माँ तारा
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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तू हो समर्पिता, अर्पिता तू हो
सृष्टि की मूल बिंदु तुम्ही हो।
माँ तू हो अनय की सृंखला बनी
तू हो भोग की ग्रहिका बनी।
तू हो धरा पर अर्चिता, गर्विता
अनादि अनन्त तू विभु सम्पन हो।
प्रचंड मार्तण्ड की सुप्त किरणों से
तू शशि सम्पन्न धरा करती हो।
माँ तू मनु की सतरूपा अनादि अभिन हो
जब भी धारा पर गहन अंध छाता है
मां तू महा ज्योति प्रभा बनकर आती
मां तारा तू अनादि अनन्त हो
मातेश्वरी तू प्रीति संपन्न हो
पुरुरवा की मेनका रमभा तुम्हीं हो
साहचर्य सहगामनी सत्य सनातनी हो
महाभोगनी फिर भी योगिनी हो
कुंडलिनी सर्पनी तू महआभैरवी हो
धधकती चिताय महाश्मशान में
जीवन की नश्वरता चिंता की रेखाएं।
जीवन की कोलाहल में मृत्यु की निरव शांति में
मातेश्वरी तारा तुम्ही छुपी हो।
इस जीवन की संध्या में मां तू
अपूर्व लालिमा हो।
परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...