याऊ से ठंडा पानी। शुष्क कंठ लिए इंतजार करता जब थमेगी रप्तार तो तर कर लूंगा शुष्क कंठ अब उसे सड़क पार करने का इंतजार नहीं इंतजार है मंहगाई कम होने का ताकि बांट सके खुशियों में अपनों को मिठाई। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभ...
सबकी इक दिन इति होती है
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सबकी इक दिन इति होती है

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** सबकी इक दिन इति होती हैं। निश्चित सबकी मिती होती हैं।। आसमान पर उड़ने वाले। इतिश्री क्षिति पर होती हैं।। सबकी इक... अरे तुझे समझाऊँ मैं क्या। जाने सब बतलाऊं मैं क्या।। स्थिर की भी गति होती हैं।। सबकी इक... जब जिसके दुर्ददिन आते हैं। उसको अपने कब भाते हैं।। उलटी उसकी मति होती हैं।। सबकी इक... परोपकार के काम करो तो। धर्म नीति का मान करो तो।। जीवनी उसकी कृति होती हैं।। सबकी इक... दस इंद्री पर विजय करो यदि। सत्य वचन पर अडिग रहो यदि।। राम की सी संतति होती हैं।। सबकी इक... जो अपने को मानें सब कुछ। सब जिसकी नजरों में न कुछ।। प्रतिफल में दुर्गति होती हैं। सबकी इक दिन इति होती हैं।। सबकी इक... परिचय :-राम स्वरूप राव "गम्भीर" (तबला शिक्षक) निवासी : सिरोंज जिला- विदिशा घोषणा पत...
चंचल धरा
कविता

चंचल धरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छाई धुंधली सी चादर अंबर से अवनी तक या पहनी है नीलाभ चुनरी प्रकृति ने आकृतियां ढक-ढक सी जाती धुंध की गहरी सिलवटों से मानू करती हो नाच फेर लेकर आंगन में लहराते चंचल तरु पल्लव विकसित कालिका मुस्काती। एक स्वयं को नील पीत में प्रकृति आपलजाती छा जाती मृदु मुस्कान मुकुल पर छितरातीइत उत सौरभ करती स्वागत अवनी पर रक्ताभ गगन उत्साहित होता देकर रवि रश्मी को मार्ग दुवा अंकुर पर रविरश्मि की देख पहल धरा भी चंचल हो उठी पल-पल परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धा...