मेरी बूढ़ी अम्माँ
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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सुघड़ता और संस्कारों की
बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा,
भोजन, पापड़ और अचार
बनाती, बिना नाप जोख के
अद्भुत स्वाद, दिलाती।
जो घर के सारे काम,
एक साथ करते हुए,
सारे प्रबंधन को मात देती
उनके हर काम में
सुघड़ता दिखती!
फिर भी नहीं कही
गई कोई कहानी
कोई किस्से उनके लिए,
जिसने अपने
हाथों के स्वाद से,
अपने व्यवहार से,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त
किया और सँवारा है !
बल्कि उन बूढ़ी
होती काया पर
आधुनिक न होने का
प्रश्न चिन्ह लगाया है !!
सभी को खुश रखना,
सदा सबका आभार
जताते रहने में
सारी उम्र बिता दी !
समय ऐसा भी आया
नहीं कोई और अम्मा,
उन बूढ़ी अम्मा के पद
चिन्हों को ग्रहण करना चाहती,
नहीं आत्मसात करना
चाहती उनके सद्गुण
भरे आचरण को,
क्यूँ की इनकी योग्यता
की कोई डिग्री, कोई
प्रमाणपत्र नही...



















