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कविता

मेरी बूढ़ी अम्माँ
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मेरी बूढ़ी अम्माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सुघड़ता और संस्कारों की बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा, भोजन, पापड़ और अचार बनाती, बिना नाप जोख के अद्भुत स्वाद, दिलाती। जो घर के सारे काम, एक साथ करते हुए, सारे प्रबंधन को मात देती उनके हर काम में सुघड़ता दिखती! फिर भी नहीं कही गई कोई कहानी कोई किस्से उनके लिए, जिसने अपने हाथों के स्वाद से, अपने व्यवहार से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त किया और सँवारा है ! बल्कि उन बूढ़ी होती काया पर आधुनिक न होने का प्रश्न चिन्ह लगाया है !! सभी को खुश रखना, सदा सबका आभार जताते रहने में सारी उम्र बिता दी ! समय ऐसा भी आया नहीं कोई और अम्मा, उन बूढ़ी अम्मा के पद चिन्हों को ग्रहण करना चाहती, नहीं आत्मसात करना चाहती उनके सद्गुण भरे आचरण को, क्यूँ की इनकी योग्यता की कोई डिग्री, कोई प्रमाणपत्र नही...
हिंदी की महिमा
कविता

हिंदी की महिमा

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** हिंदी आन है, हिंदी मान है, हिंदी, हिंद की पहचान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी शब्द है, हिंदी प्रबंध है, हिंदी वर्ण की व्याख्या है। यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्रीत है, मनमीत है , हिंदी सात सुरों का संगीत है, हिंदी युगों-युगों का गीत है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी धरती है, हिंदी आकाश है, हिंदी चांद है, हिंदी चकोर है, हिंदी सूरज का अखंड प्रकाश है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी गंगा है, हिंदी यमुना है, हिंदी नर्मदा की जलधार है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्राण है, हिंदी त्राण है, हिंदी हर जन की पालनहार है, हिंदी रोम-रोम से होता आत्मसार है, यह देवनागरी की जान है।। विष्णु है, हिंदी राम है, हिंदी कृष्ण का भागवत ज्ञान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी ओम है, हिंदी ओमकार है, ...
खिसियानी बिल्ली
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खिसियानी बिल्ली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कर नहीं पा रहा कुछ भी छोटा है तो छोटा ही सोचे, हंस-हंस कर लोग बोले खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बहुत उम्मीद पाल, जल्द बदल सकता है हाल सोच नेताजी ने चुनाव लड़ा, होकर निर्दलीय खड़ा, घोषणाएं बड़ा-बड़ा, सेवा की आस में चुनाव में पड़ा, पर ये क्या किस्मत निकला सड़ा, जमानत जप्त करा शर्म से गड़ा, सात पीढ़ी के लिए तो थे सोचे, पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बड़े साहब से थी मधुर संबंध की चाह, शायद निकल आये तरक्की की राह, चापलूसी में गुजर रही जिंदगी पर किस्मत निकला श्याह, साहब दोस्ती न सका निबाह, असमंजस है अब किस तरीके से साहब का मोर पंख खोंचे, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
प्रकृति
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प्रकृति

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बादलों से आलिंगन करते पर्वतों की श्रृंखला है अपार। ऊंचे ऊंचे पर्वतो के मध्य श्वेत झरनों की धार। ऊँचे पर्वतो से यात्रा करके मिलते हैं धरती से आज। हर पल मे बरसते देखो एक पल मै ओझल हो जाते, अपने आंचल में है समेटे बादलो का बिखर रहा है जाल। हरियाली अपने यौवन पर फल-फूल रहे हैं झाड़। कभी गरजते कभी बरसते कभी मौन हो जाते आप। देख नजारा प्रकृति का टकटकी लगाये अखियां आज। देखो दृश्य ओझल ना हो जाये स्वर्ग उतरा धरती पर आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्...
कल नही आज
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कल नही आज

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कल नही आज आज नही अभी अभी नही इसी क्षण भावो के सागर की लहरे कूल से टकराती स्याही बन लेखनी मे उतरती कागज पर कुछ लिखती लेखनी यही है हाँ यही है कवि की कविता की कहानी। सूरज की किरणो से आगे कवि हेदय भाव भावो के बवन्ङर को नव रसो का स्पर्श कविता को श्रृंगारित करता गाता जाता कवि सरिता के कूल किनारे वीर गान आनन्द गान गाता जाता अपनी मस्ती मे कुछ हंसाता कुछ रूलाता जाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
सु आस है हिंदी
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सु आस है हिंदी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** युग-युग से स्वर्णिम भारत का इतिहास है हिंदी, भारत मां के कण-कण में एक प्यास है हिंदी। हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। अखिल विश्व में मां भारती की शान है हिंदी, शहीदों ने गाया वंदे मातरम गान ही हिंदी। जन-जन के अंतर्मन का आभास है हिंदी....हर घर । रिश्तों को निभाने का सच्चा मार्ग है हिंदी, मनोभाव दिखाने का अच्छा मार्ग है हिंदी। कवियों के अंतर्मन मन का आभास है हिंदी...हर घर सभी भाषाओं में उत्कृष्ट लिए भाव है हिंदी, हमारी संस्कृति के सिर पे गहरी छांव है हिंदी। भारत के संविधान का विश्वास है हिंदी....हर घर गीतों, छंदों और कविता का गान है हिंदी, हिंदी के सिर पे बिंदी का सम्मान है हिंदी। गीतों में सार "श्याम" के अब खास है हिंदी, हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - ...
मातृभाषा का महोत्सव
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मातृभाषा का महोत्सव

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान। भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।। माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।। तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार। कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।। मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत। भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।। प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश। साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।। महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत। दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।। रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन। हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान। संविधान की गोद में, राजभाषा का मान। विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।। आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए। मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।। कीबोर्ड स...
उड़ान
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उड़ान

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** सपनों में अगर चाहिए उड़ान तो सुनो गुरु ज्ञान के बिना संभव नहीं सुनो बचपन में मां ने मुझको चलना सिखाया उंगली पकड़ के मेरी सही रास्ता दिखाया जब थोड़ी सी बड़ी हुई विद्यालय पहुंचाया गुरुओं के बीच मुझको नादान बताया फिर गुरुओं ने हमारी हमें मंजिल है दिखाया के से कबूतर ज्ञ से ज्ञानी मुझको सिखाया थोड़ी और बड़ी हुई तो विषय वस्तु बट गए हिंदी,गणित,विज्ञान का मतलब समझ गए पर आज तक अंग्रेजी समझ आई ना हमें A फॉर एप्पल Z फॉर ज़ेबरा समझ आया ना हमें प्रथम गुरु मेरी मां बनी जिसने दिया है जन्म उस जन्म को साकार बनाया है गुरुजन अबोध है अज्ञान है अंधकार में है हम आपके सानिध्य से चीनू बाई, कल्पना चावला बने हम बस आरजू यही कि देश में हर नारी का हो नारित्व हर घर में लक्ष्मीबाई हो हर घर में विवेकानंद सपनों म...
दिल हूं हिंदुस्तान की
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दिल हूं हिंदुस्तान की

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सरल, सहज, सुमधुर वचन संस्कृत से पाया अपना जीवन सकल जगत् को मोह रही है अंक मेरे अपार शब्द शक्ति सहेज रही बोलियों को बनकर मातृशक्ति नवीन तकनीक के लगाकरपंख मैं तो छूने आकाश चली हिंदी कहते मुझको दिल हूं हिंदुस्तान की राजभाषा बन हिन्द की राष्ट्रभाषा बनने की तमन्ना मैं कर रही परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@g...
आधुनिक व्यक्तित्व
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आधुनिक व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बहुत कुछ लिखते हैं लिखने वाले मगर लिख नहीं पाते अपने गुनाहों को कभी। बहुत कुछ कहते हैं कहने वाले मगर कह नहीं पाते अपने जुर्मो को कभी। बहुत कुछ सुनाते हैं सुनाने वाले मगर सुना नहीं पाते अपनी कमियों को कभी। बहुत कुछ दिखाते है दिखाने वाले मगर दिखा नहीं पाते दबे हुए जज्बातों को कभी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
हिंदी
कविता

हिंदी

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत मां के माथे की बिंदिया है हिंदी। कलकल करती पावन सरिता है हिंदी। सूर की अमृत वाणी, कबीर की साखी है हिंदी, तुलसी की माला मीरा के पदों की झांकी है हिंदी।। उर्दू की प्रिय बहना, संस्कृत की बिटिया है हिंदी, वेद पुराणों में वर्णित गंगाजल की लुटिया है हिंदी।। हम सबका अभिमान, खुसरो ने गढ़ी है हिन्दी, काली ने मढ़ा जिससे वो, कौस्तुभ मणि है हिंदी।। सरल,सहज,सुरमयी, धवल वीणावादनि शारदा है हिंदी, मनका मनका रची अक्षय, ज्ञान की वर्णमाला है हिंदी।। धरा से नीलाभ तक, स्वच्छंद विचरती पवन है हिंदी , मधुकर सा सुशोभित, पुष्पित हराभरा उपवन है हिंदी।। चंदन सी महकती अमिट, राजभाषा, राष्ट्रभाषा है हिंदी, कि "शशि" सभी भाषाओं की एकमात्र परिभाषा है हिंदी।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा...
मुकद्दर
कविता

मुकद्दर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मेरे मुकद्दर में है "मुकद्दर" पर कविता लिखना। और उसको प्रकाशन के लिए भेजना। ******* मिलता वही है हमें जो मुकद्दर में लिखा होता है। फिर इंसान क्यों अपने मुकद्दर पर रोता है। ******* हमारे कर्मों से ही हमारा मुकद्दर बनता है। अच्छा करने पर हमें अच्छा ही मिलता है। ******* जो हमारी किस्मत में लिखा हो वो मुकद्दर कहलाता है। यह जन्म के समय विधाता द्वारा लिखा जाता है। ******* कभी किसी की लॉटरी लगती है और गरीब अमीर बन जाता है। यही सब मुकद्दर कहलाता है। ******* लोगों की दुआओं से आपका मुकद्दर बदल सकता है। आपको रंक से राजा बना सकता है। ******** केवल मुकद्दर के आसरे मत बैठे रहिये। कुछ अच्छे काम कर अपनी सफलता की कहानी कहिए। ******** तुमको मैने अपना "मुकद्दर" समझा था। लगता है अब मुकद्दर ने साथ छ...
तर्पण की हकीकत
कविता

तर्पण की हकीकत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण। यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।। जब जीवित थे मात-पिता तब ही सब ज़रूरत थी। आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।। जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है। बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।। अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो। अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोचो।। अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है। यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।। सेवा,सु‌श्रूषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है। नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।। जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान। इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।। मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण। ज़रा देखो संतानो तुम आज तो सच का दर्पण।। परिचय :- प्र...
गुरु बिन ज्ञान न होता
कविता

गुरु बिन ज्ञान न होता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु बिन ज्ञान न हुआ किसी को, सारी दुनिया जाने। राम कृष्ण पहुँचे उज्जैनी, गुरु से शिक्षा पाने। सांदीपनि आश्रम में प्रभु ने, ज्ञान उन्हीं से पाया। सांदीपनि गुरु से शिक्षा ली, सुयश जगत में छाया। गुरु बिन ज्ञान भेद बिन चोरी, संभव कभी न होता। गुरु का शुभाशीष पा शिक्षित, हो जाता है तोता। राम-राम रटकर तोते का, जन्म सफल हो जाता। देह त्याग कर पिंजरित पंछी, प्रभु से सद्गति पाता। गुरु बिन ज्ञान बताओ जग में, भला किसी ने पाया? शिक्षित वंदित हुआ वही जो, गुरु चरणों में आया। गुरु की कृपा प्राप्त कर मूरख, हो जाता है ज्ञानी। गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता है, सदगुरुओं की वानी। गुरु चाहे प्रतिमा स्वरूप हो, गुरु है बहुत जरूरी। बिन गुरु जीवन भर रहती है, दिव्य ज्ञान से दूरी। उर का अंधकार गुरु के ...
क्षणिक
कविता

क्षणिक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कदम दर कदम सम्भल कर चलो जिन्दगी क्षणिक हे गुनगुनाते चलो। कोई अछूता नही है जिन्दगी के झन्झावातो से इस तुफान को हाँ इस तुफान को मुठ्ठी मे बान्ध कर चलो। दसों दिशाएं देगी तुम्हे अवलम्बन अंधेरी रात मे तारों के प्रकाश मे आकाश ओढते चलो। करेगी पीछा परछाई या अतीत की नए दौर के जमाने मे अतीत को विस्मृत करते चलो। फूलों की सुगन्ध झिगूंरो की चमचम तुम्हे उर्जा देगी कदम दर कदम साथ निभाते चलो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत...
हिंदी ज्ञान का महारथ
कविता

हिंदी ज्ञान का महारथ

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** भाषाज्ञान से सबका सन्मान हिंदी को बढ़ाए रचाये सीखकर अर्जित करें हिंदी लिखने पढ़ने बोलने का ज्ञान ।।१।। जो है करता, भाषा हिंदी का सन्मान, मनमस्तिष्क में हिंदी कविता साहित्य जगत का, तनमन से रचाकर दिलाती खूब सन्मान ।।२।। वही खूब है रचता हिन्दीभाषा लेखन में शक्तिशाली शब्द भरकर अलंकार हिंदी भाषा के समृद्धि में हिंदी के भरता शब्दरस काम हिंदी में करता हिंदीभाषा का गुणगान कर बीज अंकुरित हिंदी का करता ।।३।। हिंदी भाषा का साहित्य जगत में बढ़ता जाए संसार शब्द भाषा से हिंदी भाषा का जन जन तक फलता फूलता जाए सुदृढ़ समृद्ध हिंदी महारथ का संसार ।।४।। मिले मौका लेखनशैली का हिंदी में, नियमित सूंदर सूंदर रचकर अलंकृत शब्द भरो खजाना रचना और शब्द भाषा ज्ञान हिंदी का हिंदी को करो अलंकृत भाषा में पीओ हिंदी...
शिक्षादाता
कविता

शिक्षादाता

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हाथ पकड़कर जिस गुरुवर ने, लिखना हमें सिखाया ! जीवन पथ पर कैसे चलना चलकर हमें दिखाया !! कैसे भूलूँ उस गुरुवर को, कभी हार न माना होगा ! गलतियाँ को माँफ कर जिसने काबिल हमें बनाया !! सही गलत का ज्ञान कराकर, सत्य मार्ग बतलाया कैसे जीना हमें चाहिए जी कर हमें दिखलाया !! शिक्षा, और संस्कार के दाता, हमारे भाग्य विधाता ! अज्ञानता को दूर भगाकर ज्ञान का दीप जलाया !! सच्चाई के राह पर चलकर सत्य का राह दिखाया ! मिलती नहीं मंजिल तब तक चलना हमें सिखाया !! थककर कभी बैठ न जाना, मंजिल की इन राहों पर ! कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ना हमें सिखलाया !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है...
व्यथा
कविता

व्यथा

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** उनींदी बोझिल पलकें लिए मृगनयनी कुछ कुछ सहमी कुछ डरी डरी सी मन-कपोत आतुर उड़ने को फड़फड़ाते पंख लिए पर आत्मा थी एक पीड़ा से भरी भरी सी संवाद अतुल है अक्षुण्ण है मगर अभाव है शब्दों का अभिव्यक्ति है मरी मरी सी अतिशय कहा नहीं जाता इसी द्वंद्व में जीना है पर कही नहीं जाती है खरी खरी सी क्यूँकि ज़मीर सोया है साहस खोया है मगर सत्य रोया है हिम्मत रह गयी है चुप धरी धरी सी इसी अन्तरद्वंद्व में थाह कहाँ पाये अंतरव्यथा मन की बस पीड़ा मन की है बस झरी झरी सी परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में ...
अ अत्याचार … ह से हत्या …
कविता

अ अत्याचार … ह से हत्या …

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अ से अनार या अमरूद नहीं वर्तमान समय के अनुरूप अ से अनर्थ या अत्याचार लिखने की जरूरत है. कोशिश करता हूँ कि क से क़लम या करुणा लिखूँ लेकिन मैं लिखने लगता हूँ क से कर्कशता या कट्टरता. ख से खरगोश लिखता आया हूँ लेकिन ख से अब किसी ख़तरे की आहट आने लगी है. मैं सोचता था फ से फल ही लिखा जाता होगा बहुत सारे फल लेकिन मैंने देखा तमाम फल जा रहे थे ज़ालिमों के गले में ग्रास बनकर हज़म होने के लिए. कोई मेरा हाथ जकड़ता है और कहता है भ से लिखो भय जो अब हर जगह मौजूद है द दमन का और प पतन का सँकेत है. आततायी छीन लेते हैं हमारी पूरी वर्णमाला वे भाषा की हिंसा को बना देते हैं समाज की हिंसा ह को हत्या के लिए सुरक्षित कर दिया गया है हम कितना ही हल और हिरन लिखते रहें वे ह से हत्या लिखते रहते ह...
जीव की करूण पुकार
कविता

जीव की करूण पुकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आया पावन गणेश चतुर्थी का त्यौहार, सबको मिले जीवन मे खुशियां अपार! हम भी चाहें थोड़ा सा स्नेह, हे गणपति करो हम पर ये उपकार!! शिव-शक्ति के पुत्र कहलाते, सर्वप्रथम पूजे जाते, मूषक तुम्हारा वाहन होता सहनशीलता का संदेश है देता! गजराज बन पूजे जाते, पर्व ''त्यौहार" में सजाये जाते, फिर क्यों जंजीरों में जकड़े जाते, ये कैसी श्रद्धा कैसी पूजा हम सब भी ये समझ न पाते?? मानव करते क्रूर आघात, इतनी घृणा और अत्याचार, तड़पते घुटते, तिल-तिल मरते, नित प्रतिदिन होता हमारा तिरस्कार, अब तुम ही करो गणपति हमारा उद्धार!! अहंकार, द्वेष, घृणा से परे, एक सुन्दर दुनिया है हमारी, घोर विपदा हम पर है आई क्यूँ हमारे अस्तित्व पर बन आई! अब तुम ही हो हमारे खेवनहार हे गणपति तुम ही करो दुःख का निस्तार!! नही...
पता नहीं कैसे जिंदा हूं
कविता

पता नहीं कैसे जिंदा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये है ही बेहद ताज्जुब की बात, कि कुरेदा गया दिल बचपन से जिसका लेकिन कैसे बचा हुआ है आज, था जिनके भरोसे ताना मिला उन्हीं की ओर से कि जिंदा हूं आज भी खाकर जूठन, ना आयी लाज बाल्यकाल में और न शर्मिंदगी ढलते जवानी में भी, उलाहना देने वालों में सभी निपुण हो चुके थे रहे हों चाहे मित्र या संबंधी, सबके ताने रहे प्यार भरी बातों से सुषज्जित मगर थे भयंकर विध्वंशी, अब जाके पता चल रहा है कि असल में मैं फौरी तौर पर था तेज पत्ते की तरह अत्यावश्यक, जिसे फेंका जाता है सर्वप्रथम, मुझे भी फेंका गया मगर मुझे तनिक भी भनक लगने दिए बिन, रोष तब और मिल गया सबको जब पता चला कि मैं खड़ा हो कैसे गया अपने पैरों पर, आंख मूंद भरोसा कर अपनों व गैरों पर, मेरा जीना न जीना चलिए आज किसी के लिए कम से कम कोई मायने ...
सुंदरतम
कविता

सुंदरतम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जल ने प्रलय मचा रखी है आसमाँ की मोहब्बत में दुनिया तबाह कर रखी है। सोचते हो मोहब्बत बस तुमने ही की है यहाँ ओह नहीं नहीं ... हवा ने पानी से पानी ने हवा से आंखों से आंखें मिला रखी है। सोचते हो खूबसूरत बस तुम ही हो यहां ओह नहीं नहीं ... पर्वतों ने अपनी सुंदरता से सारी दुनिया अपने कदमों में झुका रखी है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं...
आजमा कर छोड़ दिया
कविता

आजमा कर छोड़ दिया

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** कौन अपना है कौन पराया है। ये तब पता लगा जब मैने आजमाया है। ****** आजमाने से हकीकत पता चलती है। अगले की हमारे प्रति सोच पता चलती है। ******* सामने से तो सब लोग मीठे बातें बोलते है। पर मौका मिलने पर पीठ में छुरा भोकते है। ******* तस्वीर में तो सभी नज़र आते है। तकलीफ में सारे लोग गायब हो जाते है। ******* सौ नहीं बल्कि एक ही हमदर्द बनायें। जो हर परिस्थिति में आपके साथ नज़र आये। ******* मौका मिलने पर सबको आजमाया करो। जो अच्छा हो उसे मित्र बनाया करो। ******* आजमाने पर जो गलत निकले उसे छोड़ दिया करो। सारे रिश्ते नाते उससे तोड़ दिया करो। ******* हम जिंदगी भर उन्हें अच्छा समझते रहे। और वो पीठ पीछे नाग की तरह हमको डसते रहे। ******* पहिले आजमाओ फिर मित्र बनाओ जिंदगी की दौड़ में आगे बढ...
गुरु तुम दिव्य
कविता

गुरु तुम दिव्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक तुम तो हो गुरू, तुम से ही उत्थान। गुरु बन तुम ने ही रचा, जीवन का सम्मान।। शिक्षक से आलोक है, शिक्षक से संसार। शिक्षक से ही शिष्य को, मिलता है उपहार।। तुमने दिया विवेक तो, हुआ सत्य का भान। तुमसे ही है दिव्यता, गुरुवर ऐ भगवान।। खिलता है जीवन तभी, जब गुरुवर हैं संग। कर देते जो ज़िन्दगी, सचमुच में नवरंग।। यदि गुरुवर हैं संग तो, मैं नित ही बलवान। उनसे ही तो बल मिले, हो जीना आसान।। बिना ज्ञान नहिं चेतना, जीवन जाता हार। गुरु हैं जहाँ, रहे वहाँ, नित चोखा उजियार।। गुरु देते संस्कार नित, कर देते निर्माण। नहीं कभी लगते यहाँ, मानव को तब बाण।। हर दुर्गुण को दूर करे, लाते मंगलगान। गुुरु से ही जीवन हँसे, रह पाती है आन।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रद...
गुरु को प्रणाम
कविता

गुरु को प्रणाम

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा गुरु मेरे लिए पूज्यनीय है, खुद से भी ज्यादा आदरणीय है। जिसने दिया मुझे अनमोल ज्ञान, वो ज्ञानी मेरे लिए है सबसे महान। मेरे गुरु ने मुझे भविष्य की राह दिखाया है, कँटीले रास्ते में भी शान से चलना सिखाया है। मेरे जीवन से जिसने अंधकार को दूर किया है, जिसने मेरे मस्तिष्क को ज्ञान से भर दिया है। प्रणाम उनके चरणों में जिसने मुझे तालिम दी, जिनके कृपादृष्टि से मैंने विद्या हासिल की। वो मेरे जीवन का नित्य पथ प्रदर्शक है, वो मेरे जीवन का एक मार्गदर्शक है। उनके चरणों में कोटि-कोटि नमन, प्रफुल्लित मन से हार्दिक अभिनंदन। गुरु-शिष्य का ये पवित्र नाता अमर रहे, पूरा संसार शिक्षक दिवस मनाता रहे। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषण...